हॉरर मैराथन - 35 Vaidehi Vaishnav द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हॉरर मैराथन - 35

भाग 35

अवन्तिकापूरी एक समृद्ध, ऐतिहासिक व धार्मिक नगरी है। यहां का अतिप्राचीन शिव मंदिर बहुत प्रसिद्ध है यहाँ जो भी मन्नत माँगता हैं वह पूरी हो जाती है। वर्षभर यहां श्रद्दालुओं व दर्शनार्थियों की भीड़ लगी रहती है। बसंतकुमार शिवभक्त हैं वे अपना पैतृक गाँव छोड़कर अवन्तिकापुरी में बस गए। यहां आकर उन्होंने एक पुराना सिनेमाघर खरीद लिया था।

सिनेमाघर पुराना था कहते हैं इस इमारत को यहाँ के राजा सूर्यभान ने अपनी रानियों के मनोरंजन हेतु बनवाया था। यहां मंच पर रामलीला, नृत्य व नौटंकी का आयोजन किया जाता था। बाद में इसे शहर के सबसे धनवान सेठ ने खरीद लिया था और यहाँ चलचित्र दिखाए जाने लगे। कई लोगों ने सिनेमाघर में भूतों को देखे जानें की बात कही जिसके कारण लोगों ने यहाँ आना छोड़ दिया। सेठ की मृत्यु के बाद उनके बेटों ने बसंतकुमार को सिनेमाघर बेच दिया।

बसंतकुमार ने सिनेमाघर का जीर्णोद्धार करवाया व इसमें आधुनिक साजसज्जा व नए साउंड सिस्टम को लगवा दिया। सिनेमाघर का नाम शिवसागर रखा गया। सिनेमाघर की नई बनावट दर्शकों को आकर्षित करने लगी। यहां लोगों भीड़ उमड़ने लगी। सिनेमा देखने वाले अधिकांश दर्शक युवा लड़के-लड़कियाँ ही होते। शुरुआत में दो ही शो रखे गए 12 से 3 व 3 से 6।

शाम के बाद सिनेमाघर बंद कर दिया जाता। अब तक कोई भी अप्रिय घटना घटित नहीं हुई। अतः रात के लिए भी सिनेमाघर को खोल दिया गया। अब शाम 6 से 9 व रात 9 से 12 के शो भी चलने लगे। सिनेमाघर में हर तरह की फिल्म लगती। ऐसे ही एक बार हॉरर फिल्म लगी। फिल्म बहुत ही डरावनी थी। एक कपल फिल्म को देखने की बजाय अपनी ही मस्ती में मग्न था। तभी लड़की की नजर अपने पुरुष मित्र के पास बैठे शख्स पर पड़ी। उसका चेहरा बहुत ही भयानक था। उसका एक गाल कटा हुआ था। आँखे अंदर की ओर धँसी हुई थीं। उसका चेहरा सामने की ओर था लेकिन अचानक ही उस शख्स ने अपनी गर्दन 180 डिग्री घुमाई। यह दृश्य देखकर लड़की की चीख निकल गई। आसपास के लोगों को लगा शायद फिल्म के भूत को देखकर लड़की चीख पड़ी। इसलिए किसी ने उस पर ध्यान नहीं दिया।

लड़की का दोस्त कहने लगा- क्या हुआ ? लड़की ने बताया कि अभी-अभी यहां एक डरावने चेहरे वाला आदमी था।

लड़का बोला- ‘‘तुमने फिल्म में कोई सीन देख लिया होगा।‘‘

लड़की ने बताया- ‘‘नहीं, वह तुम्हारे पास बैठा था।‘‘

लड़के ने कहा- ‘‘तो अब कहाँ चला गया ?‘‘ लड़का चिढ़ने लगा। लड़की ने अपना ध्यान फिल्म पर केंद्रित कर दिया। उसका मन नहीं लग रहा था। किसी के होने का अहसास उसे डरा रहा था। लड़की ने अपने मित्र से कहा मेरे साथ वॉशरूम तक चलो। लड़का उखड़ा हुआ था, उसने कहा- मैं फिल्म देख रहा हूं, तुम चलीं जाओ। लड़की गुस्से से भनभनाती हुई वहां से चली गई।

लड़की गुस्से से वहां से चली तो आई पर बाहर आकर खाली पड़े कॉरिडोर को देखकर सहम गई। वह डरते हुए धीमी चाल चलती हुई आगे बढ़ती जा रही थी। तभी कॉरिडोर की लाइट झपकने लगी। लड़की आँखों की पुतलियों को दाएं-बाएं घुमाकर डर से इधर-उधर देख रहीं थीं। वॉशरूम सामने ही था वह दौड़कर उस ओर गई और वॉशरूम में जाकर एक दीवार से सटकर हाँफती हुई खड़ी हो गई। उसने आँख बंद की हुई थीं। जब उसने आँख खोली तो सामने की दीवार पर छिपकली सा रेंगता हुआ एक आदमी देखा। जिसका सर नहीं था। यह देखकर लड़की बेहोश हो गई।

जब बहुत देर तक लड़की लौट कर नहीं आई तो उसका मित्र उसे ढूंढने के लिए वॉशरूम की ओर गया। उसे लड़की वॉशरूम के बाहर ही मिल गई।

लड़का चिढ़ते हुए बोला- ‘‘क्या पागलपन हैं इतनी देर कोई लगाता हैं क्या ? ‘‘

लड़की ने धीमे से कहा- बहुत देर से ट्राय कर रहीं थी दरवाजा खुल हीं नहीं रहा था। लड़की ने लड़के का हाथ पकड़ लिया और कहने लगी चलो वरना फिल्म के सीन छूट जाएंगे।

दोनों एक दूसरे का हाथ पकड़े हुए जा रहे थे तभी लड़के ने देखा कि लड़की के हाथ के नाखून तेजी से बढ़ कर लंबे हो गए और उनसे खून की बूंदे टपककर फर्श पर गिर रहीं थी। लड़के ने झटके से लड़की का हाथ छोड़ दिया और उससे दूर हो गया। एक भयानक चेहरे की लड़की जिसकी आँख ही नहीं थीं रोबोटिक चाल चलती हुई लड़के की ओर आ रही थी। लड़के ने अपना दांया हाथ आँखों पर रख लिया और वह चिल्लाने लगा। उसकी चीख से सिनेमाघर में काम करने वाला स्टॉफ आया। उन्होंने डरे सहमे लड़के को आवाज दी। सर आप ठीक हैं ? क्या हुआ ?

लड़के ने आंखों से हाथ हटाते हुए डरी हुई निगाहों से स्टॉफ को देखा। उसने अपनी अंगुली से कॉरिडोर की ओर इशारा किया। स्टॉफ ने उस और देखते हुए कहा- सर वहां तो कोई नहीं है।

लड़के ने अपनी मित्र के वॉशरूम में होने की बात कहीं। स्टाफ के लोग जब वॉशरूम पहुँचे तों उन्हें वहां एक लड़की बेहोश पड़ी हुई दिखीं। स्टॉफ ने तुरन्त लड़की को उठाया और मेडिकल टीम के पास ले गए। लड़की को जब होश आ गया, तब उससे बेहोशी की वजह पूछी गई, पर उसे कुछ भी याद नहीं आया।

इस घटना से बाकी दर्शक डर गए। फिल्म समाप्त हुई और सभी अपने घर चले गए। एक बार फिर से पूरे शहर में यह अफवाह फैल गयी कि पुराना सिनेमाघर भूतिया सिनेमा है। इस अफवाह से शिवसागर आने वाले सिनेमा प्रेमियों की तादात कम हो गई। जिससे बसंतकुमार को भारी नुकसान होने लगा।

बसंतकुमार ने विचार किया कि अब तक सब ठीक चल रहा था। अचानक ये अफवाह कैसे उड़ी ? मामले की तहकीकात करने के लिए बसंतकुमार ने अकेले ही रात के शो में फिल्म देखने की ठानी। बसंतकुमार रात 9 से 12 बजे के शो को देखने सिनेमाघर पहुंचे। उन्होंने पर्दे पर चलचित्र को बंद ही रखा। और सिनेमाघर के पिक्चर हॉल में खाली पड़ी कुर्सियों के बीचों-बीच जाकर बैठ गए। आधे घण्टे तक वह यू ही बैठे रहें। जब वह जाने के लिए खड़े हुए तों उन्होंने देखा हॉल के गेट को खोलकर भयानक चेहरों वाले लोगों का हुजूम अंदर आने लगा। देखते ही देखते सारी कुर्सियां भर गई। बसंतकुमार के चारों और भूत थे।

शीतल की कहानी सुनते हुए भी राघव, मानसी, मीनू, साहिल और अशोक अब तक चुप ही थे।

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