साथिया - 39 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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साथिया - 39

" ये मेरे दिल की सालों पुरानी ख्वाहिश है जो अगर तुम्हारी सहमति होगी तो हमारी किस्मत बन जायेगी।" सौरभ बोला।

सांझ को अब भी समझ नही आया कि वो क्या कहना चाहता है।

" मैं तुम्हे प्यार करता हूँ सांझ। चाहता हूँ तुम्हे और अगर तुम्हारी हाँ है तो मै घर में बात करके तुमसे शादी करना चाहूंगा।" सौरभ बोला तो सांझ के पैरो तले जमीन खिसक गई।

उसके चेहरे पर घबराहट आ गई। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें। वह सौरभ को जानती थी बहुत अच्छे से पर उसने इस तरीके से कभी नहीं सोचा था कि सौरभ इस तरीके से आकर अपने दिल की बात उससे कहेगा और सांझ को डर भी लग रहा था कि अगर उसने मना कर दिया तो क्या होगा ? और हां वह किसी भी हालत में कर नहीं सकती थी।

"क्या हुआ सांझ तुम कुछ बोल क्यों नहीं रही हो? बताओ मुझे तुम क्या कहना चाहती हो? "सौरभ ने कहा क्योंकि उसे सांझ के चेहरे पर आई घबराहट समझ में आ रही थी।

"देखिए सौरभ जी वह मैं ..!" सांझ ने हकलाते हुए कहा।


"प्लीज सांझ डरो मत। तुम अपने मन की बात बिल्कुल बेफिक्र होकर मुझसे कह सकती हो...!! मैं वादा करता हूं जो तुम्हें सही लगेगा और जो तुम्हारा दिल चाहेगा वही होगा, तुम्हारे साथ कोई भी जबरदस्ती नहीं होगी। भले मैं उसी गांव से उसी परिवार से हूं उसके बावजूद मेरी सोच और मेरे विचार एकदम अलग है। मैं किसी भी जबरदस्ती के रिश्ते में विश्वास नहीं करता इसलिए तुम्हारे मन में जो कुछ भी हो तुम बेफिक्र होकर मुझसे कह सकती हो।" सौरभ ने कहा सांझ ने राहत की सांस ली और फिर सौरभ की तरफ देखा।



"देखिए सौरभ जी प्लीज मुझे गलत मत समझना और कण्डिशन समझने की कोशिश कीजिएगा तो मैं कहना चाह रही हूं...कि "" सांझ अटकते हुए बोली


" सांझ मैं वादा करता हूं कि मैं सब कुछ समझने की कोशिश करूंगा और जो सही होगा वही करूंगा।" सौरभ ने कहा।

"हम दोनों एक ही गांव से हैं और हमारे परिवारों में भी अच्छे संबंध है यह बात मैं जानती हूं ..!! आपको भी बचपन से। जानती हूं और आप भी मुझे बहुत अच्छी तरीके से जानते हैं।

आपके जैसा लड़का किसी के भी जीवन में आना उसके लिए किस्मत की बात होगी पर मुझे माफ कर दीजिए सौरभ जी मैं आपको हां नहीं कह सकती ..!" सांझ ने हाथ जोड़कर कहा तो सौरभ को अपना दिल टूटता हुआ सा महसूस हुआ।


"कारण जान सकता हूं इसका ? " सौरभ ने कहा।

सांझ खामोश रही।


" मैं बाकी लोंगो जैसी सोच नहीं रखता हूँ सांझ। मैं मैं वादा करता हूं कि जो भी बात होगी वह मुझ तक ही रहेगी। कभी भी गांव में या तुम्हारे घर तक नहीं जाएगी। बस मैं जानना चाहता हूं कारण अगर तुम बताना चाहो तो।" सौरभ बोला।

'वह मैं किसी और को पसंद करती हूं । यहीं पर है मेरे कॉलेज के मेरे सीनियर।" सांझ ने झिझक के साथ कहा।

सौरभ हल्का मुस्कराया।

"देर कर दी मैंने। वैसे नाम जान सकता हूं उस लकी पर्सन का।" सौरभा ने कहा।

"अक्षत चतुर्वेदी..!" सांझ बोली।

" चतुर्वेदी। " सौरभ के कहा और सांझ को देखा ।


" सांझ तुमसे कहना चाहूंगा ।" सौरभ बोला।


"जी कहिए! " सांझ ने कहा।

"जो भी करना हो यहीं पर कर लेना...! उसके साथ शादी करना है कर लेना। उसके साथ रहना हो तो हो सके तो यह शहर छोड़कर कहीं और चली जाना। ऐसी जगह जहां का पता तुम्हारे चाचा चाची को या गांव वालों को ना हो। और भूलकर भी यह बात अपने घर में या गांव में किसी से मत कह देना।" सौरभ बोला तो सांझ ने हैरानी से उसकी तरफ देखा।


"मेरी बहन नियति को जानती हो ना तुम?" सौरभ ने कहा।


"जी तो ..?" सांझ को कुछ समझ न आया।


"कुछ समय पहले उसको और उसके बॉयफ्रेंड को ऑनर किलिंग के चलते मार दिया गया है!" सौरभ ने कहा तो सांझ की आंखें भर आई और शरीर एकदम से कांप गया ।

उसे विश्वास ही नही हुआ सौरभ की बात का।


" क्या बोल रहे है आप ये?" सांझ ने कहा।

'तुम्हें शायद खबर नहीं मिली होगी क्योंकि गांव की खबर गांव में ही दबा दी गई। मैं खुद अपने हाथों से उसका अंतिम संस्कार कर के आया हूं और नहीं बचा पाया उसको पहुंचने में बहुत लेट हो गया। तुम्हारे परिवार मेरे परिवार और बाकी के पंचों ने मिलकर उनकी किस्मत का फैसला कर दिया।" सौरभ ने दुखी होकर कहा।

सांझ के भी आंसू भर आये।

तुम्हे मैं बचपन से जानता हूं? तुम एक अच्छी और समझदार लड़की हो। इसलिए तुमसे कह रहा हूं कि इस बात को किसी से भी मत कहना। हो सके तो उस लड़के को क्या नाम बताया? हाँ अक्षत चतुर्वेदी उस लड़के से बात करके उसके साथ कहीं दूर चले जाना और अपनी खुशहाल जिंदगी बिताना पर गांव वालों से और अपने चाचा चाची से बिल्कुल भी इस बात की उम्मीद मत करना कि वह तुम्हारे इस रिश्ते को स्वीकार करेंगे। मैं नहीं चाहता कि जो नियति के साथ हुआ वह किसी के भी साथ हो।" सौरभ ने कहा।


सांझ को तो समझ में नहीं आ रहा था कि वह सौरभ को क्या जवाब दें। उसे नियति की मौत का बेहद गहरा सदमा लगा था आंखों से आंसू निकलने लगे थे।

"मैं समझ सकता हूं तुम्हारी हालत...! तुम आव्या नियति और नेहा शालू सब एक दूसरे के अच्छे दोस्त रहे हो। पर तुमने मुझसे अपनी बात कह दी इसलिए मैं नहीं चाहता कि तुम्हारे साथ कुछ भी गलत हो। और मेरा यहां आने का कारण भी यही था ताकि मैं सच जान सकूँ। तुम्हारी इच्छा जान सकु। अगर मैं घर में कह देता तो रिश्ता तय कर दिया जाता वो भी तुम्हे पूछे बिना जैसा का नियम है गाँव का। वहां पर लड़कियों की सहमति की कोई वैल्यू नहीं है। और मैं नहीं चाहता था कि तुम्हारे साथ कोई जबर्दस्ती हो, तुम मेरे साथ रहो या किसी और के साथ हमेशा खुश रहो यही चाहा है मैंने। इसीलिए तुमसे कह रहा हूं इस बात को कभी भी मत भूलना और कभी किसी से भूल कर भी मत बताना कि तुम किसी को चाहती हो।" सौरभ ने कहा।

सांझ बस उसे देख रही थी। दिमाग ब्लेंक हो गया था।


"पहली बात तो गांव में लव मैरिज मान्य नहीं है और फिर विजातीय विवाह किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जाएगा। समझ रही हो ना तुम? " सौरभ ने कहा तो सांझ ने गर्दन हिलाई।

"ऑल द बेस्ट और भगवान करे तुम्हें दुनिया की हर खुशी मिले..!" सौरभ बोला और जाने लगा ।

"सौरभ जी।" तभी साथ ने आवाज लगाई तो सौरभ ने उसकी तरफ देखा।


"थैंक यू सो मच...!! मुझे समझने के लिए और मुझे सही सलाह देने के लिए!" सांझ बोली।

" जरूरी नहीं है एक लड़की और लड़के के बीच में प्यार मोहब्बत का ही रिश्ता हो? दोस्ती का रिश्ता भी होता है और इंसानियत का भी रिश्ता होता है।

मेरी तुम्हारे साथ बचपन में दोस्ती थी और अब इंसानियत का रिश्ता है। मैं नहीं चाहता कि कुछ भी गलत तुम्हारे साथ हो। आगे भी कभी भी तुम्हें लगे कि तुम्हें मेरी जरूरत है बस एक कॉल कर देना मैं मदद के लिए पहुंच जाऊंगा।" सौरभ बोला और तुरंत वहां से निकल गया।


सांझ अपने कमरे में आई और बिस्तर पर बैठ गई।

कानों में सौरभ कि कहीं बातें गूंज रही थी। उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि ऐसा कुछ भी हो सकता है नियति के साथ।

"ऐसा कैसे हो सकता है? अब आज के समय में भी यह सब चीजों का होना सही नही है । मैंने सुना था कि ऐसा होता है उस एरिया में पर अपने परिवार में होगा नही सोचा था।।

गजेंद्र चाचा के परिवार में ऐसा हो गया मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा है..!! कैसे फैसला ले लिया पंचो ने इतना बड़ा अपनी खुद की बच्ची के लिए। दिल नही है क्या उनके सीने मे।? कसाई है क्या सब ? पर पांचो में तो मेरे चाचा जी भी आते हैं और और गजेंद्र चाचा जी भी आते हैं। मतलब इन लोगों की भी सहमति थी इतने बड़े निर्णय में?

नहीं नहीं सौरभ ने बिल्कुल सही कहा मैं किसी को भी नहीं बताऊंगी बिल्कुल भी नहीं बताऊंगी। बस एक बार जब साहब ट्रेनिंग करके आ जाए उसके बाद हम उनके साथ कहीं दूर चली जाऊंगी। किसी को भी नहीं बताऊंगी कभी नहीं बताऊंगी।" सांझ ने मन ही मन कहा कि तभी उसका फोन बज उठा।

फोन अक्षत का था।

सांझ ने फोन पिक किया।

"हेलो.. सांझ !" सामने से आवाज आई। ।

" जी जज साहब बोलिए।" सांझ ने धीमे से कहा।



"क्या हुआ इतना लो साउंड क्यों कर रही हो? " अक्षत ने पूछा।

"बस कुछ नहीं ऐसे ही आप बताइए..!" सांझ बोली,

" बात कोई है क्या....?? चलो मिलकर बता देना। अच्छा तैयार हो जाओ तुम्हें लेने आता हूँ। मम्मी तुमसे मिलना चाहती हैं और फिर एक हफ्ते बाद मुझे ट्रेनिंग के लिए जाना है तो सोचा तुम्हें उनसे मिलवा देता हूं।" अक्षत ने कहा।


"आप कितने दिनों में वापस आ जाओगे? " सांझ ने पूछा।

"बस ट्रेनिंग होते ही वापस आ जाऊंगा और फिर हम दोनों धूमधाम से शादी करेंगे..!" अक्षत बोला।


"आप मेरा साथ दोगे ना जज साहब हमेशा ?" सांझ ने परेशान होकर कहा।

कैसी बातें कर रही हो सांझ...? तुम्हारे लिए मैं कितने सालों से इंतजार कर रहा हूं। तुम्हारा साथ भला क्यों नहीं दूंगा? मेरा बस चलता तो अभी के अभी तुम्हें अपने घर ले आता अपनी दुल्हन बनाकर। पर मैं चाहता हूं कि पहले ट्रेनिंग करके आ जाऊँ उसके बाद ही शादी करें। वरना मैं वहां चला जाऊंगा तुम यहाँ होगी और हम दोनों का ही मन नहीं लगेगा। और फिर अभी तुम्हारी नर्सिंग कंप्लीट होने में कुछ महीने बकाया है तो वह भी कंप्लीट हो जाएंगी।" अक्षत ने कहा।


"जी जज साहब आपने बिल्कुल सही सोचा है।" सांझ बोली।


"अच्छा ठीक है अब रेडी हो जाओ थोड़ी देर में आता हूं तुम्हें लेने के लिए..!" अक्षत ने कहा और फिर कॉल कट कर दिया

सांझ के दिमाग में सौरभ की बातें चल रही थी और आंखों के आगे नियति का चेहरा घूम रहा था। आखिर में उसने सभी बातों को एक तरफ किया और उठकर तैयार होने लगी क्योंकि अक्षत कुछ देर में आने वाला था उसे लेने के लिए।


क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव