एहिवात - भाग 25 नंदलाल मणि त्रिपाठी द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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एहिवात - भाग 25

सौभाग्य ने कहा माई हम कुछो एसन नाही करब जैसे हमरे माइ बाबू के इज़्ज़त जाए और उन्हें मुंह छुपाए के पड़े कहती खिलखिलाती अपने मोहक अंदाज़ में झोपड़ी से बाहर निकली उसके पीछे पीछे शेरू जो सुबहे से उसके साथ मुंह बनाये बैठा था ।

सौभाग्य के बाहर आते ही चिन्मय ने उसे रंग गुलाल से सराबोर कर दिया और फिर उसने शेरू के माथे अबीर का तिलक लगाया
चिन्मय और सौभाग्य ने आपस मे जमकर होली खेली और शेरू जैसे दोनों कि होली खेलना देखकर ही खुश हो रहा हो अपने अंदाज में नाचता और कूदता घण्टो खुशनुमा माहौल सिर्फ चिन्मय और सौभाग्य के होली खेलने से बना रहा ।
चिन्मय बोला अब हम चलित है सौभाग्य इतने में तीखा आई और बोली बाबू ऐसे कैसे वारिस वारिस कि दिने आये ह कुछ खाय पी ल और जो भी तीखा ने होली के शुभ अवसर पर बनाया था वह लेकर हाजिर हुई चिन्मय ने बड़ी विनम्रता से माई तीखा से कहा माई तोहार आशीर्वाद ह जेकरे खातिर हम कुछ खाइत हई औऱ तीखा का आशीर्वाद लेकर चला गया ।
तीखा को जैसे जान में जान आई रात्रि में तीखा ने पति जुझारू से कहा जौँन डर रहा ओइसन कुछ नाही भवा बड़े आदमी कि तरह आएँन बबुआ चिन्मय शरीफन कि तरह होली खेलन बोलें बतियाए चले गए जुझारू ने भी कहा ठीके कहत हऊ सांसत में परान पड़ा रहा अब जान में जान आयी ।
जुझारू ने पत्नी तीखा से बताया कि वह जोगी काका से मिला था और सौभग्यवा के वियाहे से पहिले मांग भरले के जोग के लिए पूछा रहा जोगी काका कोल समाज के सबसे बुजुर्ग मदार बाबा के पास ले गए रहे जहां हम लोग होली खेले मिले और उनसे वियाहे से पहिले मांग भरले के मशविरा किए।

मदार बाबा बताएंन कि चाहे जान बूझ के या अनजाने में कुआंर लड़की के मांग केहू से भर जाए और वोसे वियाह के कौनो सूरत ना हो तो एक रास्ता बचत है जेके द्वारा मांग जाने अनजाने में चाहे जैसे भरी गयी है वोकर पुतला बनावा जाय और वोके जलाया जाय और जौने लड़की के मांग भरी रही वोके धोया जाय विधि विधान से फिर वोकर वियाह होई सकत एतना सुनते तीखा के जैसे प्राण सुख गइल ।

तीखा घबराए बोली का सौभग्यवा जाने में एकरे ख़ातिर तैयार होई जुझारू बड़े इत्मिनान से बोले ई सब ऐसे होई जैसे सौभग्यवा कुछ जनती ना होय ।
समय अपनी गति से बीतता जा रहा था और अपने गर्भ में अनेक प्रश्नों को समेटे सौभाग्य शेरू और चिन्मय लकी के साथ साथ शोभराज तिवारी स्वाति एव जुझारू तीखा जगन राखु पुजारी कुम्भज के लिए नए किरदार के लिए बढ़ता जा रहा था ।

चिन्मय कि इंटरमीडिएट कि परीक्षाएं समाप्त हो चुकी थी वह दिल्ली उच्च शिक्षा कि संभावनाएं तलाशने एव अच्छे से अच्छे उच्च शैक्षणिक संस्थान में प्रवेश के लिए तैयारी में एकाग्रता से जुटा हुआ था ।
सौभग्या के शुभ विवाह का का शुभ मुहूर्त भी आ गया जिसका जगन राखु तीखा जुझारू को बड़ी बेशब्री से इंतज़ार था तिलकोत्सव के बाद विवाह के लिए बरात लेकर पूरे उत्साह से एकलौते बेटे के विवाह हेतु जगन जुझारू के दरवाजे नेवाड़ी गांव पहुंचे ।
विवाह से पूर्व जोगी काका एव मधार बाबा कि देख रेख में अनजाने में चिन्मय के द्वारा सौभाग्य कि मांग भर जाने के पश्चाताप के लिए निर्धारित जोग टोक कि कार्यवाही होनी थी जिसे सौभाग्य के विवाह से कुछ दिन पूर्व पूर्ण कराया गया ।

कुश का चिन्मय का पुतला बनवाया गया एव विधिवत उसका दाह संस्कार कोल संस्कृति के अनुसार किया गया और श्राद्ध कर्म यह सारी विधि सौभाग्य के गैर जानकारी में पूर्ण कराया गया सौभाग्य को विवाह कि गम्भीरता का बहुत ज्ञान नही था वह अपने अल्हड़ बाल पन में ही व्यस्त अपने प्रिय शेरू के साथ चिन्मय का पल प्रतिपल इंतजार करती उस मासूम को क्या पता था कि उसके सपनो का चिन्मय उससे बहुत दूर जा चुका है और जो भी उसके जीवन मे होने वाला है उसका भान तक उसे नही है ।

जिस दिन चिन्मय के कुश का पुतला बनाकर उसका दाह संस्कार किया गया ठीक उसी दिन दिल्ली में चिन्मय सुबह अपने एडमिशन के लिए अपने मित्र कर्मबीर के साथ पैदल ही सड़क के किनारे आपस मे बाते करते प्रोफेसर कृष्ण कांत झा से बेख़बर मिलने जा रहे थे बेखबर इसलिये कि दोनों किसी वाहन से थे नही जिससे कि किसी दुर्घटना कि आशंका हो लेकिन होनी को जो मंजूर होता है होता वही है ।

दिल्ली की भीड़ भाड़ सड़को में किनारे पैदल चलने वालों को कोई खतरा रहता भी नही है लेकिन चिन्मय और कर्मबीर का दुर्भाग्य कि अनियंत्रित बस जिसका अगला पहिया अचानक पंचर हो गया बस चालक ने बस को नियंत्रित करने की बहुत कोशिश की लेकिन नियंत्रित नही कर सका और सड़क के किनारे सही ट्रैफिक नियमानुसार चलते चिन्मय और कर्मबीर को ऐसा झटका मारा जिसकी कल्पना किसी ने नही कि होगी चिन्मय और कर्मवीर बस के झटके से कुछ दूर जाकर गिरे दोनों कि हालत बहुत गम्भीर ।

इधर बस के टक्कर कहे या झटका मारने से ज्यो ही चिन्मय और कर्मबीर घायल होकर सड़क पर गिरे उधर शेरू ऐसे दहाड़ मारने लगा जैसे उसके किसी खास के साथ कोई हादसा हुआ हो सौभाग्य जो पल दर पल शेरू के साथ रहती उंसे समझ ही नही आ रहा था कि शेरू को हुआ क्या है वह सोच ही रही थी कि अचानक बेहोश होकर गिर पड़ी।

शेरू कि दहाड़ से पूरे जवार इलाके में खलबली मच गई और प्रश्न यह था कि शेर शेरू के ऐसे बिगड़े मिज़ाज़ में उसके पास कोई जाए तो कैसे ?
अजीब अविश्वसनीय किंतु सत्य सामने था ज्यो ही सौभाग्य अचेत होकर जमीन पर गिरी शेरू शांत हो गया उसकी आँखों से अश्रु धारा बहने लगी और वह सौभाग्य के पैर के पास बैठ गया।