वो अमावस की काली रात थी ।एक सुनसान सड़क पर एक कार धीरे-धीरे अपनी मस्ती में चली जा रही थी । कार की दोनो हैडलाइट चालू थी फिर भी न जाने क्यों सड़क पर अंधेरा सा नजर आ रहा था । कार के अंदर बैठा मनोज धीरे धीरे कार को चला रहा था । कार में कोई हिंदी गीत चल रहा था, मनोज भी वो गीत साथ साथ गुनगुना रहा था । रात के दस बज चुके थे और अंधेरा भी पहले से अधिक बढ़ चुका था । मनोज सांसारिक चिंताओं से दूर अपने आप में मग्न होकर कार को चलाए जा रहा था । अचानक गीत रुक गया , शायद वो पूरा हो गया था । अचानक उसे याद आया की कुछ देर पहले उसे दीपक ने फोन करके कहा था "मनोज , तुम्हे मालूम है ना आज मेरा जन्मदिन है । मैं अपने घर पर जोरदार पार्टी करने जा रहा हूं ,तुम भी बारह बजे से पहले आ जाना ।" मनोज और दीपक सगे भाइयों से भी बढ़कर दो अच्छे दोस्त थे । वे दोनो ही लेखक थे । दीपक का घर मनोज के घर से काफी दूर था । लगभग तीन घंटे का सफर था । मनोज नौ बजे ही घर से निकल गया था । अनायास ही फोन कॉल को याद करते हुए मनोज ने कार की गति तेज कर दी । कार में वो अकेला ही बैठा हुआ था । न जाने क्यों , आज उसे एक अजीब सा अकेलापन महसूस हो रहा था । वो सोच रहा था की काश कोई उसके साथ बातें करने के लिए होता । ये राष्ट्रीय राजमार्ग था पर आज की रात इस सड़क पर कोई भी वाहन नजर नही आ रहा था । सड़क पूरी तरह से सुनसान थी सिर्फ उसकी कार धूल उडाते हुए भाग जा रही थी । वो थोड़ा सा घबराया हुआ था । अचानक उसे अपनी कार से काफी दूर एक सफेद सी आकृति नजर आई । पहले तो उसे कुछ साफ नजर नहीं आया परंतु जब उसकी कार थोड़ी नजदीक गई तो उसने देखा कि वह एक लड़की थी । उस लड़की ने मनोज की तरफ कार रोकने का इशारा किया । मनोज ने भी उस लड़की के पास जाकर कार रोक दी । मनोज को कुछ बेचैनी सी महसूस हो रही थी मगर वह खुश था क्योंकि वह जानता था कि अब वह अकेला नहीं है । वो मन में सोचने लगा की "एक से भले दो । " मनोज ने धीरे-धीरे कार का शीशा नीचे किया । मनोज उस लड़की की खूबसूरती को देखकर कुछ के लिए स्तब्ध रह गया । उसने अपनी जिंदगी में आज तक इतनी खूबसूरत लड़की कभी नही देखी थी । सफेद कपड़े , सफेद रंग , पलको के मसकारे ,होठों की लाली ,गले का चमकता हार ,कान की बाली। ये देखकर मनोज क्या कोई भी अपलक रह जाए । वो लड़की कोई परी जैसी नज़र आ रही थी । लड़की ने कोमल और मीठी आवाज में धीरे से पूछा "क्या आप मुझे शहर तक छोड़ देंगे?" परंतु मनोज ने कोई जवाब नही दिया क्योंकि वो उसकी सुंदरता के मायाजाल में खो चुका था । उस लड़की ने फिर से वही सवाल कुछ जोर से बोलते हुए पूछा "क्या आप मुझे शहर तक छोड़ देंगे ?" मनोज ये सुनकर अचानक होश में आ गया । उसने लड़की के चेहरे की और देखा और मुस्कुराते हुए बोल पड़ा "जी, क्यों नही , बैठिए ना ।" लड़की कार की पीछे की खिड़की खोलने लगी । ये देखकर मनोज निराश सा हो गया । उसे अचानक लगने लगा की उसने बहुत मेहनत से एक आम को छिला था और जैसे ही वो उस आम को खाने लगा तभी वो जमीन पर गिर गया । लड़की के खिड़की खोलने से पहले ही मनोज हड़बड़ाहट में बोल पड़ा " आप आगे आकर बैठ जाइए ना " ये कहकर मनोज थोड़ा सा झेंप गया । वो मन में सोचने लगा की उसे लड़की को ऐसा नही कहना चाहिए था । लड़की ने भी शकभरी निगाहों से मनोज की और देखा और आगे मनोज के पास आकर बैठ गई । मनोज ने अब राहत की सांस ली । उसने कार चलाना शुरू किया । वह बिल्कुल धीरे-धीरे कार चला रहा था । मनोज ने फिर से उस लड़की की और देखा वह लड़की 20-22 साल की लग रही थी । मनोज को अनुभव हुआ कि उसकी उम्र भी उतनी ही है और वह गदगद हो उठा । हालांकि मनोज हमेशा ही अपने लेखों में लिखता था कि मुझे हैरानी होती है कि आज का युवा लड़कियों में इतनी दिलचस्पी क्यों लेता है? यहां तक लड़कियों की सुंदरता का सवाल है तो वह श्रणिक होती है कोई अमर नहीं । आज उसे अचानक महसूस होने लगा की उसने जो कुछ भी अपने लेखों में लिखा था सब कुछ गलत था ।आज उसका मन कर रहा था कि वह अपने सभी लेखों को फाड़ दे और उनके टुकड़े-टुकड़े कर दे । वे दोनों अब तक कार में खामोश बैठे थे परंतु मनोज से रहा नहीं गया उसने चुप्पी तोड़ी । मनोज ने उस लड़की से पूछा "आपको कहां जाना है?" लड़की कुछ देर खामोश रही फिर वह बोली "शहर में मिस्टर सदाओ के नाम से एक बिल्डिंग है उसी बिल्डिंग के मकान नंबर 18 में मैं रहती हूं ।" मनोज ने फिर से उस लड़की से पूछा "आप इतनी रात को सड़क पर क्या कर रही थी ?आपको डर नहीं लगता?" यह सुनते ही लड़की जोर-जोर से हंसने लगी और बोली "डर! वह भी मुझे ,क्या तुम्हें भूतों में विश्वास है ? मुझे तो बिल्कुल भी नहीं।" कुछ देर लड़की खामोश रही और फिर बोली "सड़क के पास वाले जंगल में एक कब्रिस्तान है मेरी एक दोस्त है जिसका नाम सोफिया था वह एक एक्सीडेंट में मारी गई थी मैं हर अमावस की रात उसकी कब्र पर फूल चढ़ाने जाती हूं।" ये कहते ही लड़की मायूस हो गई । मनोज को उसकी बातें सुनकर कुछ डर सा लगने लगा। मनोज इस सड़क पर पहली बार आया था । मनोज कुछ देर खामोश रहने के बाद फिर बोल पड़ा "यह सड़क ईतनी सुनसान क्यों है?" लड़की ने मनोज की और शक भरी निगाहों से देखते हुए कहा "लगता है आप इस सड़क पर पहली बार आए हैं? यह सड़क इसी तरह सुनसान रहती है बहुत कम लोग इस सड़क पर आते हैं शायद आपकी तरह भूत प्रेतो से डरते होंगे" यह कहकर लड़की हंसने लगी । मनोज को उस लड़की का हंसना बहुत अच्छा लग रहा था वह भी उसके साथ हंसने लगा । बातों बातों में मनोज को पता ही नहीं चला कि वह कब शहर में घुस गया। लड़की ने एक बिल्डिंग के आगे कर रोकने को कहा मनोज का मन तो नहीं कर रहा था कि वह वहां पर कार रोके और वह लड़की कार से उतरे वह चाहता था कि वह लड़की पूरी उम्र उसके साथ रहे । पर वह चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता था उसने उस बिल्डिंग के आगे कर रोक दी। लड़की ने मनोज की और देखा और पूछा "आप कितना किराया लोगे?" मनोज ने हंसते हुए कहा "रहने दीजिए, जी आपसे कैसा किराया?" यह सुनकर लड़की कार से उतरी और बिल्डिंग की और बढ़ने लगी मनोज को कुछ अजीब सा महसूस होने लगा अचानक वह लड़की रुकी और पीछे मुड़कर बोली "शुक्रिया, मेरा मकान नंबर 18 है ,याद रखिएगा, कभी आइएगा जरूर, गुड बाय"यह कहते हुए लड़की बिल्डिंग के अंदर घुस गई। मनोज के दिल को कुछ ठंडक महसूस हुई। उसने कार को चलाना प्रारंभ किया और 12:00 बजे पार्टी में जा पहुंचा। पार्टी में पहुंचते ही दीपक ने उसे देरी से आने के लिए डांटा। मनोज अभी भी उस लड़की की यादों में खोया हुआ था उसने दीपक को सारी आपबीती सुनाई। मनोज ने दीपक से कहा "दीपक मेरी बात मान उस लड़की की आंखों में कुछ तो खास था वह जरूर कोई परी थी।" अरे मेरे भाई मनोज तो उस लड़की की सुंदरता में बावला हो गया है" दीपक ने हंसते हुए कहा। वे दोनों कुछ देर शांत रहे। फिर दीपक ने कहा "चल ठीक है तुझे उसका घर तो मालूम है पार्टी खत्म होने के बाद मुझे उसके पास लेकर चलना आखिर में भी तो देखूं वह कितनी सुंदर थी"मनोज ने भी हां में सिर हिला दिया। पार्टी रात के लगभग 3:00 बजे खत्म हुई। पार्टी खत्म होते ही वे दोनों दोस्त उस लड़की के दर्शन करने के लिए निकल पड़े।मनोज को अचानक समरण हुआ को उसने उस लड़की का नाम तो पूछा ही नहीं । उसे खुद पर गुस्सा आने लगा । फिर उसने सोचा की कोई बात नही वो अब उस लड़की का नाम पूछ लेगा। मनोज ने एक बिल्डिंग के आगे कार रोक दी और बोला " वह लड़की यहीं पर मकान नंबर 18 में रहती है।" वे दोनों कर से नीचे उतरे मनोज ने चारों ओर नजर दौड़ाई। चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था रोशनी की कोई किरण नजर नहीं आ रही थी ।बिल्डिंग के एक कोने में एक भिखारी लेटा हुआ था और वह उन दोनों की ओर घूरे जा रहा था। मनोज यह देखकर थोड़ा सा डर गया पर उसने उस भिखारी को नजरअंदाज किया । वे दोनों धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगे। सीढ़ियां चढ़ते हुए वे दोनों मकान नंबर 18 के आगे जा खड़े हो गए। दीपक ने दरवाजा खटखटाया। मनोज सोच रहा था कि अब वह लड़की आकर दरवाजा खोलेगी मगर वह निराश हो गया क्योंकि एक बुड्ढी औरत ने दरवाजा खोला। मनोज ने उस बुड्ढी औरत की और देखते हुए कहा "मा जी हमें उस लड़की से मिलना है जो यहां रहती है।"उस औरत ने मनोज की ओर शक भरी निगाहों से देखा और पूछा कि "किस लड़की की बात कर रहे हो तुम ?यहां पर तो मैं अकेली ही रहती हूं।"दीपक ने भी मनोज की ओर शकभरी निगाहों से देखा। मनोज फिर से बोल पड़ा "देखिए मां जी वह लड़की मुझे रास्ते में मिली थी वह कार में मेरे साथ ही थी वह लड़की अपनी दोस्त सोफिया की कब्र पर फूल चढ़कर आई थी "सोफिया का नाम सुनते ही वह महिला कुछ मायूस हो गई। कब्र का नाम सुनते ही दीपक भी थोड़ा सा डर गया। वह महिला थोड़ी सी मायूस होकर बोली" ठीक है तो तुम्हें उस लड़की से मिलना है तो चलो मेरे साथ।"उसे महिला के यह कहते ही वह तीनों कर में सवार हो गए वह महिला उन्हें जंगल के पास ले गई मनोज व दीपक को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। मनोज को उस महिला पर शक हो रहा था कि वह उन्हें कहां ले जा रही है? उस महिला ने जंगल के बीचों-बीच कार रूकवाई। वह महिला कार से उतरकर जंगल के अंदर जाने लगी। वे दोनों भी उस महिला के पीछे-पीछे डरते हुए चलने लगे। वह महिला जंगल के बीच में स्थित एक खतरनाक से कब्रिस्तान में घुस गई वे दोनों जंगल के बीचों बीच कब्रिस्तान देखकर बुरी तरह डर गए। महिला एक कब्र के आगे जाकर खड़ी हो गई, जिस पर कुछ फूल चढ़ाए हुए थे। "लो मिल लो, उस लड़की से। यह मेरी बेटी की कब्र है जो आज से 2 साल पहले मर गई थी।" महिला ने रोते हुए कहा। यह सुनते ही मनोज व दीपक के पैरों तले जमीन खिसक गई ।वे कुछ देर वैसे ही खड़े रहे। कुछ देर बाद वह महिला रोते हुए बोली "मेरी इकलौती बेटी थी जो मेरा सहारा थी वह भी भगवान ने मुझसे छीन ली" यह कहते हुए वह महिला रोने लगी । मनोज व दीपक ने उस महिला को संभाला। उन दोनों ने उस महिला को कार में बिठाया और उसे वापस शहर में मकान नंबर 18 में छोड़ने के लिए जाने लगे । मनोज के तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। उसे तो यह भी समझ में नहीं आ रहा था कि यह सपना है या सच। दीपक भी पूरी तरह से सुन हो गया था। कुछ देर बाद उनकी कार फिर से उस बिल्डिंग के सामने आकर खड़ी हो गई। वह बूढ़ी महिला कार से उतरी और बिल्डिंग के अंदर घुस गई। मनोज ने देखा कि वह भिखारी अब भी वहीं बैठा था और उन दोनों की ओर आंखें फाड़ फाड़ कर देख रहा था। दीपक ने कंपकंपाती हुई आवाज में मनोज से कहा "मनोज यह क्या था ?तुम किस से मिले थे?" दीपक की ये बात सुनते ही मनोज कांपने लगा। तभी मनोज ने देखा कि वह भिखारी उठ खड़ा हुआ और उन दोनों की ओर बढ़ने लगा। यह देखकर वे दोनों डर गए। वह भिखारी उनके पास आकर खड़ा हो गया और डरते हुए उनसे पूछा "साहब आप इतनी रात को यहां पर क्या कर रहे हो?"मनोज ने भिखारी की ओर शकभरी निगाहों से देखते हुए कहा "एक महिला को छोड़ने आए थे।" भिखारी ने फिर से डरते हुए कहा "पर साहब आपके साथ तो कोई भी महिला नहीं थी ?और आप किसके साथ बातें कर रहे थे?" भिखारी की यह बात सुनते ही वे दोनों डर गए ।दीपक ने फिर डरते हुए उस भिखारी से कहा "वही महिला जो मकान नंबर 18 में रहती है।" मकान नंबर 18 का नाम सुनते ही वह भिखारी थर-थर कांपने लगा। ठंड की इस रात में भी वह भिखारी पसीना पसीना हो गया । कुछ देर खामोश रहने के बाद वह भिखारी डरते हुए बोला"साहब मकान नंबर 18 में एक महिला रहती थी जिसका नाम मनीता था उसकी एक लड़की सोफिया थी ।सोफिया आज से 2 साल पहले एक रोड एक्सीडेंट में मारी गई उसकी मौत का सदमा बर्दाश्त न कर पाने के कारण उसकी मां ने भी दो दिन बाद दम तोड़ दिया और वही रही बात मकान नंबर 18 की तो वह मकान पिछले दो सालों से बंद पड़ा है कहते हैं कि वहां उनकी आत्माएं भटकती हैं।" भिखारी की यह बात सुनते ही उन दोनों के पैरों तले जमीन खिसक गई ।उन दोनों का दिल जोर-जोर से धक धक करने लगा जिसकी आवाज साफ सुनी जा सकती थी। भिखारी की ये बातें सुनकर मनोज को लगने लगा कि मानो किसी ने उसके दिल पर जलता हुआ अंगारा रख दिया हो जो शायद ना कभी बुझेगा और ना कभी उठाया जाएगा। उम्मीद है आपको यह कहानी पसंद आई होगी।
अत्यधिक सम्मान सहित लिखित। भूपेंद्र सिंह रामगढ़िया✍️✍️