प्रेम दीवानी आत्मा - भाग 16 - अंतिम भाग Rakesh Rakesh द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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प्रेम दीवानी आत्मा - भाग 16 - अंतिम भाग

जब विक्रम के आने की वजह से सिद्धार्थ निराश हो जाता है तो अंकिता सिद्धार्थ को ज्यादा दुखी करने की वजह उसे बताती है कि "तुम विक्रम को इतना घटिया इंसान मत समझो मैं जब तुमसे दूर होकर विक्रम से बातें कर रही थी, तो मैंने उसे बताया कि मैंने सिद्धार्थ के नाम का सिंदूर अपनी मांग में भर लिया है, मुझे भी सिद्धार्थ से सच्चा प्रेम हो गया है, अब मैं सिद्धार्थ से ही शादी करूंगी, यह सुनने के बाद भी विक्रम खुशी से हम दोनों को लेने रेलवे स्टेशन आ रहा है।"

लेकिन भोली भाली खूबसूरत अंकिता को यह नहीं पता था कि विक्रम को अपनी प्रेम कहानी सुना कर उसने बहुत बड़ी गलती कर दी है क्योंकि उसकी यह बात सुनकर विक्रम को सिद्धार्थ से हद से ज्यादा नफरत हो गई है और इसलिए उसने सिद्धार्थ की हत्या करके उसको अपना बनाने कि अपने मन में ठान ली है।"

अंकिता के मुंह से जिन शब्दों को सुनने के लिए सिद्धार्थ कब से तड़प रहा था और वह शब्द उससे पहले विक्रम ने सुने।

अंकिता खुद नहीं समझ पा रही थी कि मैंने ऐसा क्या कह दिया जिससे सिद्धार्थ खुशी से पागल हुआ जा रहा है।

और सिद्धार्थ को ऐसा लग रहा था, कि अंकिता के मिलने की बाद उसे अब ईश्वर से कुछ भी मांगने की जरूरत नहीं है, उसे दुनिया की सारी खुशियां मिल गई है।

विक्रम के साथ उसकी जीप में चार-पांच अपराधी किस्म के युवकों को देखकर अंकिता सिद्धार्थ दोनों को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता है।

विक्रम सिद्धार्थ की तरफ नफरत की नजरों से देखते हुए अंकिता से कहता है "यह मेरे दोस्त है, यही रेलवे स्टेशन के पास मिल गए थे, यह सब भी हमारे साथ ही चलेंगे इनका घर भी मेरे घर के आस-पास ही है।"

इतने सारे लोगों एक साथ जीप में कैसे बैठेंगे।" अंकिता कहती है

"इन लोगों के साथ सिद्धार्थ चला जाएगा, तुम मेरे साथ बाइक पर चलना मैंने फोन किया है अभी थोड़ी देर में ही मेरा एक दोस्त मेरी बाइक लेकर यहां पहुंचने ही वाला है।" विक्रम कहता है

इतने में ही एक और खतरनाक अपराधी किस्म का युवक विक्रम की बाइक लेकर वहां पहुंच जाता है।

सिद्धार्थ को विक्रम उन अपराधी गुंडो के साथ जीप में बिठाकर अंकिता को अपनी बाइक पर बिठा लेता है।

विक्रम अंकिता को अपनी बाइक पर बिठाकर बाइक पैट्रोल पंप की तरफ यह कहकर मोड़ देता है कि "बाइक में पेट्रोल काम है, पहले पेट्रोल भरवा लेते हैं।

और उसी समय अंकिता की आंखों के सामने विक्रम के अपराधी दोस्त सिद्धार्थ की हत्या करने के लिए उसे नहर के बियाबान जंगल की तरफ ले जाते हैं।

अंकिता को कुछ अच्छा महसूस नहीं हो रहा था, इसलिए वह विक्रम से पूछती है "यह लोग किस रास्ते से जा रहे हैं, वहां तो नदी के पास घना जंगल है।"

"इनमें से कुछ लड़कों का घर उसी रास्ते पर पड़ता है, तुम चिंता मत करो तुम्हारा सिद्धार्थ सही सलामत अपने घर पहुंच जाएगा।" विक्रम अपने गुस्से पर काबू रखकर कहता है

अंकिता के घर पहुंचने के बाद सिद्धार्थ जब बहुत आदी रात तक घर नहीं पहुंचता और अंकिता को छोड़कर विक्रम भी अपने घर चला जाता है, तब अंकिता विक्रम को फोन करके बोलता है कि "अपने दोस्तों से पता करो वह कहां है, सिद्धार्थ आधी रात हो गई है, सिद्धार्थ अब तक घर नहीं पहुंचा है।"

"अच्छा सिद्धार्थ अब तक घर नहीं पहुंचा है, ठीक है मैं अभी थोड़ी देर में पता करके फोन करता हूं।" और फिर कुछ देर बाद विक्रम फोन करके कहता है कि "अंकिता वह सब तो कह रहे हैं कि उन्होंने विक्रम को तुम्हारी कॉलोनी के चौराहे पर अपनी जीप से सही सलामत उतार दिया था।"

विक्रम की यह बात सुनने के बाद अंकिता और सिद्धार्थ के परिवार के पास सिद्धार्थ का इंतजार करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता भी नहीं था क्योंकि गुमशुदा की कंप्लेंट भी पुलिस 24 घंटे के बाद लिखती है।

और जब सुबह तक सिद्धार्थ घर नहीं पहुंचता है, तो अंकिता सिद्धार्थ के मां बाबू जी के साथ सिद्धार्थ की गुमशुदा की कंप्लेंट लिखवाने पुलिस स्टेशन जाती है।

विक्रम ने पहले ही इतना रुपया कुछ भ्रष्ट पुलिस वालों के पास पहुंचा चुका था कि इसलिए वह सिद्धार्थ को ढूंढने की कोई भी कार्यवाही नहीं करते हैं।

अंकिता और सिद्धार्थ के परिवार वालों को यह भी चिंता थी कि आज दिवाली की अमावस्या की रात है। रात को नंदू की भटकती बेचैन आत्मा की शांति पूजा भी करनी है। सिद्धार्थ के बिना आत्म शांति की पूजा संपूर्ण कैसे होगी।

पुलिस वालों विक्रम के उलझने वाले जवानों से अंकिता और सिद्धार्थ के परिवार वाले पहले ही दुखी परेशान थे, उनके साथ अंकिता की मां पूरे मोहल्ले में यह अफवाह फैला कर अंकिता और सिद्धार्थ के परिवार वालों को और दुखी कर देती ह कि "सिद्धार्थ और उसका परिवार नहीं चाहता कि नंदू का भूत उनके घर से जाए, क्योंकि नंदू के भूत का इस्तेमाल वह लोग लोगों से पैसा ठगने और अपने अन्य काम बनवाने के लिए करना चाहते हैं, इसलिए सिद्धार्थ को उसके माता-पिता ने कुछ दिनों के लिए यहां से भगा दिया है जब बाद ठंडी हो जाएगी वह खुद वापस आ जाएगा और अपने भाई के भूत से खूब फायदा उठाएंगे और भोले भाले लोगों से लूटपाट करके खूब धन कमाएंगे।"

अंकिता की मां की यह बात सुनकर पूरा मोहल्ला भड़क जाता है और सीमा से कहता है "गुरु जी को बुलाकर किसी भी हालत में आज रात को 12:00 बजे नंदू की आत्मा की शांति की पूजा होनी चाहिए।"

और उसी समय से सीमा अंकिता की मां उसका तांत्रिक बाबा मोहल्ले वालों के साथ मिलकर आत्मा शांति की पूजा की तैयारी शुरू कर देते है।

अंकिता को इस बात का अफसोस भी हो रहा था कि दिवाली सिद्धार्थ के बिना मनानी पड़ेगी और मंत्रों के उच्चारण की शक्ति में फंसने की वजह से नंदू की आत्मा भी सिद्धार्थ का पता नहीं लग पा रही है।

और जब पूजा शुरू होने से पहले तक सिद्धार्थ अपने घर नहीं पहुंचता तो अंकिता को अंदर से एहसास होने लगता है कि सिद्धार्थ के साथ कुछ बहुत ही बुरा हो गया है।

दिवाली की अमावस्या की रात गुरु जी सिद्धार्थ की जगह अंकिता के शरीर में नंदू की आत्मा को प्रवेश करवाते हैं, क्योंकि सिद्धार्थ की पत्नी समझ कर नंदू की आत्मा अंकिता को अपने परिवार का ही सदस्य समझ रही थी।

गुरु जी आत्मा शांति की पूजा पूरे मोहल्ले की निगरानी में करते हैं, नंदू की आत्मा गुरु जी से कहती है कि "मुझे यहां से जाने से पहले एक बार अपने परिवार और सीमा से मिलना है।

और नंदू की आत्मा अंकिता के शरीर से निकलकर सबके सामने प्रकट हो जाती है।

नंदू की आत्मा अपने परिवार से सीमा अंकिता से माफी मांग कर अदृश्य हो जाती है, लेकिन सिद्धार्थ के विषय में कुछ भी नहीं कहती है क्योंकि नंदू की आत्मा अपने परिवार अंकिता को यह बात बात कर दुख नहीं देना चाहती थी कि सिद्धार्थ की मौत हो चुकी है।

नंदू की आत्मा को शांति मिलने के बाद भी सिद्धार्थ के परिवार और अंकिता को शांति नहीं मिलती है, क्योंकि नंदू की आत्मा शांति की पूजा को किए हुए एक महीना बीत जाता है और सिद्धार्थ का कहीं भी अता-पता नहीं मिलता है।

और सिद्धार्थ को ढूंढते इंतजार करते हुए आठ वर्ष बीत जाते हैं, अंकिता सिद्धार्थ के इंतजार में शादी नहीं करती है, लेकिन सिद्धार्थ का इंतजार करते-करते सिद्धार्थ के माता-पिता अपनी बेटी मंजू की शादी कर देते हैं।

और सिद्धार्थ की बहन मंजू के जो बेटा पैदा होता है वह बिल्कुल सिद्धार्थ की तरह ही दिखता था, सिद्धार्थ की तरह ही बातें करता था और कुछ बातें ऐसी कर देता था, जो कि सिद्धार्थ अंकिता के अलावा किसी को नहीं पता थी।

धीरे-धीरे वह रवि नाम का मंजू का बेटा आठ वर्ष का हो जाता है और एक दिन वह मंजू से कहता है "मैं ही तेरा भैया सिद्धार्थ हूं, मुझे अंकिता मां बाबू जी को कुछ बताना है जल्दी मुझे उनके पास लेकर चलो।"

मंजू दौड़ी दौड़ी अपने बेटे रवि को लेकर मां बाबू जी और अंकिता के पास अपने मायके पहुंचती है।

और आठ साल का रवि सिद्धार्थ के मां बाबू जी के पैर छूकर सिद्धार्थ के मां बाबूजी के गले लग जाता है और फिर अंकिता से बताता है "उस रात विक्रम रेलवे स्टेशन से तुम्हें अपने साथ बाइक पर बिठाकर ले गया था और उसने मुझे अपने किराए के गुंडो के साथ जीप में बिठा दिया था, तो उसके गुंडो ने उसी रात नदी के किनारे वाले घने जंगल में मेरी चाकू तलवारों से हत्या कर दी थी और हत्या करके मेरी लाश को उसी जगह गड्ढा खोदकर दबा दिया था।"

मंजू के बेटे रवि की यह बात सुनकर अंकिता और सिद्धार्थ के माता-पिता बहन मंजू के आठ वर्ष के बेटे के कहने से उसी जगह पहुंच कर मजदूरों से खुदाई करवाते हैं, जो जगह आठ वर्ष के रवि ने उन्हें बताई थी।

तो वह खुदाई के बाद हड्डियों का एक ढांचा निकलता है, उस हड्डियों के ढांचे के हाथ पर सिद्धार्थ की ही वाटरप्रूफ महंगी घड़ी बंधी हुई थी।

यह देखकर सिद्धार्थ की मां अंकिता पटके खा खाकर रोने लगती है।

जब आठ वर्ष का रवि उन्हें समझाते हुए कहता है "तुम दोनों क्यों रो रही हो जब मैं सिद्धार्थ तुम्हारे सामने जिंदा खड़ा हुआ हूं।"

रवि की यह बात सुनकर अंकिता और सिद्धार्थ के पूरे परिवार को बहुत तसल्ली मिलती है।

बहुत ज्यादा जिद करने के बाद भी जब अंकिता ने विक्रम से शादी करने से साफ इनकार कर दिया था, तो वह अंकिता के ना मिलने के गम में पहले से ज्यादा दिन रात शराब पीने लगा था और ज्यादा शराब पीने की वजह से उसकी मौत हो गई थी।

उसके बदमाश दोस्तों को ईमानदार पुलिस वालों ने एनकाउंटर में मार गिराया था और कुछ को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया था।

सिद्धार्थ की मौत के जिम्मेदार सभी लोग मारे जा चुके थे या अब जेल में अपनी फांसी का इंतजार कर रहे थे।

अब अंकिता सिद्धार्थ का परिवार किसको कानून से सजा दिलवाते इसलिए वह सब अपने घर आ जाते हैं।

मंजू और उसका पति मिलकर फैसला लेते हैं कि हम दोनों अपने बेटे रवि को सिद्धार्थ के माता-पिता को गोद दे देंगे।

लेकिन उस समय दोनों परिवारों में सन्नाटा छा जाता है, जब आठ वर्ष का रवि अंकिता के माता-पिता और अपने माता-पिता यानी कि सिद्धार्थ के माता-पिता के सामने कहता है "पहले अंकिता मुझसे दो वर्ष बड़ी थी और अब पूरे 30 वर्ष बड़ी है, मैं दुनिया में दोबारा अपने बुजुर्ग माता-पिता और अंकिता से प्रेम विवाह करने आया हूं, इसलिए मैं 18 वर्ष की आयु का होकर अंकिता से ही शादी करूंगा।"

और जब अंकिता अकेले में रवि से शादी करने की मना करती है और कहती है "बड़े होकर किसी जवान खूबसूरत लड़की से शादी कर लेना।"

तो रवि कहता है "मैंने तुम्हारे शरीर से नहीं तुम्हारी आत्मा से प्रेम किया है, मेरी आत्मा तुम्हारे प्रेम में दीवानी है।" और 18 वर्ष का होते ही रवि अंकिता से शादी कर लेता है।