एक थी नचनिया--भाग(११) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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एक थी नचनिया--भाग(११)

माधुरी ने शुभांकर के कमरें में किसी महिला की तस्वीर देखी तो उसने उससे पूछा....
शुभांकर बाबू!ये कौन हैं?
तब शुभांकर बोला...
ये मेरी माँ की तस्वीर है,इनका नाम कनकलता था,लेकिन अब ये इस दुनिया में नहीं हैं...
ओह....बड़ा दुःख हुआ ये जानकर,मैं समझ सकती हूँ आपके मन की पीड़ा क्योंकि मेरी भी तो माँ नहीं है,माधुरी बोली....
तो क्या आप भी मेरी तरह माँ की ममता से महरूम हैं?शुभांकर ने पूछा...
जी!मेरे तो पिता भी नहीं हैं,माधुरी बोली...
ओह...चलिए छोड़िए ये सब बातें,कुछ और बातें करते हैं,वैसें आपको नाचने के अलावा और किस किस चीज का शौक है?शुभांकर ने पूछा....
जी,नाचना मेरा शौक नहीं,रोजी रोटी है,वो तो मुझे बिल्कुल पसंद नहीं,माधुरी बोली...
ठीक है तो आपके शौक क्या क्या है?शुभांकर ने पूछा...
जी!हम गरीबों के कहाँ कोई शौक होते हैं,अगर शौक होते हैं भी तो रोजी-रोटी कमाने के चक्कर में कहीं दबकर रह जाते हैं,मैंने तो जबसे होश सम्भाला है,तो मुझे तो याद ही नहीं कि मेरे कोई शौक भी हैं,माधुरी बोली...
लगता है बड़े तंगहाली में जिन्दगी बिताई है आपने,शुभांकर बोला...
जी!शुभांकर बाबू!कुछ ऐसा ही समझ लीजिए,माधुरी बोली...
लेकिन इतने दुख झेलने के बावजूद भी आपके चेहरे पर कहीं भी हार के निशान नहीं झलकते,शुभांकर बोला...
यही तो बात है शुभांकर बाबू!मैने कभी हारना नहीं सीखा,ना ही हालातों के सामने और ना ही इन्सानों के सामने,माधुरी बोली...
तब तो आप बड़ी बहादुर हैं,शुभांकर बोला....
जी!तारीफ के लिए आप का बहुत बहुत शुक्रिया,माधुरी बोली....
इसमें तारीफ की क्या बात है?आप हैं ही तारीफ-ए-काबिल,शुभांकर बोला.....
ये कुछ ज्यादा ही हो गया,माधुरी बोली....
ना जी!हम किसी की झूठी तारीफ नहीं किया करते,ये हमारी आदत में शामिल नहीं है,शुभांकर बोला...
अच्छा!....हा....हा...हा....हा..,ऐसा कहकर माधुरी हँसने लगी...
आपने मेरे शौक तो पूछे ही नहीं,शुभांकर बोला....
तो फिर लगे हाथ आप अपने भी शौक बता डालिए,माधुरी बोली...
इस नाचीज़ को पेंटिंग करने का शौक है,किताबें पढने का शौक है,घूमना-फिरना भी बहुत पसंद है और सबसे ज्यादा खाने का शौक है,शुभांकर बोला....
लेकिन खाने के शौक के बावजूद आप तो कहीं से बेडौल नहीं दिखते,माधुरी बोली....
मोहतरमा!जितना खाता हूँ उससे ज्यादा तो मैं वर्जिश कर लेता हूँ इसलिए वजन कन्ट्रोल में रहता है,खाने की आदत तो माँ की वजह से लगी थी मुझे,वो बहुत ही अच्छा खाना बनातीं थीं,मै उनकी तरह खाना बनाने की कोशिश करता हूँ लेकिन नहीं बना पाता,शुभांकर बोला...
तो आप खाने के साथ साथ पकाने का भी शौक रखते हैं,माधुरी बोली...
जी!थोड़ा थोड़ा,शुभांकर बोला...
कभी मौका लगेगा तो जरूर चखा जाएगा आपके हाथों के बने खाने का स्वाद,माधुरी बोली...
जी! जरूर,शुभांकर बोला....
दोनों को बातें करते बहुत देर हो चुकी थी,दोनों के बीच बातें चल ही रही थीं कि तभी रामरति काकी ने शुभांकर को आवाज दी....
छोटे बाबू!टेबल पर खाना लगा दिया है,यामिनी बिटिया भी आ गई है,दोनों जन खाना खाने आ जाओ...
आते हैं काकी!शुभांकर ने अपने कमरें से आवाज लगाई....
और फिर दोनों डाइनिंग हाँल में खाना पहुँचे,जहाँ यामिनी पहले से मौजूद थी,उसने माधुरी को देखा तो बोली...
दीदी!कैसी हो आप?
ठीक हूँ और तुम कैसी हो?माधुरी ने पूछा....
मैं भी ठीक हूँ,यामिनी ने जवाब दिया...
तब माधुरी का ध्यान खाने की ओर गया,रामरति काकी ने बहुत कुछ बनाया था,खाने की टेबल देखकर माधुरी के मुँह से निकल गया....
इतना सब तो हमारे यहाँ तीज-त्यौहार में बनता है....
मान लीजिए आज कोई त्यौहार है उसी खुशी में इतना खाना बना है,शुभांकर बोला...
ऐसे कैसें मान लूँ कि कोई त्यौहार है आज?माधुरी बोली...
आप हमारे यहाँ आई,इसलिए हमारे लिए आज का दिन किसी त्यौहार से कम नहीं,शुभांकर मुस्कुराते हुए बोला....
बस...बस..इतना बड़ा मत बनाइए मुझे,माधुरी बोली...
तभी रामरति काकी बोली....
बिटिया!इतना भी कुछ ज्यादा नहीं बना पाए हैं हम,भरवाँ बैंगन,आलू-पालक,दम-आलू,लहसुन की चटनी,पापड़ ,मीठे में मूँग का हलवा ,चावल और रोटी....बस इतना ही तो है...
इसे आप कम कह रहीं हैं,काकी!माधुरी बोली...
माधुरी दीदी!बातें बाद में कीजिएगा,पहले खाना शुरू करते हैं,बहुत जोरों की भूख लगी है,यामिनी बोली...
यामिनी का उतावलापन देखकर सब हंँस पड़े और फिर सबने अपनी अपनी प्लेट पर खाना परोसना शुरू किया,यूँ ही हँसी-मजाक करते खाना भी खतम हो गया,तब माधुरी बोली....
बहुत देर हो गई है,अब मुझे चलना चाहिए...
चलिए!मैं आपको छोड़ आता हूँ,शुभांकर बोला...
आप तकलीफ़ क्यों उठाते हैं?मैं चली जाऊँगी,माधुरी बोली...
ना!बिटिया! इतनी रात को भला तुम अकेले क्यों जाओगी?छोटे बाबू छोड़ आऐगें तुम्हें,रामरति काकी बोली...
अरे!इन्हें तकलीफ़ उठाने की जरूरत नहीं है,मैं चली जाऊँगी,माधुरी फिर से बोली....
तकलीफ़ किस बात की,आप हमारी मेहमान है और मेहमान को कोई दिक्कत ना हो इस बात का ख्याल रखना हमारा फर्ज है,शुभांकर बोला....
ठीक है तो ,अगर आप इतनी जिद ही कर रहे हैं तो चलिए फिर....माधुरी बोली...
और फिर जैसे ही माधुरी और शुभांकर बाहर जाने को हुए तो वैसे ही जुझार सिंह भीतर आया और उसकी नजरें माधुरी पर गईं,फिर फौरन ही उसने शुभांकर से सवाल किया....
कौन है ये और यहाँ क्या करने आई है?
जी!यामिनी की मोटर लौटाने आई थी,शुभांकर बोला....
क्यों?यामिनी अपनी मोटर इसे क्यों दे आई थी भला?जुझार सिंह ने पूछा....
तभी यामिनी बोल पड़ी....
बाबूजी! ये मेरी सहेली है,मेरे साथ कत्थक सीखती है,इसके घर के पास कल मेरी मोटर बिगड़ गई थी,तो ये बोली कि उसे ठीक करवाकर ले आएगी,इसलिए मोटर लौटाने आई थी....
अच्छा!तब ठीक है,जुझार सिंह बोला....
जी!बाबूजी!यही बात है,शुभांकर बोला...
नाम क्या है तुम्हारा?,जुझार सिंह ने माधुरी से पूछा...
जी!माधुरी,माधुरी बोली...
ठीक है और इतना कहकर जुझार सिंह अपने कमरें की ओर बढ़ गया,माधुरी उससे नमस्ते कहना चाहती थी लेकिन जुझार सिह उसे ये कहने का मौका दिए बिना ही चला गया....
जुझार सिंह के जाते ही शुभांकर बोला....
ये मेरे बाबूजी है...
जी!पता है!माधुरी बोली...
आप ने कैसे जाना कि ये मेरे बाबूजी हैं?,शुभांकर ने पूछा...
जी!उनके बोलने के अन्दाज़ से,माधुरी बोली...
माधुरी की बात सुनकर शुभांकर हँसने लगा,फिर माधुरी ने यामिनी और रामरति काकी को अलविदा कहा,इसके बाद दोनों बँगले के बाहर गैराज में आएं,शुभांकर ने मोटर का दरवाजा खोलते हुए यामिनी से मोटर में बैठने को कहा,फिर दोनों होटल की ओर चल पड़े,मोटर की खिड़की से हवा आ रही थी और माधुरी के खुले लम्बे बाल उड़ रहे थें,वो उन्हें बार बार समेटने की कोशिश कर रही थी,उसे ऐसे करते देख शुभांकर बोला...
आपके बाल बड़े खूबसूरत हैं...
जी!शुक्रिया!माधुरी बोली....
साड़ी मेँ आप बहुत खूबसूरत लग रहीं हैं,शुभांकर ने फिर से माधुरी की तारीफ करते हुए कहा...
जी!शुक्रिया!माधुरी फिर से बोली...
इसके बाद दोनों के बीच चुप्पी लगी लगी रही,माधुरी अपने उड़ते हुए बाल सँवारती रही और शुभांकर उसे यूँ ही निहारता रहा,कुछ ही देर में वें दोनों होटल के सामने थे,तब शुभांकर बोला....
मोहतरमा!आपका होटल आ गया...
जी!यहाँ तक आने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया,माधुरी बोली...
शुक्रिया तो आप यामिनी की मोटर का कीजिए,जिसे छोड़ने आप हमारे घर तक आईं और इसी बहाने आपसे मुलाकात हुई,शुभांकर बोला.....
शुभांकर की इस बात पर दोनों हँस पड़े ,फिर माधुरी बोली....
आप बड़े ही दिलचस्प इन्सान हैं,चलिए अब मैं चलती हूँ,फिर कभी और मुलाकात होगी...
जी!मुझे ऐसी मुलाकात का इन्तजार रहेगा,शुभांकर बोला...
फिर माधुरी मोटर से उतरी और शुभांकर को हाथ हिलाकर बाय बोलकर होटल की ओर चल पड़ी....
और फिर शुभांकर उसे जाते हुए देखता रहा....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....