प्रफुल्ल कथा - 15 Prafulla Kumar Tripathi द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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प्रफुल्ल कथा - 15


मेरे पिताजी ने बहुत संजो कर सरया तिवारी गांव के समूचे “राम” घराना वंशावली की कलात्मक सूची रखी है |एक बहुत बड़े वंश -वृक्ष को आधार बनाकर जिनमें आवश्यकतानुसार शाखा- प्रशाखाओं की डालियाँ निकली हुई हैं और उन पर यथासम्भव नाम भी अंकित हैं |वे अब अपडेट नहीं हो पा रही हैं ......और शायद यह सम्भव भी नहीं है क्योंकि पहले के गांव सरया तिवारी में बसे राम घराना का कुनबा अब बहुत विशाल हो चला है | उन सभी का उल्लेख कर पाना तो सम्भव नहीं है किन्तु मैं अपने विश्वनाथपुर टोले के वंशजों की यथाशक्ति सूची नीचे दे रहा हूँ जो आगे की पीढ़ियों के लिए हो सकता है मार्गदर्शन का काम करे |
पंडित देवदत्त राम त्रिपाठी ( आदि पुरखा )
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विशेसर राम त्रिपाठी /चंदर राम त्रिपाठी/शंकर राम त्रिपाठी/रामा राम त्रिपाठी
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श्यामा राम त्रिपाठी
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बेनी राम त्रिपाठी

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अयोध्या राम त्रिपाठी
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राम सेवक राम त्रिपाठी
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घिसियावन राम त्रिपाठी
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यदुनाथ राम त्रिपाठी / विन्देश्वरी राम त्रिपाठी / त्रिलोकी नाथ राम त्रिपाठी
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गंगा प्रसाद राम त्रिपाठी /
(नावल्द ) भानु प्रताप राम त्रिपाठी /
नागेश्वर राम त्रिपाठी
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प्रतापादित्य राम त्रिपाठी रूद्र प्रताप राम त्रिपाठी ।
| शिव प्रताप राम /
पद्मनाभ राम त्रिपाठी/
| गिरिजेश राम त्रिपाठी/
प्रभाकर राम त्रिपाठी/
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शत्रुंजय राम त्रिपाठी /
| मृत्युंजय राम त्रिपाठी
(इससे आगे की नहीं दी जा रही है )
सतीश राम त्रिपाठी / प्रफुल्ल राम त्रिपाठी / दिनेश राम त्रिपाठी
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विपुल आदित्य दिव्य आदित्य/ धवल आदित्य /शान्तुल आदित्य
यश आदित्य (युवावस्था में दिवंगत )

आजकल प्राय: कोई भी संस्कार सम्पन्न कराते हुए पंडित जी जब पूर्वजों के नामों को बताने के लिए नौजवानों से कहते हैं तो वे इधर - उधर झाँकने लगते हैं| हमारी पीढ़ी के लिए यह शोक का कारण बन जाता है | यदि आप अपने कुल, गोत्र ,पूर्वजों ,आदि पुरखों का नाम तक नहीं जानते हैं तो यह आपके लिए भी शर्म की बात है |ऐसे में पितृपक्ष में उनको ससम्मान अर्पण तर्पण का तो सवाल ही नहीं बन पाता है ! हालांकि अब तो डिजिटिलाइजेशन का दौर है |आप पल भर में उनकी सूची मोबाइल में डाल सकते हैं |बैठ जाइए अपने गांव या शहर के किसी भी पिछली पीढ़ी के बुज़ुर्ग के पास ..और तैयार कर लीजिये अपने पूर्वजों की सूची |...सच मानिए , वे आपकी इसी श्रद्धामय स्मृति की प्रतीक्षा में हैं !

जनाब दरवेश भारती की इन पंक्तियों को आपके पास तक पहुंचाना चाहूँगा –
“बुज़ुर्ग ही न था ,
वह इक घना दरख्त था ,
कि जिसके साये में ,
पलकर हैं हम जवान हुए !”
इस प्रकार मेरे वंशजों ने परिवार को यथाशक्ति आगे बढ़ाने का दायित्व निभाया। वंशजों में चूँकि पुत्र को ही वंश चलाने का दायित्व है इसलिए पुत्रियों के नाम नहीँ दिए जाते हैँ। मेरे परिवार में मेरे कितने पुरखे अपनी परम्परा इसलिए आगे नहीँ बढ़ा सके क्योंकि उनके पुत्रियां ही रहीं। उनको कोई पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीँ हो सकी। उनके जीवन का अंतिम पहर भी बहुत सुखमय नहीँ बीता क्योंकि जीवित रहते उन्होंने अपना वारिस नियुक्त नहीं किया। ऐसे ही मेरे एक चाचा पंडित रूद्र प्रताप राम त्रिपाठी(उर्फ़ सच्चा )भी थे जिनके सिर्फ़ एक पुत्री थी और वह भी असमय चल बसी थीं।