प्रफुल्ल कथा - 12 Prafulla Kumar Tripathi द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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प्रफुल्ल कथा - 12



हसन कमाल ने फिल्म “निकाह” के लिए एक लोकप्रिय नज़्म लिखी है –
“ अभी अलविदा मत कहो दोस्तों,
न जाने फिर कहां मुलाकात हो |
क्योंकि,बीते हुए लम्हों की कसक साथ तो होगी,
ख्वाबों में ही हो चाहे मुलाकात तो होगी |”
इसी में शायर ने आगे यह भी कहा है-
“ये साथ गुज़ारे हुए लम्हात की दौलत,
जज्बात की दौलत, ये खयालात की दौलत |
कुछ पास न हो पास, ये सौगात तो होगी |”
सचमुच आज अपनी आत्मकथा लिखते हुए मैं शायर की लिखी इस नज़्म की आत्मा में बैठा कर अपने दिन बिता रहा हूँ |अपने जीवन को अलविदा कहने का समय आ गया है लेकिन किसी अदृश्य शक्ति ने मानो मुझे साहस दे दिया है कि मैं अपने “ स्वीट एंड साल्ट “ जीवन का खाका आप सभी के सामने रख सकूँ |
“स्वीट एण्ड साल्ट “.. क्या खूबसूरत शब्द है ! हिन्दी में कहें तो मीठा और नमकीन ! पाँच तरह के बेसिक स्वाद हुआ करते हैं जो हैं - नमकीन, मीठा ,तीखा, खट्टा और फीका | मेरे जीवन में मिठास काम रही और उसमें तीखापन, खटास या नमकीन और फीकापन ज्यादा रहा |आप जानते ही हैं कि नमक भी बारह तरह के होते हैं |टेबल साल्ट ,कोशेर साल्ट (मोटे और परत वाले),समुद्री नमक ,पिंक साल्ट या सेंधा नमक जो हिमालयन रेंज के पहाड़ों से खोदकर निकलता है ,सेल्टिक सी साल्ट जो फ्रांस में समुद्र तट पर मौजूद ज्वार भाटे से भरने वाले तालाबों से निकलने वाला होता है,फ्लावर ऑफ दि साल्ट (Fleur) यानि नमक का फूल जो मछली और मीट पकाने के लिए उपयुक्त होता है ,काला नमक ,फ्लेक साल्ट ,ब्लैक हवाइयन साल्ट रेड हवाइयन साल्ट स्मोकड साल्ट और अंतिम पिकलिंग साल्ट जिसका इस्तेमाल खाद्य पदार्थों को लंबे समय तक प्रिजर्व रखने के लिए किया जाता है |बहरहाल सच मानिए , मेरे जीवन में आए दुखों (Salt ) की श्रेणी इनसे भी ज्यादा है |गिनाऊँ क्या ?
बुरा क्या है .. झलक तो पा ही लिया जाए ! अगर मुझे अपनी मेधा और लेखनी के बल पर लगभग आठ लाख की टाटा इंडिका गाड़ी टाटा प्रतिष्ठान ने इनाम में बिना एक पैसा लिए मुझको एक समारोह में ससम्मान दे दी थी तो वह मेरे जीवन का ‘स्वीट’ था | आकाशवाणी में नौकरी पा जाना भी जीवन में मंगल के समान था |
देखने -सुनने में ठीक- ठाक और पढ़ने -लिखने, सरकारी नौकरी पाने वाली बीबी मिल गई - यह भी बढ़िया रहा ,संतान के रूप में दो बेटे (लेफ्टिनेंट कर्नल दिव्य आदित्य और लेफ्टिनेंट(शहीद) यश आदित्य ) मिल गए - यह और भी मिठास वाला अनुभव था| लेकिन जीवन के दूसरे रंग जिसे मैं ‘साल्ट’ कहना पसंद करूंगा, उसने मुझे रुला ही दिया |रुलाया इस हद तक कि मैं मौत के मुंह से किसी तरह लौट सका |और हाँ,लगभग उसी समय से यानि वर्ष 2007 से मेरे जीवन में हताशा - निराशा का जो दौर चला वह आज तक, उम्र के इस पड़ाव तक, जारी है |अब तो मुझे खुद आश्चर्य होता है कि मैं किस तरह एक सामान्य व्यक्ति की तरह जी पा रहा हूँ ?
05 सितंबर,2007 को मेरे छोटे पुत्र मात्र 22 वर्ष की उम्र में भारतीय सेना में ‘ऑन ड्यूटी’ शहीद हो गए और तब से आज तक मैं आधे मन और टूटे शरीर ही नहीं बल्कि एक गंभीर मनोरोगी पत्नी के साथ कैसे दिन बिता पा रहा हूँ यह या तो मैं जानता हूँ या भगवान ! क्षमा करें, इस प्रसंग को यहीं समाप्त करना चाहूँगा क्योंकि भावनाओं के ज्वार भाटा से लेखनी लुंठित और विचार कुंठित हो जाने को उद्यत हैं |
हाँ, मैं अब जीवन और नौकरी के उमँगी दौर में था | आकाशवाणी गोरखपुर जो भी आता वह लगभग परिचित ही निकलता था क्योंकि मैं ‘लोकल’ था |’लोकल फार वोकल’ अब प्रचलन में है, मैनें पहले ही इसका चलन प्रारंभ कर दिया था |हाँ आड़े आ रही थी
मेरे अधिकार और कार्यक्षेत्र की सीमाएं |मेरी सेवा प्रसारण अधिशासी के रूप में ‘नान गजेटेड क्लास थ्री’ की थी और कार्यक्रमों में बुलाने का अधिकार कार्यक्रम अधिकारियों (क्लास टू -गजेटेड) को हुआ करता हैं | बहरहाल अपनी वाकपटुता और मिलनसारिता को हथियार बनाकर मैनें अपने लोगों की हसरतें पूरी करनी शुरु कर दी थीं |उस दौर में आकाशवाणी में कार्यक्रम देकर लोग अपने को धन्य मानते थे |
मुझे याद है कि मैं अपने विभागीय सहयोगी श्री रवींद्र श्रीवास्तव उर्फ ‘जुगानी भाई’ और कुछ अन्य लोगों के साथ ओ. बी. (आउटडोर रिकार्डिंग ) के लिए 24 मार्च 1980 को कसया से 18 किलोमीटर पहले पड़ने वाले गुरुवलिया नामक गाँव (जनपद पडरौना) गया | जाने का विशेष मकसद था, एक ज्योतिषी पंडित बागेश्वरी पाठक(अब स्वर्गीय) से मिलना, जिनके बारे में सुना गया था कि उनके पास असली हस्तलिखित श्री रावण संहिता है और वे सप्ताह में पाँच दिन सूर्योदय से सूर्यास्त तक आपकी तीन शंकाओं/प्रश्नों का उत्तर दे दिया करते हैं |लोग कहते थे कि आगंतुक के लिखे गए प्रश्न के क्रम में ही उनका उत्तर तैयार मिलता था | असल में मैं अपनी छोटी बहन प्रतिमा और अपनी स्वयं की शादी के बारे में जानना चाहता था |दोपहर लगभग 12 बजे हम तीन चार लोग उनके सिद्ध स्थान (एक बागीचा ) पर पहुंचे |ज्योतिषी जी के यहाँ अपार भीड़ जुटी हुई थी |साथी ‘जुगानी भाई’ से उन्होंने सलाम दुआ की औपचारिकता निभाई और हमलोगों के आने का मन्तव्य उन्होंने समझ लिया |भोजपुरी में ही उन्होंने हमें
परामर्श दिया कि हम लोग भी तीन प्रश्नों वाली अपनी -अपनी पर्चियाँ लगा दें | हम सभी ने झटपट वैसा ही कर डाला और उत्सुक होकर अपनी बारी की प्रतीक्षा करने लगे | चटक धूप थी ,पास में पेयजल नहीं था फिर भी भविष्य जानने की लालसा लिए हमलोग विभागीय गाड़ी में बैठकर प्रतीक्षारत |
बताया जाता है कि त्रेता युग में रावण ने 60 हजार वर्ष घोर तपस्या करके ज्योतिष विद्या ब्रम्हा जी से पाकर अपने तेजस्वी पुत्र मेघनाथ को रावण संहिता के रूप में उत्तराधिकार में दी थी |यह ग्रंथ सहस्त्र शताब्दियों से लिपिबद्ध होकर अनेक विद्वानों के सानिध्य से भ्रमण करता हुआ चला आ रहा है | दैव इच्छा और संयोग से यह ग्रंथ नेपाल में तंत्र- मंत्र और ज्योतिष विद्या का अध्ययन करने गए पंडित बागेश्वरी पाठक को मिला था और जिसकी सत्यता की आज हम जांच करने वाले थे |
पंडित जी से मैंने जो तीन प्रश्न पूछे थे , क्रमश:वे इस प्रकार थे -1. मेरी छोटी बहन की शादी कब और कहां होगी ? 2. मेरा प्रमोशन कब होगा ? 3. मेरी शादी कब होगी ?पंडित जी ने बहुत संक्षिप्त उत्तर दिए थे और बताया था कि मेरी छोटी बहन की शादी मई में होगी और उसी लड़के से होगी जिससे इस समय बातचीत चल रही है |उन्होंने मेरी उस जिज्ञासा को भी विराम देते हुए यह बताया दिया कि मेरी शादी छोटी बहन की शादी के तत्काल बाद होगी |आगे चलकर सचमुच ऐसा ही हुआ |बहन की शादी की जहां बात चल रही थी ( ग्राम भिलोरा )वे लोग बड़े लालची थे |लड़के के पिता नहीं थे लेकिन उनके मामा (जिन्हें यह शादी तय करनी थी) वे भारी दहेज मांग रहे थे |एकमात्र प्लस प्वाइंट यह था कि इस पी.सी.एस.लड़के के नानाजी हमारे परिवार से उपकृत थे और वे दृढ़ प्रतिज्ञ थे कि शादी मेरे यहाँ ही होगी |वही हुआ भी | 27 अप्रैल 1980 को शादी के दिन बारात दरवाजे पर लगने तक लड़के के मामा जी की और दहेज की मांग होती रही किन्तु कुछ कूटनीति के तहत किसी तरह मामला सुलझा लिया गया | बड़े बड़े नाटक हुए थे उस विवाह में | शादी के एक दिन पहले लड़के वालों ने सूचना दी कि लड़का नहीं आ पाएगा ,उसे छुट्टी नहीं मिल रही है |हम परिजनों के हाथ पाँव फूल गए |भला हुआ जो हमारे नानाजी जस्टिस एच. सी. पी. त्रिपाठी ने होम सेक्रेटरी से कहलवा कर उनको स्थानीय प्रशासन द्वारा गोरखपुर आने के लिए बस में बैठवाया | उसके बाद दामाद जी लड़की की विदाई कराने आने को कहकर नहीं आए |अपनी जगह अपने ममेरे भी को भेज दिए | बताया गया कि दामाद जी को अभी छुट्टी नहीं मिल पा रही है |फलस्वरूप वे अपनी सासू माँ के पास उनके गाँव बखरिया में रहने लगइन | राम गोविंद मेरी बहन को लेकर अल्मोड़ा पहुंचे | बाद में किसी तरह मामला सामान्य हुआ |मेरी माँ और एक उनके तथा हमारे नजदीकी (कामन)रिश्तेदार
छोटी बहन के ससुराल वालों के दुर्व्यवहार से हम सभी लोग मर्माहत थे |असल में लड़के कि नौकरी देखकर यह शादी हुई थी और उनके परिजन बहुत ही सामान्य जीवन स्तर वाले थे |इस जमाने में भी उनकी सास कुएं का ही पानी पीती थीं,चूल्हे पर बिना अंतरंग वस्त्र पहने जब महिला खाना बनाती थी तो खाती थीं |बहू घूँघट में घर के अंदर रहे वे ऐसा चाहती थीं |भला हमारे आधुनिक परिवार ने ऐसा सोचा भी नहीं था |
परंपरा के अनुसार शादी के कुछ दिन बाद चौथ लेकर जब मेरी बड़ी बहन विजया और एक परिजन के साथ उनके गाँव बखरिया पहुंचीं थीं तो उन्हें आज भी याद है कि वे यह देखकर हतप्रभ और अवाक रह गईं कि एक खपरैल के पुराने घर में नव वधू बनकर उनके घर गई प्रतिमा (छोटी बहन) एक रोशनी विहीन कमरे में जमीन पर सिकुड़ी माथे पर लंबा घूँघट लिए बैठी थीं |विजया दीदी ने घर आकर जब इस बात का खुलासा पिताजी और हम सभी के बीच किया तो हमलोग स्तब्ध रह गए |कुछ ही दिन में प्रतिमा को किसी बहाने गोरखपुर लाया गया और सच मानिए मेरी बहन भयंकर डिप्रेशन का शिकार हो गई थी |
वह मानो किसी हादसे का शिकार हो चली थी |कुछ बोलती नहीं थी |उसकी काया बहुत ही कमजोर हो चली थी |उसका गहन इलाज शुरू हुआ और लगभग एक महीने बाद वह किसी तरह जब सामान्य होने लगी तो उसको लेकर मेरी माताजी और एक कामन रिश्तेदार श्री राम गोविंद पति त्रिपाठी अल्मोड़ा पहुंचे जहां उसके पति पोस्टेड थे | माता जी कुछ दिन अल्मोड़ा टिकी रहीं और स्थिति सामान्य होती देखकर लौट आईं |आगे चल कर महीनों बाद उन दोनों का यह पारिवारिक मामला सामान्य हो सका और हम लोग भी चैन की सांस लेने लगे |
(क्रमश:)
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