भाग 20
एक मिनट... एक मिनट मानसी... सबसे पहले मुझे ये बताओ ये निशिडाक क्या होता है ? राघव ने पूछा।
यार एक्व्यूली क्या होता है यह तो मुझे भी नहीं पता, पर हां भूतों में कुछ होता है। मैंने सुना था तो इसे अपनी कहानी में एड कर लिया। एक तरह की चुडैल ही मान लो। मानसी ने कहा।
यार वैसे तुम में से किसी ने गौर किया या नहीं पर अब तक जितनी भी कहानी हमने सुनी है उनमें सभी बहुत शरीफ भूत ही मिले हैं। अशोक ने कहा।
अशोक ने अभी अपनी बात पूरी की ही थी कि मीनू ने अचानक पीछे की ओर पलट कर देखा। मीनू के ऐसे अचानक पलटने पर साहिल ने पूछा- क्या हुआ मीनू ?
मीनू ने कहा मुझे ऐसा लगा जैसे कोई मेरे पीछे खड़ा हुआ है। मैं वहीं देख रही थी कि कौन है ?
यार मैं तो तुम्हारे ठीक सामने बैठा हूं। कोई तुम्हारे पीछे होता तो मुझे दिखाई देता। राघव ने कहा।
पता नहीं मुझे बस ऐसा लगा कि कोई है, इसलिए... मीनू ने कहा।
मीनू की बात पूरी हो इससे पहले ही मानसी ने कहा- मुझे भी लगा था कि किसी ने मेरा हाथ पकड़ा है, पर वहां कोई नहीं था। वो कुछ नहीं है बस हम भूतों की कहानी सुन रहे हैं ना तो दिमाग में ऐसा चल रहा है।
चलो वहां कोई नहीं है और जंगल में भी कोई नहीं है बस वहम है। तू अपनी कहानी आगे सुना मानसी। साहिल ने कहा।
मानसी ने अपनी कहानी सुनाना शुरू की।
निशिडाक ने रमोला को अपनी कहानी बताते हुए कहा-
मेरा नाम अमोदिता है। मैं भी तुम्हारी तरह ससुरालवालों द्वारा सताई हुई एक दुखियारी हूं। फर्क बस इतना हैं कि तुम जीवित हो और मैं निशि डाक। मैं बहुत ही निर्धन परिवार से थी। मेरी सुंदरता और गुणों के कारण मेरा विवाह कलकत्ता के रईस घराने में हो गया। मेरे पति बैरिस्टर हैं। मैं पूर्ण निष्ठा से घर व घरवालो की देखभाल करती। दहेज न दिए जाने पर मेरा उतना सम्मान नहीं होता था जितना मेरी देवरानी का हुआ करता था। मेरी धनलोलुप सास मुझे हर दिन ताने दिया करतीं। वह मुझसे घर की नौकरानी की तरह बर्ताव करती। मेरे पति मुकदमों के सिलसिले में अक्सर बाहर रहते। एक दिन उनकी अनुपस्थिति में मेरी सास ने मुझे धक्के देकर घर से निकाल दिया। मैं रेलगाड़ी से अपनी माँ के गाँव जा रहीं थीं। रेल में एक बाबू से मुलाकात हुई जो मेरे पति के परिचित थे। मेरी दशा को देखकर वह मुझसे बोले। आप चिंता न करें। मैं आपको आपके पति के पास पहुंचा दुंगा। मैं खुश हो गई और उस बाबू के साथ फुलपाईगुड़ी रेलवे स्टेशन उतर गई। रात का समय था, इसी सुनसान जंगल से गुजरते समय अचानक वह बाबू वहशी हो उठा। उसने मेरे साथ बलात्कर किया। मैं चिखती रहीं, मदद के लिए गुहार लगाती रही। पर कोई नहीं आया। जब उस कामी की कामवासना शांत हो गई तब उसने मुझे मारने का प्रयास किया। मैंने भागने की कोशिश की जो असफल रही। मैं चल नहीं पा रहीं थी अतः सड़क पर गिर पड़ी। उस नराधम ने सूखे पत्तों के ढेर पर मुझे डाल दिया और जिंदा ही जला दिया। आग की लपटों से जलती हुई मैं बदहवास सी भागने लगीं। हवा के चलने से आग की लपटें जोर पकड़ने लगीं। मुझें एक तालाब नजर आया, जिसमे मैं कूद गई। लेकिन मेरा आधा शरीर जल चुका था। मैंने दहनपीड़ा से कराहते हुए दम तोड़ दिया। बस उसी दिन से मैं धनलोभी और कामी पुरुषों का शिकार करने लगीं। मेरा पहला शिकार वह बाबू था और दूसरा मेरी सास।
निशि डाक की दुखभरी कहानी सुनकर रमोला की आँख से आँसू छलक आए। उसने कहा- तुम कब तक यूँ ही भटकती रहोगी ?
निशि डाक- जब तक मेरी आयु पूरी नहीं हो जाती। असमय हुई मृत्यु के कारण ईश्वर भी नहीं बुलाते। पर इतनी शक्ति जरूर दे दी हैं कि अत्याचार करने वालों को मैं सबक सिखा सकूँ।
रमोला एक संकल्प लेती हैं कि अबसे मैं अबला बनकर अत्याचार नहीं सहूँगी। अब से शोषण करने वाले हर व्यक्ति को मुंहतोड़ जवाब दूँगी। मैं कमजोर नहीं वरन देवी कालका का शक्ति स्वरूप हूं। ममतामयी रूप में मैं माँ दुर्गा हुँ और दुष्टों को दंड देने के लिए माँ काली। जय माँ काली का जयकारा लगाते हुए रमोला दृढ़ निश्चय के साथ मस्तक को ऊँचा करके आकाश में देखने लगीं।
निशि डाक उसका हौसला देखकर प्रसन्न हुई। वह अदृश्य हो गई। रमोला ने अपने मायके पहुँचकर तलाकनामा तैयार करवा लिया और अपने ससुराल भेज दिया।
यार तुने इस कहानी में ये तो बताया ही नहीं कि रमोला से मिलने के बाद क्या निशिडाक को मुक्ति मिल गई या वो फिर भटकती रही और धन लोभियों और कामी लोगों को सजा देती रही। राघव ने पूछा।
अरे बताया तो था कि उसकी उम्र जब तक नहीं होगी वो भटकती रहेगी और लोगों को सजा देती रहेगी। मानसी ने कहा।
मतलब अभी उसकी उम्र नहीं हुई थी और वो लोगों को सजा देती रही। साहिल ने कहा।
हां तू फिलहाल ऐसा ही मान ले। भूतों की कहानी में भी तुझे तर्क चाहिए। कहानी थी सुन और उसका मजा ले। उसे मुक्ति मिली या नहीं मिली, वो सजा देती रही या नहीं देती रही। तुझे उससे क्या मतलब। हां कहानी में ये अच्छा था कि निशिडाक से मिलकर रमोला का जीवन बदल गया और वे एक जिम्मेदार नारी बन गई। अशोक ने कहा।
हां ये बात तो हैं, वैसे मैंने एक बात और गौर की है कि अब तक जितनी भी कहानी हमने सुनी है, उसमें कुछ ना कुछ पॉजिटिव जरूर था। चाहे वह भगवान की शक्ति की बात हो या फिर हनुमान चालीसा हो, मतलब साफ है बुरी शक्तियों पर आस्था और भगवान पर विश्वास हमेशा भारी रहा है और हमेशा रहेगा। साहिल ने कहा।
वैसे टाइम क्या हो गया है, अब कुछ देर सो लिया जाए या फिर एक और कहानी सुनी जाए। मीनू ने कहा।
यार अभी तो दो ही बजे हैं। इतनी देर तक तो हम लोग घर पर भी जागते हैं। अब जंगल में आए हैं तो कुछ तो अलग करें। मुझे लगता है कि एक और कहानी हो जाए। मानसी ने कहा।
वैसे अब कौन सुनाएगा कहानी ? मीनू ने कहा।
मैं सुनाता हूं। अशोक ने कहा।
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