एहिवात - भाग 8 नंदलाल मणि त्रिपाठी द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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एहिवात - भाग 8

चिन्मय अपने गांव बल्लीपुर लौट गया पिता शोभराज तिवारी ने बेटे चिन्मय से पूछा बेटा गांव के जो लड़के तुम्हारे साथ पढ़ते है बहुत पहले स्कूल से घर लौट आए तुम्हे लौटने में क्यो विलंब हुआ?
 
शोभराज तिवारी ने बहुत साधारण प्रश्न किया जो किसी भी पिता द्वारा पूछा जाना स्वभाविक है चिन्मय बोला पिता जी स्कूल के प्रिंसिपल साहब की माता जी का देहावसान होने के कारण स्कूल बारह बजे बंद हो गया और कल भी बंद रहेगा स्कूल से निकलने के बाद बाज़ार के घूमने लगा बाज़ार में सुगा के सुंदर सुंदर बच्चे बिक रहे थे मुझे सुगा अच्छा लगा खरीद लिया शोभराज जी ने सुगा देखा वास्तव में उनका भी मन सुगा को देखकर बहुत प्रफुल्लित हुआ बोले ठीक किया लेकिन सुगा पर ध्यान तुम्हारी माँ और तुम्हें देना पड़ेगा मैं भी ध्यान देन कि कोशिश करूंगा ।
 
चिन्मय को सुगा जुझारू ने पिंजरे के साथ दिया था पिता को खुश देख चिन्मय के मन मे भय का संसय समाप्त हो गया और उसने सुगा दरवाजे के सामने टांग दिया और माँ दमयंती को सुगा दिखाने के लिए घर के अंदर दाखिल हुआ और हाथ पकड़ कर बाहर लाते बोला माँ सुगा बाज़ार से खरीद कर लाये है पिता जी कह रहे है कि सुगा पर तोहे विशेष ध्यान देना पड़ेगा माँ दमयंती ने सुगा देखा बोली बहुत खूबसूरत है हम एके अपने जियरा जैसे रखब माँ की बात सुन कर चिन्मय को अत्यधिक खुशी हुई उसे विल्कुल स्प्ष्ट हो गया कि उसने सुगा ला कर कोई गलती नही किया है घर मे सुगा के आने से खुशी का माहौल था ।
 
चिन्मय ने रात का खाना खाया और सोने चला गया नीद बहुत जल्दी आ गयी लेकिन बहुत जल्दी टूट गयी चिन्मय को लगा जैसे सौभाग्य कह रही हो बाज़ार में हमे छोड़ कर चले आए एतना नाही सोचे कि हम पर का बीतत होई चिन्मय के सामने जैसे सौभाग्य साक्षात बैठी कितने प्रश्न कर रही हो और उनका उत्तर मांग रही हो चिन्मय कि नींद गायब हो चुकी थी वह कभी इस करवट कभी उस करवट बदलता लेकिन जिस भी तरफ देखता उसे सौभाग्य ही दिखती चिन्मय को प्यार प्रेम जैसे किसी भाव का एहसास नही था ना ही उसके कोमल मन मे प्रेम के भाव ही प्रस्फुटित हुये थे उसे सौभाग्य के चेहरे और अंदाज में एक सच्चा मित्र ही दिखता पूरी रात वह सौभाग्य के साए प्रतिबिंब को प्रत्यक्ष अनुभव करता कल्पना लोक में खोया रहा कब सुबह हो गयी पता ही नही चला।
 
सुबह उठा सुगा के पास गया और बोला सौभाग्य से तोहे खरीद कर लाए है तोहार नाव लकी है उसे अब भी यही लग रहा था कि सौभाग्या सामने खड़ी है स्कूल बंद होने के कारण उसे स्कूल जाने के लिए तैयार नही होना था अतः वह बड़े स्थिर एव शांत भाव मे था लेकिन वह जिधर जाता सौभाग्य ही नजर आती सौभाग्य से मुलाकात अगले बाज़ार के दिन ही सम्भव था वह भी तब जब वह अपने बापू के साथ बाज़ार आये।
 
बुधवार का दिन था दो दिन बाद शनिवार को ही बाज़ार लगता है चिन्मय क्या करता वह शनिवार का इंतजार करने लगा लेकिन शनिवार उसे लग रहा जाने कितने दिनों बाद आएगा पल प्रहर सौभाग्य कि खूबसूरत मुलाकात में ही जिये जा रहा था।
 
सौभाग्य बाजार से बापू जुझारू के साथ अपनी बस्ती लौटी शाम ढल चुकी थी अंधेरी रात का पल प्रहर बढ़ता जा रहा था खाना खाने के बाद उसने माई तीखा से कहा माई एक छोकरा आए रहा सुगा खरीदे वदे बहुत झिक झिक कियेस और वोकरे पॉकेट में सुगा भर के दामों ना रहा माई तीखा बोली बिटिया दुनिया है तरह तरह के लोग है केकरे केकरे विषय मे सोची सोची आपन जीव देबू सौभाग्य बोली माई तू ठीके कहत हऊ लेकिन सौभाग्य का मन नही माना उसने माई तीखा से सवाल किया माई चिन्मय के का मतलब होत है तीखा बोली हम का जानी बिटिया हम त लिख लोढ़ा पढ़ पत्थर हई सौभाग्य जाने किस सोच में डूब गई माई तीखा बोली चल बिटिया सोवे ।
 
सौभाग्य माई के साथ एक ही चौकी पर सोने चली गयी तीखा को बहुत जल्दी नीद आ गयी लेकिन सौभाग्य विस्तर पर करवट बदलती रही जब भी वह सोने का प्रयास करती उसकी नजरो के सामने चिन्मय खड़ा सुगा खरीदने के लिए झिक झिक करता नजर आता कभी कभी अर्धनिद्रा में सौभाग्य बड़बड़ाती एका एक तीखा कि नींद टूटी बोली बेटी का बात है का बड़बड़ा रही हो सौभाग्य बोली माई जब हम आँखी बंद करीत हई हमरे सामने चिन्मय क चेहरा घुमत नादान भोली सौभाग्य किसी झल प्रपंच से अनजान माई तीखा बोली होत है बेटी कबो कबो जब केहू से रक झक हो जात है त
बड़ा परेशान करत है जियरा करत है कब दुबारा मिल जाए और जौंन कुछ अधूरा हिसाब रही गवा हो पुर किया जाय सोच जिन भूल जा बजारी में कुछ भइल रहा और चुप मारीक़े सोई जा ।
 
माई तीखा के लाख समझाने के बाद भी सौभाग्य कि स्थिति जस की तस थी वह करवट बदलती आंख बंद करती लेकिन किसी भी स्थिति में चिन्मय उसके मन मस्तिष्क से ओझल होने का नाम नही लेता सुबह हुई सैभाग्य परेशान उधर चिन्मय परेशान किसी तरह दो दिन बीते बहुत मुश्किल से शनिवार का दिन साप्ताहिक बाज़ार का दूसरा बाज़ार चिन्मय को बड़ी बेशब्री से इंतज़ार था उधर जुझारू बाज़ार जाने कि तैयारी कर रहे थे साथ साथ सौभाग्य भी तीखा पति जुझारू से बोली आज के बजारे सौभाग्य ना जाई माई का गुस्सा देख सौभाग्य कि सिट्टी पिट्टी गुम हो गईं जुझारू ने पत्नी तीखा से सवाल किया आखिर कहे ना जाई सौभाग्या तीखा बोली पिछले बज़ारे गयी रही बीच मे जुझारू बोला पिछले का ई त हमरे साथ हमेशा दुनो बज़ारे जाती ह
तीखा बोली हमहू जानत है सैभाग्य तोहरे साथ हर बाज़ारे जात है लेकिन पिछले बाजरे कौनो छोकरा से बक झक कई लिए रही लौटी के आयी है तब से ना सोबती है ठीक से ना खात है भर पेट खाली वोही छोकरा के अनाप शनाप बोलती रहती है जुझारू ने बड़े शांत भाव से पत्नी को समझाते हुए कहा कि परेशान जिन होव हमरे साथ है सौभाग्या हमरी आंखे क पूतरी वोके जिनगी में हमरे जिअत कुछो गड़बड़ ना होय।