The Author Krishna Kaveri K.K. फॉलो Current Read आज फिर एक उम्मीद मिट गई By Krishna Kaveri K.K. हिंदी लघुकथा Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books सही या गलत... कहते हैं इंसान वही जिसमें इंसानियत जिंदा हो.... लेकिन कभी कभ... ख़्वाबों की दुनिया में खो जाऊं "मेरी उदाशी तुमे केसे नजर आयेगी ,तुम्हे देखकर तो हम मुस्कुरा... सपनों की राह पर वो लड़की साधारण सी है, लेकिन उसके सपने साधारण नहीं हैं। उसकी... दरिंदा - भाग - 11 अल्पा को इस तरह अचानक अपने घर पर देखकर विनोद हैरान था उसे सम... तेरी मेरी यारी - 10 (10)मीडिया में करन के किडनैपिंग की खबर फैल जाने से किड... श्रेणी लघुकथा आध्यात्मिक कथा फिक्शन कहानी प्रेरक कथा क्लासिक कहानियां बाल कथाएँ हास्य कथाएं पत्रिका कविता यात्रा विशेष महिला विशेष नाटक प्रेम कथाएँ जासूसी कहानी सामाजिक कहानियां रोमांचक कहानियाँ मानवीय विज्ञान मनोविज्ञान स्वास्थ्य जीवनी पकाने की विधि पत्र डरावनी कहानी फिल्म समीक्षा पौराणिक कथा पुस्तक समीक्षाएं थ्रिलर कल्पित-विज्ञान व्यापार खेल जानवरों ज्योतिष शास्त्र विज्ञान कुछ भी क्राइम कहानी शेयर करे आज फिर एक उम्मीद मिट गई (3) 2.1k 7.6k 1 उस दिन बहुत तेज बारिश हो रही थी। मैं अपनी लोकल ट्रेन में कॉलेज के एक ट्रेनिंग प्रोग्राम से वापस लौट रही थी। मेरे सामने की सीट पर एक 23 - 24 साल का नौजवान युवक बैठा था। उसने फॉर्मल कपड़े पहने रखे थे। उसके हाथों में रिज्यूम वाली फाइल्स थी जैसे की किसी इंटरव्यू से लौट रहा हो। ट्रेन अपने फुल स्पीड पर भागती जा रही थी। उस बोगी में बैठे लगभग सभी लोग अपने - अपने मोबाइल में खोएं हुए थे। कोई माने या ना माने लेकिन सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते इंसान ने अब गांधी जी के चौथे बंदर के रूप में अवतार ले लिया है। तभी अचानक मेरे सामने बैठा वो युवक मन ही मन धीमे स्वर में कुछ बड़बड़ाने लगा "मुझे पूरी तरह से बर्बाद कर दिया , मेरा सब कुछ छीन लिया , कही का नहीं छोड़ा" लेकिन सब अपने मोबाइल में इतने गुम थे की किसी ने भी उस युवक की बातों पर ध्यान नहीं दिया। मैं भी एक लेडीज मैंगनीज पढ़ रही थी। मुझे उसकी बातें सुनाई तो दे रही थी लेकिन मैं उसकी बातों पर गौर नहीं कर रही थी। फिर अचानक वो युवक अपनी सीट से उठा और उसके हाथों में जो रिज्यूम फाइल्स थी वो वही नीचे गिर गई। वो ट्रेन के दरवाजे की तरफ चला गया और फिर कुछ देर बाद लोगों की चिल्लाने की आवाज आने लगी। मैंने उठकर देखा तो मुझे अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हुआ ट्रेन के दरवाजे के आस - पास उस युवक के शरीर के टुकड़े और खून के छींटे फैले थे। उसने शायद अपने शरीर का कोई हिस्सा ट्रेन से बाहर निकाल दिया होगा और फिर किसी चीज से टक्करा गया होगा। ट्रेन के दरवाजे पे खड़े लोगों ने कहा उसने ऐसा जान बूझ कर किया शायद वो आत्महत्या करने के उद्देश्य से ही ट्रेन के दरवाजे पे खड़ा हुआ था। लोग अपनी जिंदगी को कितना सस्ता समझते है। छोटी मोटी परेशानियों से भी हार कर आत्महत्या जैसा खतरनाक कदम उठा लेते है। मुझे ये कहते हुए बहुत अफसोस हो रहा है लेकिन आज की युवा जनरेशन गलत रास्ते पे जा रही है और अपने जीवन में सही फैसले लेने में भी बुरी तरह से असफल सावित हो रही है। उस हादसे के बाद मुझे खुद पर भी बहुत गुस्सा आ रहा था। मैं इतनी लपरवाह कैसे हो सकती हूँ? , काश की उस वक्त मैंने उस युवक की बातों पर थोड़ा ध्यान दिया होता , ज्यादा कुछ नहीं तो थोड़ा बहुत बात ही कर ली होती उससे। कहते है जब हमारा दिमाग आत्महत्या जैसे खतरनाक विचारों के बारे में सोचता है , तब अगर कोई ऐसा व्यक्ति साथ हो , जो सकारात्मक विचार रखता हो , तो उसके विचारों का प्रभाव हमारे दिमाग पर भी होता है और - कभी कभी तो हम अपने विचारों को भी बदल लेते है। बदकिस्मती से आमतौर पर ऐसे नाजूक वक्त में हर किसी को ऐसे व्यक्ति का साथ नहीं मिलता है , जो उस वक्त उनकी मानसिक स्थिति को समझ सके। Written and Copyrighted by Krishna Singh Kaveri "KK" Download Our App