राजा Shakti द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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राजा

अर्थशास्त्री राजा


एक राजा के बहुत से लड़के थे। उनमें से एक लड़के का नाम था अनुज। अनुज एक चतुर अर्थशास्त्री था जब पिता ने राज्य का बंटवारा किया तो अनुज ने सबसे गरीब और सबसे पिछड़ा हुआ प्रांत अपने पिता से लिया। इससे उसके सभी भाई बहुत खुश हुए। भाइयों को खुश देखकर अनुज बहुत प्रसन्न हुआ।


अनुज को इस प्रांत से यह फायदा हुआ कि यह प्रांत अन्य प्रांतो से काफी दूर था और वह स्वतंत्रता से इसका विकास कर सकता था। कुछ ही दिन में अनुज ने अपनी बुद्धि से प्रांत का विकास कर दिया। प्रांत खुशहाल हो गया। सभी लोग अमीर हो गये। इस प्रांत में शिक्षा दीक्षा सारिरिक विकास मानसिक विकास से वहां के नागरिक भर गये। अब अनुज ने अपना राज्य विस्तार करने की सोची। क्योंकि उस प्रांत में काफी सुशिक्षित लोग थे। इसलिए काफी बेरोजगारी बढ़ गई थी। अनुज ने इसी समय एक नए ग्रह की खोज की। यह ग्रह काफी विशाल था इस ग्रह के लोग अभी आदम अवस्था में थे।


अनुज ने सर्वप्रथम अपने प्रांत के लोगों को उस ग्रह पर ले जाकर बसाया। उसने उस ग्रह पर पांच शहर स्थापित किये। इससे उसके प्रांत में बेरोजगारी खत्म हो गई। क्योंकि ज्यादातर बेरोजगार लोग उस ग्रह पर बस गए थे। धीरे-धीरे उसे ग्रह का विकास होने लगा। उसे ग्रह पर रहने वाले आदम लोग भी इन लोगों के संपर्क से धीरे-धीरे सभ्य होने लगे और बहुत जल्दी ही सभ्य और विकसित हो गये। इस प्रकार अनुज अपने अन्य भाइयों की तुलना में संपन्न हो गया। अब अनुज ने अपनी काफी बड़ी विशाल और सुशिक्षित सेना भी तैयार कर ली।





धन की व्यवस्था


अनुज के कोष में बहुत सारा धन जमा हो गया। इतना ज्यादा कि धन को संभालना मुश्किल हो गया। अनुज ने सारे धन को बेचकर सोना खरीद लिया और इस सोने की इंटे बनवाकर एक सुंदर से तहखाना में रख दिया। इससे धन का फैलाव कम हो गया और ये सोने के रूप में सिकुड़ कर तरीके से कोश में रख दिया गया।


इसी बीच उसके सारे राज्य और ग्रह का वार्षिक टैक्स आदि भी कोष में आने लगा। उसे भी अनुज ने तरीके से विभिन्न गोदाम में रखवा दिया।



विदेशी ऋण की समाप्ति


अनुज ने नए ग्रह से प्राप्त धन से अपने पूरे प्रांत का विदेशी रिन चुका दिया तथा अपने भाइयों और पिता के राज्य को भी बहुत बड़ी आर्थिक मदद दी। अब अनुज ने अपना ध्यान नए ग्रह की आर्थिक व्यवस्था ठीक करने पर लगाया। उसने नए ग्रह के कोष के चार हिस्से किये।


पहले हिस्से को उसने विकास पर लगाया। दूसरे हिस्से को उसने सेना पर खर्च किया। तीसरे हिस्से से सभी कर्ज चुकाना शुरू कर दिया और चौथे हिस्से को सुरक्षित रखा।



नया ग्रह


अनुज को एक नया ग्रह मिला। यह इस ग्रह में कुछ रेगिस्तान थे। कुछ जंगल थे और कुछ पथरीली जमीन और खदानें थी। अनुज ने इस नए ग्रह का फ्री में विकास करने की बात सोची। तभी एक बड़ा ठेकेदार उसके पास आया। वह चाहता था कि इस नए ग्रह की कुछ जमीन के जंगल का ठेका वह ले ले। अनुज ने एक बड़ी रकम पर वह ठेका उस ठेकेदार को दे दिया। कुछ ही समय में उस ठेकेदार ने एक बहुत बडे क्षेत्र के जंगल की लकड़ी काटकर ले ली। अब वह क्षेत्र खाली पड गया। अनुज ने उस क्षेत्र में एक नगर की स्थापना करने की सोची। तभी उसके पास एक पत्थर वाला ठेकेदार आया और उसने उससे ग्रह के एक निश्चित क्षेत्र के पत्थर का ठेका लेने की बात कही। अनुज ने उसका थेका उस ठेकेदार को दे दिया। बदले में उसने एक बड़ी रकम ठेकेदार से ली और साथ ही एक छोटा सा शहर बनाने की बात भी ठेकेदार से की और बाकी खाली जमीन को प्लेन करने की बात भी ठेकेदार से की। ठेकेदार ने ठेका ले लिया और कुछ ही दिनों में वहां एक शहर बना दिया और जमीन भी प्लैन कर दी। अब एक कृषक अनुज के पास आया। अनुज ने उसे ही इस प्लैन जमीन पर खेती करने की अनुमति दी। साथ ही उसे आधा अनाज स्वयं को देने की बात कही। किसान मान गया। कुछ ही दिनों में अनुज के शहर की बाहर की खाली जमीन में फसल लहरा उठी और उस फसल का आधा अनाज अनुज को मिलने लग गया। इस प्रकार अनुज ने इतना फ्री में विकास करवा दिया।


अब अनुज ने ग्रह की जमीन बड़े-बड़े सेठो को लीज पर देना शुरू कर दिया। इसके बदले में उसे अच्छी खासी रकम मिलने बैठ गई। साथ ही उसने ग्रह की खदान व अन्य प्राकृतिक रिसोर्सेज को भी उचित टैक्स लगाकर या आधे आय के वादे पर ठेकेदारों को देना शुरू कर दिया। कुछ ही दिनों में ग्रह पर अच्छी खासी आबादी हो गई और अनुज इस प्रक्रिया में बहुत ही ज्यादा धनवान बन गया।






भाइयों की आर्थिक स्थिति सुधारी


अब अनुज अपने भाइयों के अनुरोध पर एक और मिशन में जुट गया। यह मिशन था उसके भाइयों की आर्थिक स्थिति को सुधारना। सबसे पहले उसने अपने सभी भाइयों के प्रान्तो में एक ही नई मुद्रा का प्रचलन किया। कुछ दिनों में इस मुद्रा पर सभी विश्वास करने लगे।


अब उसने कुल विदेशी मुद्रा के कोश में से धन निकालकर विदेशी ऋण का भुगतान कर दिया। धीरे-धीरे अब देश की आर्थिक स्थिति सुधरने लग गई। उसने एक केंद्रीय बैंक की स्थापना भी की और देश के सभी छोटे-बड़े सभी नागरिकों और प्रान्तो का कर्ज माफ कर दिया और कुछ नई मुद्रा छाप कर सभी लोगों को दे दी। इस पूरी प्रक्रिया में उसने ध्यान रखा कि किसी भी वस्तु का मूल्य देश भर में जरा भी ना बड़े। इस प्रकार सभी प्रान्तो के लोग संपन्न हो गये।


धीरे-धीरे उसने सभी सबसडियां खत्म कर दी। लेकिन उसने सभी सरकारी विभागों को धीरे-धीरे लाभ की स्थिति में ला दिया। किसानों पर उसने विशेष ध्यान दिया। उनके उत्पादों को उचित मूल्य मिले इसका भी ध्यान रखा। धीरे-धीरे उसके भाइयों के सभी प्रांत संपन्न और आत्मनिर्भर हो गये।



सेना


इस नए ग्रह की रक्षा करने के लिए अनुज ने कुछ सरकारी विभागों के बीच स्थापना की। वहां उसने एक अच्छी पुलिस व्यवस्था बनाई और एक अच्छी सैनिक टुकड़ी को भी वहां रखा।


अब अपने नए शहर में अनुज ने अपने कुछ खास आदमियों को बस दिया और कभी-कभी अनुज भी वहां रहने लगा। ग्रह की सुरक्षा व्यवस्था, प्रशासन का अनुज ने खास ध्यान रखा और ग्रह के सभी निवासी संपन्न और सुरक्षित रहे इसका अनुज ने ध्यान रखा।



जानवरों की अर्थव्यवस्था


अनुज ने जानवरों की नस्ल सुधारने की सोची। उसने अपने सारे राज्य के फालतू पशु एक विशाल बाड़े में जमा किए। साथ ही उसने अपने सारे राज्य के फालतू मनुष्य भी एक दूसरे बाड़े में जमा किए। इन फालतू मनुष्यों को थोड़ा बहुत रोजगार की ट्रेनिंग दी गई तथा इन फालतू पशुओं की नसबंदी कर दी गई। इन फालतू आदमियों को इन फालतू पशुओं की सेवा में लगाया गया और उन्हें इन फालतू पशुओं के गोबर आदि से विभिन्न उत्पाद और खेती करने के लिए कहा गया। इससे इन फालतू आदमियों को रोजगार मिला और जनता को फालतू जानवरों से मुक्ति। साथ ही शेष बचे जानवरों की नस्ल सुधरती गई।


नदियों को साफ करना


अनुज ने नदियों के किनारे बसे गांवों, शहरों और फैक्ट्रीयों को अपने गंदे जल के निपटान के लिए वैकल्पिक व्यवस्था करने के लिए कहा। ऐसा ही हुआ। जिससे नदियां स्वयं मेव ही साफ हो गई।




12 मजदूर


दूर देश से 12 मजदूर आकर एक राजा के दरबार में पहुंचे। मजदूर बिल्कुल फटेहाल थे। मजदूरों की दशा देखकर राजा द्रवित हुआ और उसने ही उन्हें नदी में स्तिथ एक द्वीप रहने के लिए दे दिया। द्वीप का कुछ हिस्सा चट्टानी था। कुछ प्लैन था। कुछ पहाड़ी था और कुछ में जंगल थे। मजदूर वहां रहने लगे। वह बाहरी दुनिया से बिल्कुल कटे हुए थे। लेकिन मजदूर मेहनती थे। उन्होंने वहां धीरे-धीरे खेती करना शुरू कर दिया। शुरू -शुरू में उसने उन्होंने मछलियों और जंगली जानवरों के मांस से अपनी भूख प्यास मिटाई। वस्त्र की जगह जंगल के पेड़ों के पत्ते पहने। लेकिन धीरे-धीरे उनकी आर्थिक स्थिति सुधरी। और उन्होंने अपने रहने के लिए वहां झोपड़ियां, मकान आदि भी बना लिए।


अब उनकी उपज आज भी ज्यादा होने लगी। जिसे खरीदने के लिए बाहर के लोग भी द्वीप में आने लग गये। इससे इन मजदूर किसानों की आर्थिक स्थिति और सुधरी और उन्होंने अपने द्वीप पर हॉस्पिटल, स्कूल, प्रशिक्षण संस्थान आदि बनवा लिए। द्वीप में एक छोटा-मोटा बाजार भी खुल गया। इन 12 मजदूरो में कुछ स्त्रियां भी थी और कुछ बच्चे भी थे और यह एक परिवार की तरह रहते थे। इसलिए उनकी जनसंख्या भी थोड़ी बहुत बढ़ गई थी।




राजा हुआ खुश


यह 12 मजदूर राजा को भी समय समय पर उपहार देने लगे। इनमें से कुछ मजदूरों को जो अब अमीर और संपन्न हो चुके थे को राजा ने अपने मंत्रिमंडल में स्थान दिया। उनकी सलाह पर राजा ने उसे द्वीप पर जो काफी बड़ा था। धीरे-धीरे अपने राज्य के गरीबों को भेजना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे यह गरीब लोग वहीं बसने लग गए और कुछ गरीब वहां नौकरी करने लग गये। और धीरे-धीरे संपन्न होते गए।


यह द्वीप काफी बड़ा था। इसलिए इस द्वीप में काफी इनकम जनरेट हो रही थी। इस इनकम से जो टैक्स मिलता था उससे राजा भी धीरे-धीरे संपन्न होता जा रहा था। धीरे-धीरे इन 12 मजदूरों के कारण राजा का राज्य संपन्न खुशहाल और आधुनिक होता गया।




अध्यात्म



राजा अपनी भौतिक प्रगति से बहुत खुश हुआ। अब वह बहुत बड़ा राजा बन चुका था। लेकिन उसके राज्य में चोर डकैत भी बहुत बढ़ गए थे और लोग भी आपस में लड़ते रहते थे। इसलिए उसने एक महान धर्मगुरु से संपर्क किया। महान धर्मगुरु ने उसके पूरे राज्य में पूजा स्थलों की स्थापना राजा के सहयोग से करवा दी। अब लोग अपना कुछ समय आध्यात्मिक पूजा आदि में बिताने लगे। जिससे राजा के देश के लोग धीरे-धीरे आध्यात्मिक रूप से भी समृद्ध होने लगे और देश में आंतरिक शांति आने लगी।




रोड पति से करोड़पति


अमर गांव से शहर रोजगार की तलाश में आया था। लेकिन शहर में वो सफल नहीं हो पाया। हालांकि उसे गांव में खेती का काफी अनुभव था। काफी दिन तक शहर में भटकने के बाद आखिर उसे एक बहुत बड़े जमींदार मिले। जमीदार मानव स्वभाव को परखने की रखने में बहुत सक्षम थे।


अमर को देखते ही उन्होंने कहा कि तुम मेरी जमीन खरीद लो। वह यहां से कुछ ही दूर पर है। अमर ने कहा मेरे पास इतने पैसे कहां। जमीदार बोले अरे कहां 100 करोड रुपए की तो बात है। मेरी जमीन 100 करोड रुपए की ही है। इसे तुम आराम से खरीद सकते हो। अमर ने कहा मेरे पास ₹1 है। जमींदार ने हंसते हुए वह ले लिया और एक स्टांप पेपर बनाकर उसे दे दिया। बोले बाकी पैसा तुम बाद में देना। तुम मेहनती और ईमानदार लगते हो। तुम बाकी चुका दोगे। आज से जमीन तुम्हारी हुई।


अमर ने अपना पुराना बैग उठाया और चल पड़ा। जमीदार के कहे अनुसार कुछ ही दिन में वह उसे जमीन तक पहुंच गया। अब वह जमीन का मालिक था। उस जमीन के किनारे एक छोटा सा मकान बना हुआ था। जमीन में घास उगी हुई थी और वह मकान भी जंगली पेड़ों और लताओं से ढका हुआ था। जमीन में पानी का एक झरना था। अमर ने जाकर भरपेट पानी पिया। उसके पास कोई भोजन सामग्री न थी और न ₹1 बचा था। थकान से वह चूर था। जाते ही वह पानी पीकर सो गया। सुबह उठकर उसकी नींद खुली। उसके बैग में केवल सटाम्प पेपर था। जो यह बताता था कि वह इस मकान और जमीन का मालिक है।


अमर के पेट में भूख से मरोड़ उठ रही थी। लेकिन हिम्मत ना हारते हुए वह फिर झरने के पास पहुंचा और उसने भरपेट पानी पिया और नहाया धोया और बैग खोलकर दूसरे कपड़े बदले और पुराने कपड़े धोकर वहीं चट्टान पर सूखने के लिए रख दिए। थोड़ा देर आराम करने के बाद वह घर में घुसा। घर में एक जगह कुदाल, दरान्ती आदि पड़े हुए थे ।तो कुछ खाना बनाने के पुराने बर्तन भी पड़े हुए थे। पूरा मकान गंदगी से अटा पड़ा था। अमर ने मकान को साफ करने की ठानी। वह मकान को साफ करने में जुट गया। उसने पैड लताएं आदि काटकर अलग किये। मकान में झाड़ू दिया। पूरे मकान को साफ सुथरा कर दिया। पूरा दिन उसका इसी में बीत गया।


मकान में कुछ का काम का सामान छोड़कर बाकी उसने कबाड़ समझकर एक जगह इकट्ठा कर लिया। शाम हो गई थी। भूख के मारे अमर के बुरे हाल थे। वह फिर नहा धोकर और कपड़े बदलकर अपने साफ-सुथरे घर में एक पुरानी चटाई पर लेटा था। तभी उसे बाहर से आवाज सुनाई दी। या किसी फेरी वाले की आवाज थी। फेरी वाला उसे आवाज दे रहा था। अमर बाहर आया। अमर ने कहा क्या तुम यह कबाड़ ले जाओगे। फेरी वाला सहमत हो गया। कबाड़ काफी ज्यादा था। फेरी वाले ने उसे इस कबाड़ के ₹500 दिए और लगभग आधा किलो मूंगफली भी दी। अमर ने पैसे संभाल कर रखा और कुछ मूंगफली खाकर अपनी अपनी भूख मिटाई।


फिर वह सो गया। झरने पर जाकर वह नहाया। नीत्य क्रिया निपटाई और अपने साफ-सूथरे घर में आ गया। घर काफी पुराना था। जगह-जगह से प्लास्टर झड़ रहा था। लेकिन सफाई की वजह से आज वह चमचम कर रहा था। अमर इसके बाद अपनी जमीन पर कार्य करने में जुट गया। बीच में मौका देखकर वह एक होटल से भरपेट खाना भी खाकर आ गया और साथ ही बाजार से घर की जरूरत का कुछ सामान भी ले आया। साथ ही वो कुछ बीज भी ले आया था। बाजार से खरीद कर। उसने एक छोटा सा खेत अपनी जमीन में तैयार कर लिया था। साथ ही बीज बोकर उसमें पानी भी डाल दिया था। इसके बाद वहां नहा धोकर अपने कमरे में खाना बनाने लगा। उसके बाद वो खाना खाकर सो गया।


अगले दिन वह फिर काम पर जुट गया।अब उसने जमीन में कुछ फालतू पेड काटकर एक जगह इकट्ठा कर लिए। उसे अपने घर में ही ग्राहक मिल गये। जिन्होंने उनकी लकड़ी हाथों-हाथ खरीद ली और उसे ही काफी अच्छी रकम दे दी। इस प्रकार अमर को अपने इस 100 करोड़ के जमीन में काम करते-करते काफी दिन गुजर गया। उसकीपूरी जमीन आज विविध फसले लगी हुई थी। जो अकेले उसकी मेहनत का परिणाम थी। अपना मकान भी उसने अब रिनोवेट कर दिया था। उसका मकान अब किसी बंगले से काम नहीं लग रहा था।


अब अमर ने अपने स्वास्थ्य की और भी ध्यान देना शुरू कर दिया। जो ज्यादा काम करने से कुछ खराब सा हो गया था। धीरे-धीरे उसका स्वास्थ्य भी सुधरने लग गया। उसकी जमीन अब सोना उगलने लग गयी। अपनी जमीन की घास लकड़ी और फसल आदि बेचकर उसने काफी पैसा इकट्ठा कर लिया। उसने अपना एक खाता पास के बैंक में खुलवा दिया था। धीरे-धीरे उसने जमीदार के 100 करोड रुपए चुका दिए और अपनी जमीन की अच्छी संभाल करने के लिए कुछ मजदूर भी रख लिए। उसका बैंक बैलेंस 10 करोड़ रूपया हो चुका था। अब वह जमीन का भी मलिक था और 10 करोड़ भी उसके बैंक खाते में थे। इस प्रकार वह कुल 110 करोड़ का मालिक था।



अमर की मेहनत और ईमानदारी ने उसे रोड पति से करोड़पति बना दिया था। कुछ समय बाद अमर ने नगद 1000 करोड रुपए देकर और जमीन खरीदी। इसी तरह उसने कई मकान दुकान और जमीने खरीदी। कुछ पैसा उसने समाज सेवा में भी लगाया। गरीबों के लिए मकान दुकान रोजगार आदि प्रदान किया।