रिश्ते… दिल से दिल के - 30 Hemant Sharma “Harshul” द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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रिश्ते… दिल से दिल के - 30

रिश्ते… दिल से दिल के
एपिसोड 30
[क्या खा पायेंगी दामिनी जी खीर?]

प्रदिति ने आंखें बंद कीं और फिर धीरे से उन्हें खोलकर कहा, "हां, मम्मा! क्या हुआ उस दरिंदे के साथ? क्या उसे सज़ा नहीं मिली? क्या एक बार फिर उसने अपनी पैसे की धौंस जमाकर खुद को जेल से बाहर निकलवा लिया?"

"नहीं, बेटा! जो उसके साथ हुआ उस पर तो खुद मैं भी यकीन नहीं कर पा रही हूं।", रश्मि जी ने दूसरी ओर मुड़कर कहा तो प्रदिति हैरानी से बोली, "लेकिन ऐसा क्या हुआ, मम्मा?"

रश्मि जी ने दूसरी तरफ देखते हुए ही कहा, "जिस दिन गरिमा के साथ वो हादसा हुआ उसके दूसरे ही दिन टीवी पर ये न्यूज़ आई कि रॉकी का खून हो गया था।"

"क्या?", ये बात सुनकर प्रदिति को बहुत हैरानी हुई वो उनके आगे आकर बोली, "लेकिन, कैसे… मम्मा?"

रश्मि जी ने एक गहरी सांस लेकर कहा, "उस दिन टीवी पर मैंने न्यूज़ देखी कि रॉकी के पिता ने खुद अपने हाथों से उसका खून कर दिया। मैं खुद इस बात पर हैरान थी कि जो पिता उसके हर बुरे काम में उसे सपोर्ट करता था, यहां तक कि जब उसने गरिमा के साथ वो दरिंदगी भरा काम किया तब भी उसके बाप ने उसकी बेल करवाई तो वो कैसे उसे मार सकता है पर ये बात सच थी… बहुत ही बेरहमी से मारा था उसको उन्होंने।"

ये सुनकर प्रदिति के दिमाग में कई सारी बातें घूमने लगीं। फिर अचानक से रश्मि जी से बोली, "मम्मा! उस टाइम पर पापा कहां थे?"

"विनीत जी…? वो… हां, जिस समय ये सब हुआ तब वो हॉस्पिटल से बाहर गए थे जब वो वापस आए तो मैंने उन्हें पूछा कि वो कहां गए थे तो उन्होंने कहा कि हॉस्पिटल में उनका दम घुट रहा था तो बाहर खुली हवा में सांस लेने गए थे।", रश्मि जी ने उस पल को याद करते हुए कहा।

"इसका मतलब, पापा…", प्रदिति ने कहा तो प्रदिति और रश्मि जी ने एक दूसरे को हैरानी से देखा।

"वाह, आज तो बड़े दिनों बाद खीर खाई, वो भी इतनी स्वादिष्ट मज़ा ही आ गया।", दामिनी जी सोफे पर आराम से बैठकर खीर को खाते हुए खुद से ही बोलीं।

पीछे से गरिमा जी वहां आईं तो उन्हें खीर खाते देख उन्होंने अपनी आंखें छोटी करके उन्हें देखा और कमर पर हाथ रखकर खुद से ही बोलीं, "मां भी ना, मानेंगी नहीं… कितनी बार कहा है कि मीठा ना खाया करें पर मानती ही नहीं है।" कहकर वो आगे आईं और उन्होंने पीछे से ही दामिनी जी के कंधे को थपथपाया लेकिन दामिनी जी को अभी खीर के अलावा किसी काम की फुरसत ही कहां थी। उन्होंने उनका हाथ झटक दिया तो गरिमा जी मुंह खोले उन्हें देखती रहीं उन्होंने फिर से उनके कंधे को थपथपाया लेकिन उन्होंने फिर वही किया और बिना मुड़े ही बोलीं, "अरे, क्या है? एक तो वैसे ही आज इतने दिनों बाद मुश्किल से मीठा खाने को मिला है, इसलिए मुझे चैन से खाने दो।"

गरिमा जी ने अपनी गर्दन को टेढ़ा करके और अपने हाथों को बांधकर कहा, "लेकिन अगर आपकी प्यारी गरिमा को पता चल गया तो…?"

दामिनी जी ने अपनी गर्दन हिलाकर कहा, "अरे, उसे कौन बता…" उन्होंने अपना वाक्य आधा ही कहा कि उन्हें एहसास हुआ कि गरिमा जी उनके पीछे ही थीं।

उन्होंने धीरे से अपनी गर्दन पीछे की तो गरिमा जी उन्हें हाथ बांधे घूरकर देख रही थीं। दामिनी जी ने फीका सा मुस्कुराते हुए उन्हें देखा तो गरिमा जी ने हाथ आगे किया। दामिनी जी ने उनके हाथ पर हल्के से ताली मार दी तो गरिमा जी ने उन्हें घूरकर देखा और कटोरी की तरफ इशारा करके उसे देने को कहा। दामिनी जी ने छोटा सा मुंह बनाकर वो कटोरी उनके हाथ में थमा दी।

गरिमा जी ने कटोरी की तरफ इशारा करके कहा, "कहां से आई ये खीर?"

दामिनी जी ने गर्दन झुकाकर एक छोटे बच्चे की तरह कहा, "वो, प्रदिति ने बनाई थी बस थोड़ी सी ही चखी मैंने।"

"हां, पर मैं नहीं आती तो अब तक ये खीर आपकी पेट में होती।", गरिमा जी ने उन्हें डांटते हुए कहा तो अब दामिनी जी गर्दन उठाकर बोलीं, "हां तो, कब से मैंने कुछ मीठा नहीं खाया और खीर… खीर को तो महीनों हो चुके हैं। ऐसा सलूक तो कोई दुश्मन के साथ भी नहीं करता।"

गरिमा जी ने कटोरी को टेबल पर साइड में रखते हुए कहा, "मां! मैं जो भी करती हूं वो आपकी भलाई के लिए ही है ना, पता है ना डॉक्टर ने आपको कुछ भी मीठा खाने से मना किया है।"

"हां, लेकिन तब नहीं जब ये मेरी पोती के हाथों बनी हो।"

गरिमा जी ने हैरानी से कहा, "अक्कू?"

"ये तो सपने में भी मुमकिन नहीं है। ये मेरी दूसरी पोती ने बनाई है, प्रदिति ने।", दामिनी जी ने स्टाइल मारते हुए कहा तो गरिमा जी थोड़ी चौंकी भीं और फिर धीरे से उन्होंने कटोरी को उठाकर उसमें से एक चम्मच खीर को अपने मुंह में रखा और उनका भी वैसा ही हाल हुआ जैसा दामिनी जी का हुआ था, वो आंखें बंद करके पूरी तरह से उसके स्वाद में खो गईं।

दामिनी जी ने जब उनकी तरफ देखा तो अपनी कमर पर हाथ रखकर बोलीं, "वाह, मुझे मना कर दिया और खुद इतने चाव से खा रही हो!"

उनकी बात पर गरिमा जी ने असहज होकर अपनी आंखें खोलीं और बोलीं, "हां तो… डॉक्टर ने आपको मना किया है मुझे नहीं।"

"अरे…", दामिनी जी कहती रह गईं और गरिमा जी उस कटोरी को लेकर अपने कमरे की तरफ चली गईं।

दामिनी जी अपने पैर पटककर सोफे पर बैठ गईं और मुंह फुलाकर बोलीं, "कभी–कभी तो ये सच में अपने बहू वाले अवतार में आकर मेरी हालत एक बेचारी सास की तरह कर देती है।" कहकर उन्होंने रूठते हुए अपने होठों को और भी ज़्यादा नीचे कर लिया।

"नहीं, बेटा! ऐसा नहीं हो सकता। विनीत जी रॉकी को… नहीं नहीं।", रश्मि जी प्रदिति की बात को समझकर उसका निषेध करते हुए बोलीं तो प्रदिति ने कहा, "मम्मा! लेकिन मुझे पूरा यकीन है कि उस हैवान का खून पापा ने ही किया है।"

"तुम ऐसा कैसे कह सकती हो?"

"मम्मा! ये तो हम सब जानते हैं कि पापा मां से कितना प्यार करते हैं तो जब मां के साथ इतना गलत हुआ तो वो शांत कैसे बैठ सकते हैं। फिर आपने भी तो बताया कि जब उसका खून हुआ तो पापा हॉस्पिटल में थे ही नहीं।"

"अच्छा? तो फिर उस खून का इल्ज़ाम उसके बाप पर कैसे आया… और तो और उसके बाप ने खुद ये कुबूल किया था कि वही उसके बेटे का हत्यारा है।", रश्मि जी और प्रदिति दोनों ही अपना पक्ष रखे जा रही थीं।

अंत में रश्मि जी ने कहा, "ठीक है, तो विनीत जी से जाकर ही पूछ लेते हैं कि आखिर वो उस रात थे कहां?"

प्रदिति ने भी उनकी बात के समर्थन में गर्दन हिला दी।

रश्मि जी और प्रदिति दोनों ही विनीत जी के कमरे में पहुंची तो विनीत जी वहां थे ही नहीं। दोनों ने पूरा कमरा छान मारा लेकिन विनीत जी का कोई अता–पता नहीं था।

"मम्मा! पापा तो कहीं दिखाई ही नहीं दे रहे हैं।", प्रदिति ने सब तरफ देखते हुए रश्मि जी से कहा तो चिंतित होकर रश्मि जी भी बोलीं, "हां, बेटा! पर इस वक्त वो कहां जा सकते हैं?"

"अरे, क्या हुआ? तुम दोनों क्या ढूंढ रही हो?", गरिमा जी ने जब उन दोनों को कमरे में कुछ ढूंढते देखा तो वहां आकर पूछा।

रश्मि जी ने जवाब में कहा, "गरिमा! विनीत जी कहां हैं?"

"हां, मां! हमने सब जगह देख लिया पर वो कहीं नहीं दिख रहे हैं।", प्रदिति ने भी चिंता के भाव चहरे पर लाकर कहा तो गरिमा जी मुस्कुराकर बोलीं, "वो अपने एक फ्रेंड से मिलने गए हैं। इतनी सालों बाद वो अपने घर लौटे हैं तो सोचा कि जाकर अपने फ्रेंड से मिल लें। वो नहाकर सीधे वहां चले गए।"

अब जाकर रश्मि जी और प्रदिति की जान में जान आई।

"लेकिन हुआ क्या? तुम दोनों उन्हें ढूंढ क्यों रही थीं?", गरिमा जी ने सवाल किया तो उन दोनों ने एक–दूसरे की तरफ देखा फिर रश्मि जी बोलीं, "वो… वो…"

रश्मि जी को कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि गरिमा जी खुद ही बोलीं, "में समझ गई, तुम ज़रूर उन्हें खीर टेस्ट कराना चाहती होगी, है ना?"

गरिमा जी ने जब खुद ही अपनी तरफ से उनके लिए एक बहाना तैयार कर दिया तो दोनों ने झूठा मुस्कुराकर हां में गर्दन हिला दी।

फिर गरिमा जी प्रदिति के पास आईं और उसके सिर पर हाथ फेरकर बोलीं, "बेटा! तुम्हारे हाथों में तो जादू है। सच में खीर बहुत अच्छी थी।"

"आपने कब टेस्ट की?", प्रदिति ने चौंककर पूछा तो गरिमा जी बोलीं, "जब हमारी सासू मां हमसे छिप–छिपकर खीर खाए जा रही थीं तब मैंने उनसे वो कटोरी ली और खीर को चखा।"

रश्मि जी– "पर मां को खीर छुपकर खाने की क्या ज़रूरत थी?"

गरिमा जी– "क्योंकि अगर वो ऐसा नहीं करतीं तो मैं उन्हें खाने नहीं देती।"

"लेकिन क्यों, मां?", प्रदिति ने फिर हैरानी के साथ कहा तो गरिमा जी ने जवाब दिया, "क्योंकि उन्हें डायबिटीज है और डॉक्टर ने उन्हें कुछ भी मीठा खाने से मना किया है।"

अब तो रश्मि जी और प्रदिति दोनों चौंक गईं।

"क्या? और दादी ने ये बात हमें बताई भी नहीं।", प्रदिति ने कहा तो गरिमा जी बोलीं, "बेटा! अगर वो तुम्हें बतातीं तो क्या तुम उन्हें खीर देती?"

"अरे, क्या हो रहा है यहां? मुझे भी बताओ।", जब दरवाज़े से आवाज़ आई तो सबने उस दिशा में देखा, वहां आकृति मुस्कुराते हुए अपनी भौंहें उचकाकर उनसे सवाल कर रही थी।

फिर वो अंदर आई और बोली, "अरे वाह, सब के सब यहां पर हैं। कोई नई मूवी की डिस्कशन हो रही है?"

उसकी बात पर सभी ने अपने माथे पर हाथ रख लिया। गरिमा जी उससे बोलीं, "तुम्हें बस यही बातें सूझती है ना?"

आकृति ने छोटा सा मुंह बना लिया फिर प्रदिति से बोली, "दी! आप यहां क्या कर रही हैं? मुझे जगाकर, तैयार होने के लिए बोलकर खुद ही गायब हो गईं! चलिए, कॉलेज के लिए लेट हो रहा है।"

आकृति ने कहा तो एक बार फिर प्रदिति को विनीत जी का ख्याल आ गया, "नहीं, अक्कू! आज मेरा मन नहीं है। आज तुम अकेली चली जाओ। मैं कल से चली जाऊंगी।"

उसकी बात सुनकर आकृति और गरिमा जी दोनों हैरान रह गईं पर रश्मि जी समझ गईं कि वो क्यों जाने से मना कर रही है

"नहीं, बिलकुल नहीं, आपने मेरी इतनी प्यारी नींद को खराब करके मुझे कॉलेज चलने के लिए कहा अब आपको तो चलना ही पड़ेगा।"

"अक्कू! मैं कल चलूंगी ना।"

"नहीं नहीं नहीं, आप आज ही चलेंगी मेरे साथ।", आकृति ने ज़बरदस्ती प्रदिति का हाथ खींचकर ले जाते हुए कहा तो प्रदिति ने मुड़कर रश्मि जी को देखा जिन्होंने इशारों में ही उसे कह दिया, "तुम जाओ, विनीत जी के आने पर मैं उनसे बात कर लूंगी।"

फिर प्रदिति ने भी कुछ नहीं कहा और उसके साथ चली गई।

"रश्मि!", रश्मि जी प्रदिति के जाने की दिशा में ही देख रही थीं कि गरिमा जी की आवाज़ पर उन्होंने मुड़कर उन्हें देखा तो गरिमा जी बोलीं, "सब ठीक तो है ना?"

"हां, सब ठीक है।", रश्मि जी ने बहाना बनाते हुए कहा और कमरे से बाहर निकल गईं।

गरिमा जी को उनका ये व्यवहार कुछ ठीक नहीं लगा।

उन्होंने खुद से ही कहा, "कुछ तो बात है जो तुम दोनों मुझसे छिपा रही हो। अब वो क्या है वो तो मैं पता लगा ही लूंगी।"

क्रमशः