निरमा (मेरी छोटी बहन) DINESH KUMAR KEER द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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निरमा (मेरी छोटी बहन)


"अम्मा! बच्चा तो बच गया है, पर उसकी माँ को नहीं बचा सके! काफी प्रयास किया टीम ने", आप्रेशन थियेटर से बाहर निकल दादी को ढ़ाढ़स बँधाते हुए बताया नर्स ने। "ओ इज्या मेरि, मेरि आब् कमरै टुटि गे" कहते हुए दादी दहाड़ें मारकर रोने लगी। साथ आये लोगों ने किसी तरह अम्मा को संभाला और दो लोगों के साथ उन्हें घर पर भेज, मृत माँ के अन्तिम संस्कार की तैयारी में जुट गये।
तीन दिन बाद 'खुशियों की सवारी' से नवजात गाँव की किसी अन्य महिला के साथ घर पहुँचा। कहाँ खुशियाँ? मातम पसरा था पूरे गाँव में। दादी का अब भी रोते - रोते बुरा हाल था। वह बार - बार 'ओ इज्या मेरि - ओ इज्या मेरि' कहते जा रही थी।
"सासू कमर बाॅधो चाहे अफूं नै रैइ, तुमन भलो भौ दी जारै। तैक मुख चाओ ,आब् तुमिले पावण छु तो " कहते हुए कई पड़ोसी महिलाओं ने अम्मा को ढ़ाढ़स बँधाया और बच्चे के पालन - पोषण की जिम्मेदारी का भान करा, अपनी - अपनी ओर से भरसक मदद का आश्वासन दे उनके आँसू पोछने में मदद करने लगीं। अब तक बच्चे का पिता भी शहर से घर पहुँच चुका था।
दादी और पिता दोनों अब बच्चे को संभालने में लग गये। गाँव की महिलायें बारी - बारी से आकर बच्चे को अपने स्तनों का दूध पिला जाती। शेष समय में गाय का दूध पर्याप्त रहता। ईश्वर बड़ा दयालु है। बच्चा ठीक से विकास करता रहा है।
प्राइवेट नौकरी कर पेट पाल रहा पिता एक माह बाद नौकरी पर चला गया। शहर में साथ ही रखने की शर्त पर बड़ी मुश्किल से उसका दूसरा ब्याह हो पाया। दादी और पोता दोनों घर पर ही दिन व्यतीत करते रहे। बच्चा अब स्कूल जाने लायक हो चुका था।
अप्रैल में अम्मा एक दिन बच्चे को पीठ पर लादकर स्कूल में पहुँची और 'ओ इज्या मेरि, कहते हुए फर्श पर बैठ गयी। आज ही विद्यालय में स्थानान्तरित होकर पहुँची शारदा बहिनजी जो अन्दर कक्षा में बच्चों से परिचय प्राप्त कर रही थी। आवाज सुनकर बरामदे में आ गयीं। गोद में सुदर्शन बालक को लिए अम्मा, उन्हें पहली नजर में मदर टेरेसा सी लगीं। "बहिन जी पैदा होते ही मस्तारि मरि गे येकि, मैले धो - धो कै पाइ राखो यो। येक नाम लेखि दियो इस्कूल में। मारिया नै ये कैई म्यार परांण छु यो, नानतिनन लै डरा दिया क्वे ये कैई माराल" बिना बहिन जी के पूछे ही दादी सब एक साँस में कह गयी। उन्हें बहिन जी की शक्ल सुनील की माँ सी लग रही थी। "फिकर न करो अम्मा ! मैं इसे अच्छी तरह पढ़ाऊँगी.. इसका पूरा ध्यान रखूँगी" कहते हुए मैम ने बच्चे को दाखिला दे दिया।
शराबी पति से वर्षों तक परेशान रहने के बाद शारदा बहिन जी ने तलाक लेकर दुर्गम के इस विद्यालय में अपना ट्रान्सफर करा शिक्षण में ही रमकर अपना शेष जीवन काटने का निश्चय कर लिया था।
आज जब सुनील का नाम इस विद्यालय में वह पहली बार लिख रहीं थी तो उनकी अन्तर्आत्मा ने महसूस किया कि उन्हें सुनील के रूप में ईश्वर ने बच्चा दे दिया है। अब इसे पढ़ा-लिखाकर सुयोग्य व्यक्ति बना लूँ, तो मेरा जीवन धन्य हो जाएगा। उन्होंने सुनील को गोद सा ले लिया।
साक्षात सरस्वती की प्रतिमूर्ति शारदा बहिन जी के समर्पित शिक्षण से दुर्गम का यह स्कूल ब्लॉक के अव्वल विद्यालयों में जाना जाने लगा। शारदा के संरक्षण में रह रहा सुनील पूरे विकासखण्ड में पाँचवी की परीक्षा टाॅप कर नवोदय प्रवेश परीक्षा भी पास कर गया। दादी को स्कूल में बुला जब यह खबर बहिन जी ने उन्हें सुनायी तो फिर 'ओ इज्या मेरि' कह अम्मा ने सुनील को गले से लगा लिया और बहिनजी की ओर करुणा भरी दृष्टि डाली। दोनों की आँखें डबडबा आयीं।
नवोदय विद्यालय से इण्टर करने के उपरान्त सुनील ने अच्छे अंकों में उच्च शिक्षा पूर्ण करते हुए पहले ही प्रयास में आइएएस क्रैक कर लिया। अब वह अपने ब्लॉक भर में कलेक्टर बनने जा रहा पहला व्यक्ति था। इधर शारदा मैम साठ वर्ष की उम्र पूर्ण कर अब सेवा निवृत्त होने जा रही थीं। गाँव वालों ने संयुक्त रूप से दोनों को सम्मानित करने का निश्चय कर विद्यालय में भव्य आयोजन रखा। ढोल-नगाड़े की धमकती आवाज में लोगों ने दोनों पर पुष्प वर्षा करते हुए उन्हें फूल-मालाओं से लाद दिया।
दादी अम्मा ने कसकर शारदा बहिन जी को गले से लगा लिया। अब दोनों जी भरकर रोते जा रहे थे, तभी सुनील ने दोनों के चरणों में अपना शीश रख दिया। दोनों "ओ इज्या मेरी ईईई" कहते हुए उसे प्रेम से चूमने लगे।
दोनों के ही सांसारिक संस्कार अब सन्तोष में परिवर्तित हो चुके थे।

संस्कार सन्देश: -
संस्कारों और अच्छी शिक्षा से युक्त होकर बालक निश्चित ही ऊँची पदवी पाता है।