साथिया - 38 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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साथिया - 38

अक्षत और सांझ ने एक दूसरे से अपने दिल की बात कह दी थी? जो एहसास दोनों सालों से एक दूसरे के लिए महसूस करते थे और दिल ही दिल में दबाए हुए थे वह एक दूसरे से कह नहीं पा रहे थे वह आज कहकर दोनों ही बहुत हल्का महसूस कर रहे थे। साथ ही साथ दोनों बेहद खुश थे।

अक्षत तो अपनी तरफ से पहले ही श्योर् था कि वह सांझ को प्यार करता है और जैसे ही उसका सिलेक्शन हो जाएगा और सांझ का ग्रेजुएशन पूरा हो जाएगा वह सांझ को अपने दिल की बात बता देगा।

पर सांझ भले अक्षत को मन ही मन चाहती थी पर उसने कभी नहीं सोचा था कि अक्षत जैसा लड़का उसे प्यार करेगा। उसे चाहेगा उसे अपनी जिंदगी में शामिल करना चाहेगा।
साँझ के लिए यह एक खूबसूरत सपने के सच होने जैसा था जिसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी।

बचपन से ही वह अपने चाचा चाची के घर में इस तरीके से रही जैसे कोई अवांछित व्यक्ति हो जिसे कोई नहीं चाहता सिर्फ नेहा थी जो उसे प्यार करती थी और उसका साथ देती थी। बाकी चाचा चाची के लिए वह हमेशा बोझ बन कर रही। एक ऐसा बोझ जिसे वह अपने सिर से उतार भी नहीं करते थे और जिसे ढोना भी उनके लिए जैसे मुश्किल हो।

सांझ के माता पिता ने उसके लिए अच्छी खासी प्रॉपर्टी छोड़ी थी । बावजूद इसके उसके उसके चाचा चाची ने हमेशा उसे यही महसूस कराया कि वह उस पर एहसान कर रहे हैं। उसे पाल पोस कर बड़ा किया है उसे अपने घर में रखा है। और सांझ के लिए भी यह बहुत बड़ा एहसान था क्योंकि सांझ यह बात जानती थी कि उसके माता पिता ने उसे गोद लिया है। अब उसे गोद कहां से लिया है इस बात का सांझ को पता नहीं था पर वह जानती थी कि वह इस परिवार का खून नहीं है। बावजूद इसके चाचा चाची ने उसे पाला पोसा बड़ा किया। यह बात सांझ के लिए बहुत बड़ी थी और इसीलिए वह उनके एहसानों तले दबी हुई थी और कभी भी कुछ भी नहीं बोलती थी।


अक्षत से बात करने के बाद सांझ ने आंखें बंद कर ली और अक्षत के साथ बिताए हुए पलों को याद करने लगी।

"बस जज साहब अपनी ट्रेनिंग पूरी कर कर आ जाएंगे फिर हम दोनों शादी करेंगे पर क्या चाचा चाची मानेंगे हमारे रिश्ते के लिए? " सांझ के मन में एक बार बात आई।


"क्यों नहीं मानेगे। वैसे भी उनके लिए तो मैं एक बोझ हूँ। अच्छा ही है ना मेरी जिम्मेदारी से उनका पीछा छूटेगा।" सांझ ने अगले ही पल खुद से ही जवाब दे दिया।


"और अगर वह नहीं माने तो फिर मैं क्या करूंगी? पर मैं जज साहब के बिना भी तो नहीं रह सकती।

जिंदगी में पहली बार खुशियां आई हैं । इन खुशियों को मैं ऐसे तो अपनी जिंदगी से नहीं जाने दूंगी। चाहे कुछ भी हो जाए मुझे चाचा चाची को मनाना होगा। पर उससे पहले जज साहब ट्रेनिंग पूरी करके आ जाए फिर बात करेंगे। अभी मुझे इस बारे में कुछ भी नहीं सोचना है और जैसे ही मुझे मौका मिलेगा मैं नेहा दीदी से बात करती हूं। नेहा दीदी जरूर ही मेरी मदद करेंगी।" सांझ ने सोचा।


दिन ऐसे ही गुजरते जा रहे थे और साथ ही गहरा हो रहा था अक्षत और सांझ का रिश्ता।

बातें मुलाकातें और आने वाले कल के सपने देखते दोनों प्रेम डगर पर चल निकले थे।

उधर गांव में नियति को गजेंद्र के परिवार ने इस तरीके से भुला दिया जैसे कि वह कभी थी ही नहीं। दोनों ठाकुराइनें दिल ही दिल में उसे याद करती थी और दुखी होती थी। तो वही आव्या भी नियत को याद करती थी, पर घर में उसकी चर्चा नहीं की जा सकती थी इसलिए बात नहीं कर पाती थी।

निशांत के दिल में उसकी प्रिय बहिन नियति की मौत एक नासूर बन कर बैठ गई थी। जिसे वह चाहता भी नहीं था कि कभी ठीक हो। उसके मन में नफरत भर गई थी बाकी पंचों के खिलाफ?

सौरभ दिल्ली में अपने काम में व्यस्त था। नियति के लिए उसे भी बेहद दुःख थ पर वह घर से नाराज होकर गया था और तब से वापस नहीं आया पर मन ही मन उसने सोच लिया था कि कुछ दिनों बाद घर में आकर सांझ से रिश्ते की बात चलायेगा क्योंकि अब वह जानता था कि सांझ की स्टेडी पूरी होने वाली है और सही समय आ गया है जब सांझ के साथ रिश्ते के लिए बात की जाए साथ ही साथ वो सांझ के दिल के एहसास भी जानना चाहता था क्योंकि जबरदस्ती के रिश्ते में उसे विश्वास नहीं था इसलिए उसने सोचा था कि दिल्ली मे सांझ से मुलाकात करेगा और उसकी मर्जी जान के बात आगे बढ़ायेगा। सौरभ भी इस समय दिल्ली का जाने माने अखबार के लिए पत्रकारिता का काम कर रहा था।


उधर निशांत के दिल में नेहा के लिए जिद और ज्यादा बढ़ गई थी।

ठाकुर गजेंद्र सिंह की हवेली में सब लोग खाने के लिए बैठे थे कि तभी निशांत ने अपने पिता की तरफ देखा।

'बाबू जी मुझे आपसे कुछ जरूरी बात करनी है।" निशांत बोला।

"हां कहो क्या बात है?" गजेंद्र सिंह बोले।

"बाबूजी आप लोग जानते ही हो कि मैं नेहा को सालों से पसंद करना चाहता हूं। अब नेहा की पढाई पूरी हो गई है तो आप रिश्ते की बात लेकर जाइए अवतार चाचा के यहां पर।" निशांत ने कहा तो गजेंद्र सिंह के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई तो वहीं आव्या की आंखें हैरानी से बड़ी हो गई।

" पर भैया नेहा दीदी एमबीबीएस कर चुकी हैं और आप ..?" आव्या अभी बोल रही थी कि निशांत ने हथेली आगे कर दी।

"चाहे कुछ भी कर चुकी हो...!!चाहे कुछ भी बन चुकी हो पर यह बात सब लोग जानते हैं अपने परिवार में कि मैं शुरू से ही नेहा को पसंद करता हूं। उससे शादी करने के सालों से सपने देखे है मैंने। और वैसे भी वह कितनी भी पढ़ाई कर ले कहीं भी चले जाओ लौट कर दो इसी गांव में आना है उसे और इसी गांव के नियमों के हिसाब से शादी करनी होगी तो फिर मुझसे शादी करने में बुराई क्या है? और मैं मानता हूं कि उसके जितना पढ़ा लिखा नहीं हूं पर उच्च परिवार से हूं और हमारे परिवार की हैसियत है रुतबा है। और अवतार सिंह जी हमारे जैसे परिवार में ही अपनी बेटी का रिश्ता करना चाहेंगे। मुझे नहीं लगता कि उन्हें कोई भी आपत्ति होगी।" निशांत ने कहा तो आव्या खामोश हो गई।


" ठीक कहा न बाबूजी।"निशांत ने गजेंद्र की तरफ देखा।

"चिंता मत करो मैं जल्दी जाकर बात करता हूं...!जैसा तुम सोचते हो वैसा ही होगा और नेहा सिर्फ इस घर की बहु बनेगी। मैं भी यही सोचता हूं सिर्फ पढ़ाई लिखाई काफी नहीं होती है, हमारे जैसा रुतबा हमारे जितना संपन्न परिवार उन्हें आस-पास के गांव में कहीं नहीं मिलेगा। और मुझे नहीं लगता कि अवतार सिंह रिश्ते के लिए मना करेंगे। उनकी बेटी के लिए अगर कोई योग्य परिवार है तो वह सिर्फ हमारा परिवार है। अगर उन्होंने हमें मना कर दिया तो उन्हें योग्य परिवार ढूंढने के लिए बहुत मेहनत लगेगी और शायद उनके बराबरी का परिवार मिले भी नही" गजेंद्र ने कहा और फिर खाना खाने लगे।

निशांत के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई।


आव्या ने सुरेंद्र की तरफ देखा तो सुरेंद्र ने गर्दन हिलाकर उसे शांत रहने का इशारा किया।

"पता नहीं मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि यह विवाह प्रस्ताव एक नया तूफान लेकर आएगा।।। भले हम उनके परिवार के बराबर हैसियत रखते हैं पर निशांत की और नेहा की तो कहीं से बराबरी नहीं है। नेहा डॉक्टर है और निशांत सिर्फ मेट्रिक पास। क्या नेहा इस रिश्ते के लिए तैयार होगी ?

जो भी हो भगवान पर मैं नहीं चाहता कि कुछ गलत हो। आप सब सही रखना । मैं नहीं चाहता कि फिर से कोई कोई परेशानी खड़ी हो।

हम नियति को खो चुके हैं पर अब मैं नहीं चाहता कि इस घर के किसी भी बच्चे के ऊपर कोई भी परेशानी आए और साथ ही साथ में यह भी नहीं चाहता कि नेहा और सांझ पर भी कोई प्रॉब्लम आए। वह बच्चियां भी हमारी बच्चियों की जैसी ही है।"सुरेंद्र ने मन ही मन कहा।


उधर सौरभ सांझ से मिलने उसके हॉस्टल पहुंचा।

सौरभ को देख सांझ को थोड़ा अजीब लगा।

" हैलो सांझ कैसी हो?" सौरभ ने मुस्करा कहा।

" हैलो.. सौरभ जी। आप यहाँ?" सांझ बोली।

" आजकल दिल्ली में ही हूँ। बहुत दिनों से तुमसे मिलने का सोच रहा था।" सौरभ ने कहा।

" जी कोई खास बात.?" सांझ बोली।

सौरभ ने गहरी सांस ली और सांझ की तरफ देखा ।

" सांझ प्लीज मुझे समझने की कोशिश करना क्योंकि मेरे लिए तुम्हारी खुशी और इच्छा सबसे ज्यादा इंपोर्टेंट है। " सौरभ बोला तो सांझ ने नासमझी से उसे देखा।



" ये मेरे दिल की सालों पुरानी ख्वाहिश है जो अगर तुम्हारी सहमति होगी तो हमारी किस्मत बन जायेगी।" सौरभ बोला।

सांझ को अब भी समझ नही आया कि वो क्या कहना चाहता है।

" मैं तुम्हे प्यार करता हूँ सांझ। चाहता हूँ तुम्हे और अगर तुम्हारी हाँ है तो मै घर में बात करके तुमसे शादी करना चाहूंगा।" सौरभ बोला तो सांझ के पैरो तले जमीन खिसक गई।



क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव