कब्रिस्तान में एक रात Krishna Kaveri K.K. द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कब्रिस्तान में एक रात



ये एक काल्पनिक कहानी है, जिसके सभी पात्र और घटनाएं काल्पनिक है तथा ये कहानी किसी अंधविश्वास को भी बढ़ावा नहीं देती है, इस कहानी का निर्माण केवल मनोरंजन के उद्देश्य से किया गया है। अगर इसमें किसी वास्तविक स्थान का वर्णन भी होता है, तो उनका प्रयोग बस कहानी को आधार प्रदान करने के लिए ही किया गया है।


कब्रिस्तान में एक रात


वैसे तो आजकल के जमाने में भूत प्रेत पर कोई भरोसा नहीं करता है लेकिन कभी कभी कुछ ऐसी घटनाएं हो जाती है जो भरोसा करने पर मजबूर कर देती है।


मेरा नाम रविशंकर है। मैं बीटीसी सेकेंड ईयर का स्टूडेंट हूँ। मैं कानपुर के देहाती इलाके में रहता हूँ। वहाँ पर बाहर आने जाने ले लिए सवारी या साधन मिलना मुश्किल होता है। खासतौर पर सर्दियों के समय में तो बहुत ज्यादा मुश्किल हो जाता है।


मैं हमेशा से देहात में ही रहा हूँ। अपनी पढ़ाई लिखाई भी पास के देहात के विद्यालय में ही किया हूँ। 12 वीं कक्षा के बाद आगे की पढ़ाई के लिए अपने देहाती इलाके से कुछ दूर ही एक कॉलेज में एडमिशन ले लिया, वही से स्नातक किया और अब बीटीसी कर रहा हूँ। इसी कारण मुझे कानपुर शहर के बारे में भी पूरी तरह से जानकारी नहीं थी।


मैंने सीटीईटी का फॉर्म भरा था, जिसका एग्जाम सेंटर मेरे देहाती इलाके से बहुत दूर पड़ा। शिक्षक पात्रता प्राप्त करने के लिए होने वाले दोनों पेपर्स में सम्मिलित होना पड़ेगा और अच्छे नम्बरों से इस परीक्षा को उतीर्ण भी करना होगा।


सर्दियों का वक्त था और एग्जाम के लिए सेंटर पर सुबह 7 बजे तक ही पहुँचना था। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि इस देहाती इलाके से जहाँ पर आने जाने के लिए सवारी बहुत मुश्किल से मिलती है, ऐसे में, मैं सही वक्त पर कैसे अपने एग्जाम सेंटर पहुँच पाऊँगा?


मेरे आस पास रहने वाले दोस्तों ने मुझे सलाह दी कि मैं एग्जाम से एक दिन पहले ही एग्जाम सेंटर पर पहुँच जाऊँ और एग्जाम सेंटर के आस पास ही कही रहने का इंतजाम कर लूँ। मैंने अपने दोस्तों की सलाह मानते हुए एग्जाम से एक दिन पहले ही एग्जाम सेंटर पर जाने का फैसला कर लिया था।


मेरा एग्जाम 21 जनवरी को था, इसलिए मैं 20 जनवरी के शाम को ही निकल गया, सोचा सुबह होते ही एग्जाम सेंटर पर पहुँच जाऊँगा लेकिन मेरे साथ कुछ और ही होने वाला था। कुछ ऐसा होने वाला था, जो किसी के भी होश हवास उड़ा सकता था।


मैंने एक साधारण बस में बुकिंग करवा ली। लगभग शाम के 7 बजे मैं बस में सवार हो गया। सफर बहुत ठंडक भरा था। मैं हाथ से लेकर पांव तक कापे जा रहा था। जैकेट, टोपा, जूते, मोजे, दस्ताने सब पहन रखे थे लेकिन ठंड और कोहरे के कहर ने सबको बेअसर कर रखा था।


लगभग रात के 1 बजे बस रूकी और मुझे एक कब्रिस्तान के पास छोड़ दिया। मैंने बस चालक से पूछा,,,,, "भाई यह कौन सी जगह है और मेरा एग्जाम सेंटर डीआरवीएसपीएस महाविद्यालय कहाँ पर पड़ता है?"


तब बस वाले भाई साहब ने कहा,,,,, भाई, यह सिविल लाइंस ग्रेव यार्ड है। तुमने जो जगह बताई थी, वह जगह यहाँ से कुछ दूर ही है। यहाँ से सीधे पैदल निकल जाओ, आगे वाली गली से मुड़ जाना, वही कही पर है तुम्हारा एग्जाम सेंटर। देखो भाई! मैं तुम्हें वहाँ तक पहुँचा देता लेकिन ये टूरिस्ट बस है, इसलिए साइज में थोड़ी बड़ी है और ऐसे में इस अंधेरे में सँकरी गली मोहल्लों में किसी मकान से टकरा गई तो मैं पेरशानी में फंस सकता हूँ! ऐसे में थोड़ा एडजस्टमेंट कर लेना ही ठीक होता है भाई!


रात बहुत ज्यादा होने के कारण चारों तरफ कुत्तों के भौंकने की आवाजें गूंज रही थी। वैसे तो मैं किसी चीज से डरता नहीं था लेकिन पता नहीं क्यों उस रात मन थोड़ा घबरा रहा था।


मैं चुप चाप नीचे देखते हुए आगे बढ़ रहा था। मैं चारों तरफ से आ रही अजीब अजीब आवाजों को अनदेखा करता हुआ आगे बढ़ रहा था। अभी में कुछ ही दूर चला था कि तभी मुझे लगा कोई मेरे कदमों के साथ साथ चल रहा है। मैं बहुत डर गया और वही रूक गया। मैं पीछे मुड़ कर देखना चाहता था लेकिन अंदर से बहुत ज्यादा डरा हुआ था। मैं फिर से तेज कदमों के साथ आगे बढ़ने लगा तो मेरे कदमों के बराबर ही कोई चल रहा है ऐसा महसूस हुआ।


मैं फिर से रूक गया और मेरी धड़कने बढ़ गई। सांस लेने में भी कठिनाई महसूस होने लगी। मुझे बहुत ज्यादा घबराहट होने लगी। मैंने खुद को समझाया कि पीछे कोई नहीं है, ये बस एक वहम है और यही सोच कर मैंने जैसे ही पीछे पलट कर देखा, मुझे अपने आँखों पर भरोसा नहीं हो रहा था! मैं लड़खड़ा कर नीचे गिर गया।


सामने से चलते हुए दो पैर आ रहे थे लेकिन ऊपर कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। वो पैर घुटनों तक लम्बे थे और मेरी तरफ ही आ रहे थे। मैं नीचे गिरा था और मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरे हाथों और पैरों में जान खत्म हो गई।


मैंने खुद को उठाने की कोशिश की लेकिन हर कोशिश बेकार साबित हो रही थी। मैं नीचे रेंग रेंग कर ही आगे बढ़ने लगा। इस तरह रेंगते रेंगते आगे बढ़ने में कुछ दूर जाकर ही मेरे पैर के घुटनों में दर्द होने लगा। मैं जैसे जैसे आगे बढ़ रहा था, मेरे घुटनों में दर्द भी बढ़ता जा रहा था। मुझे नहीं पता था कि मैं और कितनी देर तक ऐसे रेंगते हुए आगे बढ़ पाऊँगा?


मुझे मेरे हाथों में कुछ चिप चिपा सा महसूस हुआ तो मैंने नीचे अपने हाथों के तरफ देखा। मुझे लगा मेरे हाथों में कुछ काला काला सा लगा है लेकिन जब मैंने अपने दोनों हाथों को आँखों के पास ले जाकर देखा तो वो काले नहीं लाल नजर आए! मेरे मुँह से चीख निकल गई। मेरे दोनों घुटनों से खून रिस रिस कर निकल रहा था। इतना सारा खून देख कर मुझे और भी ज्यादा भयानक दर्द का एहसास होने लगा लेकिन मैंने फिर भी हिम्मत नहीं हारी और आगे बढ़ता रहा।


उन घुटनों तक लम्बे पैरो की रफ्तार अब बढ़ गई थी। वो तेजी के साथ मेरी तरफ आ रही थी। मैंने भी अपना पूरा जोर लगाया और तेजी के साथ रेंगते हुए आगे बढ़ने लगा।


मैं पीछे देखते हुए आगे बढ़ रहा था, ताकि मैं उन घुटनों तक लम्बे पैरो को भी देख सकूँ, जिससे मुझे उनकी स्थिति का अंदाजा लगता रहे। थोड़ा आगे बढ़ने पर मुझे ऐसा लगा जैसे आगे कोई चीज है! मैंने आगे देखा तो फिर से मेरे होश उड़ गए!


सामने एक औरत खड़ी थी, जिसके पैर घुटनों तक कटे हुए थे। उसके चेहरे पर हर जगह खून से सने चोटों के निशान थे, जो पूरी तरह से सड़ चुके थे।


वो औरत मेरी तरफ झुकी और कहा,,,,, "मेरे पास मेरा पैर नहीं है, मुझे तुम्हारा पैर चाहिए!"
"मुझे तुम्हारा पैर दे दो ना!"


मैं डर से कांप रहा था। मैं रेंग कर दूसरी तरह भागने की कोशिश करने लगा, तभी पीछे से दौड़ते हुए, वो घुटनों तक लम्बे पैर भी बिल्कुल मेरे पास आ गए। मैंने फिर से रेंगते हुए भागने की कोशिश की और उन दोनों से आगे जाने लगा।


मैं आगे बढ़ रहा था और वो दोनों मेरे पीछे पीछे आ रहे थे। थोड़ा आगे बढ़ते ही मुझे लगा सामने से एक और घुटनों तक लम्बे पैर मेरी तरफ आ रहे है! मैंने जब पीछे देखा तो वो औरत और वो घुटनों तक लम्बे पैर अभी भी मेरे पीछे ही आ रहे थे, फिर मैंने इधर उधर देखा तो सभी ओर से घुटनों तक लम्बे पैर मेरी तरफ आ रहे थे।


अब मेरा मनोबल टूटने लगा था। मुझे लगा अब मैं नहीं बचूँगा! ये सारे मिलकर मुझे मार डालेंगे! हां, अब मैं नहीं बच पाऊँगा! ये सारे के सारे मिलकर मुझे मार डालेंगे! मेरा मानसिक सन्तुलन बिगड़ चुका था और देखते ही देखते मेरे आँखों के आगे अंधेरा छा गया।


जब मेरी आँख खुली तो सुबह हो चुकी। मैं फुटपाथ की दीवार से टिका बैठा हुआ था और सामने एक आदमी झड़ू लगा रहा था।

उस आदमी ने मुझे देख कर कहा,,,,, "रात को यहाँ फंस गए थे क्या भाई?"
"वो सामने नोटिस बोर्ड नहीं पढ़ा क्या?, रात को यहाँ ठहरना मना है!"
"ये कानपुर का सिविल लाइंस ग्रेव यार्ड है! लोग कहते है यहाँ पर भूतों का बसेरा है इसलिए रात होने के बाद यहाँ पर कोई नहीं ठहरता है।"


वही मुझे आपने आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था! मैं जिंदा था और मेरे हाथ पैर भी सलामत थे लेकिन घुटनों में दर्द अभी भी महसूस हो रहा था। मैंने ईश्वर का धन्यवाद किया और वहाँ से निकल गया।


समाप्त.....


Thanks for Reading.....


Written and Copyrighted by @Krishna Singh Kaveri "KK"