साथिया - 30 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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साथिया - 30

"नियति अभी तो तुम्हारी बस आने में थोड़ा सा टाइम है ना तो चलो तब तक चौपाटी पर चलकर थोड़ी चाट खाकर आते हैं।" सार्थक ने कहा तो नियति मना नहीं कर पाई और उसके साथ चौपाटी की तरफ बढ़ गई।

दोनों चाट खा रहे थे एक दूसरे को खिला रहे थे और मुस्कुराते हुए एक दूसरे से बात कर रहे थे कि तभी वहां से एक बाइक गुजरी और जिस पर बैठे लड़कों ने नियति और सार्थक को घूर कर देखा।

उसी समय नियति की नजर भी उन लोगों पर पड़ी और उसके हाथ से उसे प्लेट छूटकर कर नीचे गिर गई।

वो लड़के नियति और सार्थक को घूरते हुए वहां से निकल गए।

नियति की आंखों से आंसू निकलने लगे।

"क्या हुआ नियति तुम इस तरीके से क्यों परेशान हो रही हो? क्या हुआ कौन थे वो लोग?" सार्थक ने ठेले वाले को पैसे दिए और नियति का हाथ थामकर सड़क की दूसरी तरफ जाते हुए बोला।


" सब कुछ खत्म हो गया सार्थक.. अब वो लोग हमें नहीं छोड़ेंगे... मैं तुमसे कब से कह रही थी कि सब कुछ छोड़ो और कहीं पर चलने का इंतजाम करो..हम इस गांव को इस शहर को छोड़कर कहीं दूर चले जाएंगे.. पर तुमने मेरी बात नहीं सुनी...अब वो लोग हमें नहीं छोड़ेंगे... बिल्कुल भी नहीं छोड़ेंगे!" नियति ने रोते हुए को कहा ..

" कौन नहीं छोड़ेंगे?कौन थे वो लोग और क्यों नहीं छोड़ेंगे क्या बिगड़ा हमने उनका? " सार्थक परेशान होकर कहा ..


" वह हमारे बाबूजी के लोग थे... गांव के दबंग लोग.. आज उन्होंने तुम्हें और मुझे साथ देख लिया है और वह समझ गए हैं हम दोनों के रिश्ते के बारे में... और मैं तुमसे पहले ही कहती थी ना कि इसका अंजाम बहुत बुरा होगा.. कोई भी इस बात को स्वीकार नहीं करेगा... हमारे रिश्ते को एक्सेप्ट नहीं करेगा किया जाएगा क्योंकि मैं और तुम अलग जाति के हैं और सबसे बड़ी बात तुम...?! कहते कहते नियति रुक गई


"और मैं तुमसे निम्न जाति का हूं यही ना?" सार्थक ने कहा.

"हां यहीं पर मैं ऐसा कुछ नहीं मानती पर मेरे बाबूजी मानते हैं और बाबूजी नहीं पूरा गांव मानता है... अब वो लोग हमें जिंदा नहीं छोड़ेंगे सार्थक बिल्कुल नहीं छोड़ेंगे..!" नियति बोली..

"ऐसे कैसे कुछ भी कर देंगे...हम अभी के अभी यहां से निकल जाएंगे भाग जाएंगे हम यहां से!" सार्थक ने कहा और उसी के साथ उसने एक ऑटो कलिए रोका और नियति का हाथ पकड़ ऑटो में बैठ स्टेशन की तरफ चल दिया।


"पर ऐसे कैसे हम कहां रहेंगे? कैसे रहेंगे हमारे पास में पैसे नहीं है?हमारे पास कोई इंतजाम नहीं है नौकरी नहीं है कैसे रहेंगे हम?" नियति ने रोते हुए कहा।

" मैंने कहा ना मैं हूं तुम्हारे साथ। फिर घबराओ मत कुछ भी नहीं होगा! मैं सब सही कर दूंगा मैं हूं ना तुम्हारे साथ कुछ भी नहीं होगा हम दोनों को विश्वास रखो...!" सार्थक ने नियति को अपने सीने से लगाते हुए कहा और तुरंत अपना फोन निकाल कर अपने घर में फोन लगा दिया।


" हेलो।" सामने से उनकी मम्मी की आवाज आई।


" मम्मी मैं शहर से बाहर जा रहा हूं कुछ दिनों के लिए। मुझे ढूंढने के लिए कोई आए तो आप बोल देना कि आपको नहीं पता है कि मैं कहां हूं...कुछ भी बताने की जरूरत नहीं है और मेरा फोन भी अब बंद रहेगा ठीक है मैं जा रहा हूं सार्थक ने कहा..

" पर क्यों?" मम्मी बोली

" मम्मी मैं एक लड़की को पसंद करता हूं नियति नाम है। गांव के ठाकुर गजेंद्र सिँह की बेटी है... और उन लोगो को पता चल गया है।" सार्थक बोला।


" ये क्या किया तूने? ठाकुरों की लड़की ही मिली थी तुझे प्यार मोहब्बत के लिए। मैं कहती हूँ छोड़ दे उसको और आ जा घर।हम हाथ पांव जोड़कर माफी मांग लेंगे।" सार्थक की मम्मी बोली।

" नियति को न छोड़ सकता अब चाहे जो हो जाए।" सार्थक बोला और कॉल कट कर दिया।


"हेलो हेलो..!" सार्थक की माँ बोलती रही पर कोई जबाब नही मिला।

तभी सार्थक के पापा भी आ गए।

"क्या हुआ क्या बोल रहा था वह?"

"पता नहीं कुछ अजीब सी बात कर रहा था कह रहा था कुछ महीनों के लिए शहर से बाहर जा रहा है उसे ढूंढने कोई आए तो कह देना कि उससे बात नहीं हुई है और अब वह भी फोन भी नहीं करेगा... पता नहीं कब वापस लौटकर आएगा सार्थक की मां ने रोते हुए कहा।"

" हुआ क्या है साफ साफ बताओ!" सार्थक के पापा नाराजगी से बोले तो उसकी माँ ने सब कुछ बता दिया।

" ये लड़का इतनी बड़ी गलती कैसे कर गया? जानता नही उस गाँव की पुलिस भी वो पंच है और कानून भी..! और वहाँ की लड़कियों को देखने की भी इजाजत नही हम जैसे लोगो को।अभी पिछली साल ही...! मैं जाकर देख कर आता हूं।" कॉलेज सार्थक के पापा बोले और तुरंत वहां से निकल गये।


नियति और सार्थक रेलवे स्टेशन पहुंचे और उन्होंने जल्दी से जनरल का टिकट लिया और ट्रेन के आने का इंतजार करने लगे।

"हम कहां जा रहे हैं सार्थक ? क्या सोचा है तुमने कहां चलने का सोचा है? " नियति ने कहा।

"हम यहां से दिल्ली जा रहे है। Bतुम चिंता मत करो वहां कुछ ना कुछ काम ढूंढ लूंगा मैं और फिर उसके बाद कहीं और चले जाएंगे और फिर जैसे ही मौका मिलेगा अपने मम्मी और पापा को भी ले जाऊंगा और कुछ भी नहीं होने दूंगा तुम्हें।" सार्थक ने कहा।

सार्थक और नियति सोच रहे थे कि वह यहां से निकल जाएंगे पर उन्हें नहीं पता था कि उन दो लड़कों में से एक लड़का उनके पीछे लगातार था और वह स्टेशन पर भी उन लोगों पर नजर रखे हुए था।

वहीं दूसरा लड़का गांव पहुंचा और उसने जाकर गजेंद्र सिंह को सारी बात बता दी और साथ ही सभी पंचो को भी।

गांव में एक तूफान सा आ गया और हलचल मच गई। इस बात को कोई भी बर्दाश्त नहीं कर सकता था कि एक ठाकुर की लड़की एक निम्न जाति के लड़के के साथ भाग गई।

अवतार सिंह को खबर मिली तो वह भी वहां आ पहुंचे।


"यह तो बिल्कुल सही नहीं किया नियति ने..! उसको पढ़ने लिखने के लिए भेजा था इस तरीके की हरकत करने के लिए नहीं। एक लड़की की गलती पूरे गांव की युवा पीढ़ी के लिए सजा बन जाती है। और उसका उठाया एक कदम दूसरों को भी गलत रास्ता दिखायेगा।" एक पंच बोले।

इस तरह की हरकत पर सजा का नियम है चाहे फिर वह लड़की ठाकुर की हो या किस ब्राह्मण की या किसी और की पर सजा सबके लिए एक ही है और नियति ने मर्यादा का उल्लंघन किया है तो सजा उसको भी वही मिलेगी जो हमेशा से मिलती आई है।"तभी दूसरे ठाकुर और पंच बोले।




"ऐसा मत कहिए काका बच्ची है वह...!मैं उसे समझा दूंगा हम ढूंढ कर ले आएंगे...!हो सकता है इसे कोई गलतफहमी हो गई हो।" निशांत ने उस लड़के की तरफ देख कर कहा।

"माफ कीजिएगा छोटे ठाकुर पर मुझे कोई गलतफहमी नहीं हुई है...!दोनों एक-दूसरे का हाथ पकड़े एक ही दौने से एक दूसरे को चाट खिला रहे थे। आंखों ही आंखों में इशारे कर रहे थे। कोई अंधा भी देख कर कह दे कि उन दोनों के बीच कैसा संबंध है। और अगर ऐसा नही तो फिर वापस क्यों न आई क्योकि भाग रही है उस कुं... ... के छोरे के साथ।" उस लड़के ने कहा।

निशांत में एकदम से उसकी कॉलर पकड़ ली।

" कहा ना गलतफहमी हो सकती है...! मेरी बहन ऐसा नहीं कर सकती बिल्कुल भी नहीं कर सकती।" निशांत बोला तो उस लड़के ने अपना फोन निकाल कर तुरंत उन्हें वीडियो और फोटो दिखा दी।

निशांत की आंखें झुक गई।

"सही कह रहे हो तुम सजा हर किसी के लिए एक होती है।गजेंद्र मेरे अच्छे मित्र हैं पर इसका मतलब यह नहीं कि जब बात उनकी बेटी की आए तो मैं कोई रियायत करूं। इस गांव का हर फैसला हम पंच मिल कर लेते रहे हैं और इस बार भी सही निर्णय लेंगे।" अवतार सिंह ने कहा तो बाकी के लोग उठ खड़े हुए हैं।

"उन्हें सजा दी जाए और वहीं सजा दी जाए जो तय है इस मामले में ताकि आगे दूसरे लड़के लड़कियां भी सीख लें।" पंच एक श्वर में बोले।



"मैं भी सहमत हूं मैं भी सहमत हूं!" दूसरे पक्ष ने भी सहमति जता दी।

"ठाकुर साहब जो सजा एक के लिए है वही सजा सबके लिए है। फिर वह बेटी आपकी ही क्यों न हो इसलिए मेरी तरफ से भी सिर्फ और सिर्फ हाँ है..!" तीसरा व्यक्ति बोला।

अब सिर्फ अवतार पर सिंह बचे थे जिनका निर्णय होना था।

"प्लीज मना कर दीजिए ना काका। मेरी बहन है वो। मैं मानता हूं गलती हो गई। हम डांट देंगे मार पिटाई लगा देंगे उसे घर के अंदर के कैद कर देंगे और एक महीने के अंदर उसका ब्याह कर देंगे पर यह सजा नहीं नहीं प्लीज काका यह सजा नहीं।"निशांत ने हाथ जोड़ते हुए कहा...!

"रुक जाओ निशांत जो सजा सबके लिए है वही हमारे लिए और और पंचो का मुखिया होने के नाते अंतिम निर्णय मेरा होगा। अगर मेरे घर से गलत बात उठेगी तो मैं दूसरों को क्या गलत करने से रोक पाऊंगा और नियति ने जो किया गलत किया ...!! गलत नहीं गुनाह किया और गुनाह की माफी नहीं होती। होती है सिर्फ सजा..!! तो मेरी तरफ से भी सजा का फैसला। अब जाकर ढूंढ कर लाओ उन दोनों को और दे दो सजा।" गजेंद्र सिंह बोले और घर के अंदर चले गए।


निशांत ने सुरेंद्र की तरफ देखा तो उन्होंने भरी आँखों से निशांत को देखा और गजेंद्र के पीछे चले गए।

" निशांत ने उम्मीद से अवतार की तरफ देखा।

" प्लीज चाचा समझाइए ना बाबूजी को..! हो जाती है गलती बच्ची है। माफ कर दो न इस बार।" निशांत ने आखिरी बार कोशिश की।

"माफ कर दो बेटा पर जो सजा अब तक सबको मिलती आई है वही नियति को मिलेगी और इस मामले में कोई भी रियायत नहीं की जाएगी।" अवतार सिंह बोले और उन्होंने लड़कों को इशारा कर दिया।

उसी के साथ 10-12 लोग जीप में बैठकर हथियार लेकर शहर की तरफ निकल गए।

दरवाजे के पीछे खड़ी आव्या सब सुन रही थी।

उसके हाथ-पांव डर के मारे कांप उठे।

वह अंदर गई और छुपते छुपाते उसने फोन उठाकर सौरभ को फोन लगा दिया।

"हां आव्या बोलो।" सौरभ ने कहा।


"भैया जल्दी आ जाइए...!! बहुत गड़बड़ हो गई है प्लीज भैया जल्दी आ जाइए वरना यह लो नियति दीदी को..!!"कहते कहते आव्या रोने लगी।

"क्या हुआ क्या किया नियति ने? क्या होने वाला है? क्या गड़बड़ हो गई है साफ-साफ बता आव्या..!" सौरभ ने कहा।

"भैया नियति दीदी का शहर में किसी लड़के के साथ अफेयर है, और गांव वालों ने उनके लिए सजा मुकर्रर कर दी है...!! और पंचों ने मुहर लगा दी है। नियति दीदी उस लड़के के साथ भाग गई है और अब जैसे ही नियति दीदी और वह लड़का मिला उन्हें सजा दे दी जाएगी। आप जानते हो ना भैया सजा में क्या होगा? आप प्लीज भैया जल्दी आ जाओ। कोई किसी की नही सुन रहा है। नियति दीदी को बचा लो भैया प्लीज भैया नियति दीदी को बचा लो।" आव्या ने रोते हुए कहा और फोन कट कर दिया

सौरभ अपना फोन लेकर कभी अपने पापा तो कभी अपने बड़े पापा को फोन लगाने लगा पर दोनों ही उसका फोन नहीं उठा रहे थे।

गजेंद्र के कहने पर सुरेंद्र ने भी अपना फोन ऑफ करके रख दिया। हालांकि उन्हें बुरा लग रहा था और उनकी आंखों में आंसू भरे हुए थे पर वह अपने भाई के विरुद्ध नहीं जा सकते थे।



उधर एक लड़का स्टेशन पर दोनों पर नजर रखे हुए था और इधर गाँव से दर्जनों लोग उन दोनों को पकड़ने के लिए निकल गए थे तो वही नियति और सार्थक ब अपनी ट्रेन का इंतजार कर रहे थे।

यह एक छोटा शहर था जहां जल्दी जल्दी ट्रेन नहीं आती थी और उन्होंने दिल्ली जाने के लिए के लिए ट्रेन देखी थी जो कि थोड़ी देर बाद आने वाली थी पर उनकी बेचैनी और घबराहट बढ़ती जा रही थी तो वहीं नियति के आंसू लगातार निकल रहे थे।

उसने कसके सार्थक का हाथ थाम रखा था पर उसे अब समझ में आ गया था कि उसका बचना मुश्किल है।

तभी एक ट्रेन आई स्टेशन पर।


क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव