साथिया - 42 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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साथिया - 42

समान जमा के अक्षत सांझ से मिलने आया।

उसने साँझ को हॉस्टल से पिक किया और फिर दोनों वही एक गार्डन में जाकर बैठ गए।

साँझ के चेहरे पर उदासी छाई हुई थी और आंखों में हल्की नमी थी। अक्षत ने उसके गाल से हाथ लगाया तो उसने उसकी तरफ देखा।

"अगर इस तरीके से परेशान होगी तो बताओ मैं कैसे जा पाऊंगा तुम्हें छोड़कर?" अक्षत ने कहा तो सांझ उसके सीने से लग गई।

"नहीं आप ऐसा मत सोचिए जज साहब। मैं तो बस ऐसे ही परेशान हूं। आप जाइये और अपनी ट्रेनिंग करके जल्दी से वापस लौटिये। पता नहीं क्यों पर दिल बहुत घबरा रहा है मेरा।" सांझ ने कहा तो अक्षत ने भी अपनी बाहों का घेरा उसके ऊपर कस दिया।

"घबराने की कोई बात जरूरत नहीं है...!! हां मैं मानता हूं कि थोड़ा अजीब लगता है। मुझे भी अजीब लग रहा है क्योंकि हम दोनों एक दूसरे से प्यार करते हैं और अब जब तक मेरी ट्रेनिंग पूरी नहीं हो जाती मैं वापस नहीं आ पाऊंगा और तुमसे मिलना नहीं हो पाएगा। पर हम फोन पर बात किया करेंगे ना। जब भी फ्री होंगे हम बात करेंगे। तुम बिल्कुल भी चिंता मत करो और कोई भी प्रॉब्लम हो तुम बेझिझक इशु से बोल सकती हो घर पर जाकर मम्मी पापा से कह सकतीं हो। वो लोग तुम्हारी पूरी पूरी हेल्प करेंगे अगर कुछ भी प्रॉब्लम होगी। और तुम देखना यह टाइम चुटकियों में निकल जाएगा और मैं तुम्हारे पास वापस आ जाऊंगा।" अक्षत ने कहा तो सांझ ने भरी आंखों से उसकी तरफ देखा।


"हमारे सारे सपने पूरे होंगे न जज साहब? कोई प्रॉब्लम तो नहीं आएगी?" सांझ ने कहा तो अक्षत ने उसका चेहरा अपनी हथेलियां के बीच थाम लिया।


"विश्वास रखो मुझ पर.....!! सब कुछ सही होगा बस विश्वास बनाए रखना और मेरा इंतजार करना। मैं वापस आकर सब कुछ सही कर दूंगा और एक बात याद रखना चाहे परिस्थितियों कैसी भी हो मैं हर कदम पर हर समय तुम्हारे साथ हूं। बस मुझ पर विश्वास रखकर मुझे हर बात बताना। और विश्वास रखना कि मैं तुम्हारा साथ कभी नहीं छोडूंगा।" अक्षत ने कहा और उसके माथे पर अपने होंठ रख दिए।

साँझ की आंखें बंद हो गई आंखों से कुछ आंसू निकल कर गालों पर बिखर गए।

कुछ देर दोनों एक दूसरे के साथ बैठे रहे।

"चलो तुम्हें हॉस्टल छोड़ देता हूं कल सुबह जल्दी निकल जाऊंगा फिर मिलना नहीं हो पाएगा!" अक्षत ने कहा तो सांझ उठ खड़ी हुई और आगे बढ़ने लगी तो अक्षत ने उसका हाथ पकड़ उसे अपने करीब खींच लिया और वापस से अपने सीने से लगा लिया।

"कहा है ना मैं हर समय हर परिस्थिति में साथ दूंगा ...!! बस मुझ पर विश्वास रखना और मुझसे कुछ भी मत छुपाना। मेरा इंतजार करना और देखना सब कुछ सही हो जाएगा। अब बिल्कुल भी डरने की और घबराने की जरूरत नहीं है। अपने आप को स्ट्रांग बनाओ सांझ। " अक्षत ने कहा तो सांझ ने गर्दन हिला दी।

अक्षत ने उसे हॉस्टल छोड़ा और फिर अपने घर निकल गया पर दोनों के ही दिलों में बेचैनी थी उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि यह बेचैनी क्यों है? शायद इसलिए कि अब कुछ महीनो तक दोनों मिल नहीं पाएंगे या और कोई कारण है। पर कुल मिलाकर अक्षत का बिल्कुल भी दिल नहीं कर रहा था सांझ को छोड़कर जाने का तो वही सांझ को भी यही लग रहा था कि अक्षत ना जाए पर मजबूरी थी वह अक्षत को नहीं रोक सकती थी। वह उसकी कामयाबी के रास्ते नहीं आना चाहती थी और वह जानती थी कि जज बनना अक्षत का सपना है इसलिए उसने अपने दिल पर पत्थर रख लिया और भरी आंखों और होंठों पर मुस्कान लिए अक्षत को विदा कर दिया।


अक्षत अगले दिन निकल गया और उसने अपनी ट्रेनिंग ज्वाइन कर ली।

दिल में सांझ की यादों को बसा कर वह की जान से अपनी ट्रेनिंग में लग गया जब भी समय मिलता है सांझ से बात कर लेता पर अक्सर ही ऐसा होता कि कई बार वह बात नहीं भी कर पाता था। कभी सांझ अपने हॉस्पिटल में बिजी होती तो कभी अक्षत अपनी ट्रेनिंग में। पर दोनों दूर होकर भी एक दूसरे के करीब थे बेहद करीब क्योंकि दोनों के दिलों के एहसास एक दूसरे से जुड़े हुए थे।

देखते ही देखते कुछ महीनो का समय निकल गया।

इन महीनों में नेहा ने अपनी पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए आनंद के साथ ही जर्मनी जाने का तय कर लिया। आनंद के साथ जर्मनी जाने के हिसाब से उसने अपनी तैयारी कर ली थी। उसने एंट्रेंस दे दिया था और उसे पूरी उम्मीद थी कि उसका सलेक्शन हो जाएगा और उसने सोच लिया था कि वह आनंद के साथ शादी करके यहां से जर्मनी चली जाएगी और वहीं पर आनंद के साथ बस जाएगी जहां पर आनंद की मम्मी और उनका हॉस्पिटल पहले से ही है था। और इसके हिसाब से नेहा ने बिना अपने घर में बताएं पूरी तैयारी कर ली थी क्योंकि वह जानती थी कि शायद अवतार सिंह इतनी आसानी से ना माने।

उसने सोच लिया था कि अगर अवतार सिंह उसके और आनंद के रिश्ते को स्वीकार करते हैं तो खुशी-खुशी शादी होगी पर अगर वह स्वीकार नहीं करते तब भी वह गांव की दकियानुसी बातों को नहीं मनेंगी और सब कुछ छोड़कर आनंद के साथ जर्मनी चली जाएगी हमेशा हमेशा के लिए।

पर हम जो सोचे वह हो ऐसा जरूरी तो नहीं और कभी-कभी हमारी एक गलती की सजा हमारे किसी अजीज को मिलती है इस बात से अनजान नेहा सुनहरे सपने देखने में व्यस्त थी।


उधर गांव में निशांत के कहने पर गजेंद्र सिंह अवतार सिंह के घर रिश्ता लेकर गए। पूरी तैयारी के साथ कई उपहार गहने और कपड़े लेकर वह अवतार सिंह के घर पहुंच गए।

"अरे गजेंद्र जी अचानक से आज हमारे घर आने का कैसे विचार आ गया?" अवतार ने उनका स्वागत किया और उन्हें बिठाया।

"विचार तो बहुत पहले से था बस आज सही मौका मिला तो सोचा चल कर आपसे मुलाकात कर लेता हूं!" गजेंद्र सिंह बैठे और उनके नौकरों ने वह थाल वही आंगन में रख दिये।

अवतार सिंह ने देखा तो उन्हें अजीब लगा।


"कहिए कैसे आना हुआ?" अवतार सिंह ने कहा।

देखिए अवतार सिंह आप भी जानते हो और हम भी जानते हैं कि हमारे हमारे गांव में और इस एरिया में लड़कियां और लड़कों का ब्याह हमारे समाज में ही होता है और जो समाज से बाहर ब्याह करता है उस के लिए सजा निर्धारित है फिर चाहे वह लड़की खुद करें या उसका परिवार और इस बात को आप भी बहुत अच्छे से जानते हैं और हम भी बहुत अच्छे से जानते हैं।" गजेंद्र बोले।

"जी आपने बिल्कुल ठीक कहा और मैं बिल्कुल अपनी मान्यताओं का पक्षधर हूं..!! इन मान्यताओं को मानता हूँ और इनका पूरा सम्मान करता हूं। जो आपके विचार है वही मेरे विचार है। मैं भी समाज के बाहर विवाह संबंध को मान्यता नहीं देता।" अवतार सिंह ने कहा।



क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव

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