एक थी नचनिया--भाग(६) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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एक थी नचनिया--भाग(६)

जुझार सिंह को सामने देखकर कस्तूरी के होश उड़ गए,वो अपनेआप को छुड़ाने की कोशिश करने लगी...
लेकिन वो खुद को छुड़ाने में असफल रही,जुझार सिंह ने कस्तूरी के हाथ पैर बँधे रहने दिए लेकिन उसके मुँह की पट्टी खोल दी फिर उससे बोला.....
अपनी मर्जी से हमारी हो जा,वरना तुझ जैसी नचिनियों पर कैसें काबू पाना है वो हमें अच्छी तरह से आता है?
तू कुछ भी कर लें,लेकिन तू जो चाहता है मैं कभी नहीं करूँगी,कस्तूरी चीखी।।
ज्यादा चीख मत,तेरी जैसी लड़कियांँ रोज हमारे बिस्तर पर पड़ीं रहतीं हैं,जुझार सिंह बोला....
लेकिन मैं उन जैसी बाजारू औरत नहीं हूँ,कस्तूरी बोली।।
और तेरी हेकड़ी हैं ना सो हम उसे एक ही बार में निकाल देगें,जुझार सिंह बोला।।
मर्द का बच्चा है तो पहले मेरे हाथ पैर खोलकर दिखा,कस्तूरी बोली।।
तेरी इतनी हिम्मत,तू हमसे ऐसे बात कर रही है,जुझार सिंह बोला...
तू इसी लायक है,जो आदमी औरतों की इज्जत ना करता हो तो उससे ऐसे ही बात की जाती है,कस्तूरी बोली।।
अच्छा!तू तो हमें सिखाएगी कि हमें किससे कैसा बर्ताव करना चाहिए,जुझार सिंह बोला....
तुझे तेरी औकात बता रही हूँ कि तू कितना गिरा हुआ और निर्लज्ज इन्सान है,किसी लड़की को ऐसे उठवाकर कैद करना,ये तेरी मर्दानगी है,तू अपने आप को मर्द कहता है ,अरे!तू तो मर्दों के नाम पर कलंक है,असली मर्द तो वो होता है जो औरतों की इज्ज़त करता है,कस्तूरी बोली।।
तूने हमारी मर्दानगी को ललकारा है,अब तुझे हम अपनी मर्दानगी दिखाते हैं और फिर इतना कहकर जुझार सिंह उस रात कस्तूरी पर झपट पड़ा,वो चीखती रही, चिल्लाती रही लेकिन जुझार सिंह ने कस्तूरी की एक ना सुनी और जब तक उसने अपने मन की ना कर ली वो ना माना,उसने उस रात कस्तूरी का सतीत्व भंग करके ही दम लिया ,इसके बाद उसने उसके हाथ पैर खोल दिए और उस मकान से बाहर धक्के देकर निकाल दिया और फिर बोला....
तेरी यही सजा है,हमसे अकड़ दिखा रही थी,तेरी जैसियों को हम जूते की नोंक पर रखते हैं...समझी!
कस्तूरी कुछ ना बोल सकी क्योकिं उसकी हालत ही ऐसी नहीं थी कि वो कुछ बोल सके,ऊपर से ना जाने कौन सा गाँव था और ना जाने कौन सी जगह,ऊपर से सुनसान,वो मदद माँगती भी तो भला किससे माँगती,उसके शरीर में ताकत भी नहीं बची थी,जुझार सिंह ने उसे धक्का दीया तो वो वहीं गिर पड़ी फिर दोबारा उठ ना सकी और जुझार सिंह ने उस कमरें से लालटेन बाहर निकाली और बुझा दी फिर वहीं खड़े अपने घोड़े पर सवार होकर चला गया,कस्तूरी यूँ ही धरती पर पड़ी रही....
कस्तूरी के पास ओढ़ने को कुछ ना था,ऊपर से धरती ठण्डी और मौसम ठण्डा और वो धीरे धीरे बेसुध होने लगी,आधी रात से ज्यादा का समय बीत चला था और कस्तूरी यूँ ही धरती पर पड़ी थी तभी कुछ घोड़ो की टाँपें सुनाई दी और वें घोड़े कस्तूरी की ओर आएं,उन घोड़ों पर सवार लोगों के हाथों में मशाले थीं और वें कस्तूरी को ही ढ़ूढ़ रहे थे,वें और कोई नहीं श्यामा डकैत और उसके साथी थे...
तभी उनमें से एक साथी श्यामा डकैत से बोला.....
सरदार!यही मकान बताया था मुखबिर ने...
तो फिर चलो,उतई चलो,शायद कस्तूरी उतई दिख जाएं,श्यामा डकैत बोली...
और फिर सब जन उस मकान की ओर गए और सचमुच उन्हें कस्तूरी वहाँ दिख गई,श्यामा घोड़े से उतरकर फौरन कस्तूरी के पास गई और उसे छूकर देखा,उसने देखा कि कस्तूरी का शरीर बहुत ठण्डा था और वो बेहोश हो चुकी थी,,श्यामा ने कस्तूरी की हालत देखी तो बोलीं....
इसकी हालत तो बहुत खराब है,बिना डाक्टर के हालत सुधरने वाली नइया!
तभी उनमें से एक बोला....
लेकिन सरदार! ये कैसे पता करें कि यही कस्तूरी है,हम सब तो इसे पहचानते भी नहीं.....
अब जे कस्तूरी है के नई,जो सब हम बाद में पता करत रेहें,पहला ई मोड़ी को इलाज कराबो जरूरी है,अब चाहे जा कस्तूरी हो चाहे ना हो लेकिन ईकी हालत खराब है सो पहला ईको इलाज ज्यादा जरुरी है,
इतना कहने के बाद श्यामा ने कस्तूरी को अपने घोड़े पर लादा और चल पड़ी दवाखाने की ओर,कुछ ही देर में वें एक कस्बें के डाक्टर के घर पहुँचे और उसके घर के दरवाजे खटखटाएं,डाक्टर ने दरवाजा खोला तो श्यामा ने उसकी कनपटी पर दोनाली बंदूक रखते हुए कहा....
डाक्टर!अपनी भलाई चाहत हो तो हल्ला ना मचाइओ,चुपचाप ई मोड़ी को इलाज कर दो,हमे और कछु नई चाहने....
डाकुओं की फौज अपने सामने देखकर डाक्टर बाबू डर गए और फौरन अपनी बुश्शर्ट पहनी और बोलें...
लड़की को इस तरफ लाओ,दवाखाना इस कमरे में हैं...
कस्तूरी को एक डाकू अपनी गोद में उठाकर दवाखाने के भीतर ले गया और उसको बेड पर लिटा दिया,डाक्टर ने कस्तूरी की जाँच की और बोला....
किसी ने इसके साथ दुष्कर्म करके इसे ठण्ड में बाहर फेंक दिया,सीने में ठण्ड बैठ गई है,मैं फौरन ही अँगीठी उठाकर लाता हूँ,घर में जल रही है,आप लोंग तब तक इनके हाथ पैर सेकिये और मैं भी अपना इलाज शुरू करता हूँ,फिर इतना कहकर डाक्टर अपने घर के दो तीन कम्बल उठा लाया और कस्तूरी पर डाल दिए,श्यामा और उसके साथियों ने कस्तूरी के हाथ पैर सेकें और डाक्टर ने कुछ सुइयाँ लगाई,कुछ ही देर में कस्तूरी का बदन गरम होने लगा,दो तीन घंटे के बाद कस्तूरी को होश भी आ गया,अपनी आँखें खोलते ही अपने इर्दगिर्द इतने लोगों को देखकर वो आश्चर्य में पड़ गई....
उसे ऐसे हैरान देखकर श्यामा ने कस्तूरी से कहा....
परेशान ना हो,हम सब तो तुम्हारी मदद कर रये ते...
अब का फायदा,उस राक्षस को जो करना था वो तो वो कर ही चुका,कस्तूरी रोते हुए बोली....
कौन राक्षस?और तुमाओ नाम का है,श्यामा ने पूछा।।
वो जुझार सिंह उसने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा,कस्तूरी रोते हुए बोली...
इको मतलब तुम कस्तूरी हो,श्यामा बोली।।
हाँ!मैं ही कस्तूरी हूँ,कस्तूरी रोते हुए बोली.....
हमें माँफ कर दो, हमारी बहना!हम समय से ना पहुँच सकें,अम्मा ने जब से बताया तो हम तबही से तुम्हें ढूढ़ रहे हैं,हम समय से पहुँच जाते तो तुमाए संग जो सबकछु ना हो पातो,श्यामा सान्त्वना देते हुए बोली...
लेकिन मैनें आपको पहचाना नहीं,कस्तूरी ने श्यामा से कहा...
हम तुमाई सुखिया दादी की बिटिया श्यामा हैं,श्यामा बोली...
अच्छा !जो डकैत है,कस्तूरी बोली।।
हाँ!वही,श्यामा बोली।।
मुझे क्यों बचाया आपने?इससे अच्छा होता कि मुझे मर जाने दिया होता,अब मैं किसे जाकर अपना मुँह दिखाऊँगीं,मेरे छोटे छोटे भाई बहन हैं,दादी है क्या होगा उनका?कस्तूरी बोली।।
उनका तो बाद में देखा जाएगा पहले तो इस जुझार सिंह का काम तमाम होगा,हम भी देखतें हैं कि जुझार सिह अपने आप को कितना बड़ा जमींदार समझता है,हम उसकी सारी हेंकड़ी निकाल देगें....
लेकिन सरदार! अभी कस्तूरी की हालत ठीक नहीं है,पहले इसे ठीक हो जाने दो,फिर तो वो जुझार हमसे ना बच पाएगा,श्यामा का साथी बोला...
लेकिन हम कस्तूरी को रखें कहाँ ,जहाँ वो सुरक्षित रहे,श्यामा डकैत बोली।।
सरदार!अम्मा के यहाँ,वहीं जगह सबसे ठीक है,श्यामा का साथी बोला।।
जो तुम बिल्कुल ठीक कह रहे,चलो तो फिर अम्मा के यहाँ चलें,श्यामा बोली।।
और फिर श्यामा ने डाक्टर को हिदायत दी कि अगर जा बात पुलिस तक पहुँची कि हम इते आय हते सो तुमाई खैर नइया...
डाक्टर बोला,ना सरदार!आप इत्मीनान रखों,खबर बाहर ना जाएगी।।
लेकिन फिर डाकुओं के जाते ही जुझार सिंह के कुछ लठैत डाक्टर के पास आ पहुँचे और उससे पूछताछ की,डाक्टर बेचारा सीधा सादा आदमी सो उसने उन लोगों के सामने सब उगल दिया और फिर लठैतों ने जाकर जुझार सिंह को सावधान कर दिया,जुझार सिंह चिन्ता में डूब गया कि हो ना हो अब श्यामा डकैत उसे और उसके खानदान को नहीं छोड़ेगी,उसके बेटे और बेटी की तो अब खैर नहीं...
अब जुझार सिंह की हालत खराब हो चुकी थी और उसकी पत्नी कनकलता को भी ये बात पता लग गई कि उसके पति ने किसी लडकी का शीलभंग किया है तो वो भी उस पर नाराज हो उठी और उससे बोली.....
मैं जबसे ब्याहकर इस घर में आई हूँ,तब से आपको ऐसा ही पाया है,इस उम्र में भी आकर आपका जी नहीं भरा,ना जाने आपने कितनी लड़कियों की जिन्दगी बर्बाद कर दी होगी,कुछ नहीं तो अपने बच्चों के बारें में ही सोच लिया कीजिए,वें भी अब बड़े हो रहे हैं और सब समझने लगे हैं,आपका बेटा शुभांकर सोलह साल का हो चुका है और आपकी बेटी यामिनी चौदह की,ऐसा ना हो आपकी करतूतें देखकर कल को वें भी आपसे सवाल करने लगें,मैं तो अपने बच्चों की वजह से इस गाँव में आपके साथ टिकी हुई हूँ नहीं तो ना जाने कब का अपने भाई के पास कलकत्ता चली जाती,उन्होंने कितनी बार कहा कि वहाँ जाकर उनका कारोबार सम्भाल लो लेकिन आप मानते ही नहीं,लो अब आ गई ना नई मुसीबत,वो डकैत अब आपके खून की प्यासी हो गई है,अब क्या कीजिएगा?
अपनी पत्नी की बात सुनकर जुझार सिंह बोला...
चलो!जो अब तुम कहोगी,अब मैं वही करूँगा,आज ही सामान बाँधों हम रात की गाड़ी से कलकत्ता के लिए रवाना होते हैं,जितने भी कीमती जेवर और नगदी है उसे भी रख लेना,अब से हम इस गाँव में नहीं रहेगें और बच्चों का भविष्य भी सुधर जाएगा...
सच तो ये था कि जुझार सिंह की अब अपनी जान पर बन आई थी इसलिए उसने ये फैसला लिया था,वो श्यामा डकैत के डर से गाँव छोड़कर भाग जाना चाहता था.....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....