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कुछ अनकही ख़ामोश यादें

1.
ये क्या कह दिया तुमने..
फुरसत हो तो..??
मेरा हर लम्हा..
..बस तुम्हारा है
पढ़ा है... हर रात तुम्हे..
देखा है.. सुना है
हर पल.. हर लम्हा..
तुम्हे ही तो बुना है
और सब्र...
हर एक रात की
चौखट पर बैठी मै
सब्र ही तो करती हूं और
इंतज़ार करती हूं तुम्हारा.
हर दिन की भोर
शुरु होती है तुमसे ही तो.
दामन थामकर
तुम्हारी यादों का
पार कर आती हूं..
समंदर जैसा दिन
और आ जाती हूं...
सांझ की चौखट पर
जलाती हूं आस का दिया
कि... आओगे तुम आज फिर
ख़्वाबों मे मेरे.. और
जियेंगे हम...वो पल
संजो लुंगी.. ख़ूबसूरत लम्हे
आने वाले कल के लिये.
भर लुंगी... आँखों मे अपनी
तुम्हारा वो चेहरा
देखकर जिसे
मुस्कुराती रहूंगी सारा दिन
आने वाली सांझ के लिये.
क्या अब भी कहोगे..
फुरसत हो तो...
पढ़ लेना मुझे...

2.
..चूड़ियाँ
जो लेकर आए थे
तुम...मेरे लिये.
लेकिन...
पल भर ठहरकर
जाने क्या सोचकर
बिना दिए ही चले गए..
मैंने देखा था तुम्हें.
दिल ने चाहा था..
तुम पहनाओ मुझे
मेरे हाथों को सजाओ
उन रंगीन चूड़ियों से..
चाहा था..दिल ने
तुम्हारी आखिरी निशानी
रख लूं सहेजकर..
पर..तुम चले गए.
कभी वापस ना आने के लिये.
बहुत संभालकर रखा है मैंने
आज भी... वही लम्हा..
अपने ज़हन में..

तुम्हारे नाम की चूड़ियां
पहन लेती हूँ..आज भी
तुम्हे याद करके.
सच कहो...क्या तुमने भी
संभालकर रखी हैं आज तक
वो चूड़ियां .... बोलो ना!!

3.
याद कर लेना
यूँ ही कभी.
मेरी नादानियाँ..
वो शैतानियां
खिलखिलता
इठलाता
मेरा अल्हड़पन
बेफिजूल सी बातें.
बिन मांगे.. देती थी जो
मै तुम्हे ढेरो सौगाते
रूठें रूठें से दिन
जैसे मछली हो जल बिन
कभी तो.. याद कर लेना
... मेरे जाने के बाद.

याद कर लेना कभी तो..
वो आधी चाय की प्याली
तुम्हारे लबों से छूकर
पूरी हो जाती थी जो..
खाने का पहला कौर
मेरे संग तुम्हारी हर भोर
आंख मलती वो सुबह
अलसाई सी शाम..
आगोश मे समेटे वो रात
भीगे भीगे से जज़्बात
याद कर लेना यूँ ही कभी
.... मेरे जाने के बाद.

खाना खाया या नहीं..
याद किया हमें या नहीं
पूछना ये घड़ी घड़ी
फ़ोन पर करती तुमसे
मै...बातों की वो लड़ी
बात बात पर चिढ़ाना
और मेरा वो गले से
कसकर लिपट जाना
मनवाकर अपनी बातें सारी
देखकर तुमको...
मेरा वो प्यार से मुस्कुराना
आऊं जो ख़्यालों मे तो..
याद कर लेना मुझे यूँ ही कभी.
... मेरे जाने के बाद.
मेरे जाने के बाद....
मेरे जाने के बाद...

4.
बिन तेरे गुजारे ये महीने....
तुम्हारे एहसासों के साथ
आज..दिसंबर भी जाने को है
तुम्हारी यादों की धुंध मे
जनवरी बीती..
तेरे आने की उम्मीद लेकर
फ़रवरी खिलखिलाई
प्यार के आगोश मे तेरे
फाल्गुन की कलियाँ इठलाई
कुछ नर्म कुछ गर्म
अरमानों को लेकर अप्रैल आया
ख्वाइशों की धूप मे
मई जून ने..फिर..
मन को मेरे..बहुत झुलसाया
ज़ज्बातों के बीच हुई
मेरी बहुत ही रुसवाई
तुम्हारे प्यार से भिगोने मुझको
बरसात लेकर आ गयी जुलाई
तन भीगा.... मन भीगा
तुझसे मेरा अंतर्मन भीगा
बीता अगस्त यूँ भीगकर
कुछ मद्धम मद्धम मुस्कान लिये..
चला आया सितम्बर
तड़पाया तुम्हारी यादों ने
और बीतने लगा यूँ...
अक्टूबर और नवम्बर
तुम्हारे एहसासों के साथ
फिर आ गया दिसंबर
आस..एहसास..ज़ज्बात
आरज़ू...और जुस्तज़ू
सब ले आया ये साल..
पर ला सका तुझको...
बस....ला ना सका तुझको.

5.
तेरी बाहों के आगोश में
मेरा इस कदर डूब जाना
तेरे होठों से निकले शब्दों से
मेरी सांसों का सूख जाना
याद आता है मुझे हर वक्त
वो गुजरा हुआ जमाना

वो मासूम चेहरे का
हर बात पर मुस्कुराना
वो बारिश की रिमझिम में
कहीं दूर तक टहल आना
तेरे हाथों की तपिश में
वो ठंडक को मिटाना
वो रूठना हर बात पर
फिर खुद ही मान जाना
कैसे कहूं कि भूल जाऊं
वो गुजरा हुआ जमाना

वो करते रहना शरारतें
फिर खुद ही मुस्कुराना
वो बंद आंखों को मेरी
होठों से अपने चूम जाना
वो बिन साज के ही हमेशा
हर बात पर गुनगुनाना
कैसे कहूं कि भूल जाऊं
वो गुजरा हुआ जमाना

कभी खुशियों में हंसाना
कभी यादों में रुलाना
कभी बातों को छुपा कर
यूं दबे होठों से मुस्कुराना
कभी मुझसे रूठ जाना
कभी मुझको ही मनाना
कैसे कहूं कि भूल जाऊं
वो गुजरा हुआ जमाना

तुमसे ही सीखा था
जिंदगी का फसाना
गम को छुपा कर
किसी के लिए मुस्कुराना
है प्यार इस कदर
चाहती हूं बताना
तुमसे जुड़ी है दुनिया
तुमसे ही आशियाना
कैसे कहूं कि भूल जाऊं
वो गुजरा हुआ जमाना...


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