ये कहानी उपन्यास विजय बहादुर का एक अंश है।।।।
कहानी
कपालनाथ
आज फिर से अमावस की वो काली , भयानक , खौफनाक और डरावनी रात थी। दौलताबाद के इस वीरान खंडहर रूपी गांव में शायद ही ऐसा कोई जीवित प्राणी हो जो न जानता हो की उस काली अमावस की रात गांव के कब्रिस्तान में क्या भयंकर घटित हुआ था। अभी शाम ही थी । सूरज भी कुछ कुछ नज़र आ रहा था। इसलिए इतना अधिक अंधेरा नहीं था। प्रकाश को कुछ किरणे अभी भी अपना प्रकाश बिखेर रही थी और इन किरणों से अभी कुछ और समय तक कायम रहने की उम्मीद की जा सकती थी। दीपक नाम का एक लड़का अपने खेत से धीरे धीरे वापिस चला आ रहा था और कोई गीत धीरे धीरे गाते हुए अपनी मस्ती में ही चला आ रहा था। जैसे ही रात होने को आई सब लोग अपने घरों के दरवाजे बंद करके चुपचाप अपने घरों में छिप गए या फिर सो गए। दीपक के पिता जी अत्यधिक चिंतित हो रहे थे मगर मारे डर के उनकी हिम्मत भी घर से बाहर निकलने की नहीं हो रही थी। दीपक जैसे ही गांव के नजदीक आया तो वो गांव के सन्नाटे को देखकर दंग सा रह गया। पूरा गांव अंधेरे रूपी समुंद्र में गोता लगा चुका था। दीपक ने आसमान की और देखा और मानो जैसे उसके पैरों तले जमीन ही खिसक गई हो। आसमान में कहीं पर भी चांद नजर नहीं आ रहा था। दीपक को अचानक ही याद आया की उसके पिताजी ने उसे खेत जाने से पहले बताया था की आज शाम होने से पहले ही घर वापिस लौट आना क्योंकि आज फिर से वो काली , भयानक और अमावस की वो शैतानी रात है। दीपक की उम्र कोई ज्यादा नहीं थी महज 14 साल का था मगर वो अपने बचपन से ही अमावस की रात के खौफ को सुनता आ रहा था मगर उसे आज तक किसी ने कभी भी ये नहीं बताया था की अमावस की रात क्या घटित हुआ था जो गांव के लोग अमावस का नाम सुनते ही कांप उठते थे। दीपक को न जाने क्यों अजीब सा महसूस होने लगा, उसे डर भी लगने लगा और मारे डर के वो पसीने से भीग गया और धीरे धीरे अपने कदम आगे बढ़ाने लगा। हां मगर उसने ये जरूर सुन रखा था की अमावस की रात गांव के कब्रिस्तान में कुछ भयंकर घटित हुआ मगर क्या घटित हुआ था इससे तो बेचारा वो भी अनजान था। हालंकि आज वो जल्दी ही घर लौटना चाहता था पर अपनी ही धुन में मस्त बालक ने अपने मस्तिष्क से अपने शरीर का संतुलन खो दिया और रात के इस पहर में आ पहुंचा। अचानक ही दीपक को कुछ ऐसा याद आया की वो मारे डर के कांपने लगा जिससे उसका दिल जोर जोर से धड़कने लगा। उसे याद आया की उसे अपने घर तक पहुंचने के लिए उस कब्रिस्तान के पास से ही गुजरना पड़ेगा क्योंकि गांव की शुरुआत ही उस कब्रिस्तान से होती थी। अब उसने अपनी चाल और भी धीमी कर दी। वो तो सिर्फ खेत में बेर लेने के लिए गया था पर उसे क्या मालूम था की ये बेर उसे इस मुसीबत में डाल देंगे। वो धीरे धीरे चलते हुए गांव के अंदर पहुंच गया। चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था। एक अजीब सा सन्नाटा पूरे गांव को घेरे हुए था। वो उस कब्रिस्तान को जल्दी से पार करना चाहता था इसलिए वो उस कब्रिस्तान के पास से तेज गति से चलने लगा। अचानक ही उसे लगा की कोई उसका पीछा कर रहा है। उसका दिल जोर जोर से धड़कने लगा। उसे इस भयानक खामोशी में सिर्फ अपने दिल के धड़कने की ही आवाज सुनाई दे रही थी। उसकी पीछे मुड़कर देखने की हिम्मत भी नहीं हो रही थी। दीपक के दोस्त रवि ने उसे बताया था की एक बार एक रात को एक भूत उसके चाचा का पीछा कर रहा था लेकिन जब उसके चाचा ने पीछे मुड़कर देखा तो उस भूत ने उसके गाल पर एक जोरदार थप्पड़ दे मारा और उसके बाद उसका चाचा सिर्फ गूंगा होकर रह गया था। उसका चाचा उसके बाद से आज तक कभी भी कुछ न बोल सका। दीपक अब पूरी तरह से डर गया। अचानक एक काली परछाई तेजी से उसके आगे से निकल गई और वो थर थर कांपने लगा। वो मारे डर के जोर से चीखना चाहता था लेकिन इसके मुंह से तो आवाज भी निकल रही थी। उसने डरते हुए पीछे मुड़कर देखा मगर पीछे तो कोई भी नहीं था , था तो सिर्फ काला अंधेरा। उसके अब कुछ शांति महसूस की और एक लंबी राहत की सांस ली। लेकिन जब वो आगे मुड़कर वापिस चलने लगा तो उसकी एक जोरदार चीख निकल गई क्योंकि उसके सामने उसकी ही हम उम्र का एक लड़का खड़ा था, जिसका चेहरा पूरी तरह से फटा हुआ और खून से लथपथ था। दीपक के चीखते ही वो लड़का अचानक से गायब हो गया। दीपक के समझ में नहीं आ रहा था की ये क्या था कोई सच या फिर सपना। वो मारे डर के तेजी से अपने घर की और भागने लगा। अचानक उसे लगा की कोई उसके पीछे भाग रहा है। उसने पीछे मुड़कर देखा तो वो दंग रह गया क्योंकि एक काली परछाई तेजी से उसकी और कुछ पुकारते हुए बढ़ रही थी। दीपक को पहले तो कुछ भी साफ सुनाई नहीं दिया वो काली परछाई क्या बोल रही है पर जैसे ही वो काली परछाई उसके कुछ नजदीक आई तो उसे वो आवाज साफ सुनाई देने लग गई।
वो परछाई बहुत ही डरावनी आवाज में बोल रही थी की " इंसान को उसके कर्मों का फल मिलता है। इंसान को उसके कर्मों का फल मिलता है।"
दीपक को अब लगने लगा की आज की रात उसकी जिंदगी की आखिरी रात है। वो अब मरने वाला है, वो परछाई बिल्कुल उसके नजदीक पहुंच गई।
दीपक ने डर के मारे अपनी आंखे बंद कर ली और धीरे से बोला " इंसान को उसके कर्मों का फल मिलता है।"
वो डर के मारे आंखे न खोल सका। कुछ समय तक कुछ भी घटित नहीं हुआ। उसने धीरे धीरे अपनी आंखें खोली तो उसने देखा कि वो परछाई बिल्कुल उसके सामने खड़ी थी। ये वही लड़का था जो दीपक को पहले दिखा था और अब वो वापिस जाने लगा और दूर अंधेरे में जाकर गुम सा हो गया। दीपक तेजी से दौड़कर अपने घर पहुंच गया और दरवाजा बंद कर लिया। उसके माता पिता उसी की राह देखे जा रहे थे। दीपक को देख दोनों की खुशी का कोई ठिकाना न रहा। उसके मां ने मारे खुशी के उसे अपने गले लगा लिया। मुकेश की पिता की जान में भी अब जान आई। दीपक ने अपने माता पिता को अपनी सारी आपबीती ज्यों की त्यों बता दी। दीपक के पिता ने दीपक को खाना खाकर सो जाने को कहा। लेकिन दीपक ने अमावस की रात की घटना अपने पिता से जानने की जिद की। दीपक जानना चाहता था की अमावस की रात गांव में आखिर क्या भयंकर घटित हुआ था? आखिर क्यों अमावस का नाम सुनते ही गांव के लोग डरने लगते थे? और वो लड़का कौन था जिसे दीपक ने अपनी आंखो से देखा था?
बच्चे की जिद के आगे दीपक का पिता भी खुद को रोक न सका और बताने लगा की जो लड़का तुमने देखा था वो इसी गांव का एक लड़का था जो की अब मर चुका है जिसका नाम चमाटा था। दीपक के पिता ने बताना शुरू किया की " ये घटना आज से लगभग बीस वर्ष पहले की है। जब दौलताबाद के इस वीरान खंडहर रूपी गांव में एक साधु का आगमन हुआ पर ये किसी को भी मालूम तक न था की वो साधु के वेश में बच्चो की बलि देने वाला खतरनाक तांत्रिक कपालनाथ है। सब लोग उसके मायाजाल में फंसकर उसकी खूब सेवा पानी करने लगे और इस बात का उस जटाधारी कपालनाथ ने खूब फायदा लूट लिया। वो लोगो को अपने मायाजाल में कसता रहा और छोटे छोटे नादान बच्चो को पकड़कर उनकी बलि देने लगा। कहते है की एक दिन गांव के लोगों को उसकी इन काली करतूतों के बारे में पता चल गया और फिर क्या था एक दिन गांव वालों ने मौका देखकर उसे औंधे मुंह गर्दन से जा दबोचा। खूब मारा पीटा और जहां तक की उसे बेरहमी से मार डाला और कब्रिस्तान में उसकी लाश फेंक ऊपर आग लगा दी। कपालनाथ तो जल गया लेकिन उसकी कलाई पर बंधा वो काली शक्तियों का काला धागा न जल सका। गांव के लोगों ने इस धागे को जलाने की भरपूर कोशिश की लेकिन वे असफल रहे। किसी अनहोनी के डर से गांव वालों ने इस धागे के हाथ तक न लगाया। वो धागा आज भी कब्रिस्तान में उसकी कब्र के पास विराजमान है। अंत में थक हार कर जब किसी का कोई बस न चला तब गांव के लोगों ने कपालनाथ की कब्र के पास ये लिखकर लगा दिया की " इस कब्र के पास आना मना है। जो भी इस कब्र के पास आएगा फिर वो जान से जायेगा। कोई गलती से भी इस कब्र के पास आने की हिम्मत न झुटाए।।"
" तो पापा फिर वो लड़का कोन था?" दीपक ने अपने पिताजी की और शक भरी निगाहों से देखते हुए कहा।
बच्चे की जिद के आगे दीपक का पिता भी खुद को रोक न सका और बताने लगा की जो लड़का तुमने देखा था वो इसी गांव का एक लड़का था जो की अब मर चुका है जिसका नाम चमाटा था। दीपक के पिता ने बताना शुरू किया की " ये घटना आज से लगभग बीस वर्ष पहले की है। जब दौलताबाद के इस वीरान खंडहर रूपी गांव में एक साधु का आगमन हुआ पर ये किसी को भी मालूम तक न था की वो साधु के वेश में बच्चो की बलि देने वाला खतरनाक तांत्रिक कपालनाथ है। सब लोग उसके मायाजाल में फंसकर उसकी खूब सेवा पानी करने लगे और इस बात का उस जटाधारी कपालनाथ ने खूब फायदा लूट लिया। वो लोगो को अपने मायाजाल में कसता रहा और छोटे छोटे नादान बच्चो को पकड़कर उनकी बलि देने लगा। कहते है की एक दिन गांव के लोगों को उसकी इन काली करतूतों के बारे में पता चल गया और फिर क्या था एक दिन गांव वालों ने मौका देखकर उसे औंधे मुंह गर्दन से जा दबोचा। खूब मारा पीटा और जहां तक की उसे बेरहमी से मार डाला और कब्रिस्तान में उसकी लाश फेंक ऊपर आग लगा दी। कपालनाथ तो जल गया लेकिन उसकी कलाई पर बंधा वो काली शक्तियों का काला धागा न जल सका। गांव के लोगों ने इस धागे को जलाने की भरपूर कोशिश की लेकिन वे असफल रहे। किसी अनहोनी के डर से गांव वालों ने इस धागे के हाथ तक न लगाया। वो धागा आज भी कब्रिस्तान में उसकी कब्र के पास विराजमान है। अंत में थक हार कर जब किसी का कोई बस न चला तब गांव के लोगों ने कपालनाथ की कब्र के पास ये लिखकर लगा दिया की " इस कब्र के पास आना मना है। जो भी इस कब्र के पास आएगा फिर वो जान से जायेगा। कोई गलती से भी इस कब्र के पास आने की हिम्मत न झुटाए।।"
" तो पापा फिर वो लड़का कोन था?" दीपक ने अपने पिताजी की और शक भरी निगाहों से देखते हुए कहा।
दीपक के पिता ने फिर से वही किस्सा आगे बताना शुरू कर दिया की " गांव में सावित्री देवी और राम धन नाम के युवा दंपती का एक लड़का था जिसका नाम ही चमाटा था। चमाटा पढ़ाई में बड़ा होशियार था। मदरसे में जो कुछ भी सीखता था वो घर पर आकर अपने माता पिता को बताता था। एक दिन वो अपनी गेंद उठा खेलने के लिए रवाना हो गया। कब्रिस्तान के पास वाले खेत में ही सब लोग गेंद से खेला करते थे। चमाटा भी अपनी गेंद ले जाकर वहां पर खेलने चला गया। परंतु किसी एक शरारती तत्व ने गेंद कब्रिस्तान के अंदर दे मारी । शाम हो चुकी थी। धीरे धीरे अंधेरा छा रहा था। लेकिन चमाटा अपनी गेंद लेने के लिए कब्रिस्तान में जा घुसा। उसने कब्रिस्तान में गेंद ढूंढी पर उसे कहीं न मिली। उसके दोस्त कब्रिस्तान के बाहर खड़े उसे पुकार रहे थे। वो निराश सा होकर वापिस जाने लगा तभी उसे एक कब्र के पास एक लाल रंग की कोई वस्तु नज़र आई। ये उसकी गेंद थी, ये उसका सौभाग्य था पर वो कब्र उसी जटाधारी साधु कपालनाथ की थी ये उसका बहत बड़ा दुर्भाग्य था। वो धीरे धीरे उस कब्र के पास चला गया। उसके दोस्तो ने उसे बहुत रोका मगर उसने उनकी एक न सुनी। चमाटा को कब्र के पास जाता देख उसके सभी दोस्त वहां से नौ दो ग्यारह हो गए और घर जाकर अपनी रजाइयों में औंधे मुंह जा लेटे। उसने कब्र के पास से अपनी गेंद उठाई और वापिस जाने ही लगा था की तभी उसे उस कब्र के पास एक काले रंग का धागा नज़र आया। धागा बहुत ही सुंदर था। उसने जैसे ही उस धागे को छुआ , उसे भी तांत्रिक कपालनाथ का श्राप लग गया। चमाटा की आंखे लाल हो गई , मानो की कपालनाथ उसके शरीर के अंदर घुस गया हो। उसने एक बहुत ही जोरदार चीख दे मारी। सब लोग डर गए। किसी के कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। पूरा आसमान काले बादलों से छा गया। चारों तरफ से एक भयानक सा अंधेरा घिर आया। ये अमावस की वो खतरनाक , भयानक , खूंखार और वो काली रात थी। कब्रिस्तान के बाहर लोगों की भीड़ लग गई लेकिन मारे डर के किसी की भी हिम्मत चमाटा के पास जाने की नहीं हुई। सब लोग बिघी बिल्ली बन कर ये सारा नजारा डरते कांपते शरीर के साथ देखने लगे। उसके माता पिता भी वहां पर आकर रोने लगे। वे उस कपालनाथ से अपने बेटे की जान की भीख मांगने लगे की तभी सबने एक खौफनाक मंजर देखा। चमाटा के पीछे अचानक से एक काली परछाई नजर आने लगी ये परछाई जटाधारी अघोरी कपालनाथ ही था। ये भयानक मंजर देख सबके पैरों तले जमीन खिसक गई। अचानक से वो काली परछाई चमाटा के शरीर के अंदर घुस गई। और चमाटा जोर से चीख पड़ा। चमाटा का पूरा शरीर फट गया और वो वहीं पर मर गया। उसकी मां ये सब कुछ देख न सकी और उसने भी वहीं पर दम तोड दिया। उसकी मां और चमाटा को वहीं पर दफना दिया गया। कहते है की अगले दिन से उसका बाप भी अचानक से गायब हो गया और किसी को नजर तक न आया । लोग कहते है की उसे भी कपालनाथ का श्राप लग गया। ये घटना गांव के लोग आज तक न भुला सके। कहते है की चमाटा आज भी अमावस की रात गलियों में घूमते हुए नज़र आता है और वो लोगों का शिकार करता है। उसका भयानक चेहरा आज भी लोगों को डरा देता है। इसलिए गांव का कोई बच्चा भी अमावस की रात को घर से बाहर नहीं निकलता।वो चमाटा आज भी अमावस की भयानक रात गलियों में दौड़ता है और पुकारता रहता है " इंसान को उसके कर्मों का फल मिलता है।" पर दीपक बेटा , तुम बहुत भाग्य शाली हो जो की उसके चंगुल से बच निकले। मैने तो उसका चेहरा आज तक कभी नहीं देखा , न जाने वो कैसा दिखता था।
तभी दीपक पीछे से धीरे से बहुत ही भयानक आवाज में बोल उठा " कहीं ऐसा तो नहीं दिखता था।"
दीपक की ये बात सुनते ही उसके माता पिता बुरी तरह डर गए , उनके पैरों के नीचे से तो जमीन ही खिसक गई।
उन दोनों ने धीरे धीरे पीछे मुड़कर देखा और पसीने से भीगकर रह गए। दीपक का चेहरा खून से लथपथ था और पूरी तरह से फटा हुआ था।
उम्मीद है ये श्राप हमें न लगे।।
सतनाम वाहेगुरु।।