साथिया - 36 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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साथिया - 36

" जज साहब...! साँझ बोली तो अक्षत ने पलटकर देखा और अगले ही पल साँझ एकदम से उसकी तरफ दौड़ पड़ी और उसके सीने से लग गई।

अक्षत को विश्वास ही नहीं हुआ था हुआ एक बार को की साँझ उसके इतने करीब है" साँझ।" अक्षत ने धीरे से कहा।


साँझ ने उसकी तरफ नहीं देखा।

"सांझ..!" अक्षत ने कहा।

"प्लीज जज साहब कुछ पल बस ऐसे ही रहने दीजिए। आप की आंखों में देखूंगी तो शायद फिर कुछ बोल नहीं पाऊंगी एक अलग सा जादू है आपकी आंखों में..!" साँझ ने कहा तो अक्षत के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई।

" जिस तरीके से पहले दिन से आपको मुझसे मोहब्बत थी ठीक वैसे ही ना जाने कैसे पर मुझे भी आपसे मोहब्बत हो गई थी... जैसे आप मुझे नहीं कह पाए अपने कुछ कारणों की वजह से वैसे ही मैं आपसे नहीं कह सकती थी क्योंकि मैं खुद को आपके लायक नहीं समझती थी, और मैंने अपने मन को पक्का कर लिया था कि अक्षत चतुर्वेदी के सपने देखने का मुझे कोई हक नहीं!" साँझ ने भावुक होकर भरी आवाज में कहा।


" साँझ प्लीज ऐसी बातें नहीं!" अक्षत बोला।

"प्लीज जज साहब बोलने दीजिये मुझे...!! मैंने आपकी सारी बातें सुनी ना अब आप भी मेरी बात सुन लीजिए।" सांझ ने उसके सीने से चेहर टिकाये हुए कहा।

अक्षत ने उसके चेहरे की तरफ देखना चाहा।

"आपकी तरफ देख के नहीं कह पाऊँगी इसलिए ऐसे ही रहने दीजिये। " साँझ ने कहा।


अक्षत ने उसके उसके ऊपर अपनी बाहों का घेरा कस दिया आखिर इससे ज्यादा खुशी की बात उसके लिए क्या हो सकती थी।

"सालों से मेरी आंखों ने भी सिर्फ और सिर्फ आपके ख्वाब देखे हैं जज साहब। बस मुझे डर था कि यह ख्वाब कभी पूरे नहीं होंगे क्योंकि मुझे लगता था कि इस युनवर्सिटी का सबसे हैंडसम लड़का मुझे क्यों देखेगा या मुझे प्यार क्यों करेगा? पर मैं गलत थी और जिस तरीके से मैं आपको चाहती थी आप भी मुझे ही प्यार करते थे।" सांझ ने कहा तो अक्षत की बड़ी बड़ी आँखों मे मोहब्बत की खुमारी उतर आई।


"थैंक यू सो मच जज साहब...!! मुझे इतना चाहने के लिए मेरी जिंदगी में आने के लिए और आज के दिन को इतना खूबसूरत बनाने के लिए। आप ने सच कहा था आज का दिन और आपका यह प्रपोजल मैं जिंदगी में कभी नहीं भूलूंगी। आपका कहा का एक-एक शब्द हमेशा मेरे कानों में गूंजता रहेगा और आपकी हर बात मेरे दिल में हमेशा के लिए बस गई है।" सांझ ने कहा तो अक्षत की मुस्कुराहट और भी बड़ी हो गई और उसकी पकड़ सांझ के ऊपर थोड़ी और कस गई।


"मैं भी सिर्फ और सिर्फ आपको प्यार करती हूं जज साहब। वह भी आज से नहीं ना जाने कब से। शायद उसी दिन से जब पहली बार आपको देखा था। जब आपने रेकिंग करने वाले ग्रुप से मुझे बचाया था। आई लव यू टू जज साहब।" सांझ ने कहा।

"थैंक यू थैंक यू सो मच सांझ। तुमने हाँ कहकर मेरी जिंदगी बना दी। आई लव यू।" अक्षत बोला और अगले ही पल उसने अपने हाथ में पकड़ी अंगूठी सांझ का हाथ थाम उसकी रिंग फिंगर में पहना दी और सांझ को अपने सीने से वापस से लगा लिया।

कुछ पलों तक दोनों यूं ही एक दूसरे की धड़कनों को महसूस करते रहे फिर उन्हें होश आया कि वह हॉस्पिटल के बेकयाॅर्ड में खड़े हैं तो सांझ तुरंत अक्षत से अलग हो गई शर्म के कारण उसका चेहरा लाल हो गया तो वही अक्षत से चेहरे पर कातिलाना मुस्कान बिखर गई।


" प्यार करती हो मुझ से?" अक्षत ने उसकी आँखों मे झाँका।

" सबसे ज्यादा..!"


"विश्वास करती हो मुझ पर...?" अक्षत ने कहा।

" खुद से ज्यादा।" सांझ ने हां में गर्दन हिला के कहा।

अगले ही पल अक्षत ने अपना हाथ आगे किया।

"तो फिर चलो मेरे साथ थोड़ा सा टाइम साथ में बिताते है। तुम्हारा बर्थडे सेलिब्रेट करना है आज तो। " अक्षत ने कहा तो सांझ ने किसी जादू में जकड़ी उसके हाथ को थाम लिया।


"आओ।" अक्षत ने बाइक के पास आकर कहा तो सांझ ने झिझक के साथ उसे देखा।

" विश्वास रखो। मेरे लिए तुम बहुत अनमोल हो।" अक्षत ने कहा तो सांझ उसके पीछे बैठ गई।

अक्षत ने धीमे से बाइक आगे बढ़ा दी।

सांझ को तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि यह सब सच है। जिस अक्षत चतुर्वेदी के सपने उसने सोती जागती आंखों से दिन-रात देखे हैं जिसे न जाने कब से वह प्यार करने लगी थी पर कभी सोचा नहीं था कि वह उसके बारे में सोचेगा। आज उस अक्षत चतुर्वेदी ने उससे अपने प्यार का इजहार किया था।


सांझ का खुशी के मारे चेहरा खिला हुआ था और आँखे चमक रही थी।

थोड़ी देर बाद वो एक मंदिर के बाहर थे।

अक्षत ने बाइक रोकी तो सांझ उतर कर खड़ी हो गई।

अक्षत ने गाड़ी स्टैंड पर लगाई और सांझ की तरफ अपना हाथ बढ़ाया।

सांझ ने उसकी आंखों में देखा और फिर और फिर अपना हाथ अक्षत के हाथ के ऊपर रख दिया।

"आज इतनी खुशी का दिन है। तुम्हारा बर्थडे है और हम दोनों ने एक दूसरे से अपने दिल की बात कह दी। ऐसे में सबसे पहले भगवान का आशीर्वाद लेना तो बनता ही है ना?" अक्षत ने कहा और सांझ का हाथ थाम का मंदिर की सीढ़ियां चढ़ गया।

कुछ देर बाद दोनों भगवान की मूर्ति के आगे थे।

सांझ ने भगवान की मूर्ति के आगे हाथ जोड़े और मन ही मन प्रार्थना करने लगी

"हे भगवान जिसकी चाहत ना जाने कब से थी पर कभी सोचा नहीं था कि वह मुझे मिलेगा...! आज आपकी कृपा से मिल गया है? बस अब हमेशा यूं ही मेरा और इनका साथ बनाए रखना।" साँझ ने आंखें बंद की और भगवान से प्रार्थना की।


"आज तक जो कुछ भी मांगा है वह मुझे मिला है और जो नहीं मांगा वह भी आपने दिया है। इतना अच्छा घर परिवार मम्मी पापा ईशान जैसा भाई और मनु के जैसी दोस्त। बस एक ख्वाहिश अधूरी रह गई थी। सांझ के रूप में आपने वह भी पूरी कर दी। बस भगवान अब यही चाहता हूं कि आप हमेशा अपना आशीर्वाद मेरी सांझ के ऊपर बनाए रखें। उसे दुनिया भर की खुशियां मिले और कोई भी तकलीफ उसके पास से होकर भी न गुजरे।" अक्षत ने भगवान से प्रार्थना की।

दोनों ने हाथ जोड़ें और फिर बाहर आ गए।

"चलें ..!" अक्षत ने कहा।


" अब कहां? " सांझ बोली।

"बस तुम्हारे साथ डिनर कर लुं फिर तुम्हें हॉस्टल छोड़ दूँगा।" अक्षत ने कहा तो सांझ ने गर्दन हिलाई और वापस अक्षत के पीछे बाइक पर बैठ गई।

इस बार उसने अपने हाथों को झिझक के साथ अक्षत के कंधे पर रख लिया। अक्षत उसकी इस हरकत को देख मुस्कुरा उठा।


"तुम्हारा ही हूँ, अच्छे से पकड़ लोगे तब भी बुरा नहीं मानूंगा।" अक्षत ने कहा तो सांझ ने जल्दी से हाथ हटा लिया।

अगले ही पल अक्षत ने बाइक रोकी और उसके दोनों हाथ पकड़ अपने सीने पर रख लिए।



सांझ के दिल की धड़कन बेतहाशा दौड़ने लगी पर उसने अपने हाथ नही हटाये और अक्षत की पीठ पर सिर टिका लिया।


कुछ ही देर में वो लोग एक शानदार रेस्टोरेंट के बाहर थे।

अक्षत उसे लेकर अंदर गया और पहले से ही बुक टेबल पर आ गया

"आओ।" अक्षत ने उसे बिठाया और वेटर को केक लाने का इशारा किया।

थोड़ी ही देर में वेटर केक लेकर आ गया।

सांझ ने आंखें बड़ी करके अक्षत की तरफ देखा।


" आज तुम्हारा बर्थडे है ना तो केक काटना तो बनता है।" अक्षत ने कहा तो सांझ की आंखें भर आई।

" क्या हुआ यह पसंद नहीं आया क्या?"'अक्षत बोला।

"नहीं वह..!"'कहते कहते सांस रुक गई।

" अक्षत ने उसका हाथ अपने हाथों के बीच थाम लिया।

"तुम्हारे मन में जो आ रहा है तुम तुझे कह सकती हो। तुम अगर तुम मुझसे भी अपनी बातें छुपाओगी या मुझसे भी झिझक रखोगी तो फिर हमारा रिश्ता कभी भी मजबूत नहीं हो पाएगा।" अक्षत ने कहा।

सांझ खामोश रही।

"अगर तुम्हें पसंद नहीं है या कुछ और चाहिए तो तुम बेझिझक बोल सकती हो!" अक्षत ने कहा।

"नहीं जज साहब वह मैं थोड़ा सा इमोशनल हो गई। क्योंकि आज पहली बार है जब किसी ने मेरा बर्थडे सेलिब्रेट किया है, बचपन में जब मम्मी पापा थे तब शायद उन्होंने कभी किया होगा तो मुझे याद नहीं है, उसके बाद सिर्फ नेहा दीदी बर्थडे विश करती है । इस तरीके से मेरा बर्थडे किसी ने सेलिब्रेट नहीं किया। आप आज मंदिर भी लेकर गए और अब ये। मन्दिर ले लाना हो या मेरे लिए केक लाना हो ये सिर्फ पापा करते थे बहुत हल्की यादें है दिमाग में। इसलिए बस इमोशनल हो गई। " सांझ अपनी आंखों को साफ करते हुए कहा।

"तब मैं नहीं था ना तुम्हारी लाइफ में इसलिए...! पर अब मैं हूं और अब हर साल तुम्हारा बर्थडे ऐसे ही सेलिब्रेट होगा या और भी ज्यादा अच्छे से, क्योंकि तुम ये डिजर्व करती हो।" अक्षत ने उसके हाथ को हौले से दबाकर कहा और फिर उसे केक काटने का इशारा किया।


सांझ ने लेके कट किया और एक छोटा सा पीस अक्षत की तरफ बढ़ाया।

बदले में अक्षत ने उसका हाथ पकड़ उसे ही केक खिला दिया।

"आज तुम्हारा दिन है तो पहले तुम ही मुँह मिठा करो।" अक्षत ने कहा?


"थैंक्यू जज साहब..!" सांझ बोली तो अक्षत ने वेटर से डिनर लगाने का बोल दिया

कुछ ही देर में टेबल डिशेज से भर गई।

सब कुछ सिर्फ सांझ की पसंद का था।

" ये सब...?" सांझ ने आश्चर्य से कहा।

" भले इजहार आज किया है पर सालों से प्यार करता हूँ तुमको इसलिए बहुत कुछ पता कर लिया है।" अक्षत ने कहा तो सांझ की नजर झुक गई।



फिर दोनों ने डिनर किया डिनर के बाद दोनों बाहर आए। तब तक अच्छा खासा अंधेरा हो गया था।


" चले? " अक्षत ने कहा तो सांझ ने अपनी घड़ी की तरफ देखा।

"हां जल्दी चलिए आज देर भी हो गई है...! पता नहीं वॉर्डन मैडम नाराज ना हो जाए।" सांझ बोली।

"नहीं होंगी नाराज मानसी और शालिनी ने उन्हें इन्फॉर्म कर दिया है कि आज तुम्हारा बर्थडे है और इसलिए तुम अपने फ्रेंड्स के साथ सेलिब्रेट कर रही हो। तो वह कुछ भी नहीं कहेंगी। " अक्षत ने कहा तो सांझ की आंखें बड़ी हो गई।



"मतलब शालू को पता है यह सब? " सांझ ने कहा।


" शालू ईशान और मानसी तीनों को पता है कि आज मैं तुम्हें अपने दिल की बात बताने वाला है। और आज तुम्हारे इस बर्थडे को बहुत खास बनाने वाला हूं हम सब ने मिलकर ही तो यह सारी तैयारियां और सारी प्लानिंग की थी।" अक्षत बोला।


"तभी जब मैंने शालू से कहा कि मेरे साथ बाहर चलो तो उसने मना कर दिया। "

" हाँ तो वह कैसे जा सकती थी क्योंकि उसे पता था कि तुम्हें तो बाहर मैं लेकर जाने वाला हूं।" अक्षत ने सांझ की आंखों में देख कर कहा।

अक्षत की आँखों मे देखते ही सांझ ने जल्दी से नजरें झुका ली। इतना आसान भी नहीं था उसके लिए अक्षत की उन बोलती आँखों से नजरे मिलाना।




" अब चले जज साहब बहुत टाइम हो गया।" सांझ ने धीमे से कहा।

"हॉस्टल चलने से पहले आधे घंटे का टाइम मुझे दोगी?" अक्षत ने कहा।

"अब क्या?" सांझ ने कहा।

"बस कहां है ना विश्वास करो तो बस चलो..!" अक्षत ने कहा और सांझ को अपने पीछे बिठाकर बाइक आगे बढ़ा दी।

थोड़ी देर बाद वह एक बहुत बड़े गार्डन के बाहर थे।


अक्षत ने बाइक रोकी तो सांझ ने चारों तरफ देखा ।

" आओ।" और अक्षत ने उसका हाथ थाम कर कहा और आगे चल दिया।


क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव