नाम जप साधना - भाग 17 Charu Mittal द्वारा कुछ भी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • My Passionate Hubby - 5

    ॐ गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा॥अब आगे –लेकिन...

  • इंटरनेट वाला लव - 91

    हा हा अब जाओ और थोड़ा अच्छे से वक्त बिता लो क्यू की फिर तो त...

  • अपराध ही अपराध - भाग 6

    अध्याय 6   “ ब्रदर फिर भी 3 लाख रुपए ‘टू मच...

  • आखेट महल - 7

    छ:शंभूसिंह के साथ गौरांबर उस दिन उसके गाँव में क्या आया, उसक...

  • Nafrat e Ishq - Part 7

    तीन दिन बीत चुके थे, लेकिन मनोज और आदित्य की चोटों की कसक अब...

श्रेणी
शेयर करे

नाम जप साधना - भाग 17

नाम जप सम्बन्धी शंका समाधान

जिज्ञासा- कौन सा नाम जपें ?
समाधान- भगवद्भाव से अपनी रुचि के अनुसार किसी भी नाम का जप कर सकते हैं।

जिज्ञासा- किस समय जप करना चाहिए?
समाधान - जगने से लेकर सोने तक हर समय जप करना चाहिए।

जिज्ञासा- कितना जप करना चाहिए ?
समाधान - जितना हो सके अधिक से अधिक जप करना चाहिए।

जिज्ञासा - कैसे जप करें? कोई विधि बताओ?
समाधान - जैसे कर सकें वैसे करें। कोई विशेष विधि नहीं है।

जिज्ञासा - अगर कोई विधि नहीं है तो फिर शास्त्रों में जप की अनेक विधियाँ क्यों लिखी गई हैं ?
समाधान – वो विधियाँ मन्त्रों व अनुष्ठानों की हैं। नाम जप में कोई विधि अविधि नहीं है, कैसे भी कर सकते हैं।

जिज्ञासा- क्या नाम जप अपवित्र अवस्था में भी स्त्रियाँ कर सकती हैं ?
समाधान - हाँ! नाम जप कर सकती हैं, लेकिन मंत्रों का जप नहीं।

जिज्ञासा - किसी संत महापुरुष से नाम लेकर जपना चाहिए या ऐसे भी जाप कर सकते हैं?
समाधान - अगर किसी संत महापुरुष से नाम लेकर जप किया जाए तो बहुत अच्छा है। अगर ऐसे ही कर रहे हैं तो भी कोई हानि नहीं, लाभ तो होगा ही। लेकिन दीक्षा लेने से अधिक लाभ होता है।

जिज्ञासा - कुछ लोग कहते हैं कि नाम को गुप्त रखना चाहिए। क्यों?
समाधान - हमारे यहाँ चारों सम्प्रदायों में दीक्षा के साथ-साथ हर समय जपने के लिए हरि नाम भी सुनाया जाता है। दीक्षा मन्त्र को गुप्त रखें लेकिन हरि नाम को नहीं। नाम दूसरों को सुनाने से तो दूसरे भी पवित्र हो जाते हैं। नाम ध्वनि जहाँ तक जाती है, चर-अचर सभी को पवित्र करती है।

जिज्ञासा- क्या एक साथ साधक कई नामों का जप कर सकता है ?
समाधान - हाँ! कर सकता है। महामन्त्र में भी तो कई नाम हैं।

जिज्ञासा - महामन्त्र का जप करते हुए किसका ध्यान करना चाहिए?
समाधान - राम, कृष्ण, दुर्गा, शिव, नारायण किसी भी रूप का ध्यान कर सकते हैं। सभी रूप एक ही परमात्मा के हैं।

जिज्ञासा - मैं पहले निराकार को मानता था। दीक्षा भी निराकार साधना की ली है। लेकिन अब भगवान् श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम भावना जग रही है। भगवान् श्रीकृष्ण को पाना चाहता हूँ। ऐसा भाव भी श्रीमद्भागवत व भक्तमाल कथा सुन-सुनकर हुआ है। मैं महामन्त्र जप करना चाहता हूँ। इसमें कोई अपराध तो नहीं है ?
समाधान - ये कोई नई बात नहीं है। ऐसा तो बहुत भक्तों के साथ हुआ है। श्रीमधुसूदन सरस्वती जी, नारायण स्वामी व राधा बाबा भी पहले निराकार उपासक थे। बाद में वे सब भी श्रीकृष्ण भक्ति करके भगवान् श्रीकृष्ण को पा गए। रही बात जप करने की तो जो भी गुरु से मन्त्र मिला उसका जप आप प्रात: पवित्रतापूर्वक कर लिया करें। शेष समय महामन्त्र का जप करते रहें। कृष्ण प्रेमाग्नि बढ़ाने के लिए कृष्ण कथा व इनके भक्तों के चरित्र को जरुर पढ़ना व सुनते रहना चाहिए।

जिज्ञासा- भगवान् श्रीकृष्ण की कोई मीठी सी बात बताओ ?
समाधान - पूर्णकाम व आप्तकाम होने पर भी श्रीकृष्ण, प्रेम के भूखे है। आप इनसे प्यार कीजिए। फिर आप को पता चलेगा कि इनकी प्रत्येक बात कितनी मीठी होती है।

जिज्ञासा- क्या केवल नाम जप से भगवान् मिल जाते हैं या कुछ ओर भी साधना करें?
समाधान - केवल नाम जप करने से ही भगवान् मिल जाते हैं क्योंकि नाम जप अपने में पूर्ण एवं स्वतन्त्र साधना है।

जिज्ञासा - नाम जप के सिवा किसी अन्य साधन से भी क्या भगवान् मिल जाते हैं?
समाधान - हाँ, मिल जाते हैं। भगवत् प्राप्ति में लगन व भाव की मुख्यता होती है। भाव सच्चा होना चाहिए। कलियुग में अन्य साधनों की अपेक्षा जप साधना सबसे सुगम है। इसलिए नाम जप सभी को करते रहना चाहिए।

जिज्ञासा - नाम जप में रस नहीं आता, क्या करें ?
समाधान - मन मैला है, इसलिए रस नहीं आता। रस आए इसके लिए अधिक से अधिक नाम जप करें। नाम जप से पहले मन पवित्र होगा, फिर रस भी आने लगेगा।

जिज्ञासा- कईं लोग चाह कर भी नाम जप नहीं करते, ऐसा क्यों ?
समाधान - असली बात तो यह है कि वे चाहते ही नहीं, अगर चाहते हैं तो बहुत कम।

जिज्ञासा - चाह उत्पन्न क्यों नहीं होती?
समाधान - नाम के प्रति श्रद्धा, विश्वास नहीं है। इसलिए नाम जप की चाह उत्पन्न नहीं होती।

जिज्ञासा - चाह उत्पन्न कैसे हो ?
समाधान - नाम की महिमा सुनने तथा नाम निष्ठ संतों व भक्तों का संग करने से नाम जप की चाह उत्पन्न होती है। फिर जहाँ चाह, वहाँ राह मिल ही जाती है।

जिज्ञासा - भगवान् की पूजा, क्या पूजन के मन्त्रों से ही करनी चाहिए?
समाधान - अगर कर सकते हो तो जरुर करनी चाहिए, नहीं तो नाम जप करते हुए पूजा कर सकते हैं।

जिज्ञासा - क्या नाम जप करते हुए ध्यान करना जरुरी है?
समाधान - अगर ऐसा हो जाए तो बहुत जल्दी बात बन जाती है। जितना हो सके ध्यान सहित नाम जप करना चाहिए। अगर ऐसा नहीं हो तो घबराना नहीं चाहिए। श्रद्धा पूर्वक नाम जप में लगे रहना चाहिए।

जिज्ञासा- क्या नाम जप माला से ही करना चाहिए ?
समाधान - नाम जप होना चाहिए, कैसे भी हो। अधिकांश साधकों का यही अनुभव है कि बिना माला की अपेक्षा माला से भजन अधिक होता है। बिना माला के भूल बहुत होती है। इसलिए हो सके तो माला अधिक से अधिक समय हाथ में रहे।

जिज्ञासा - नाम जप मन ही मन करें या बोलकर ?
समाधान – जिससे जैसे बने, उसे वैसे ही करना चाहिए। दूसरे जैसे करें उसकी निन्दा न करें।

जिज्ञासा- किस प्रकार नाम जप करें कि जो अधिक से अधिक और जल्दी से जल्दी लाभ हो ?
समाधान - पापों से बचकर कर्त्तव्य पालन करते हुए निष्काम भाव से चिन्तन सहित जप करने से अधिक से अधिक लाभ होगा और जल्दी होगा।

जिज्ञासा - एक वाक्य में नाम की महिमा सुनाइये?
समाधान – नाम स्वयं भगवान् हैं।

जिज्ञासा - सबसे कीमती बात सुनाइये ?
समाधान - महामंत्र
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।

और युगल महामंत्र -
राधेकृष्ण राधेकृष्ण कृष्ण कृष्ण राधे राधे।
राधेश्याम राधेश्याम श्याम श्याम राधे राधे ।


जिज्ञासा - इससे भी कम शब्दों में कोई बात ?
समाधान - राधा।


प्र०-भगवद् प्रेम की चाह कैसे उत्पन्न हो ?
उ०-मलिन मन में सच्ची चाह उत्पन्न नहीं होती। इसलिये सबसे पहले मन को शुद्ध करना है। मन की शुद्धि करने का उपाय कलियुग में केवल हरि नाम जप हीं है। मलिन मन भगवान् और नाम में लग जाए यह भी कठिन है। इसलिये एक काम करें– मन से न सही, जिह्वा से ही हरि नाम जप का अभ्यास प्रारम्भ करें। नाम का वस्तुगुण ही ऐसा है कि मन को पवित्र करके भगवान् में लगा देगा। बिना श्रद्धा, बिना प्रेम, बिना मन के केवल हठपूर्वक जिह्वा को श्रीहरि नाम के उच्चारण में लगाइये। मन लगे तो उत्तम है, नहीं लगे तो कोई बात नहीं। यदि जिह्वा ने श्रीहरि नाम का आश्रय नहीं छोड़ा तो सब कुछ अपने आप सहज ही नाम की कृपा से हो जायेगा। कहीं भी रहो, किसी भी स्थिति में रहो नाम जप जिह्वा से निरंतर होता रहे। नाम से मन शुद्ध होने पर भगवद्प्रेम की चाह उत्पन्न होगी। जहाँ चाह वहाँ राह। फिर क्या–जहाँ प्रेम तहाँ प्रेमास्पद श्रीकृष्ण प्रेमडोरी में बँधे स्वतः ही हृदय सदन में विराजित हो जायेंगे।
- पूज्य संत स्वामी श्री करुण दास जी महाराज