साथिया - 37 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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साथिया - 37

"हॉस्टल चलने से पहले आधे घंटे का टाइम मुझे दोगी?" अक्षत ने कहा।

"अब क्या?" सांझ ने कहा।

"बस कहां है ना विश्वास करो तो बस चलो..!" अक्षत ने कहा और सांझ को अपने पीछे बिठाकर बाइक आगे बढ़ा दी।

थोड़ी देर बाद वह एक बहुत बड़े गार्डन के बाहर थे।


अक्षत ने बाइक रोकी तो सांझ ने चारों तरफ देखा ।

" आओ।" और अक्षत ने उसका हाथ थाम कर कहा और आगे चल दिया।

सांझ ने देखा कि पूरा रास्ता बहुत ही खूबसूरती से डेकोरेट किया गया है। चारों तरफ खूब सारे बलूंस और हैप्पी बर्थडे लिखे हुए बहुत सारे बोर्ड लगे हुए हैं

" जज साहब यह सब?" साँझ ने कहा।

अक्षत ने कोई जबाब नही दिया बस सांझ का हाथ थाम आगे बढ़ गया।

गार्डन के बीचो बीच भी इसी तरीके से खूबसूरती से डेकोरेशन की हुई थी। खूब सारी लाइट्स और फ्लोवर्स की डेकोरेशन थी। वहां पर एक सेंटर टेबल पर कई सारे केक रखे हुए थे।


सांझ ने अक्षत की तरफ देखा।

आज का दिन बहुत खास है सांझ क्योंकि आज के दिन तुम इस दुनिया में आई।
आज तुम्हारे साथ ही कई और भी बच्चों का बर्थडे है तो मैंने सोचा कि उनका बर्थडे भी सेलिब्रेट कर लेते है। वह लोग भी तुम्हें दुआएं देंगे और उन्हें भी खुशी मिलेगी तुम्हारे साथ अपना बच्चे सेलिब्रेट करने के बाद.।" अक्षत ने कहा और वर्कर्स को इशारा किया।
और उसी के साथ शालू ईशान मानसी और 10-12 बच्चे वहां आ गए।

सांझ ने अक्षत की तरफ देखा।

'यह सारे बच्चे यही पास के अनाथ आश्रम से आए हैं। इनके बर्थडे कब है कोई नही जानता क्योंकि इनके पेरेंट्स या रिश्तेदारों ने इन्हें अनाथ आश्रम में थोड़ा था।

"उस आश्रम में मम्मी हमेशा जाती हैं और हम लोग भी बचपन से जाते रहे हैं। इसलिए जब भी मौका मिलता है उन बच्चों की खुशियों के लिए कुछ करते रहते हैं। आज तुम्हारे बर्थडे के साथ इनका बर्थडे भी सेलिब्रेट कर लेते है।" अक्षत ने कहा।

सांझ बस उसे एकटक देख रही थी।

"क्या हुआ तुम्हें अच्छा नहीं लगा क्या?" अक्षत ने कहा तो सांझ ने उसके हाथ को अपने हाथों के बीच थाम लिया।


" मुझे बहुत अच्छा लगा जज साहब। आप कितना अच्छा सोचते है। आज सबसे अच्छा यही लगा कि आज आप मुझे यहां लेकर आए। इन बच्चो के चेहरे की मुस्कान देख मुझे बेहद खुशी होगी।" सांझ ने कहा और उसी के साथ सब लोग टेबल की तरफ बढ़ गए।

सभी बच्चों के साथ मिलकर सांझ ने केक दोबारा से कट किया और उसी के साथ वहां पर म्यूजिक चालू हो गया और सब लोग बच्चों के साथ खुलकर डांस करने लगे।


अपने बर्थडे पर सांझ आज से पहले इतना खुश कभी नहीं हुई थी।

डांस करते हुए उसकी नजर अक्षत कर गई जो कि अपने मोबाइल में उसका वीडियो बना रहा था।

सांझ ने अगले ही पल उसका हाथ पकड़ा और उसे भी अपने साथ ले लाई और उसी के साथ अक्षत भी उन लोगों के साथ डांस करने लगा।

कुछ देर बाद ईशान उन बच्चों को लेकर वापस अनाथ आश्रम चला गया। मानसी भी उसके साथ निकल गई।

"तो अक्षत भाई अब अपनी सहेली को ले जाने की इजाजत चाहूंगी। वार्डन मैडम का दो बार फोन आ चुका है..!! बड़ी मुश्किल से उन्हें समझाया है।" शालू ने कहा तो अक्षत ने सांझ की तरफ देखा।

"ठीक है जाओ अभी...!! तुम्हें फोन करता हूं मैं।" अक्षत ने कहा तो सांझ ने अक्षत की तरफ देखा और शालू के साथ जाने लगी।

" सांझ..!" तभी अक्षत की आवाज आई तो सांझ ने पलटकर देखा

अगले ही पल अक्षत में अपने फोन से अनिगिनित फोटो उसके ले लिए।
सांझ ने मुस्कुराकर नजरें झुका ली और एक नजर अक्षत की गहरी आँखों को देख तुरंत शालू के साथ निकल गई।

"तो कैसी रही आज की शाम? " शालू ने स्कूटी चलाते हुए कहा।

सांझ जो कि ना जाने किन ख्यालों में खोई थी उसने उसकी बात सुनी ही नहीं।

"क्या हुआ तुझसे ही पूछ रही हूं कैसी रही आज की शाम?" शालू ने दोबारा पूछा।

पर सांझ ने इस बार भी नहीं जवाब दिया।

उसके कानों में तो अक्षत की बातें गूंज रही थी और आंखों के आगे घूम रहा था अक्षत का चेहरा।

शालू ने स्कूटी एक साइड रोकी और पलट कर उसकी तरफ देखा तो पाया कि सांझ चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट है और
वह ना जाने कहां खो हुई है।

शालू ने उसके चेहरे से हाथ लगाया तो सांझ होश में आई।


" क्या बात है अभी तक अक्षत भैया के ख्यालों में खोई हुई हो? कब से पूछ रही हूं जवाब ही नहीं दे रही।" शालू ने कहा।

"अरे नहीं मैंने सुना नहीं...!! बताओ ना क्या पूछ रही थी तुम?" सांझ ने कहा।

"यही पूछ रही थी कि कैसी बीती आज की शाम? अच्छा रहा सब...?? कोई प्रॉब्लम तो नहीं हुई?" शालू ने कहा।


"नहीं कोई प्रॉब्लम नहीं है। बेहद शानदार बहुत ही प्यारी शाम। सच बता रही हूं शालू मेरी जिंदगी की सबसे खूबसूरत शाम थी।


आज की शाम मैं कभी नहीं भूल सकती। मरते दम तक नहीं..!! आज का दिन जज साहब ने इतना खूबसूरत बना दिया कि मैं कभी भी नहीं भूल पाऊंगी। उन्होंने मुझे एहसास कराया कि मैं कितनी खास हूं। उनके लिए कितनी इंपॉर्टेंट हूँ।" सांझ बोली और उसकी आंखों में नमी आ गई।

शालू अभी भी उसकी तरफ देख रही थी।

"सच कह रही हूँ शालू। आज तक कभी किसी ने मुझे इतनी इंपोर्टेंस नही दी। सबके लिए मैं एक अनचाहा एक अवांछित रिश्ता ही रही हूं। चाचा चाची ने सिर्फ जिम्मेदारी समझकर पाला है। कभी प्यार नहीं किया। कभी ऐसा फील नहीं कराया कि मेरा होना उनके लिए जरूरी है या मेरा इस दुनिया में होना जरूरी है। आज पहली बार महसूस हुआ कि मेरी भी कोई वैल्यू है। मैं भी खास हूं किसी के लिए। मैं भी स्पेशल हूँ। मुझे भी कोई प्यार करता है।" सांझ ने भावुक होकर कहा।


" तो इसमें तो खुश होने की बात है।। और आज के दिन आंसू बहाने की जरूरत नहीं है।" शालू बोली।

"मैं खुश ही हूं और यह खुशी के आंसू है। अभी भी विश्वास नहीं हो रहा है कि वह मुझे इतना प्यार करते हैं। वह पिछले कई सालों से सिर्फ और सिर्फ इसलिए रुके हुए थे ताकि मेरा कैरियर और मेरी पढ़ाई डिस्टर्ब ना हो। वह खुद को मेरे काबिल बना रहे थे।

बताओ शालू ऐसा भी कोई होता है ? कौन विश्वास करेगा कि अक्षत चतुर्वेदी को मेरे काबिल बनने की कोशिश कर रहे थे। वह तो पहले ही इतने काबिल है। इतने हैंडसम है इतने अच्छे परिवार से हैं । उन्हें क्या कमी है जो उन्हें मेरे काबिल बनने की जरूरत होगी जब उन्होंने यह बात कही कि मेरे काबिल बनना चाहते थे, अपने पैरों पर खड़ा होना चाहते थे। इसलिए उन्होंने अब तक अपने दिल की बात नहीं कही तो मुझे ऐसा लगा कि हां मैं भी कुछ हूं। वाकई में वह मुझे प्यार करते हैं। वो इतने अच्छे इंसान हैं मुझे पता ही नहीं था।" सांझ बोली।

" हां सांझ भैया तुम्हें प्यार करते हैं। पर फिर भी कभी नहीं कहा मुझे तो ईशान ने बता दिया था पर साथ ही वादा भी ले लिया था कि तुम तक बात ना पहुंचे। इसीलिए मैं हमेशा तुमसे कहती थी कि वह तुम्हें देखने आते हैं। पर तुमने कभी इस बारे में सोचा ही नहीं। तुम कभी मेरी बात का विश्वास नहीं करती थी। जबकि मैं सच्चाई जानती थी पर मैं मजबूर थी। मैंने प्रॉमिस किया था ईशान को और अक्षत भाई को कि मैं तुम्हें तब तक नहीं बताऊंगी जब तक अक्षत भाई खुद तुमसे नहीं कहते। वह सही समय का इंतजार कर रहे थे, और अब देखो सही समय आ गया तो उन्होंने कितने अच्छे से तुम्हें अपने दिल की बात बताई।
अब सारा पुराना भूल जा अब जिंदगी में सिर्फ और सिर्फ खुशियां होगी। कोई प्रॉब्लम नहीं होगी। " शालू बोली।

" अक्षत चतुर्वेदी जैसा लड़का जिसकी जिंदगी में होगा उसे भले क्या प्रॉब्लम हो सकती है?" सांझ ने कहा।

" तुम बिल्कुल ठीक कह रही हो...! अब तो मुझे भी ऐसा लगता है कि जो भी तकलीफ का समय था वह निकल गया और अब सिर्फ और सिर्फ खुशियां होगी। जब मेरी जिंदगी में उनके जैसा इंसान और इतना अच्छा परिवार मिला है जो अपना मानता है तो फिर कोई बात ही नहीं होगी। न हीं अब कोई प्रॉब्लम आएगी। बस अब सिर्फ और सिर्फ खुशियां होगी और ढेर सारा प्यार।" सांझ ने खुश होकर कहा।

"तो फिर इसी बात पर चल हॉस्टल छोड़ देती हूँ वरना वार्डन आज तुम्हारे साथ मुझे भी गेट के बाहर खड़ा कर कर लेगी और पनिशमेंट में हो सकता है मेस के सारे बर्तन धुलवाये।" शालू ने कहा तो सांझ मुस्कुरा उठी।

'चलो ना मैंने कब मना किया।" सांझ बोली तो शालू ने स्कूटी आगे बढ़ा दी और सांझ फिर से खो गई अक्षत और उसके ख्यालों में।

कुछ देर बाद दोनों हॉस्टल पहुंच गई थी।

शालू ने सांझ को हॉस्टल छोड़ा और फिर घर निकल गई क्योंकि ऑलरेडी बहुत टाइम हो गया था।

सांझ अपने कमरे में आई है और बाहें फैलाकर बिस्तर पर गिर गई
आंखों के आगे फिर से वही खूबसूरत पल आ गए जो अक्षत के साथ बिताए थे कि तभी उसका फोन बज उठा।

उसने फोन उठाकर देखा तो अनमोल नंबर था।

उसने फोन पिक किया तो सामने से अक्षत की आवाज आई।


" सांझ..!" अक्षत की आवाज सुनते ही सांझ के दिल के तार झनझना उठे।

"जी जज साहब..!" सांझ ने कहा।

" कैसे पहचान लिया तुमने? क्या तुम्हारे फोन में मेरा नंबर सेव किया हुआ है।" अक्षत ने पूछा।

" नहीं मेरे फोन में आपका नंबर सेव नहीं था। आप की आवाज में कभी नहीं भूल सकती। आपकी आवाज तो अब मैं कभी भी कहीं भी पहचान सकती हूँ। ये आवाज तो इस तरह दिल में उतर गई है है की भूलना मुश्किल है।" सांझ ने कहा।


"और तुम्हारी आवाज भी मेरे दिल में उसी पल उतर गई थी जब उस समय निखिल तुम्हारी रैगिंग ले रहा था...!! और उसके बाद एनुअल फंक्शन में तुमने वह सरस्वती बंदना गाई थी। उस समय तो तुम्हारी आवाज जैसे अंदर तक समा गई थी।" अक्षत ने कहा।

" मुझे तो अब तक विश्वास नही हो रहा है..!" सांझ ने कहा।

" विश्वास कर लो सांझ और वादा करता हूँ कि ये प्यार कभी कम नही होगा और मेरे दिल और जिंदगी में सिर्फ तुम ही रहोगी हमेशा।" अक्षत ने गहरी आवाज में कहा।



" थैंक यू जज साहब..!" सांझ ने धीमे से कहा।

" थैंक्स टू यू सांझ मेरी जिंदगी में आने के लिए। प्लीज हमेशा मेरे साथ रहना और विश्वास रखना मैं ही हर पल हर परिस्थिति में तुम्हारे साथ।" अक्षत ने कहा।

" जी। " सांझ बोली और फिर कुछ देर तक दोनों बात करते रहे।


सांझ से बात करके अक्षत ने फोन रखा तभी साधना कमरे में आ गई।

अक्षत के पास आकर बैठी तो अक्षत ने उसकी गोद में सिर रख लिया।

"तो कह दिया उसको?" साधना बोली।

" जी मम्मी.. एंड शी सैड यस..!" अक्षत बोला।

" बहुत अच्छा..!" साधना बोली।
" शी इज सो स्वीट मम्मी..! और उसकी फेमिली कुछ अलग है। पर मैंने तय किया है कि जो भी कमी उसकी लाइफ में थी उसकी पूर्ति कर दूँगा।" अक्षत ने कहा

" और हम सब भी है साथ। अब बस एक दिन मुझसे भी मिला दो। " साधना ने कहा।

" जी मम्मी।" अक्षत बोला।


फिर अक्षत साधना को सांझ के बारे में बताता रहा और साधना मुस्करा के उसके बालों को सहला के सुनती रही।

क्रमश:


डॉ. शैलजा श्रीवास्तव