वो माया है.... - 92 Ashish Kumar Trivedi द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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वो माया है.... - 92



(92)

बद्रीनाथ बाहर से लौटकर आए थे। थके हुए थे। आजकल वह बिना कुछ किए भी थके हुए लगते थे। इस समय तो बाहर से आए थे इसलिए सचमुच थक गए थे। वह आंगन में पड़ी चारपाई पर बैठ गए। उमा ने उन्हें पानी लाकर दिया। उन्होंने पानी पीकर गिलास वापस कर दिया। उनके आने की आहट पाकर किशोरी भी आंगन में आ गई थीं। वह उनके पास ही चारपाई पर बैठ गईं। उन्होंने कहा,
"बद्री.....विशाल से मुलाकात हुई। क्या कहा उसने ?"
उमा भी जानने को उत्सुक थीं कि विशाल ने क्या कहा। बद्रीनाथ कुछ देर चुप रहने के बाद बोले,
"उसने वही कहा जो पहले कहा था। हमसे कह रहा था कि उसमें जीने की कोई इच्छा नहीं है। वह चाहता है कि जो कुछ उसने किया है उसकी सज़ा उसे मिले। वह किसी भी तरह छूटकर बाहर नहीं आना चाहता है।"
आंगन में खामोशी छा गई। उमा जो अक्सर कमज़ोर पड़कर रोने लगती थीं एकदम शांत थीं। किशोरी को विशाल की बात सुनकर धक्का लगा था। उन्होंने कहा,
"बद्री.... तुमने समझाया नहीं उसे। नए वकील साहब ने कहा था ना कि पुष्कर वाले मामले में लंबी सज़ा नहीं होगी। बात कुसुम और मोहित वाले केस की है। अगर यह साबित हो जाए कि वह सब उसने अपनी बीमारी के कारण किया था तो अदालत उसे बहुत कम सज़ा देगी। दो एक साल में वह छूटकर हमारे पास आ जाएगा। उसे समझाना चाहिए था कि ज़िद छोड़े। हम लोगों के बारे में सोचे। हम तीन बूढ़े लोगों का वही तो सहारा है।"
यह कहकर उन्होंने उमा की तरफ देखा। उनके चेहरे पर ना कोई दुख था ना अफसोस। किशोरी को इस बात से और धक्का लगा। उन्होंने उमा से कहा,
"हमने तुमसे कहा था कि बद्री के साथ तुम भी जाओ। तुम्हारी सूरत देखकर पसीज जाता। बेवजह सज़ा पाना चाहता है और हमें भी देना चाहता है।"
उमा ने किशोरी की तरफ देखकर कहा,
"जिज्जी....विशाल ने एकदम सही फैसला लिया है। हम सबके लिए यही अच्छा है कि अपने किए की सज़ा भुगतें। उसके अलावा शांति पाने का कोई चारा नहीं है।"
अपनी बात कहकर उमा रसोई में चली गईं। किशोरी आवाक थीं। उन्होंने उमा के मुंह से ऐसी बात सुनने की कल्पना भी नहीं की थी। उन्होंने बद्रीनाथ से कहा,
"क्या हो गया है उमा को ? इसके भीतर की माया ममता सब सूख गई है। बोल रही है कि विशाल का फैसला सही है। अपनी औलाद को बचाने की इच्छा भी नहीं रही इसमें।"
बद्रीनाथ ने किशोरी की तरफ देखकर कहा,
"जिज्जी.... गलती के लिए सज़ा तो मिलती ही है। उससे बचने की कोशिश करके शांति नहीं मिलती है। हम सबने गलती की। अब सज़ा भुगतना ही ठीक है। विशाल ने हमसे भी ज्यादा गलती की है। इसलिए उसे और अधिक सज़ा मिल रही है।"
यह कहकर बद्रीनाथ भी अपने कमरे में चले गए। किशोरी अपना माथा पकड़ कर बैठी थीं। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि इन दोनों को हो क्या गया है।
बद्रीनाथ अपने कमरे में आकर लेट गए। जगदीश नारायण ने अपने गुरु खालिद मुस्तफा से उन्हें मिलवाया था। सब जानने के बाद खालिद विशाल का केस लेने को तैयार हो गए थे। उन्होंने कहा था कि वह विशाल की बीमारी के आधार पर उसकी पत्नी और बच्चे को ज़हर देने के केस में उसे बरी कराने की कोशिश करेंगे। इसके लिए वह विशाल से मिले भी थे। पर विशाल नहीं चाहता था कि कोई उसका केस लड़े। इसलिए आज बद्रीनाथ विशाल को समझाने गए थे।‌ उन्होंने विशाल को सारी बात अच्छी तरह समझाई थी। विशाल उनकी बात ध्यान से सुनता रहा था। बद्रीनाथ ने जब उससे जवाब मांगा तो उसने कहा,
"पापा.... हमें मालूम है कि उस वक्त हम अपनी मानसिक स्थिति के चलते कुछ सोचने के लायक नहीं थे। लेकिन जबसे पता चला है कि हमारे ही अंदर छिपे एक रूप ने कुसुम और मोहित को ज़हर देकर मार दिया था तबसे एक पल भी चैन से जी नहीं पा रहे हैं। बस यही लगता है कि जो भी रहा हो गुनहगार तो हम ही हैं।"
उसकी बात सुनकर बद्रीनाथ ने उसे समझाना चाहा तो उसने उन्हें रोक दिया। उसने आगे कहा,
"पापा हमारे अंदर जीने की ज़रा भी इच्छा नहीं रह गई है। जो कुछ भी हमने कुसुम और मोहित के साथ किया। अपने भाई पुष्कर के साथ किया उसका हमें बहुत पछतावा है। भले ही हमने किसी भी हालत में वह सब किया हो। अगर हम सज़ा से बचकर बाहर आ भी जाएंगे तो एक बोझ के साथ जिएंगे। ना आप लोगों के किसी काम आ पाएंगे और ना ही अपने मन की शांति तलाश कर पाएंगे। अब तो लगता है कि सज़ा ही दिल को शांत कर सकती है। आप अब परेशान मत होइए। आप अब इस सच को स्वीकार कर लीजिए कि हम घर वापस नहीं आएंगे। मम्मी को भी समझा दीजिएगा।"
अपनी बात कहकर विशाल जाने लगा था। फिर कुछ सोचकर वापस आया। उसने कहा,
"पापा हमारे घर पर जो भी अनहोनी हुई उसके लिए हम लोगों ने माया के श्राप को ज़िम्मेदार ठहराया। असलियत तो यह है पापा कि माया तो बहुत पहले इस दुनिया से चली गई थी। हम उसके श्राप को दोष दे रहे थे क्योंकी हम लोग जानते थे कि दोष हमारा है। हम लोगों ने उसके साथ अन्याय किया। हमारा अपराधबोध हमें यह मानने के लिए मजबूर कर रहा था कि जो कुछ हो रहा है उसके पीछे माया है। यहाँ हमारी काउंसिलिंग के लिए डॉ. सतीश आते हैं। उन्होंने हमें सब समझाया है। हमें सब समझ आ भी गया है। हमने डॉ. सतीश से बात की थी। आप, मम्मी और बुआ जी भी उनसे मिल लें। वह सब सही तरह से समझा देंगे। डॉ. सतीश भवानीगंज के सरकारी अस्पताल में मिल जाएंगे।"
विशाल कुछ रुककर बोला,
"हमारा फैसला अटल है पापा‌। हमें किसी वकील की ज़रूरत नहीं है। हम अपने सारे गुनाह स्वीकार कर लेंगे।"
अपनी बात कहकर विशाल बिना उनकी तरफ देखे चला गया था।

विशाल से मिलने के बाद से ही बद्रीनाथ उसकी कही बात पर विचार कर रहे थे। उन्हें भी लगा था कि अब अपने किए की सज़ा पा लेना ही उन लोगों के लिए सही होगा। विशाल कानून की सज़ा भुगतेगा। वह और उमा घर पर रहकर अपने हिस्से की सज़ा भुगतेंगे। रास्ते में वह सोच रहे थे कि पता नहीं उमा की इस विषय में क्या प्रतिक्रिया होगी। पर उमा ने वही कहा जो वह सोच रहे थे। उन्हें भी आश्चर्य हुआ था कि उमा इस तरह की बात कैसे कर रही हैं। पर तसल्ली थी कि उनकी और उमा की सोच एक जैसी है।
बद्रीनाथ अपने विचारों में खोए हुए थे तभी उमा की आवाज़ सुनाई पड़ी,
"चलकर खाना खा लीजिए....."
बद्रीनाथ उठकर बैठ गए। उन्होंने दरवाज़े पर खड़ी उमा को पास बुलाया। अपनी बगल में बैठाकर बोले,
"उमा.... तुमको विशाल को सज़ा मिलने का दुख नहीं होगा। तुम कह रही थी कि विशाल का फैसला सही है।"
उमा ने उनकी तरफ देखकर कहा,
"आप सोच रहे होंगे कि माँ होने के बावजूद हम ऐसी बात कैसे कह गए ? हम माँ हैं इसलिए अपनी औलाद के मन को समझ गए। समझ रहे हैं कि जो गलतियां उसने की हैं उसके लिए कितना पछता रहा होगा। गलती तो हमसे भी हुई। पहले उसके मन को समझ नहीं पाए। समझे भी तो अपनी आदत के अनुसार चुप रहे। उसका इतना भयंकर परिणाम भोगना पड़ा। इसलिए इस बार गलती नहीं कर रहे हैं। हम भी जानते हैं कि विशाल के लिए अपने गुनाहों के बोझ को ढो पाना आसान नहीं होगा। कई बार खुद को सज़ा देकर भी तसल्ली मिलती है। विशाल अपने किए की सज़ा पाकर ही शांत हो पाएगा। सज़ा उसे ही नहीं हमें भी मिलेगी। हमारी भी शांति उसी में है।"
उमा उठकर खड़ी हो गईं। चलने से पहले बोलीं,
"हम थाली लगा रहे हैं‌। आप आकर खाना खा लीजिए।"
उमा कमरे से निकल गईं। बद्रीनाथ सोच रहे थे कि इतने सालों के वैवाहिक जीवन में उन्होंने कभी उमा को समझने की कोशिश ही नहीं की। उन्हें हमेशा ऐसा ही लगा कि वह घर ग्रहस्ती में रमी हुई एक साधारण औरत हैं। जो छोटी छोटी बातों पर भावुक हो जाती हैं। लेकिन वह इतने गंभीर मुद्दे पर इतनी स्पष्टता से सोच पाएंगी उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था। उन्हें लग रहा था कि वह केवल माया के ही गुनहगार नहीं हैं। अपनी पत्नी की अनदेखी करने के भी गुनहगार हैं।

दिशा किचन में थी। उसे अपने फोन की घंटी सुनाई दी। उसे याद आया कि फोन हॉल में रखा है। दूध बस उबलने वाला था। इसलिए वह उसे छोड़कर जा नहीं सकती थी। वह दूध के खौल जाने का इंतज़ार करने लगी। दूध खौल जाने के बाद उसने नॉब बंद की। वह हॉल में आई। फोन कट चुका था। उसने फोन उठाकर चेक किया। एक मुस्कान उसके चेहरे पर खिल गई। उसने कॉल बैक किया। फोन उठते ही बोली,
"अनिर्बान....आज काकू ने जल्दी छुट्टी दे दी।"
उधर से मिले जवाब को सुनकर वह खिलखिला कर हंस दी। उसके बाद वह अनिर्बान से उसी तरह हंस हंसकर बातें करने लगी।
वह एक हफ्ते की छुट्टी लेकर गाज़ियाबाद गई थी। उसी बीच अनिर्बान का बर्थडे पड़ा। अनिर्बान ने उससे गुज़ारिश की कि वह उसके साथ डिनर करने चले। दिशा ने उसकी बात मान ली। उस शाम दिशा ने पहली बार अनिर्बान के एक नए रूप को महसूस किया था। उससे पहले दोनों एक दूसरे को सिर्फ जानते थे। जब भी दिशा शांतनु के घर जाती थी तब उनके भांजे अनिर्बान से उसकी बातचीत होती थी। पर बात कभी दोस्ती तक नहीं पहुँची थी। उस शाम डिनर के बाद उनके बीच दोस्ती की शुरुआत हुई। दिल्ली आने के बाद भी उसके और अनिर्बान के बीच बातचीत का सिलसिला जारी रहा। दो दिन पहले वह एकबार फिर गाज़ियाबाद जाकर लौटी थी। उन दो दिनों में उन लोगों ने एकसाथ बहुत वक्त बिताया था।
बात खत्म करने के बाद दिशा ने फोन मेज़ पर रख दिया। जाकर बालकनी में खड़ी हो गई। वह बहुत खुश थी।