यादों के पन्ने DINESH KUMAR KEER द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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यादों के पन्ने

1. प्रेम

चिड़िया और चिडे में इतना प्यार था कि एक पल के लिए भी वो अलग नहीं होते थे चाहे दिन में खुले आसमान में उड़ना हो, दाना चुगना हो या रात में घोसले में सोना हो । एक बार आसमान में
काले काले मेघ छाए तभी एक शिकारी जंगल में आया, मारा खींच के एक बाण, चिडे चिड़िया दोनों उसी क्षण मृत्यु के गर्त में । उनका नन्हा बच्चा चूं - चूं करता रहा पर शिकारी बच्चे को अपलक देखता रहा, दूसरे ही क्षण तेज हवा का झोंका आया, शिकारी डगमगाया, एक काँटा उसके पैर में चुभ गया, अब वह दर्द से चीखा - आह की आवाज हुयी, मन में माँ की स्मृति कौंधी, पर वहां देखने सुनने वाला अब कोई भी शेष न था । प्रेम की भाषा अतिगहन, मौन, शब्दरहित है पर संभवतः इंसान उससे भी ऊपर है बुद्धिमान जो ठहरा ।

2. आखिरी चुंबन

ध्वस्त हो चुके बंकर में अधखुली डायरी के आखिरी पन्ने पर लिखा था, आह भरते हुए उसने मेरा हाथ थामा । मैंने सख्त दिखने की कोशिश की, तुम्हें अपने प्यार की पड़ी है । क्या वतन वास्ते मेरा कोई कर्तव्य नहीं, मत जाओ न... अश्कों के बोझ से लदी उसकी आवाज थकी हुई सी थी । मैं सख्त दिखने का और नाटक नहीं कर पाया । पास आती हुई ट्रेन की आवाज ने माहौल उदास कर दिया । पलकों से अश्क लुढ़कते हुए मेरे होंठों तक आ गए । उसने अपने नर्म लबों से मेरे अश्क सोख लिए थे ।

3. रेत पर महल

गांव से रेखा और सीमा निकलीं, रेखा मुंम्बई पहुँच गई, उसने जुहू बीच की रेत पर दिल को चीरता हुआ तीर बनाया, जो भीड़ के पैरों तले कुचला गया और समुद्र की लहरों के साथ बह गया । सीमा ने शीतल जल से कल - कल करती पतली सी नदी के किनारे चमचमाती रेत पर एक थाली में रोटी बनाई जिस पर कन्हाई नाम लिखा और एक चूल्हा बनाया उस पर अपना नाम लिख दिया, कन्हाई ने चारों तरफ एक चौखटा बनाकर घर बना दिया । सीमा बिना कुछ कहे उसे सर्वस्य निछावर कर बैठी ।

4. फिर सुबह

चेतन तुम्हारी यादों बिना मेरी सुबह कभी नही हुई, जरुरी नही अब भी हम पीठ किये खड़े रहे । माया ! तुम मुझे माफी दोगी । लरजती आवाज में चेतन फुफ्फुसाये । संगीत मेरी रूह थी, तुम्हें नफरत थी संगीत से बिना रुह कैसे जीती, तुम्हारा अविश्वास... तुमने कहा "शक की वेदना में जीने से बेहतर हम अपने रास्ते ही बदल दें"। उम्र के इस पड़ाव में एक दूसरे की जरूरत है, प्रेम ने परीक्षा ली थी । हम आंखों की गहराईयों में झांकेंगे "सब गिले शिकवे, बह निकलेगें" तुमने कभी लिखा था - "दीप्त होता प्रेम कंपकपाती लौ फिर नीले आकाश में सूर्य रश्मि सा दमकता प्रेम" । जीवन के आखिरी बसंतों में हमारा पारितोषिक होगा "दमकता प्रेम" ।

5.
जब मैं तुमसे मिलता हूँ...
तो मिलता हूँ...
मानो अपने आप से !
तुम मेरा आईना हो...
मेरा अक्स...
झलकता है... इसमें !!

6.
फिसलती ही चली गई, एक पल, रुकी भी नहीं;
अब जा के महसूस हुआ, रेत के जैसी है जिंदगी।