एहिवात - भाग 12 नंदलाल मणि त्रिपाठी द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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एहिवात - भाग 12

जब पंडित शोभराज घर पहुंचे उस वक्त चिन्मय घर पर नही था उन्होंने पत्नी स्वाति से चिन्मय द्वारा बाज़ार में किसी आदिवासी परिवार के लिए कपड़े आदि खरीदने की बात बताई और पूछा की उनको बेटे कि इस कार्य का पता है माँ होने के नाते स्वाति ने पति शोभराज से बताया चिन्मय उनसे सिर्फ किसी कोल आदिवासी परिवार को भोज में आमंत्रित करने के लिए आपकी अनुमति चाह रहा था जिसे मैंने आपको बताया ही था ।
 
पति पत्नी कि बार्ता चल ही रही थी कि चिन्मय आ धमका पंडित शोभराज ने बेटे से बड़े सहज भाव से पूंछा कहा गए थे बेटा चिन्मय बोला गांव में अपने दोस्त समर्थ सिंह चंदेल के घर गया था कुछ देर शांत रहने के बाद पंडित शोभराज तिवारी ने बेटे चिन्मय से कहा हम आज बज़ारे गए रहे सेठ बाल किशन बतावत रहेन कि तू कौनो आदिवासी परिवार खातिर कपड़ा आदि खरीदे चिन्मय बोला हां पिता जी हम आपके अनुमति से कोल आदिवासी परिवार को अपने यहाँ भोज में न्योता देहे हई उन लोगन के पास ढंग के कपड़ा लत्ता नाही रहा एही लिए आवे में संकोच करत रहेन हम कपड़ा और जरूरत के समान यहां आवे ख़ातिर खरीद दिया ।
 
पंडित जी ने पुनः बेटे से प्रश्न किया पैसा कहां से पाए चिन्मय बोला आप जो पईसा हमे खर्चे खातीर देत ह ऊहे साल भर के बचल रहा बेटे कि साफगोई से शोभराज तिवारी को विश्वास हो गया कि चिन्मय गलत नही हो सकता और बोले कौनो बात नाही जब तुमरे मेहमान आए त हमहू से मिलायव देह चिन्मय बोला जी पिता जी।
 
शोभराज तिवारी जी के पूरे परिवार में उमंग उत्साह का वातावरण था चिन्मय कि सफलता पर अभिमानित पूरा बल्लीपुर गांव चिन्मय के बेहतर भविष्य के लिए ईश्वर से प्रार्थना कर रहा था ।
 
इतंजार कि घड़ियां समाप्त हुई और वह दिन आ ही गया जिस दिन कि सबको प्रतीक्षा थी तिवारी जी ने अपने घर को दुल्हन कि तरह सजवाया रंग रोगन कराया शोभराज तिवारी जी के पुरोहित पंडित किरीट मिश्र जी समय से आ चुके थे पंडित शोभराज तिवारी पत्नी स्वाति के साथ पूजा हेतु बैठे पंडित किरीट मिश्र ने पूरे विधि विधान से पूजन सम्पन्न कराने के बाद सत्यनारायण भगवान की कथा सुनाई जिसे सुनने के लिए पूरा गांव एकत्र था ।
कथा समाप्त हुई और भोज कार्यक्रम कि शुरुआत हुई चिन्मय के मामा मंदार शुक्ल, फूफा चन्द्रिक पांडेय ,नाना गंधर्व शुक्ल एव सभी नातेदार रिश्तेदार चिन्मय को आशीर्वाद देने पधारे थे ।
चिन्मय सभी का आर्शीवाद चरण वंन्दन करते हुए प्राप्त कर रहा था चिन्मय के स्कूल के सभी अध्यापक एव कर्मचारी प्राचार्य नारायण सिंह के साथ आए थे।
 
उत्सव में सम्मिलित प्रत्येक व्यक्ति यही कह रहा था कि पंडित शोभराज तिवारी के निश्चित ही पुण्य कर्मों का ही फल है चिन्मय कि सफलता सभी एक दूसरे से यही कहते (बाढ़े पूत पिता कि धर्मे खेती उपजे अपने के करमे) सर्वप्रथम पिता के आदेश से चिन्मय ने अपने विद्यालय के सभी गुरुजनों के पैर पखारे उनका आशीर्वाद लिया।
गुरुजनों ने चिन्मय को हृदय कि गहराइयों से एव सम्पूर्ण सकारात्मक भावो से आशीर्वाद दिया।
उत्सव शुरु हुआ लोगो के आने जाने का तांता शुरू हुआ भीड़ में चिन्मय को अपने विशेष अतिथियों का इंतजार बड़ी उत्सुकता से था ।
 
रात्रि लगभग प्रहर बीतने के बाद जुझारू तीखा सौभाग्य उत्सव में पहुंचे चिन्मय स्वंय आगे बढ़कर जुझारू के चरण स्पर्श किए चिन्मय द्वारा जुझारू के चरण स्पर्श को पंडित शोभराज तिवारी, स्वाति ,मामा मंदार शुक्ल, फूफा चंद्रिका पांडेय, नाना गंधर्व शुक्ल के साथ साथ चिन्मय के सभी गुरुओ एव गांव वालों ने देखा सभी ने चिन्मय के इस आचरण पर अपनी अपनी अपनी टिप्पड़ी दी चिन्मय के गुरुओ ने इसे आदर्श समाज के होनहार कि सही दृष्टि दिशा बताई तो गांव वालों में अजब प्रतिक्रिया हुई।
 
कोई कह रहा था की पढ़ लिख कर इतनी बड़ी सफलता चिन्मय ने अवश्य हासिल कर लिया है लेकिन अक्ल उसकी शुद्र्वत है कोई कहता चिन्मय ज्यो ज्यो आगे बढ़ता पढ़ता जाएगा पंडित शोभराज तिवारी के सम्मान को धूल धुसित करता जाएगा जो ग्रामवासी आदिवासी परिवार के उत्सव में सम्मिलित होने से पहले चिन्मय कि सफलता पर उसकी प्रशंसा में जाने क्या क्या जुमले कसीदे गढ़ पढ़ रहे थे कुछ अलग ही बोलने लगे ।
 
चिन्मय के नाना मामा फूफा एव अन्य रिश्तेदार माता पिता स्वाति पंडित शोभराज सभी उत्सव में आये अतिथियों का स्वागत करने में व्यस्त थे।
 
चिन्मय तीखा और सौभाग्य को मॉ स्वाति से मिलवाया और परिचय कराते हुए बोला मां यही हमारे खास मेहमान है इनका ख्याल रखना और चिन्मय चला गया।
 
स्वाति ने गौर से सौभाग्य को देखा देखती रह गयी सौभाग्य ऐसे लग रही है जैसे किसी शांत वन प्रदेश में सुन्दरतम देवी प्रतिमा स्वाति ने सौभाग्य से पूछा ये तुम्हारी माई है सौभाग्य ने सहमति से सर हिला दिया स्वाति ने फिर सौभाग्य से सवाल किया बेटी पढ़ती किस क्लास में हो सौभाग्य बिना किसी लाग लपेट भूमिका के सपाट शब्दो मे बोली नही माई हम किसी स्कूल क्लास में नही पढ़ते हम तो वनवासी लड़की है जनम से जीविकोपार्जन के लिए ही संघर्ष करती है पढ़ने का ना तो समय है ना सुविधा हाँ चिन्मय ने हमे दो वर्षों पढ़ना लिखना इतना सीखा दिया है कि प्राइमरी पास हो सकती हूँ ।
 
स्वाति आश्चर्य में पड़ गयी कि चिन्मय ने इसे कब पढाया वह तो समय से स्कूल जाता समय से घर लौटता स्वाती ने बिना किसी माथा पच्ची के स्वाति और तीखा को बैठाया और चिन्मय कि भावनाओ के अनुरूप सम्मान दिया सौभाग्य पर विशेष ध्यान दे रही थी ।
 
चिन्मय जुझारू के पास गया और उनका हाथ पकड़ कर पिता शोभराज तिवारी के पास ले गया बोला पिता जी अभी बेटे चिन्मय का वाक्य पूरा भी नही हुआ था कि पंडित शोभराज बोले का हो जुझारू कैसन है जुझारू बोले पंडित जी आपकी कृपा है।
 
चिन्मय के आश्चर्य का ठिकाना नही रहा जब उसे यह मालूम हुआ कि जुझारू चाचा को उसके पिता जी पहले से ही जानते है चिन्मय बोला पिता जी यही तो है हमारे खास मेहमान पंडित शोभराज तिवारी ने जुझारू को बेटे कि मंशा के अनुरूप मॉन सम्मान दिया ।
 
उत्सव पूरी रात चलता रहा अतिथियों के आने जाने का सील सिला चलता रहा उत्सव चार बजे भोर तक चलता रहा उत्सव के समापन के बाद जुझारू सौभाग्य और तीखा ने लौटने की इजाज़त स्वाति और पंडित शोभराज से लिया चिन्मय उन्हें कुछ दूर छोड़ने स्वंय गया ।
 
सुबह हो चुकी थी गर्मी के मौसम में सूर्योदय जल्दी हो जाती है दिन चढ़ने लगा था सभी पूरी रात चले उत्सव कि थकान से बोझिल थे अतः जिसको जैसे जगह सुविधा मिली सो गया कोई बारह बजे कोई एक बजे कोई कभी उठता उत्सव के दूसरे दिन पंडित शोभराज के घर का वातावरण कुछ ऐसा ही था चाहे नाते रिश्तेदार हो या घर वाले ।
 
उत्सव के तीसरे दिन से रिश्तदारों के लौटने का तारतम्य शुरू हुआ जो चौथे दिन तक चलता रहा।