बड़े भैया नंदू का प्रेम पत्र पढ़ कर सिद्धार्थ सोचता है, जब सीमा नंदू भैया को पसंद नहीं करती थी तो नंदू भैया ने उसे भूलने की कोशिश क्यों नहीं की।
फिर सोचता है लेकिन मुझे तो ऐसा लगता है कि अंकिता भी मुझसे प्यार करती है, मैंने तो उसे अपनी बाहों में जकड़ा लिया था, फिर भी उसने मुझे कुछ नहीं कहा, बल्कि मेरे कहने से अपनी छत पर और आ गई थी और कभी-कभी मुझे पक्का यकीन हो जाता है कि अंकिता भी मुझसे प्यार करती है और अंकित जैसी समझदार खूबसूरत लड़की मिलना मुश्किल है, इसलिए अंकिता से दूरी बनाना बेवकूफी होगी और यह बात सोचते सोचते सिद्धार्थ सो जाता है।
लेकिन अपनेेे घर अंकिता को भी नींद नहीं आ रही थी, क्योंकि उसे कुछ दिनों से सिद्धार्थ का रूप बदला बदला सा लग रहा था और जब सिद्धार्थ ने जिस तरह से उसे अपनी बाहों में भरा था, जैसे एक प्रेमी प्रेमिका को अपनी बाहों में भरता है, तो उसे यह भी समझ आ रहा था कि सिद्धार्थ ने उसे छत पर अपने प्यार का इजहार करने के लिए बुलाया था, किंतु अंकिता किसी भी ऐसे लड़के से प्रेम नहीं करना चाहती थी, जो उसके पीछे अपने प्राण देने के लिए तैयार रहे, ऐसे लड़कों पर उसे प्यार नहीं बल्कि दया और तरस आता था, क्योंकि समझदार सुलझी हुई अंकिता को पता था की शादी से पहले नहीं तो शादी के बाद कभी झगड़ा हुआ और तलाक देने की नौबत आ गई, तो सिद्धार्थ उसके लिए अपनी जान भी दे देगा, इसलिए ऐसे प्रेम के खौफ की वजह से अंकिता सिद्धार्थ से अपनी नजदीकियां खत्म करने का कोई अच्छा बेहतरीन रास्ता सोचते सोचते सो जाती है।
और सुबह उठते ही सिद्धार्थ को अंकिता केेे साथ प्रेम करने से खौफ होने लगता है, उसे अपने मां-बाप बहन को देखकर उन पर बहुत ज्यादा तरस आता है, क्योंकि वह उस प्रेम की खौफनाक डगर पर चल रहा था, जिस पर चलकर उसके बड़े भाई नंदू ने पूरे परिवार को अपनी जान देकर जीवन भर का दुख दिया था, उसे अपने पर और अपनी बेवकूफी पर जो उसने रात को अंकिता को अपनी बाहों में भर कर और उसे छत पर बुलाकर कि थी, पर बहुत गुस्सा आता है, और उसी समय उसे अपने घर में अंकिता कि आवाज सुनाई देती है।
अंकिता उसकी बड़ी बहन मंजू से मिलने के बहाने सिद्धार्थ को बताने आई थी कि वह अपनी बहन सीमा की ससुराल इस बार दिवाली मनाने जा रही है और सीमा की ससुराल के पास ही विक्रम की बड़ी बहन ने नई कोठी खरीदी है। अंकिता उसको दोनों बातों से गहरी चोट पहुंचना चाहिती थी, पहली दिवाली उसे उसके बिना माननी पड़ेगी, दूसरा उसे पता था कि विक्रम को वह बिल्कुल भी पसंद नहीं करता था।
अंकिता की सारी बात सिद्धार्थ अपने कमरे में बैठे-बैठे चुपचाप सुनकर सोचता है "अंकिता ही नहीं दुनिया की सारी लड़कियों को अपने दीवानों कि तड़पा तड़पा कर जान लेने में आनंद आता है, इसलिए अंकिता अपनी बहन सीमा की ससुराल में दिवाली मनाने जा रही है, क्योंकि अंकिता को अंदाजा हो गया है कि मैं धीरे-धीरे उसकी तरफ आकर्षित हो रहा हूं, इसलिए वह मेरे सबसे पसंद के त्यौहार दिवाली पर मुझसे दूर जाकर मुझे तड़पाने की सोच रही है।
उधर अंकिता सिद्धार्थ के कमरे के बाहर खड़े होकर मंजू से बातें करते हुए बार-बार सिद्धार्थ के कमरे के अंदर झांक कर देख रही थी कि सिद्धार्थ तक मेरी आवाज पहुंच रही है या नहीं चंचल खूबसूरत समझदार अंकिता ऐसा इसलिए कर रही थी कि सिद्धार्थ उसके प्रेम जाल में न फंसे।
और जब सिद्धार्थ की बहन मंजू सिद्धार्थ को आवाज लगाकर कहती है "सिद्धार्थ अंकिता से मिल लो, अंकिता अपनी बड़ी बहन सीमा की ससुराल जा रहा ही है और दिवाली के बाद ही आएगी।"
तो मजबूरी में सिद्धार्थ को कमरे से बाहर आना पड़ता है, सिद्धार्थ के उसकी यह बात सुनते ही अंकिता सिद्धार्थ की तरफ मुस्कुरा कर सिद्धार्थ से कुछ भी कहे बिना वहां से चली जाती है, दिवाली अपनी बहन की ससुराल में मनाने के लिए।
और उससे कुछ भी कहे बिना जाने की वजह से सिद्धार्थ को अंकिता पर बहुत गुस्सा आता है और वह धीरे से बुड़बुड़ा कर बोलता है कि "अंकिता अपनी बहन सीमा जैसे ही घटिया चरित्र की लड़की है।" तभी अचानक सिद्धार्थ के कान के पास आकर एक हवा का झोंका कह कर जाता है "सीमा को घटिया चरित्र की लड़की आज के बाद कभी मत कहना।" बहुत अधिक तेज भारी डरावनी आवाज सुनकर सिद्धार्थ चक्कर खाकर जमीन पर गिर कर बेहोश हो जाता है, उसे ऐसा महसूस होता जैसे कि कोई लड़ाकू विमान उसके कान के पास से गुजर गया हो।
और जब सिद्धार्थ को होश आता है, तो वह मां पिता जी बड़ी बहन मंजू और अंकिता अंकिता के माता-पिता आस पड़ोसियों के लोगों से घिरा हुआ था।
कुछ लोग कह रहे थे, सिद्धार्थ को मिर्गी का दौरा पड़ा है और कुछ लोग कह रहे थे, सिद्धार्थ पर किसी भूत प्रेत का साया है, इसलिए सिद्धार्थ के पिता सिद्धार्थ को डॉक्टर के पास लेकर जाते हैं और फिर डॉक्टर की सलाह पर पहले मनोचिकित्सक के पास और फिर भूत प्रेत को भगाने वाले तांत्रिक (ओझा) के पास लेकर जाते हैं।
मनोचिकित्सक कहता है "सिद्धार्थ बिल्कुल ठीक है, लेकिन फिर भी मैं आपकी तसल्ली के लिए मरीज की एक सप्ताह बाद दोबारा जांच कर लूंगा।" और तांत्रिक (ओझा) कहता है "आपके बेटे के ऊपर किसी असंतुष्ट आत्मा का साया है।
मनोचिकित्सक की बात सुनने के बाद सिद्धार्थ के पिता को तांत्रिक की भूत प्रेत की बात पर यकीन हो जाता है।
और जब तक सिद्धार्थ तांत्रिक(ओझा) मनोचिकित्सक के पास से घर वापस नहीं आता है, तब तक अंकिता अपनी बहन सीमा की ससुराल नहीं जाती है।
और सिद्धार्थ को कमरे में अकेला देखकर उससे कहती है "मेरे पीछे अपना ख्याल रखना, मैं बीच-बीच में फोन करके तुम्हारे हाल-चाल पूछती रहूंगी और हां मैं जो भी सलाह दूं उसको मनाना।"
फिर मुस्कुरा कर कहती है "क्योंकि मैं तुमसे आयु में तजुर्बे में बड़ी हूं।"
सिद्धार्थ अंकिता की सारी बात सुनने के बाद दूसरी तरफ अपना चेहरा कर लेता है और अंकिता जब धीरे-धीरे उसके कमरे से निकल कर सिद्धार्थ के घर से भी बाहर जाने लगती है, तो सिद्धार्थ उसे पीछे से लगातार देखता रहता है और अपने मन में सोचता है "अगर अंकिता ने पीछे मुड़कर देखा तो यह मुझ से प्यार करती है वरना नहीं।"
और अपने मन में यह भी सोचता है कि "भगवान अंकिता पीछे मुड़कर ना देखें वरना मुझे ऐसा लगेगा कि मैं अंकिता के प्रेम को ठुकरा कर उसका दिल दुख रहा।"
किंतु अंकिता को भी पक्का यकीन था कि सिद्धार्थ उसे एक टक लगाकर पीछे से जरूर देख रहा होगा, अगर मैंने पीछे मुड़कर देखा तो सिद्धार्थ को लगेगा कि मुझे भी उससे लगाव है, इसलिए अंकिता पीछे देखे बिना अपने घर चली जाती है।
अंकिता के अपने घर जाते ही फिर सिद्धार्थ को एक आवाज सुनाई देती है कि "मुझे भी अंकिता के साथ सीमा से मिलने जाना है।"
यह दुख से भरी आवाज उसके मृत नंदू भैया की थी।