प्रेम दीवानी आत्मा - भाग 6 Rakesh Rakesh द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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प्रेम दीवानी आत्मा - भाग 6

विक्रम और सीमा जब अंकिता के कमरे में आपस में बातें करते हुए पहुंचते हैं कि अंकिता सिद्धार्थ की शादी का नाटक कल दोपहर से शुरू होगा, तो अंकिता विक्रम को अपनी नाराजगी दिखाते हुए उससे कहती है "आपको क्या जरूरत थी, सबके सामने हीरो बनने की मैं अबला नारी नहीं हूं, बिना शादी किए भी मैं अपना जीवन सुकून शांति ऐशो आराम से जी सकती हूं।"

तो फिर अपमान होने के बाद विक्रम कुछ वक्त वहां रुक कर अपने घर चला जाता है।

विक्रम के जाने के बाद सीमा अंकिता को बताती है कि "पंडित जी कह रहे हैं, नकली शादी में नकली फैरे भी लेने पड़ेंगे, क्योंकि बदनसीब नंदू की आत्मा को लगना चाहिए सच में तुम्हारी और अंकिता की शादी हो रही है।"

अंकिता सीमा की बात बीच में काटकर पूछती है? "आपने क्या कमी देखकर नंदू के प्यार को ठुकरा दिया था।"

"उस समय में विशाल के प्यार में पागल थी, अगर मुझे यकीन हो जाता कि नंदू मेरे लिए अपनी जान भी दे सकता है, तो मैं उसे कभी ऐसा नहीं करने देती।" सीमा कहती है

और फिर सीमा मुस्कुरा कर कहती है "चाहे मुझे तेरी शादी नंदू के साथ करनी पड़ती है, क्योंकि नंदू जैसा सच्चा प्यार करने वाला आशिक मिलना मुश्किल होता है।"

अपनी बहन की यह बात सुनकर अंकिता सोचती है, "सिद्धार्थ को देखकर भी ऐसा ही महसूस होता है कि वह भी प्यार में जान देने की हिम्मत रखता है।"

और उसी समय एक हवा का झोंका सीमा के गलों के पास से ऐसे गुजरता है, जैसे उसके गाल चूम कर गुजरा हो, सीमा अपने गालों पर चुंबन महसूस करके डर जाती है, क्योंकि वह समझ जाती है कि नंदू की तारीफ करने की वजह से नंदू की आत्मा मुझे चूम कर गई है, इस घटना के बाद उसे नंदू की बेचैन भटकती आत्मा के लिए डर दहशत के साथ बहुत दुख भी महसूस होने लगता है, क्योंकि नंदू की इस दुर्दशा के लिए नंदू के साथ-साथ वह बहुत हद तक अपने को भी जिम्मेदार मानती थी, लेकिन कायदे से देखा जाए तो भरी जवानी में अपनी मौत के लिए नंदू ही पूरी तरह जिम्मेदार था।

अचानक यूं अंकिता सिद्धार्थ की शादी होने की बात सिद्धार्थ की मां को अपने पति यानी कि सिद्धार्थ के पिता की इस बात पर बिल्कुल भी यकीन नहीं हो रहा था कि नंदू की मौत का अपने को दोषी मानकर अंकिता के माता-पिता सीमा ने पश्चाताप करने के लिए सिद्धार्थ अंकिता की शादी की है और अंकिता सिद्धार्थ भी एक दूसरे से पहले से प्यार करते हैं, किंतु सिद्धार्थ की मां को अंकिता जैसी बहू चाहिए थी, इसलिए वह सारी सच्चाई जाने बिना बहुत खुश थी।

सिद्धार्थ की मां को खुश देखकर अंकिता और ज्यादा दुखी हो रही थी, क्योंकि वह सोच रही थी कि "अब उसे सिद्धार्थ के साथ-साथ उसकी मां का भी दिल दुखाना पड़ेगा।"

और समस्या तो तब जटिल हो जाती है, जब सिद्धार्थ के शरीर में घुसकर नंदू की बेचैन भटकती आत्मा कहती है "सिद्धार्थ के शरीर में घुसकर मैंने अंकिता से शादी की है, इसलिए अंकिता को उसी श्मशान घाट में जहां मेरा अंतिम संस्कार हुआ था, रात को 12:00 बजे के बाद नई नवेली दुल्हन के रूप में सजा धजा कर भेज देना, क्योंकि अंकिता और मेरी आज सुहागरात है।

इस घटना के बाद सिद्धार्थ की मां को नंदू की बेचैन भटकती आत्मा और अंकिता सिद्धार्थ की नकली शादी के बारे में सिद्धार्थ के पिता को खुद पूरी सच्चाई बतानी पड़ती है।

यह सब जानने के बाद सिद्धार्थ की मां गुस्से में सिद्धार्थ के शरीर में घुसे अपने तीनों बच्चों में सबसे जायदा प्यारे बेटे नंदू की बेचैन भटकती आत्मा से कहती है 'मैं तेरी एक भी बात किसी को पूरी नहीं करने दूंगी, जब तूने हमारी परवाह नहीं की तो हम तेरी परवाह क्यों करें।"और उसी समय नंदू की आत्मा अपने भाई सिद्धार्थ के शरीर को छोड़कर जाने के लिए तैयार हो जाती है क्योंकि दोनों मां बेटे एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे, इसलिए नंदू की आत्मा सिद्धार्थ का शरीर छोड़कर जाने के लिए तैयार हो जाती है, लेकिन सिद्धार्थ का शरीर छोड़ने से पहले नंदू की आत्मा कह कर जाती है कि "अंकिता से मैंने शादी की है, इसलिए मैं अपनी पत्नी अंकिता को लेने दोबारा जरूर आऊंगा।"

नंदू की आत्मा अपने शरीर से बाहर निकालने के बाद सिद्धार्थ सबके चेहरे की उड़ी रंगत को देखकर मां से पूछता है "क्या नंदू भैया आए थे और क्या कह रहे थे।"

और फिर अंकिता को ज्यादा डरा हुआ देखकर अंकिता के पास जाकर बैठ जाता है, अंकिता धीरे से कहती है "सीमा दीदी को फोन लगाकर मुझे दो।" सिद्धार्थ से पहले ही सिद्धार्थ की बहन मंजू अंकिता से सीमा का फोन नंबर पूछ कर सीमा को फोन करती है।

सिद्धार्थ को तो यह बात पहले ही समझ में आ गई थी कि नंदू की आत्मा मेरे शरीर में घुसते ही मां को पिता जी ने सब कुछ बता दिया होगा, लेकिन वह यह नहीं समझ पा रहा था कि नंदू भैया की बेचैन और असंतुष्ट आत्मा ने ऐसा क्या किया या क्या कहा जिससे सबके चेहरे पर इतनी उदासी चिंता छा गई है और जब अंकिता अपनी आंखों से आंसू पहुंचते हुए अपनी बहन सीमा को बताती है कि नंदू की बेचैन भटकती आत्मा ने क्या कहा अपनी मां के कहने से जाने से पहले वह दोबारा आकर मुझे अपने साथ ले जाने की बोलकर गई है।

सीमा अंकिता से फोन पर सारी बात सुनकर कहती है 'अच्छा हुआ तूने समय रहते मुझे फोन कर दिया, मैं अपनी ससुराल के लिए बस थोड़ी देर में निकलने ही वाली थी, मैं अभी मां पिता जी के साथ सिद्धार्थ के घर आ कर गुरु जी को फोन करके सारी बात बताती हूं।"

अंकिता सीमा की फोन पर बातचीत सुनकर सिद्धार्थ को अंकिता के लिए बहुत दुख होता है कि मेरी वजह से अंकिता किस मुसीबत में फंस गई है, अगर मैं अपने दिल पर नियंत्रण कर लेता और अंकिता से दूरी बना लेता तो शायद नंदू भैया की आत्मा इतनी ज्यादा बेचैन नहीं होती।

यह सोचते सोचते सिद्धार्थ अंकिता को हिम्मत सहारा देने के लिए अंकिता के हाथ पर अपना हाथ रख देता है। अपने लिए सिद्धार्थ की यह हमदर्दी अंकिता को बहुत अच्छी लगती है।

अपने माता-पिता के साथ सीमा के सिद्धार्थ के घर में घुसते ही सिद्धार्थ के रोंगटे खड़े होने लगते हैं, उसे ऐसा महसूस होता है कि नंदू की आत्मा उसके शरीर में घुस रही है।