Ek thi Nachaniya - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

एक थी नचनिया--भाग(३)

इतना क्यों शरमा रही हो?जवाब दो ना!मोरमुकुट सिंह ने पूछा।।
मेरे पास तुम्हारे सवाल का कोई जवाब नहीं है,कस्तूरी बोली...
ठीक है मत दो मेरे सवाल का जवाब,लेकिन मुझे ये करधनी पहनकर तो दिखाओ,मोरमुकुट सिंह बोला।।
नहीं!मुझे नहीं पहननी ये करधनी और मुझे ये चाहिए भी नहीं,अगर तुम्हें मुझे उपहार देने का इतना ही मन है तो जब कभी शहर जाना तो मेरे लिए सलमा सितारों की धानी रंग की चुनरिया ले आना,कस्तूरी बोली।।
मेरा मन रखने के लिए ये करधनी रख लों,मैं धानी चूनर भी ला दूँगा,मोरमुकुट सिंह बोला।।
नहीं!जिद मत करो,अगर मैनें ये करधनी रख ली और कभी पहनी तो लोंग सोचेगें कि मैनें चोरी की है,क्योंकि इतनी महँगी करधनी खरीदने की मेरी औकात नहीं है,कस्तूरी बोली।।
तो तुम इसे नहीं रखोगी,मोरमुकुट ने पूछा।।
नहीं!बिल्कुल!कस्तूरी बोली।।
ये कहकर तुमने तो मेरा दिल ही तोड़ दिया,मोरमुकुट बोला।।
अब तुम्हारा दिल टूटे तो मैं क्या करूँ?मैं बहुत गरीब हूँ और जैसे तैसे अपना और अपने परिवार का पेट पालती हूँ,मुझ गरीब पर अगर चोरी का इल्जाम लगा तो मैं जी नहीं पाऊँगी,नाचती गाती जरूर हूँ, कोई रुपए भेंट स्वरूप दे देता है तो ले लेती हूँ लेकिन कभी चोरी नहीं करती,ये कहते कहते कस्तूरी की आँखें भर आईं....
मुझे मालूम है कस्तूरी कि तुम ऐसी नहीं हो तभी तो मेरा मन हुआ कि मैं तुमसे बात करूँ,तुम्हें ये करधनी नहीं लेनी तो मत लो,अब मैं और जिद नहीं करूँगा,लेकिन उदास मत हो,मोरमुकुट सिंह बोला।।
लेकिन ना लेने पर तुम बुरा तो ना मान जाओगे,कस्तूरी ने पूछा।।
नहीं....बिल्कुल नहीं!कस्तूरी!बल्कि मुझे तो अच्छा लगा ये जानकार कि तुम लालची नहीं हो,तुम्हारा ये भोलापन ही तो मुझे भा गया है तभी तो......ये कहते कहते मोरमुकुट रुक गया..
तब कस्तूरी ने पूछा....
तभी तो.....क्या तभी तो....आगें बोलों...
फिर कभी बोलूँगा,मोरमुकुट मुस्कुराते हुए बोला।।
तुम भी ना बहुत अजीब हो बिल्कुल अपने नाम की तरह,कस्तूरी बोली....
अच्छा तो तुम्हें मेरा नाम पसंद नहीं आया,मोरमुकुट ने पूछा...
नहीं....बिल्कुल नहीं...ये भी कोई नाम है भला...,कस्तूरी बोली...
और मैं पसंद आया कि नहीं,मोरमुकुट ने पूछा...
ये भी भला कोई पूछने की बात है तुम तो बहुत अच्छे हो,कस्तूरी बोली....
अच्छा ये बताओ पढना लिखना जानती हो,मोरमुकुट ने पूछा।।
हाँ...अपना नाम लिख लेते हैं,कुछ कुछ पढ़ भी लेते हैं,जब अम्मा और बाऊजी जिन्दा थे तो मैं स्कूल जाया करती थी,तब स्कूल के मास्टर जी ने पढ़ना लिखना सिखाया था,अम्मा बाऊजी के जाने के बाद पढ़ाई छूट गई फिर भाई बहनों को सम्भालते सम्भालते मैं कब इतनी बड़ी हो गई पता ही नहीं चला,कस्तूरी बोली।।
ओह...इतनी कम उम्र में इतना सबकुछ सम्भाल लिया तुमने,तुम तो बड़ी बहादुर हो,मोरमुकुट बोला।।
जब सिर पर पड़ता है तो उसे सम्भालना भी आ जाता है,कस्तूरी बोली।।
वो बात भी है,लेकिन मैं तो कभी ना सम्भाल पाता,मोरमुकुट बोला।।
यही तो फर्क होता है आदमी और औरत में,लोंग कहतें हैं कि औरत कमजोर होती है और आदमी मजबूत,लेकिन ऐसा कुछ नहीं है औरत से मजबूत तो भगवान भी नहीं होता,कस्तूरी बोली।।
बिल्कुल सही कहा तुमने,मोरमुकुट बोला।।
चलो आदमी होकर तुम तो ये बात मानते हो,कस्तूरी बोली।।
ये सब गाँव में होता है,शहर में देखों तो औरतें मर्दाना कपड़े पहन के मोटर तक चलातीं हैं,मोरमुकुट बोला...
हाय..दइया...सच्ची!कस्तूरी बड़ी बड़ी आँखें करती हुई बोली।।
हाँ!सच्ची!मोरमुकुट बोला।।
लेकिन तुम्हें कैसें पता?कस्तूरी ने पूछा...
मैं शहर में पढ़ता हूँ ना!तो मैनें देखा है,मोरमुकुट बोला।।
अच्छा!और का..का...होता है शहर में,कस्तूरी ने पूछा।।
बहुत कुछ होता है जब तुम शहर जाओगी तो तुम्हें सब पता चल जाएगा,मोरमुकुट बोला।।
ये सब देखना मेरी किस्मत में कहाँ?कस्तूरी बोली।।
मैं ले चलूँगा तुम्हें शहर,मोरमुकुट बोला....
लेकिन तुम क्यों मुझे शहर ले जाओगें भला!कस्तूरी ने पूछा।।
क्यों मेरे साथ नहीं चलोगी,विश्वास नहीं है मुझ पर,मोरमुकुट बोला।।
ऐसी बात नहीं है,कस्तूरी बोली।।
तो फिर क्या बात है?मोरमुकुट ने पूछा।।
एक तो तुम्हारा नाम बहुत अटपटा सा है,तुम्हारा और कोई सरल सा नाम नहीं है,कस्तूरी ने पूछा।।
ये सुनकर मोरमुकुट पहले तो हँसा फिर बोला....
अच्छा तो मेरा नाम अटपटा है इसलिए मेरे साथ शहर नहीं जाओगी,ये भी कोई बात हुई भला,मेरी माँ मुझे प्यार से मोनू कहकर पुकारती है,तुम भी मोनू ही कहा करो...
हाँ!यही सही रहेगा,कस्तूरी बोली।।
अरे...बाप ..रे!अँधेरा घिरने वाला है,अब मुझे घर जाना होगा,मेरी दादी मेरी बाट जोहती होगी,कस्तूरी बोली।।
इतनी जल्दी चली जाओगी,मोरमुकुट बोला।।
अरे....जल्दी...कहाँ है,दिन डूबने वाला है,कस्तूरी बोली,
अच्छा!ठीक है तो जाओ,अब नहीं रोकूँगा,मोरमुकुट बोला।।
ठीक है तो जाती हूँ....
और फिर कस्तूरी जाने लगी तो मोरमुकुट ने पूछा....
फिर कब मिलोगी?
पता नहीं,कस्तूरी बोली।।
अब तुम्हारी नौटंकी कब है ?मैं वहीं आ जाऊँगा,मोरमुकुट बोला।।
रामखिलावन बता रहा था कि परसों रात बगल वालें गाँव धीरजपुर में नौटंकी है तो कल ही वहाँ के लिए बैलगाड़ी में निकलना होगा,कस्तूरी बोली।।
तो फिर मैं वहीं आ जाऊँगा,मोरमुकुट बोला।।
नहीं....बदनाम करोगे का ,कस्तूरी बोली।।
ठीक है तो नहीं आऊँगा,मोरमुकुट बोला....
तुम सच्ची बहुत अच्छे हो,तुरन्त कहा मान लेते हो,कस्तूरी बोली।।
ठीक है...ठीक..है...अब जाओ,तुम्हें देर हो रही है,मोरमुकुट बोला।।
और फिर कस्तूरी वहाँ से मुस्कुराते हुए चली आईं,घर पहुँची तो पानकुँवर उसकी बाट जोह रही थी,कस्तूरी को देखते ही बोली....
बड़ी देर लगा दी,बिन्नू!
हाँ!मंदिर में तनिक मन लग गओ तो,कस्तूरी बोली।।
ठीक है,अब कल की तैयारी कर लो...कछु..भूल ना जइओ,कल दूसरे गाँव जाने है ना!पानकुँवर बोली।।
तैयारी बाद में कर ले है हम,चलो आज की रोटी हम बना लेत हैं,कस्तूरी बोली।।
वो तो हम कब की बना चुके,पानकुँवर बोली।।
तुम भी कबहुँ कबहुँ ग़जब करतीं,कस्तूरी बोली।।
चलो सब जने से कहो कि रोटी खा लेबें,पानकुँवर बोली।।
ठीक है हम सबको को बुला के ला रहे हैं और फिर कस्तूरी बाहर खेल रहे अपने भाई बहनों को बुलाने चली गई,थोड़ी देर में सब घर पहुँचें,सबने हाथ मुँह धुले,तब तक अँधेरा हो गया था ,घर में लालटेन और ढ़िबरी जला दी गई थीं,सब रसोई में खाना खाने पहुँचे,सबने खाना खाया और कुछ देर बातें की,फिर सो गए...
और उधर मोरमुकुट को नींद नहीं आ रही थी,उसे अपनी आँखों के सामने कस्तूरी ही कस्तूरी दिख रही थी,शायद वो कस्तूरी को चाहने लगा था...
दूसरे दिन दोपहर तक कस्तूरी बैलगाड़ी में सवार होकर रामखिलावन के साथ दूसरे गाँव धीरजपुररवाना हो गई,शाम होने तक वें सभी वहाँ पहुँच गए,रात को रामखिलावन की पार्टी को गाँव की एक धर्मशाला में ठहराया गया,उनके खाने का बंदोबस्त भी उन्हीं लोगों ने किया जिन लोगों ने उन्हें नौटंकी करने के लिए बुलाया था,उन्होंने उनके खाने का बहुत अच्छा इन्तजाम किया था,साथ में उनकी बैलगाड़ियों के खड़ी करने और बैलों के दाना पानी की अच्छी ब्यवस्था थी,खाना खाने के बाद सभी को नींद आने लगी क्योंकि सभी सफ़र में थक चुके थे,बैलगाड़ी जैसा वाहन और कच्ची सड़कें ऐसा सफ़र किसी को भी थका देगा,रामखिलावन ने कस्तूरी को एक अलग कोठरी में लेट जाने को कहा और सभी मर्दों से कहा कि हम सब एक साथ लेट जाते हैं,अच्छा नहीं लगता आखिर कस्तूरी हम सबकी बहन बेटी जैसी है,सबने रामखिलावन की बात मान ली और सब सोने की तैयार कर ही रहे थें कि तभी जुझार सिंह वहाँ आएं जिन्होंने उन सबको नौटंकी के लिए बुलाया था और रामखिलावन से पूछा....
तो तुम हो इस नौटंकी के मालिक...
जी!हुजूर!मैं ही हूँ,रामखिलावन बोला।।
देखना कल का जलसा कमजोर ना रहें,तुम्हारी पार्टी की नचनिया तो जोरदार है ना!बस मेहमानों को मज़ा आ जाना चाहिए,जुझार सिंह बोलें....
हुजूर!आपको शिकायत का मौका नहीं मिलेगा,रामखिलावन बोला।।
तो अपनी नचनिया से तो मिलवाओ,जुझार सिंह बोला...
हुजूर!वो बहुत थकी थी इसलिए जल्दी सो गई,रामखिलावन बोला...
इतनी जल्दी सो गई,जागती होती तो हम भी उसकी एक झलक देख लेते,जुझार सिंह बोला।।
हुजूर!कल के जलसे में झलक क्या?उसे अच्छी तरह से देख लीजिएगा,रामखिलावन बोला।।
ठीक है तो अभी हम जा रहे हैं और अगर तुम्हारी नचनिया ने हमारा दिल जीत लिया तो हम उसे मुँहमाँगी बख्शीश देगें,जुझार सिंह जाते हुए बोला.....
जुझार सिंह के जाने के बाद पार्टी में से ही ढ़ोलक बजाने वाला नन्दू बोला....
रामखिलावन भइया!कस्तूरी तो अभी जाग रही होगी तो तुमने झूठ क्यों बोला?
तू नहीं जानता नन्दू ये जुझार सिंह एक नम्बर का लफंगा आदमी है,मैं नहीं चाहता कि बेचारी कस्तूरी किसी भी लफंगे की गंदी नजरों की शिकार हो,वो पेट पालने के लिए नाचती हैं इसका मतलब उसकी कोई इज्जत नहीं,कोई भी ऐरा गैरा़ उससे मिलना चाहेगा और मैं उससे मिलने दूँगा,रामखिलावन बोला....
ये भी तुमने सही कही रामखिलावन भइया,हम सब भी तो कस्तूरी के भाई जैसे है,हम सब भी उसकी रक्षा करेगें,नन्दू बोला।।
अच्छा लगा ये सुनकर,रामखिलावन बोला।।
और फिर सभी अपने अपने बिस्तर पर लेट गए,सुबह हुई और कस्तूरी मुँह अँधेरे जाग उठी तब उसने धर्मशाला में झाड़ू लगा रही नौकरानी से नदी या नहर का रास्ता पूछने का सोचा क्योंकि उसे नहाने जाना था,तब वो नौकरानी से बोली....
बहन!नदी या नहर का रास्ता कहाँ से ,नहाने जाना था।।
बहन !यहाँ नहर है,मैं तुम्हारे साथ अपनी लड़की को भेजे देते हूँ,वो तुम्हें नहर तक लिवा ले जाएगी,नौकरानी बोली।।
और फिर उस नौकरानी की बेटी के साथ कस्तूरी नहर पर नहाने चली गई और जब वो नहाकर वापस लौट रही थी तो धर्मशाला के पास उसे जुझार सिंह मिल गया लेकिन वो उसे पहचानती नहीं थी,इसलिए उसे अनदेखा करके आगें बढ़ गई,तब पीछे से जुझार सिंह बोला.....
ए...लड़की धर्मशाला में कहाँ घुसी जा रही है?
तुमसे मतलब,तुम कौन होते हो ये पूछने वाले?कस्तूरी बोली....
तुम्हारी इतनी हिम्मत तुम हमसे ऐसे बात करोगी,जुझार सिंह बोला.....
तो तुम कहीं के राजा महाराजा हो जो मैं तुमसे अद़ब के साथ बात करूँ,कस्तूरी बोली....
ये लड़की !जुबान सम्भालकर बात कर,जुझार सिंह बोला....
पहले तू अपनी जुबान सम्भाल,कस्तूरी बोली.....
पहले तू ये बता कि तू है कौन?जुझार सिंह ने पूछा।।
मेरी छोड़ तू बता कि तू कौन है?कस्तूरी ने पूछा।।
तू हद से आगें बढ़ रही है,जुझार सिंह बोला...
मैं तो अपनी हद में हूँ शायद तू अपनी हद भूल गया है.....
धर्मशाला के बाहर हो रही चिल्लमचिल्ली की आवाज़ सुनकर रामखिलावन के साथ साथ सभी बाहर आएं और कस्तूरी को जुझार सिंह के साथ उलझता हुआ देखकर सभी के होश उड़ गए....

क्रमशः.....
सरोज वर्मा.....


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