साथिया - 33 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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साथिया - 33













" हमे ज्ञान और कानून न सिखाओ अपना काम करो। हम लोगों और हमारे कानून के बीच में मत पड़ो। दोनों शर्मिंदा थे अपनी हरकत पर । भाग गए पर रहने खाने का इंतजाम नहीं था इसलिए आत्महत्या कर ली और इस बात का गवाह यह पूरा गांव है और साथ ही इन दोनों का लिखा हुआ यह इकरारनामा।" अवतार सिंह ने जमीन की तरफ देख के कहा।

निशांत ने अवतार को जलती आँखों से देखा।

" तुमने मेरी बहिन को बचाने मे मदद नही की अवतार सिंह जबकि तुम रोक सकते थे बाबूजी को। भगवान् न करे अगर मौका मिला तो सूद समेत लौटाऊंगा तुमको ये अपमान दर्द और जिल्लत।" निशांत अवतार को देख खुद से ही बोला।




"नहीं इंस्पेक्टर साहब यह झूठ बोल रहे हैं ..!! इन लोगों ने मार दिया मेरी बहन को। सिर्फ इतनी सी बात पर कि ये इस लड़के को प्यार करती थी। शादी करना चाहती थी इसके लिए आप लोग इन लोगों को गिरफ्तार कीजिये और केस कीजिये।"
सौरभ ने कहा।

"नही इंस्पेक्टर यह एकदम गलत बोल रहा है...! सदमा लगा है तो मानसिक स्थिति ठीक नही इसकी।" गजेंद्र ठाकुर ने कहा।

"सच वही है जो ठाकुर साहब ने बताया।" तभी एक आदमी आया और बोला।

" हाँ इंस्पेक्टर साहब बिल्कुल सही कह रहे हैं ठाकुर साब इन लोगों ने आत्महत्या की है। हम लोग खुद इस बात के गवाह हैं। कल ही रात को आत्महत्या करने की कोशिश कर रहे थे। हम लोगों ने तो समझाया भी पर इन्होंने नहीं सुनी हमें लगा कि अब यह मान जाएंगे। रात को हम सोने चले गए और सुबह आए तो देखा इन दोनों ने आत्महत्या कर ली है।" दूसरा वाला आदमी बोला।

सौरभ भरी आंखों से देख रहा था कि कैसे एक हत्या को आत्महत्या का नाम दिया जा रहा है

एक-एक करके कई लोगों ने गवाही दी और हत्या को आत्महत्या का नाम दे दिया गया?

" आप इनकी बात मत सुनिये ये हत्या है।" सौरभ बोला।

" सिर्फ एक इंसान नही पुरा गाँव गवाही दे रहा है और सिर्फ आपके कहने से हम किसी को गिरफ्तार नहीं कर सकते।" इंस्पेक्टर बोले।

उन्हे सौरभ की गवाही और शिकायत को खारिज कर दिया क्योंकि सौरभ तो खुद वहां नहीं था।

" ये तो यहाँ थ ही नही। इसे कुछ न पता इंस्पेक्टर। यह खुद सुबह पहुंचा था। और इंस्पेक्टर साहब आप किसकी बात का विश्वास कर रहे हैं जो यहां था ही नहीं यह तो खुदा भी आया है उसे क्या पता होगा ना क्या हुआ ?" ठाकुर गजेंद्र ने कहा तो इंस्पेक्टर ने सौरभ के कंधे पर हाथ रखा और और लाशों का पंचनामा कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया।

सार्थक के पापा थके कदमों से उसी मेडिकल वैन में बैठकर सार्थक की बॉडी को लेकर जिला अस्पताल निकल गए जहां पर पोस्टमार्टम होना था।



सौरभ हताश निराश रोता हुआ अभी भी उसी पेड़ के नीचे बैठा हुआ था।

एक-एक करके सब चले गए पर सौरव उठ कर नहीं गया।

तभी कुछ देर बाद आव्या ने आकर उसके कंधे पर हाथ रखा तो सौरभ ने देखा ।

उसकी तरफ देखते ही उसके आंसू फिर से निकलने लगे।

आव्या भी उसके गले लग गई।

"भैया इन लोगों ने मार दिया नियति दीदी को! " आव्या ने रोते हुए कहा।

सौरभ ने उसके सिर पर हाथ रखा और उसे खुद से दूर किया।

" घर जाओ। इस साल तुम्हारा ट्वेल्थ में है न। ट्वेल्थ पास करके तुम मेरे साथ चलोगी। मैं अपनी बहन को यहां नहीं रहने दूंगा। इन कसाईयों के बीच। बस तुम अपनी बारहवी पास करो उसके बाद तुम्हें इस गांव में कदम भी नहीं रखने दूंगा मैं।" सौरभ बोला और वैसे ही उठकर उठकर गांव के बाहर की तरफ चला गया।

उसे जिला अस्पताल जाना था नियति की बॉडी को लेने क्योंकि वह जानता था और कोई भी नहीं जाएगा उसकी बहन के लिए।
पोस्टमार्टम के बाद सार्थक की बॉडी उसके पिता को सौंप दी गई तो वही सौरभ नियति की बॉडी को लेकर वापस आ गया।

उसने अकेले ही नियति का अंतिम संस्कार किया कोई भी उसके साथ खड़ा नहीं हुआ नहीं।

सब कामों से फ्री होकर सौरभ वैसे के वैसे ही वापस निकल गया।
उसका दिल बुरी तरीके से टूट चुका था और उसका बिल्कुल भी मन नहीं था किसी से भी बात करने का या या किसी की भी सूरत देखने का। आज उसे नफरत हो रही थी अपने ही घर वालों से अपने ही बड़े बाबूजी और अपने पापा से।

उसको नफरत हो रही थी अपने इस गाँव में पैदा होने से।
साथ ही साथ उसे नाराजगी थी अपने पूरे परिवार से अपने बाबू जी से पापा से और निशांत से भी।


पूरे घर में मातम छाया हुआ था कहने को कोई किसी से कुछ भी नहीं कह रहा था क्योंकि बड़े ठाकुर के आगे किसी के बोलने की हिम्मत नहीं थी। पर दोनों ठकुराइन है अंदर ही अंदर नियति के लिए आंसू बहा रही थी। पर सामने से कुछ नहीं कह सकती थी क्योंकि वह जानती थी कि कुछ भी कहने का कोई फायदा नहीं निकलेगा।

"आज क्या ऐसे ही बैठे रहोगे तुम लोग खाना नहीं बनेगा क्या?" बड़े ठाकुर ने आंगन में आकर कहा तो छोटी ठकुराइन उठ खड़ी हुई और स्नान घर में चली गई।

" अब तुम्हारे लिए क्या खास निमंत्रण पत्र आएगा। उठो और काम देखो। इतना माता मनाने की जरूरत नहीं है और वह भी उस लड़की के लिए जिसने हमारी इज्जत को चौराहे पर नीलाम कर दिया। " गजेंद्र ठाकुर बोले तो बड़ी ठाकुराइन भरी आंखों से उन्हें देखा।


"जानती थी ना वह की क्या नियम है इस गांव के और जब खुद सरपंच की बेटी होकर वह इस तरह की हरकत करेगी तो दूसरों के लिए क्या संदेश जाएगा। और सच कहूँ ठकुराइन उसके साथ-साथ इसमें तुम्हारी भी गलती है। तुमने ही उसे ठीक से नहीं समझाया सिखाया। और मैं पहले ही कहता था कि उसे शहर नहीं जाने देना चाहिए था।" ठाकुर गजेंद्र बोले।

"फिर आपने क्यों इजाजत दी आपने ठाकुर साहब ?" ठाकुराइन उनके पैरों से लिपट कर बोली।

"आप के कारण आज मैंने मेरी बेटी को खो दिया..!! आप उसे नहीं इजाजत देते तू कम से कम मेरी बेटी तो जिंदा होती।" ठकुराइन रोते-रोते बिखर गई।

निशांत ने अंदर से आकर उन्हें संभाला और कमरे में लेकर चला गया।
उसने भरी आंखों से गजेंद्र की तरफ देख पर गजेंद्र ने उसे पूरी तरीके से नजरंदाज कर दिया और बाहर निकल गया।

स्नानघर में जी भर होकर अपना मन हल्का करके छोटी ठकुराइन बाहर आई, और फिर रसोई में लग गई क्योंकि वह जानती थी कि अभी थोड़ी देर बाद ठाकुर साहब फिर से आएंगे आएंगे।

सुरेंद्र अपने कमरे में बैठे हुए थे। उन्होंने दरवाजा बंद कर लिया था और आंखों से आंसू निकल रहे थे।

नियति की तस्वीर को अपने सीने से लगाए हुए थे।

"माफ कर देना बच्चे मजबूर था मैं सबके सामने वरना ऐसा कभी नहीं होने देता। जानता हूं गलत काम हो रहा है यह सब पर कई बार इंसान गलत के बीच फंस कर रह जाता है और मेरी हालत तो उस विभीषण के जैसी है जिसे अगर लंका में रहना है तो रावण का ही साथ देना है, काश कि कोई राम आ जाए कभी इस लंका में तो मैं उसका पूरा पूरा साथ दूंगा। पर ऐसा होना नामुमकिन है। बहुत सोचता हूँ पर मैं उनका विरोध नहीं कर सकता। बचपन से कभी बड़े भैया के खिलाफ आवाज नहीं उठाई है तो कैसे उनके खिलाफ खड़ा हो पाता। मुझे माफ कर दे मेरे बच्चे माफ कर दे।" सुरेंद्र दुखी होकर बोल रहे थे।

आंखों के आगे सौरभ का चेहरा भी घूम रहा था और साथ में घूम रही थी उसकी आंखें जिनमे आज उन्होंने नफरत देखी थी।

"जानता हूं सौरभ आज तुम्हारी नजरों में मैं बहुत गिर गया हूं..!! तुम्हें लगता होगा कि तुम्हारा बाप किसी काम का नहीं। नपुंसक है जिसकी खुद की कोई औकात नहीं। पर तुम अभी नहीं समझ पाओगे बिल्कुल भी नहीं समझ पाओगे बेटा। कई बार कुछ चीजें ऐसी होती हैं जो हमारे हाथ में नहीं होती और हम चाह कर भी विरोध नहीं कर पाते। पर मुझे खुशी है कि तुम मेरी तरह नहीं हो, और मुझे इस बात का गर्व है कि मैंने तुम्हें बाहर भेजा और तुम यहां के इन रीति रिवाजों और रूढ़िवाद सोच से बाहर निकाल पाए। और मैं आव्या को भी तुम्हारे साथ भेज दूंगा।

मेरी जिंदगी तो यही निकल जाएगी और किसी दिन ऐसे ही अपने गुनाहों का बोझ अपने सिर पर ले कर मर जाऊंगा। पर तुम दोनों को इस जंगली दुनिया से बाहर भेज दूंगा। इस गंदगी में तुम लोगों को नहीं रहने दूंगा भले इसके लिए मुझे मेरे भाई के सामने ही खड़ा क्यों ना होना पड़े।" सुरेंद्र ने खुद से कहा।


उधर निशांत भी अपने कमरे में बैठा था उसकी आंखों से आग निकल रही थी और दिल में शोले दहक रहे थे। आज उसे जितना नियति के जाने का दुख था उससे ज्यादा उसे इस बात की तकलीफ थी कि उसके पिता उसके चाचा और अवतार ठाकुर ने उसका साथ नहीं दिया। अगर इन लोगों ने साथ दिया होता तो वह अपनी बहन को बचा लेता।


"ठीक है यह गांव और इसकी पंचायत का नियम पर एक बात अब मैं भी कभी नहीं भूलूंगा, इस गांव ने मेरी बहन पर कोई रियायत नहीं कि मुझ पर कोई रहम नहीं किया तो अब निशांत ठाकुर भी किसी पर कभी कोई रहम नहीं करेगा। फिर सामने कोई भी हो...!! कोई भी मतलब कोई भी। कोई भी हो सिर्फ एक गलती और सजा मैं अपने तरीके से दूंगा। "निशांत ने खुद से ही कहा और फिर उठकर बाहर निकल गया।

गांव के बाहर अपने अड्डे पर जहां उसके दोस्तों के साथ उसका उठना बैठना था। जहां उन लोगों का शराब और शबाब सब जोरशोर से चलता था।

निशांत को आज नियति के जाने पर तकलीफ हो रही थी पर निशांत भी कहीं से कम नहीं था। अपने पिता गजेंद्र के पूरे गुण पाए थे उसने। वही बाप वाला रौब और वही अपनी मनमानी करने की आदत। शराब पीना सिगरेट पीना और दोस्तों के साथ अय्याशी करना उसका रोज का काम था। जो लड़की पसंद आ गई उसे उसे लालच देकर नहीं तो जबरदस्ती उठाकर ले आना और फिर मनमर्जी करना।

वैसे तो खुद ऊँची जाति का मानने वाले लोग निम्न जाति के लोगों का पानी पीना भी पसंद नहीं करते पर उन्हे मुंह लगाने में परहेज नही। और जब खुद की शारीरिक जरूरतों को पूरा करना हो तब कोई भी पीछे नहीं रहता और उस समय वह यह बिल्कुल भूल जाते हैं कि वह खुद को उच्च जाति का मानते है और सामने वाला एक निम्न जाति का। फिर यह सब हरकत करने वाला गजेंद्र ठाकुर हो या निशांत ठाकुर पर कोई भी कहीं से पीछे नही है।

आज नियति और सार्थक अपने प्यार के लिए कुर्बान हो गए। भेंट चढ़ चल गये दकियानूसी सोच और रूढ़िवाद मानसिकता की ।

पर अभी तो शुरुआत थी। नियति और सार्थक के साथ हुई घटना आगे जाकर किस किस के साथ क्या-क्या करेगी यह तो वक्त ही बताएगा ।
और क्या इस गांव में कभी कभी कोई सुधार आएगा ? क्या कोई ऐसा ऐसा आएगा यहां जो इन मान्यताओं को बंद करवाएगा और लोगों को खुलकर सांस लेने का अधिकार दिलाएगा?
यह तो वक्त ही बताएगा कि आगे क्या होना है किसकी किस्मत में क्या लिखा है यह कोई नहीं जानता पर इतना जरूर था एक तूफान आ चुका था और अगले तूफान के आने का समय जल्द ही आने वाला था।

वो तूफान क्या-क्या उड़ा कर ले जाएगा। किस-किस की जिंदगी पर क्या असर डालेगा जानने के लिए बने रहिए मेरे साथ।

जानती हूँ यह कहानी थोड़ी अलग है। यहां प्यार के अहसास के साथ-साथ कुछ ज्वलंत मुद्दों को लिया है मैंने। उम्मीद करती हूं कि आप लोगों को पसंद आ रहा होगा। हर समय प्रेम जीवन में हो जरूरी नहीं। कई बार प्रेम को कठिन तपस्या से गुजरना पड़ता है।

किसका प्यार इस समस्या को सफल करके अपनी मंजिल पाएगा और उसका प्यार बीच में ही दम तोड़ देगा जानने के लिए बने रहिए मेरे साथ।

अगला पार्ट स्वीट रोमांटिक होगा क्योंकि अक्षत सांझ के एहसास जुड़ने वाले है एक दूजे के साथ।


क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव

डिस्क्लेमर:

यह रचना सिर्फ मनोरंजन के लिए लिखी गई है। पूर्ण रूप से काल्पनिक है। किसी जाती धर्म या समुदाय का विरोध करना या किसी की भावना को आहत करना उद्देश्य नही। जाति प्रथा का समर्थन करना इस रचना का उद्देश्य नही।

कृपया मनोरंजन की दृष्टि से ही पढ़े। 🙏🙏🙏