हॉरर मैराथन - 37 Vaidehi Vaishnav द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हॉरर मैराथन - 37

भाग 37

चंद्रावतीपुर एक छोटी किन्तु समृद्धशाली तहसील है, जिसकी समृध्दि का कारण यहा चने की फसल का सर्वाधिक उत्पादन होना है। चने के उत्पादन में चंद्रावतीपुर का प्रदेश में प्रथम स्थान है। इसी वजह से इस गाँव को लोग चने का गाँव कहकर भी बुलाते हैं। गाँव की 75 प्रतिशत जनसंख्या का व्यवसाय कृषि है। लगभग सभी कृषकों के पास स्वयं की भूमि है।

गाँव में सबसे अधिक भूमि क्षेत्र और पशुधन गाँव के मुखिया लक्ष्मीकांत के पास है। वह सरल ह्दय व्यक्तित्व के हैं, इसीलिए हर वर्ग के व्यक्ति के वह प्रिय हैं व सभी ग्रामवासी उनका बहुत सम्मान करते हैं। लक्ष्मीकांत गाँव के लोगों को अपने परिवार का सदस्य मानते व उनके सुख-दुःख में उनके साथ रहते हैं।

एक समय जब अल्पवर्षा हुई तब लक्ष्मीकांत ने अपने खेत पर बने कुँए को सबके लिए सर्व सुलभ कर दिया। पूरे गाँव भर में मुखिया जी का कुँआ पंक्ति वाला कुँआ के नाम से विख्यात था। इसकी वजह कुँए में मौजूद सीढियां हैं जिन्हें गाँव में पंक्ति कहा जाता है। यह पूरे गाँव का एकमात्र कुँआ हैं जिसमें सीढ़ी बनी हुई हैं।

पिछले कुछ सालों से लोग मुखिया जी के कुँए पर जाने से डरने लगे। एक अफवाह जंगल की आग की तरह फैल गई कि- पंक्ति वाला कुँआ भूतिया है। वहाँ किसी आत्मा का निवास हैं। मुखिया जी ने गाँव वालों को ऐसी किसी भी अफवाह पर ध्यान न देने का कहा। लोग मुखिया जी की बात से सहमत होकर कुँए पर फिर से जाने लगे।

एक समय की बात हैं भर दोपहरी में लखन हाँफता हुआ, दौड़ा-दौड़ा मुखिया जी के पास गया। उसके सर से पसीना चु रहा था, सांस फूलने लगीं थी, कंठ सुख गया था। मुखिया जी के सेवक सुखीराम ने उसे पीने के लिए पानी का लोटा दिया। लखन ने जलपात्र को झपटते हुए ले लिया और गटागट पानी एक ही सांस में पी गया।

लक्ष्मीकांत- क्यों रे लखनिया, यूं सरपट दौड़ता हुआ क्यों आया ? क्या बात हैं ?

लखन- मालिक मैं भोजन करने के बाद कुँए से शीतल जल की आस लिए जब पानी लेने गया, तब मेरे वहाँ पहुंचते ही ऐसा लगा जैसे किसी ने कुंए में छलाँग लगा दी, और छलाँग के कारण पानी के छीटें मेरे मुंह तक आए। जब मैंने झाँककर देखा तो वहां कोई नहीं था।

लक्ष्मीकांत- जब कोई नहीं था तो यूँ बावला हुआ क्यों चला आया ?

लखन- सर को खुजाते हुए, मालिक मैं डर गया था।

लक्ष्मीकांत- यही तो, देखा कुछ नहीं पर अनुमान लगा लिया कि भूत कुंए में कूद गया। ये भी तो हो सकता हैं कि तेरे पहुँचने पर कोई भारी पत्थर कही से सरककर कुंए में जा गिरा हो।

लखन- जी मालिक यही हुआ होगा। मैं नाहक ही जरा सी बात पर आपको परेशान करने आ गया।

शर्मिंदा होकर लखन वहां से चला गया और लक्ष्मीकांत विचार की मुद्रा में आकाश की ओर देखने लगे।

आए दिन कोई न कोई कुँए से सम्बंधित नया किस्सा मुखिया जी को सुनाने आ जाता।

कुंए के विषय में बढ़ती अफवाहों के कारण मुखिया जी ने खेत व कुंए का अच्छे से मुआयना करने का विचार किया और वह भोर के समय ही खेत पर आ गए। सूर्योदय होने ही वाला था। सूर्योदय से पूर्व का लालिमा लिए हुए आकाश, ठंडी हवा के शीतल झोंके व पक्षियों का मधुर कलरव अत्यंत ही मनोहारी लग रहा था।

अपने दोनों हाथों को पीछे की ओर बांधे हुए मुखिया जी खेत के बीच बनी पगडंडी पर चल रहे थे। लहलहाती चने की फसल को देख उनका मन प्रसन्न हो गया। तभी उनकी नजर एक जगह पर पड़ी जो खाली दिखी। यह जगह कुंए के ठीक सामने थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि किसी ने यहां से चने के पौधें उखाड़ दिए हैं।

मुखिया जी ने खेत की रखवाली करने वाले जमनादास को बुलाया।

जमना तुरन्त हाजिर हो गया। हाथ जोड़े सिर झुकाए चुपचाप खड़ा हो गया।

लक्ष्मीकांत- जमुनिया ये जगह खाली कैसे हो गई ?

जमनादास- मालिक पता नहीं कौन यहां से चने उखाड़ कर ले जाता है। हम तो सख्त पहरा देते हैं।

लक्ष्मीकांत- अच्छा ठीक है अब तू जा।

मुखिया सोचने लगे- ऐसा कौन हैं जिसे चने चोरी करने पड़ रही है। संकट की घड़ी में मैं सदैव ही ग्रामवासियों के लिए सहायता हेतु उपस्थित रहा हूँ। हो सकता हैं कोई लज्जावश अपनी दशा मुझसे कह नहीं पा रहा और चोरी से चने ले जाकर जीवन निर्वाह करता हो। पर मेरे रहते किसी भी गाँव निवासी को मैं दुःखी नहीं रहने दूंगा।

आज खेत पर मैं स्वयं पहरा दूंगा।

सारा दिन मुखिया जी खेत पर ही रहे। शाम होते ही खेतिहर मजदूर अपने घर को लौट गए। अब खेत पर जमनादास व मुखिया जी ही थे। जमनादास खेत सीमा पर बनी अपनी झोपड़ी में था। वह रात के समय भूले से भी पंक्ति वाले कुँए की तरफ नहीं आता था।

मुखिया ने कुँए के सामने खाली पड़ी जगह पर ही अपनी खाट लगवा ली थीं। जमना उनसे अनुरोध करता रहा कि वह यहां न सोए, पर मुखिया जी ने उसकी एक न सुनी।

रात 12 बजे तक तो मुखिया जी हुक्का गुड़गुड़ाते रहे, फिर उनकी नींद लग गई। रात करीब 3 बजे खेत में हुई हलचल से उनकी नींद खुल गई। चूड़ियों की खनक शांत वातावरण में साफ सुनाई दे रही थी। बीच-बीच में बच्चे के रोने की आवाज भी आ रही थी। मुखिया जी धीरे से उठे और चारो और देखने लगे। उन्हें खेत के एक हिस्से पर एक महिला बच्चे को गोद में लिए हुए दिखी, जो चने उखाड़ रही थी। दबे कदमों से चलकर मुखिया जी महिला के पीछे खड़े हो गए।

मुखिया जी (रौबदार आवाज में)- कौन हो तुम ? इतनी रात को चने लेने की वजह जान सकता हूँ ?

महिला ने मुखिया जी की आवाज सुनकर सर पर पल्लू रख लिया। वह कुछ नहीं बोली और चने लेकर वहां से जाने लगीं।

मुखिया जी भी उसके पीछे हो लिए। महिला की चुप्पी ने उन्हें थोड़ा क्रोधित कर दिया। वह उससे फिर बोले- भले घर की जान पड़ती हो। कोई समस्या है तो मुझसे कहो बेटी।

इस बार महिला बोली- अपने भूखें बच्चें के लिये चने लेती हूँ।

ऐसा कहकर वह कुंए की तरफ जाने लगीं। और मुखिया जी के देखते ही देखते वह महिला कुंए के अंदर चली गई।

इस आश्चर्यजनक दृश्य को देखकर मुखिया जी दौड़कर कुंए की ओर गए तो देखा महिला हवा में थीं और धीरे-धीरे कुंए में समाने लगी। महिला के सर का पल्लू हवा के तेज झोंके से हट गया और उसके चेहरे को देखकर मुखिया जी तड़प उठे। उनके मुंह से बस यही निकला- ‘‘भगवती‘‘।

आकाश कहानी सुनाए जा रहा था और सभी बहुत गौर से उसकी कहानी भी सुन रहे थे। जैसा कि आकाश ने कहा था कि उसे कोई टोकेगा नहीं, इसलिए सभी खामोशी के साथ उसकी कहानी सुनते जा रहे थे।

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