दोनों उसी दिन से काम पर लग गए थे सीमेंट फैक्ट्री में पत्थर उठाकर क्रसर तक ले जाने होते थे । काम तो मेहनत का था लेकिन अब करना तो था ही ना । शाम को जब काम से छूटे तो वो सोच रहे थे कि रात में यहीं फैक्ट्री में ही कहीं पड़ जाएंगे कोई जगह और है भी तो नहीं हमारे पास । तभी चौकीदार ने आकर बताया कि साहब ने कहा है कि फैक्ट्री के पीछे ही मजदूरों के लिए क्वार्टर्स बना रखें एक क्वार्टर में 5-7 दिन रहने के लिए साथ में व्यवस्था करवा दी है फिर तुम लोग देख लेना और हां खाना भी इंप्लाइज मैच में बहुत सस्ता मिलता है वही खा लेना मैं भी वही खाता हूंँ । एक रुपए में चार रोटी और दाल ज्यादा खाना हो तो ज्यादा ले लो यही खाना बाहर करीब ₹10 में मिलता है । सेठ जी बड़े दयालु है जो मजदूरों के लिए इतनी सारी व्यवस्था कर रखी हैं । चौकीदार ने क्वाटर दिखा दिया जिसमें उपाध्याय साहब ने उनके लिए व्यवस्था की थी ,एक कमरा रसोई और लैट्रिन । कुल मिलाकर शर्माइन को तो स्वर्ग की सी अनुभूति होने लगी थी।
- सुनो जी हमने जरूर कोई अच्छा काम किया था पिछले जन्म में तभी तो अपने आप ही भोलेनाथ ने हमारे लिए सब व्यवस्था कर दी है । अब हम ना पूरा मन लगाकर काम किया करेंगे कुछ पैसा भी जुड़ जाएगा तो फिर
- हां भागवान सो तो है मैं भी यही सोच रहा था कि यह सब तो भगवान के रूप में ही आए हैं वैसे मैंने चौघड़िया भी देखा था उसके हिसाब से कुछ शुभ योग बनते हैं
- देखो जी अपना चौघड़िया रहने दो मैं जानती हूंँ आप कितने ज्ञानी हो गांँव के लोगों को मूर्ख बना कर रखना अलग बात है
- अच्छा भगवान अब नहीं बोलूंगा
आपके चोघड़िया ने और आपने तो कभी भी नहीं बताया था कि हमे गाँव छोड़ना पड़ेगा । यह सब तो आपके जैसे पण्डों की पोपलीला के सिवा कुछ नहीं है , सब ढोंग है ।
- वो सब ठीक है भागवान
- नहीं सुनो जी यह ज्योतिष व्योतिष कुछ नहीं है यह सब ढोंगी हैं , अब इस पंडिताई को छोड़ दो यहीं पर और मन लगाकर काम करो । भूखे को रोटी चाहिए आपका ये थोथा , ज्ञान नहीं हमारी हालत भी कुछ वैसी है भूल गए अभी दो दिन पहले ही भूख ने क्या हाल किया था वह तो भला हो उस मेघवाल परिवार का जिसने रात भर का आश्रय भी दिया और रोटी भी दी नही तो न जाने क्या होता , सुना नहीं था वह क्या कह रही था वो रात में रात कोई ऊंच-नीच भी हो सकती थी। मैं तो मुंह दिखाने लायक ही नहीं रहती इसलिए अपने इस ज्योतिष के ज्ञान को इस फैक्ट्री की भट्टी मे डाल दो ।
- कह तो ठीक रही हो भागवान पर क्या करूं आदत पड़ गई है ना
- भूख सब आते सुधार देती है पंडित जी सारे धर्म-कर्म सब सुधार देती है पेट भरने पर ही ये सब चोचले होते हैं
बस इसी तरह की बातें कर रहे थे कि अचानक ही शर्मा उठा और कहने लगा
- मैं जाकर खाना ले आता हँूं यहीं खा लेंगे
- तो कैसे लाओगे बर्तन तो है नहीं अपने पास चलो मैं भी वही चलती हूँ वहीं खा लेंगे दोनों । फैक्ट्री के मैस मे पहुँच कर एक टेबल खाली सी देखकर वो दोनो बैठ गए । खाना खा लिया और दोनो खाने लगे लेकिन शर्माइन अपने आप को बेहद असहज महसूस कर रही थी क्योंकि तमाम लोगों की नजरें उसे ही घूर रही थी। एक तो इतनी सुंदर और ऊपर से मजदूरों के मैस में अकेली औरत । जल्दी से खाना खा लो जी कुछ अच्छा नहीं लग रहा है।
औरत जात को ऊपर वाले ने एक अलग से छठी इंद्री दी है अपनी और उठने वाली हर नजर को वह पहचान लेती है । उसने भी वहाँ पर ऐसी ही दो आँखें देखी थी जो बेहद वासना से भरी लग रही थी । सच तो यह है कि वह डर गई थी पूरी तरह से । वहां बैठे-बैठे उसकी हालत खराब होने लगी थी खाना खाकर जल्दी से वहां से अपने कमरे की ओर चल दिए । अगले दिन फिर से उस चौकीदार को अपनी ओर आता देख शर्मा थोड़ा सा अपनेपन के साथ आश्वस्त हुआ चौकीदार बाोला
- पंडित जी कैसे हो
- बस भाई चौकीदार जी ठीक हूं
चौकीदार बोला
- बिल्ला और मांग्या से सावधान रहना बुरा मत मानना पंडित जी लेकिन पंडिताइन जी बेहद सुंदर है और उन दोनों की नियत डोल चुकी है वैसे तो यहां कुछ भी नहीं कर पाएंगे लेकिन फिर भी पंडिताइन जी को अकेले मत छोड़ना , और शाम होने पर के बाद में फैक्ट्री या कॉलोनी के बाहर नहीं जाना है । विशेषकर फैक्ट्री में तो बिल्कुल नहीं जाना वरना कोई हादसा घट सकता है । आप भले मिनख लग रहे हो सो कह दिया भूल चूक माफ करना जी।
इतना कहकर चौकीदार अपने काम से आगे बढ़ गया दोनों अपने काम में मन लगा रहे थे । तभी मांग्या वहां पर आ गया और बहुत ही भद्द तरीके से बोला
- अरे वाह क्या गजब है लंगूर के पल्ले हूर , अरे पंडित इस फूल को क्यों तकलीफ दे रहा है देख बेचारी की गोरे गोरे गालों पर पसीना आ गया है । चल मैं पौंछ देता हूंँ तभी ना जाने कहाँ से फोरमैन आ गया और बोला
मांग्या तू अभी भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है ठीक है कल से तेरी छुट्टी करता हूंँ
- नहीं साब मैं तो तारीफ कर रहा था
- अगर दोबारा इसकी तरफ कोई भी बुरी नज़र डाली तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा अच्छे से समझ लेना नहीं तो तेरी छुट्टी हो जाएगी
दोनों पति-पत्नी को फोरमैन साहब बहुत भले लगे शर्मा ने हाथ जोड़कर फोरमैन का आभार व्यक्त किया। आज दूसरा ही दिन था वह किसी के बारे में कुछ नहीं जानता था उन्हें क्या पता कि फोरमैन सहानुभूति क्यों दिखा रहा है। धीरे-धीरे समय कटता गया उपाध्याय साहब के कहने पर क्वार्टर खाली नहीं करना पड़ा था उन्होंने बुलाकर कहा था
- मैंने तुम्हारे लिए क्वाटर कंटिन्यू कर दिया है ब्राह्मण पुत्र हो मेरा भी तो जात बिरादरी के लिए थोड़ा सा फर्ज बनता है ना इसलिए । मगर ये बात किसी से बोलना मत कि ब्राह्मण होने के कारण कर दिया है तुमसे सीनियर मजदूर भी आए हैं वो यूनियन वाले भी आए थे मैंने सब को समझा दिया है। हां थोड़ा वह मांग्या और बिल्ला के मुंह मत लगना समझ गए ना ।
- आप इंसान नहीं भगवानहो साब
- ऐसा अरे नहीं भाई मैं तो साधारण सा इंसान हूँ ठीक है अब तुम जाओ
कोई छ महीने हो गए थे काम करते करते हैं लेकिन आज भी शर्माइन की ओर ललचाए आंखें बहुत ज्यादा थी । एक आद बार कुछ हल्की सी बात हुई थी बिल्ले ने एक मजदूर को कहकर शर्माइन के गाल पर चुटकी कटवाई थी उस मजदूर की उसी दिन छुट्टी हो गई थी लेकिन मांग्या और उसके साथियों ने इस बात को उड़ाया ,यह शर्माइन तो उस मजदूर के चक्कर में थी । शर्मा को भी भी अब डर लगने लगा था उसे लगा कि गड़बड़ हो सकती है वो उसी समय उपाध्याय आपके पास गया और अपना डर कह बताया उपाध्याय जानते थे कि बिल्ला और मांगा ही नहीं फोरमैन भी शर्माइन के ऊपर आंखें गड़ाए बैठा है । किसी भी वक्त मौका मिलते ही वह कुछ भी कर सकता है कुछ सोचते तो बोले
- चित्तौड़ में मेरे एक मित्र हैं उनकी कपड़े की दुकान है उस पर काम कर लोगे? मैं उनसे बोल देता हूँ वह तुम्हें दस हजार महीना दे देंगे । मैंने बात की थी उनसे और तुम्हारी पत्नी को घर पर ही कुछ काम दिलवा देता हूँ । वहाँं पर मकान भी किराए पर दिलवा देता हूँ यहांँ अब मुझे भी ठीक नहीं लगता तुम्हारे लिए।
- जैसा उचित समझो मालिक आप
- तो ठीक है आज ही यहाँं से अपना सामान लेकर चले जाओ चित्तौड़गढ़ । मैं अभी अकाउंट में बोल देता हूँ तुम्हारा हिसाब करके पूरा पैसा दे देंगे ठीक है अब जाओ । सामान वगैरह लेकर एक घंटे बाद यहीं आ जाओ ।
उसने वही किया जाते ही शर्माइन को कहा
- भागवान अब यहाँ नहीं रहेंगे यूँ समझ लो यहाँ रहना अब खतरे से खाली नहीं है ।
- हाँ जी वह बिल्ला
- अरे बिल्ला ही नहीं सबसे बड़ा खतरा तो फोरमैन से है उपाध्याय साहब कह रहे थे उन्होंने चित्तौड़गढ़ में कपड़े की दुकान पर मुझे लगवा रहे हैं । दस हजार महीना दिलवा देंगे और तेरे लिए भी कुछ काम के लिए कह रहे थे ।
- ये साहब तो सच में ही भगवान ही हैं
देखो गोडे तो पैट को ही झुकते हैं साहब कितने ही बड़े क्यों ना हों हैं तो ब्राह्मण ही ना ,इसलिए समझो
-जी
- तो बस अभी जल्दी से ,अभी चलना है ,जल्दी से अपना सामान समेटकर यहाँ से निकलते हैं
वो दोनों ही अपना सामान लेकर कॉलोनी से निकल पड़े और उपाध्याय साहब के कमरे के बाहर खडे हो गए । अकाउंट से वह अपना हिसाब किताब करके पूरा पैसा ले चुके थे। एक नई कमीज अभी पिछले दिनों ही खरीद कर लाया था लेकिन उसने अभी पहनी नहीं थी । उस कमीज को उसने अलग ही रख लिया था । धीरे-धीरे वो दोनों मुख्य द्वार की ओर चले। हमेशा की तरह चौकीदार वहीं था , बड़ी आत्मीयता के साथ शर्मा जी ने उनसे मुलाकात की तथा अपने हाथ में अलग से रखी कमीज उस चौकीदार को थमा दी और बोला
- चौकीदार जी यह आपके प्रेम के प्रति मेरा उपहार है बस इसे स्वीकार कीजिए
चौकीदार ने भी उसके आग्रह को स्वीकार किया और खुशी के आँसुओं के साथ दोनों को विदा किया । वो दोनों को जाते हुए निहारता रहा । निंबाहेड़ा से चित्तौड़गढ़ की दूरी कोई 40 किलोमीटर लेकिन लोकल बस होने के कारण उसने 2 घंटे लग गए थे । बस स्टैंड पर उतरे तो शाम के करीब 4ः00 बजने वाले थे । सीधा एक तांगा करके करके उपाध्याय जी के द्वारा बताए गए दुकान पर जा पहुँचा । दुकान वाले को अपना परिचय दिया और कहा कि उपाध्याय साहब ने भेजा है। दुकान मालिक भी उपाध्याय साहब का बडा ही सम्मान करता था सो बोला
- उपाध्याय साहब ने तुम्हें भेजा है। ठीक है आ जाओ भीतर आ जाओ
वो थोड़ा सा ठिठका तो सेठ को समझते देर ना लगी कि इसकी घरवाली भी साथ है वा फिर बोला
- अरे आ जाओ कोई बात नहीं इसे भी ले आओ और यहाँ बिठा दो
सेठ ने एक बैंच की ओर इशारा करते से कहा था।
- काम की कोई बात नहीं है वो कल से शुरू करना अभी तो आज तुम पास वाली धर्मशाला में रुक जाओ । कल से मैं कोई व्यवस्था कर दूंगा । हां एक बात काम पूरी ईमानदारी से करना है ठीक है ना ।
- जी सेठ जी
बस उसने इतना ही बोला दुकान मालिक ने उसे धर्मशाला का रास्ता दिखाया और कहा वह चौकीदार होगा वहां उससे कहना कि मैंने भेजा है और रात को खाना यह पास वाले ढाबे में मिल जाएगा । दोनों पति-पत्नी अपना सामान लेकर पास ही धर्मशाला में चले गए । कमरा आराम से मिल गया था एक बड़ी सी खाट दी थी जिसमें 2 लोग सो सकते थे कुल मिलाकर रात ठीक से कट सकती थी । वो शाम को पास वाले ढाबे मे जीकर आठ रोटियां और दाल ले आया था । खाना खाकर दोनों सो गए थे आज वह निश्चिंत है पर थोड़ा सा मन में खटका जरूर था कि ओपरी जगह है ऐसे में लुगाई भी सुंदर है कहीं कोई चोट ना हो जाए । इसी कारण उसने दरवाजे में लकड़ी की आगळ अच्छे से सरका दी थी । दो बार उसने अच्छे से चेक कर लिया कि बाहर से कोई भी नहीं आ सकता है ,निश्चिंत होकर वो सो गए थे । सुबह उठकर निवृत्त होकर पास ही के ढाबे से चाय के दो ग्लास ले आया ,एक खुद के लिए और एक अपनी पत्नी के लिए । कोई 10ः00 बजे के आसपास हो जल्दी से तैयार होकर दुकान पहुंच गया था । वह बेहद उत्सुक था नई जगह नई नौकरी के लिए आज पहला दिन था । इधर शर्मा जी का आना हुआ उधर दुकान मालिक दीनदयाल सेठ शर्मा को देख कर मन ही मन प्रसन्न हुआ था उसकी आंखों से पढ़ लिया था उपाध्याय जी ने जैसा बताया था वैसा ही लग रहा है। एकदम आँख बंद करके कोई विश्वास नहीं करना चाहता था उसने शर्मा जी को चाबी देते हुए कहा
- सुबह ठीक 10ः00 बजे से दुकान खोलनी है
शर्मा जी ने भी बेहद प्रसन्न भाव से कहा
- जी यही होगा बल्कि मैं तो यह कहूंगा मालिक 9ः30 बजे ही क्यों ना खोल दें हम ,ग्राहक तो भगवान होता है ना जाने कब आ जाए । सेठ दीनदयाल प्रसन्न हो रहा था सोच रहा था यह तो सही आदमी मिल गया प्रभु कृपा से चलो अच्छा है इसको नहीं जाने दूंगा । सच में 6 महीने में ही दुकान की कायापलट हो गई थी। ग्राहक उसके मृदु स्वभाव और कपड़ा दिखाने के हुनर के कायल थे । एक बार ग्राहक उसके पास आ गया तो वो निश्चित रुप से कुछ ना कुछ तो लेकर ही जाएगा । ये हुनर कोई साधारण हुनर नहीं था चित्तोड़गढ जैसे छोटे से शहर में आत्मीयता ग्रामीण परिवेश की तरह ही कूट कूट कर भरी थी बस वो भी उनके साथ बड़े ही आत्मीय भाव से बात करता था जबकि सेठ ग्राहक से कभी भी इतना आत्मीय नहीं होता था और ना कभी कपड़े की कमजोरी के बारे मे ग्राहक को बताता था जबकि वो साफ कह देता था कि यह कपड़ा थोड़ा सा कमजोर है यदि कोई कपड़ा हल्का होता वह पहले ही बोल देता था पूरे विश्वास के साथ नहीं कह सकता हूं इसके बारे में, लोग उसकी आत्मीयता और सच्चाई पर ही फिदा थे। सेठ दीनदयाल पूरी जिंदगी भर से कपड़े बेच रहा था ,कभी इतने ग्राहक नहीं जोड़ पाया था जितने 6 महीने में जुड़ गए थे। लोग सेठ की बातों पर कभी भी भरोसा नही कर पाए थे लेकिन वो ही लोग अब उसकी बातों पर आँख मूंद कर भरोसा कर लेते थे । एक विश्वास के साथ वो लोग कपड़े लेकर जाते थे और इसी विश्वास को बनाए रखता था वो शर्मा जी । सेठ भी अचम्भित था उसकी कपड़ों के बारे मे जानकारी को लेकर। जो काम वो पूरी जिन्दगी भर नहीं कर पाया वो काम इस आदमी ने केवल छ महीने मे ही कर दिया । छ महीने बाद ही सेठ ने उसकी तरक्की कर दी और अपने खर्चे पर ही उसको एक मकान दिलवा दिया जो दुकान के बिल्कुल ही करीब था । दोपहर में खाने के लिए आने-जाने में ज्यादा समय नहीं लगे और ज्यादा समय तक दुकान में रह सके । शर्मा जी भी बेहद लगन से और पूरी निष्ठा के साथ करीब 12 घंटे तक दुकान में रहते थे । पहले इसी दुकान को सेठ दीनदयाल करीब 8 घंटे ही खोल पाता था ।
समय के खेल भी निराले होते हैं कब कैसे पलटी मारता है कोई नहीं जानता । दो साल इसी तरह ना जाने कब बीत गए और शर्मा जी ने पूरी दुकान का बोझ अपने कंधों पर ही ले लिया था । इधर सेठजी असाध्य रोग से ग्रसित हो गए और सेठानी उसकी देखभाल में बीमार हो गई थी दोनों बीमारों को संभालना उनकी सेवा करना दुकान संभालना अब शर्मा दंपति के लिए दैनिक कार्य था । शर्मा जी दुकान पर और शर्माइन सेठ और सेठानी की सेवा में घर पर । अपना अंतिम समय देखकर सेठजी ने एक वकील को बुलवा भेजा और अपनी वसीयत लिख डाली । दुकान उन्होंने शर्मा जी के नाम कर दी थी मकान सेठानी के नाम कर दिया और फिर से सेठानी की मृत्यु उपरांत वहीं मकान शर्मा जी के नाम हो जाएगा ऐसा भी लिख दिया था । साथ ही यह भी लिखा था कि सेठ की यदि मृत्यु पहले हो जाती है तो सेठानी की सम्पूर्ण जिम्मेदारी भी शर्मा दंपति की ही होगी । यदि ऐसा नहीं करते हैं तो दुकान भी उसकी नहीं रहेगी । सेठ के परिवार वाले उसकी पूरी संपत्ति पर आँखें गड़ाए बैठे थे वे दिन-रात सेठ सेठानी के मरने की कामना करते थे । निसंतान होने के कारण शर्माइन सेठानी के दर्द को बहुत अच्छे से समझती थी। सेठानी तो शर्मा और शर्माइन को अपने बेटे बहू के रूप में पहले ही मानने लगी । वो सेठ जी की चिंता में बेहद कमजोर हो चुकी थी येे समझ लो कि चलता फिरता अस्थि पंजर रह गई थी । एक रात वो सेठ जी के पास खाना खाकर सोई लेकिन फिर नहीं उठी । सेठानी का क्रिया कर्म सेठ जी ने शर्माजी के हाथों ही करवाया था । जिससे उसके परिवार वालों को यह संकेत मिल गया था कि सेठ परिवार के बजाय अब शर्मा को ही संपूर्ण जायदाद देकर मरेगा । बस इसी बात पर आए दिन घमासान होने लगा , हर दिन सेठ के परिवार से कोई ना कोई आकर घर के बाहर ही कोहराम मचा जाता था ,लोग तमाशा देखते थे । जब सब कुछ ठीक था तो इनमें से एक भी रिश्तेदार कभी भी नजर नहीं आया था लेकिन सेठानी के चल बसने के बाद और सेठ जी की असाध्य बीमारी की जान सब के मुंह में लार टपकती थी उस दौलत के लिए जो सेठ जी के शर्मा जी निर्लिप्त भाव से सेवा करते थे । वैसे भी उन दोनों पति-पत्नी को तो यह भी भान नहीं था कि सेठ ने पूरी जायदाद शर्मा के नाम पहले ही लिख दी है। सेठ जी की तबीयत बिगड़ने पर शर्मा जी ने उसे जनरल अस्पताल में भर्ती करवाया वह चाहता था कि सेठ जी अंतिम समय तक तकलीफ रहित रहें। पांच-सात दिन अस्पताल में भर्ती रहने के बाद भी सेठ जी बच नहीं पाए। उनके क्रिया कर्म के लिए गिद्धों की तरह रिश्तेदारों में भी आपस में खींचतान चलती रही इसी कारण दो दिन तक सेठ जी का अंतिम संस्कार नहीं हो पाया तभी पुलिस आई पुलिस के साथ एक वकील भी था । पुलिस ने बताया कि सेठ जी के अंतिम संस्कार का कानूनी अधिकार केवल शर्मा जी को है । सेठ जी की विल के अनुसार उनका अंतिम संस्कार केवल शर्मा जी ही कर सकते हैं। यह बात सुनकर सभी रिश्तेदार उखड़ गए थे। एक -दो रिश्तेदारों ने तो शर्मा जी के साथ मारपीट तक कर डाली। इन सब बातों से व्यथित शर्मा जी ने कहा कि वह अंतिम संस्कार नहीं करना चाहता है सेठ जी के परिवार में से ही कोई व्यक्ति कर ले किंतु पुलिस की ओर से अनुमति नहीं मिली और कहा कि यदि शर्मा जी को यह नहीं करने दिया गया तो पुलिस लावारिस समझ कर स्वयं क्रिया कर्म करेगी। धीरे-धीरे वहां से सभी रिश्तेदार हट गए, शर्मा जी ने अंतिम संस्कार कर बारह दिन तक सभी कर्मों के अनुसार संपन्न करवा कर लेने का मन बना लिया था। ईमानदार था नहीं चाहता था कि जिस पर उसका मालिकाना हक नहीं है वह कैसे ले। रिश्तेदारों ने मिलकर अदालत में केस दाखिल कर दिया था उनके रिश्तेदार सेठ दीनदयाल की संपूर्ण जायदाद शर्मा हड़पना चाहता है । इसी कारण से उसने सेठ जी का कत्ल किया है। मामला संगीन था, पुलिस जानती थी कि मुकदमा झूठा है लेकिन पुलिस के लिए कमाई का जरिया बन गया था । उसको उठा लिया गया और 3 दिन तक थाने में रखने के बाद अदालत में पेश किया गया । शर्मा दंपति अपने भाग्य पर रो रहे थे फिर भी शर्माइन को अपने भोलनाथ शिव पर पूरा भरोसा था । दोनों को अदालत के कटघरे में हथकड़ी सहित खड़ा कर दिया गया । पुलिस ने अदालत को बताया कि आदेशानुसार मुल्जिमान को पेश किया है । कार्यवाही शुरू हुई तभी एक वकील ने अदालत को कुछ कागजात अदालत को दिए । अदालत ने जब कागजात पंश किए जाने का रिश्तेदारों और उनके वकील ने पुरजोर विरोध किया किन्तु अदालत ने वो कागजात स्वीकार कर लिए । पुलिस को भी रिश्तेदारों से टुकड़े मिल चुके थे और आगे के लिए भी बड़ी उम्मीद थी सो पुलिस का नया पेच सामने आया कि यह वसीयत जबरदस्ती लिखवाई गई है ताकि संपूर्ण जायदाद शर्मा को मिल सके । शर्मा दंपति मौन साधे सब ऊपर वाले के भरोसे छोड़ चुके थे । उस वकील ने जबरदस्त जिरह करते हुए कहा कि यह कागजात अभी के नहीं हैं। मेरे पास सुरक्षित रखे यह कागजात अभी के नहीं बल्कि दो साल पहले के हैं जो सेठ जी ने बनवा कर मेरे पास सुरक्षित रखवा दिए थे। इसकी एक प्रति पहले ही अदालत के पास सुरक्षित रखी हुई है । पड़ताल की गई ,वसीयत पर गवाहों को बुलाया गया और शर्मा दंपति को निर्दोष साबित करते हुए बाइज्जत बरी किया गया । शर्मा का मन उचट चुका था लेकिन चट्टान की तरह अडिग शर्माइन ने सब कुछ संभाला था। शर्माजी दुकान पर जाने लगे और इससे पहले जब शर्मा जी नहीं जा रहे थे तब खुद शर्माइन दुकान पर बैठने लगी थी।