महबूब जिन्न, भाग - ०४
लेखक - सोनू समाधिया 'रसिक'
विशेष :- यह कहानी सत्य घटना पर आधारित है।
पिछले अध्याय से आगे.......
तेज बारिश में दोनों एक दूसरे के हाथ पकड़ कर मुस्कुराते हुए एक - दूसरे की आँखों में झाँक रहे थे। कुछ देर में दोनों एक खंडहर बन चुकी वीरान मस्जिद के पास पहुंच गए। शैवाल की वजह से मस्जिद का रंग काला और हरे रंग का सम्मिश्रण था। चारों तरफ़ वियावान जंगल और बरसाती पानी की आवाज के साथ कीड़ों और झींगुरों की आवाजें माहौल को अप्रिय और डरावना बना रहीं थीं। इन्ही की बीच जर्जर और वीरान हो चुकी मस्जिद काटने को दौड़ रही थी।
मस्जिद की दीवारों पर और बाकी के हिस्सों में घास उगी हुई थी, जो किसी भी जहरीले जंतुओं का आशियाना बनी हुई थी। जिसे देख शबीना की रूह काँप उठी। क्योंकि वह इस वक़्त जिन्नातों के बसेरे उजड़ी मस्जिद के पास खड़ी थी।
चारों ओर तरफ़ फैले भयानक मंजर ने शबीना को डरा दिया था।
“ये तुम कहाँ ले आये हमें....?”
“उधर नहीं.... इधर देखिए......!” - शकील ने शबीना के दोनों कंधों पर हाथ रख कर उसे दूसरी दिशा में मोड़ दिया।
शबीना ने सामने देखा कि सामने एक छोटा सा कमरा कई मॉमबत्तियों की रोशनी से नहाया हुआ था। शकील से मिलने के बाद शबीना के अंदाज और डर में बदलाव के साथ डरावने माहौल में भी बदलाव आ चुका था।
अचानक हुए ये अप्रत्याशित बदलाव के बारे में सोचने के लिए शबीना अपने दिमाग में ख्याल तक नहीं ला सकी, जैसे उस पर किसी ने उस पर जादू कर रखा हो। वो केवल शकील के साथ और उसकी बेइंतहा मोहब्बत को इसका कारण समझ रही थी।
दोनों मॉमबत्तियों की रोशनी से रोशन उस घर में पहुंच गए। हालांकि वो घर भी बारिश के पानी से अछूता नहीं रहा था। कई जगह छत से पानी टपकने के साथ कई हिस्सों में घास और शैवाल उग आई थी।
लेकिन घर का एक कमरा घर के बाकी हिस्सों से एकदम से अलग था। शायद शकील ने उसे बहुत ही प्यार और शिद्दत से सजाया था अपनी महबूबा के लिए.... । उस कमरे की खूबसूरती घर के अन्य वीरान पड़े हिस्सों को नजरअंदाज करने को विवश कर रही थी।
उस कमरे में दाखिल होते ही शबीना के दिल को एक बेहद ही शानदार खुश्बू ने अपना दीवाना बना लिया। कमरे में चारों तरफ़ फैली रौनक और रूमानियत ने जल्द ही शबीना को अपना कायल बना लिया।
सम्मोहित शबीना अपने डर और सोचने - समझने की शक्ति खो चुकी थी, उसे दुनिया की परवाह न रही, जैसे वो किसी से डरती नहीं थी, अपने अब्बू की डांट से भी नहीं।
सहसा शबीना खुद को एक अनंत गहराई लिए सुरंगनुमा अंधकार में जाते हुए महसूस किया। कुछ देर के लिए समय जैसे थम सा गया था।
शबीना ने खुद को एक बीरान खंडहर में अकेला पाया। गौर से देखने पर शबीना को याद आया कि जिस वक़्त वह जिस वीरान खंडहर में खड़ी थी, वह कोई दूसरी जगह नहीं, बल्कि वही उजड़ी हुई भूतिया मस्जिद थी।
आसमान में काले बादल तेज हवाओं के साथ दौड़ लगाते हुए प्रतीत हो रहे थे। चारों तरफ़ बस अंधेरा और मनहूसियत फैली हुई थी।
शबीना ये नहीं समझ पा रही थी कि वह जो कुछ भी देख रही थी वह सपना है या फिर हकीकत...?
शबीना ने सुनिश्चित करने के लिए खुद पर हाथ मला तो वह सच में वहां थी, तेज हवाएं उसके बालों को लहरा रही थी।
उस भयावहता से पूर्ण वातावरण में शबीना अकेली थी। शकील कहाँ गया.... और वह अचानक से यहाँ कैसे आ सकती है? ये सवाल उसे परेशान कर रहे थे।
शबीना ने सामने देखा तो वो घर भी देखा जो उस उजड़ी हुई भूतिया मस्जिद का ही एक भाग लग रहा था, जहां कुछ देर पहले रोशनी के साथ रौनक थी।
शबीना ने डरते हुए अपने कदम उस अंधेरे में छिपने की कोशिश कर रहे घर की ओर बढ़ा दिए। शबीना डरते हुए शकील को आवाज लगा रही थी।
शबीना जैसे ही घर के अंदर दाखिल होती है, तो एक तीक्ष्ण दुर्गंध ने उसका हाल बेहाल कर दिया। जहां कुछ क्षण पहले एक मनमोहक खुश्बू फैली हुई थी। शबीना ने अपनी नाक ढंकते हुए घर के पिछले हिस्से से आ रही किसे के कराहने की आवाज का अनुसरण करते हुए घर के पीछे वाले हिस्से में पहुंच गई।
To be Continued...... (कहानी अभी जारी है..)
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©SSR'S Original हॉरर
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