साथिया - 31 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

  • मोमल : डायरी की गहराई - 47

    पिछले भाग में हम ने देखा कि फीलिक्स को एक औरत बार बार दिखती...

  • इश्क दा मारा - 38

    रानी का सवाल सुन कर राधा गुस्से से रानी की तरफ देखने लगती है...

श्रेणी
शेयर करे

साथिया - 31

नियति घबराओ मत

यह एक छोटा शहर था जहां जल्दी जल्दी ट्रेन नहीं आती थी और उन्होंने दिल्ली जाने के लिए के लिए ट्रेन देखी थी जो कि थोड़ी देर बाद आने वाली थी पर उनकी बेचैनी और घबराहट बढ़ती जा रही थी तो वहीं नियति के आंसू लगातार निकल रहे थे।

उसने कसके सार्थक का हाथ थाम रखा था पर उसे अब समझ में आ गया था कि उसका बचना मुश्किल है।

तभी एक ट्रेन स्टेशन पर आई।

" ये हमारी ट्रेन नही है। बस आधा घण्टे में ट्रेन आ जायेगी हमारी!" सार्थक बोला

तभी नियति की नजर दूर खड़े उस लड़के पर गई जो उन्हें ही देख रहा था।

"सार्थक चलो..!" नियति बोली।

"कहां ? यह हमारी ट्रेन नहीं है।" सार्थक बोला।

"प्लीज सार्थक चलो हम पर नजर रखी जा रही है...!!हम यहां ज्यादा देर तक नहीं रुक सकते। वह सब लोग अभी यहां आते ही होंगे।" नियति ने कहा और सार्थक का हाथ पकड़ा और उसी ट्रेन में चढ़ गई।

इससे पहले कि वो लड़का उन तक पहुँचता ट्रेन ने इस प्लेटफार्म को छोड़ दिया।

उस लड़के ने दौड़ते हुई पीछा किया पर तब तक ट्रेन आगे निकल गई थी ।

उसने गुस्से से मुट्ठी भींच ली और तुरंत फोन निकालकर अपने साथी को फोन लगाया और सब बता दिया।

"कहीं भी चले जाएं ...! कहीं भी छुप जाए तब भी हम उन्हें ढूंढ लाएंगे। तुम स्टेशन से बाहर निकलो हम लोग बाहर पहुंच ही रहे हैं।' सामने वाले ने कहा तो उस लड़के ने एक नजर आंखों से ओझल होती उस ट्रेन को देखा और फिर स्टेशन से बाहर निकल गया।


उधर अक्षत के घर आज खुशियों का माहौल था।

अक्षत का रिजल्ट आ चुका था और उसने अपना एग्जाम क्लियर कर लिया था। अब उसे एक महीने बाद ट्रेनिंग के लिए जाना था और उसके बाद उसकी पोस्टिंग होनी थी जज के पद पर।


घर में खुशियों का माहौल था और अक्षत के तो मानो पांव ही जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। सब के साथ खुशियां सेलिब्रेट करके वह अपने कमरे में आया और बिस्तर पर जा गिरा। आंखें बंद की तो आंखों के आगे सांझ का चेहरा आ गया।

फाइनली सांझ मैंने कर दिखाया। मैंने एग्जाम क्लियर कर लिया बस अब तुम्हारे और मेरे बीच कोई फासला नहीं रहेगा। वैसे भी मैंने उस दिन तुमसे अपने मन की बात इनडेरिकटलि कह दी थी। अब बस अच्छे तरीके से तुम्हें प्रपोज कर और तुम्हारा लव कन्फेशन सुनूँगा। और फिर उसके बाद ही ट्रेनिंग पर जाऊंगा और ट्रेनिंग से लौटते ही हम दोनों शादी करेंगे और फिर हमारी लाइफ में सिर्फ और सिर्फ खुशियां ही खुशियां होंगी।" अक्षय मन ही मन सोचा।

" कितने साल इंतजार किया है मैंने और अब जाकर ये पल आयेंगे हमारी जिंदगी में। आई लव यू सांझ और अब मेरे इस पवित्र प्रेम को भी नाम और पहचान मिलेगी।' अक्षत न जाने क्या क्या सोच रहा था।


सांझ का हॉस्टल।
सांझ के नर्सिंग के कोर्स पूरा होने में अब कुछ ही महीने बकाया थे। इसी बीच उसने जगह-जगह जॉब के लिए अप्लाई करना शुरू कर दिया था । कई हॉस्पिटल में उसने अपना रिज्यूम दिया था और कहीं जगह उसके इंटरव्यू हो चुके थे।
सांझ अपने बिस्तर पर लेटी हुई थी।

"बस अब जॉब मिल जाए तो काम खत्म हो...! फिर मुझे ना ही चाचा चाची का एहसान लेना होगा और ना ही गांव मुझे जाना होगा। कई सारे हॉस्पिटल में अप्लाई किया है मैंने कहीं न कहीं तो जॉब मिल जाएगी। " सांझ सोच रही थी कि तभी उसका फोन बज उठा।

"हेलो !" सांझ बोली।

" हेलो सांझ जी मै आर जे हॉस्पिटल से बोल रही हूं। आपने हमारे लिए जॉब के लिए अप्लाई किया था तो मैंने आपको उसी के लिए इन्फॉर्म करने के लिए फोन किया है।" सामने से लड़की बोली।

"जी मैडम कहिए कहिए! " सांझ ने भगवान् का नाम लेकर पूछा।

" आपकी जॉब कंफर्म हो गई है। आप कल से जॉइन कर सकती है। इवनिंग शिफ्ट में। आपने इवनिंग शिफ्ट की ही डिमांड की थी ना क्योंकि मॉर्निंग में अभी आपको कॉलेज जाना होता है।" सामने वाली लड़की बोली।

"जी मैडम मैंने इवनिंग शिफ्ट के लिए ही बोला था..!! थैंक यू मैडम थैंक यू सो मच। मैं कल से जॉइन कर लुंगी।" सांझ ने कहा और फिर फोन काट कर के उठ खड़ी हुई और सामने लगी भगवान की फोटो को प्रणाम किया।


"है ईश्वर आपकी बड़ी कृपा है ...! मुझे मुझे पढ़ाई के साथ साथ ही जॉब मिल गई। अभी कुछ समय तक पार्ट टाइम जॉब करूंगी उसके बाद फुल टाइम करने लगूँगी। अब अपने पैरों पर खड़ी हो जाऊंगी तो मुझे किसी से कुछ बोलने की जरूरत नहीं पड़ेगी।" सांझ ने खुश होते हुए कहा।

सांझ जानती थी कि उसकी खुशी से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता एक नेहा के अलावा तो उसने तुरंत नेहा को फोन लगाया।


" हाँ सांझ बोलो।" नेहा ने कहा।

"दीदी आप को एक खुशखबरी सुनानी थी।" सांझ बोली।

"क्या? " नेहा ने कहा।

"मेरी जॉब लग गई है मैंने हॉस्पिटल में नर्स के लिए अप्लाई किया और मुझे आज जॉब कंफर्म हो गई है। कल से मैं जॉइन कर लूंगी। जैसा आपने कहा था दीदी बिल्कुल वैसे ही अब मैं इंडिपेंडेंट हो रही हूं। अपने पैरों पर खड़ी हो गई है। अब मुझे किसी के एहसान लेने की जरूरत नहीं होगी और ना ही मैं गांव में जाकर रहूंगी।' सांझ बोली।


" सांझ मैं बहुत खुश हूं तुम्हारे लिए। बस मैं भी यही चाहती हूं जो तकलीफ होनी थी वह हो चुकी। अब तुम्हारी जिंदगी में कोई परेशानी ना आए। अब तुम आराम से यही रहकर जॉब करो और यही सेटल हो जाना। कहीं भी जाने की जरूरत नही है। और कुछ जरूरत हो तो मुझसे कहना। मम्मी और पापा से कहने की जरूरत नहीं है और ना ही उनका एहसान मानने की। मैं तुमसे शुरू से कह रही हूं कोई भी एहसान नहीं किया है उन्होंने। जो कुछ भी तुम्हारे लिए किया है वह तुम्हारी खुद की प्रॉपर्टी से किया है " नेहा बोली।

"फिर भी दीदी प्रॉपर्टी इंसान को नहीं पालती। बच्चे को नही पालती है। उसे पालने पोषने के लिए मां-बाप चाहिए होते हैं।।चाचा चाची ने मुझे प्यार नहीं दिया पर मां-बाप बंद कर रखा। पापा मम्मी की प्रॉपर्टी होती पर वो न अपनाते तो मैं कहाँ जाती । इसलिए उनका दर्जा मां-बाप का है और हमेशा रहेगा। बाकी जैसा आपने कहा था मैं अब इंडिपेंडेंट हूं तो मुझे उनसे कुछ भी लेने की जरूरत नहीं है।" सांझ ने कहा।

"तुम्हारी बातें मेरी समझ के परे है। यार जो भी है मैं तुम्हारे लिए बहुत खुश हूं और मेरा भी एमबीबीएस कंप्लीट हो गया है। मैं पीजी के लिए अप्लाई कर रही हूं।" नेहा बोली।।

"बहुत अच्छी बात है दीदी। जल्दी ही आप अपना हॉस्पिटल खोलो मैं वही नर्स बन जाऊंगी।" सांझ बोली तो नेहा मुस्कुरा उठी।

थोड़ी देर नेहा से बात करने के बाद सांझ ने शालू को फोन लगाना और उसे भी अपनी जॉब के बारे में बता दिया।

शालू भी बेहद खुश हो गई सांस की जॉब के बारे में जानकर।

" अच्छा सुन तुझे एक गुड न्यूज देनी थी..! " शालू बोली।

"तेरी और ईशान की शादी तय हो गई? " सांझ ने खुश होकर कहा।


" नही तुम्हारे मिस्टर चतुर्वेदी जज बन गए है। " शालू जैसे ही बोली खुशी से सांझ के आंसू निकल आये।

" तु सच कह रही है शालू?" सांझ भावुक होकर बोली।

" एकदम सच अभी अभी ईशान ने बताया।" शालू बोली।

" भले उनसे कोई रिश्ता नही पर शालू सच्ची बहुत खुशी हो रही है।" सांझ बोली।

" रिश्ता है न दिल का रिश्ता...!! दिल का रिश्ता हर रिश्ते से बड़ा होता है।" शालू बोली और फिर कुछ देर बात करके सांझ ने कॉल कट कर दिया।

" तो आप जज साहब बन गए..!! काश कि आप मेरे सिर्फ मेरे जज साहब बन जाते..! मै भी ख्याली पुलाव पका रही हूँ।" सांझ खुद से बोली और वापस बिस्तर पर जा गिरी।

आँखे बन्द की तो अक्षत का चेहरा सांझ के सामने आ गया और कानों मे गूंज उठी उसकी आवाज

" मेरी सांझ..!!""

" जज साहब...!! मेरे जज साहब..!!" सांझ खुद से बोली और मुस्कान होंठो पर लिए गहरी नींद में चली गई।


उधर नियति और सार्थक ट्रेन में बैठे थे और ट्रेन चली जा रही थी।

"नियति हमे तो दिल्ली जाना था यह हम दूसरी ट्रेन में बैठ गए हैं।" सार्थक बोला ।

"जानती हूं मैं और अगर हम वहाँ बैठे रहते तो वो लोग हमें पकड़ ले जाते और जिंदा नहीं छोड़ते। अभी ट्रेन कहीं तो जाती होगी ना।। हम वहीं चले जाएंगे। वहीं वहां से दिल्ली चले जाएंगे पर अभी वहां पर रहना खतरे से खाली नहीं था।।" नियति ने सार्थक के हाथ को मजबूती से पकड़ते हुए कहा।


"तुम अभी भी इतना क्यों घबरा रही हो ? अब तो हमने छोड़ दिया ना शहर..!! दूसरे शहर आ रहे हैं फिर इतना डर क्यों लगता है तुम्हे?" सार्थक बोला


" क्योंकि मैं उस गाँव की हकीकत जानती। दिल बहुत घबरा रहा है मेरा..!! पता नहीं क्यों पर बहुत ही डर लग रहा है।" नियति बोली।

तभी एक छोटे से स्टेशन पर जाकर ट्रेन रुकी नियति और सार्थक ने देखा तो बाहर अंधेरा था। उन्हें कुछ समझ में नहीं आया। अगले ही पल कुछ लोग ट्रेन के अंदर घुसे। जिन्हें देखकर नियति की आंखें बड़ी हो गई।

उन लोगों ने जलती आंखों से नियति और सार्थक को देखा।


" भागो सार्थक..!! नियति बोली और अगले ही पल दोनों ट्रैन के अंदर ही दौड़ पड़े।

वो लोग उन्हे पकड़ने उनके पीछे दौड़ने लगे।

ट्रेन चलने लगी तो एक ने चैन खींच दी।

भागते हुए दोनों ट्रेन के डिब्बे के आखिर मे पहुँच गए।

उन्हे पीछे कोई दिखाई नही दिया तो दोनों ने राहत की सांस ली। अगले ही पल उन लोगो ने उन दोनों को पकड़कर ट्रेन के बाहर खींच लिया।

"क्या कर रहे हो जाने दो हम लोगों को!" सार्थक ने चिल्लाकर "कहा।

"ऐसे कैसे जाने दे बबुआ...?? ठाकुरों की बेटी को भगाकर तुम ऐसे ही निकल जाओगे। अगर ऐसा हुआ तो कल को तो हर ऐरा गैरा ठाकुरों की लड़कियां भगाने लगेगा।" उनमें से एक आदमी बोला।

"आप गलत समझ रहे हो..!! मैंने किसी को नही भगाया। हम दोनों एक दूसरे को प्यार करते हैं और अपनी इच्छा से ही ये मेरे साथ जा रही है।" सार्थक ने कहा ।

"हां हां भैया मैं अपनी इच्छा से जा रही हूं ...!! प्लीज हम लोगों को जाने दो। हम वापस कभी नहीं आएंगे।" नियति ने हाथ जोड़कर कहा।

" तुम्हे शर्म आनी चाहिए...!! ठाकुर की लड़की होकर ऐसे किसी के भी साथ भी ..!! और जब तुम इतने अच्छे से जानते हो कि यह बात हमारे यहां नही मानी जाती गलती की है तो सजा भुगतने के लिए तैयार रहो।" वो आदमी बोला और सार्थक और नियति को पकड़कर घसीटते हुए ले जाने लगे।

उन दोनों ने विरोध किया तो उन उन लड़कों ने अच्छी खासी मार दोनों की लगा दी। और उन्हें घसीटते हुए ले जाकर अपनी जीप में पटक दिया और उसी के साथ जीप वापस गांव की तरफ मोड़ दी।


डिस्क्लेमर:

यह रचना सिर्फ मनोरंजन के लिए लिखी गई है। पूर्ण रूप से काल्पनिक है। किसी जाती धर्म या समुदाय का विरोध करना या किसी की भावना को आहत करना उद्देश्य नही। जाति प्रथा का समर्थन करना इस रचना का उद्देश्य नही।

कृपया मनोरंजन की दृष्टि से ही पढ़े। 🙏🙏🙏