काव्यजीत - 6 Kavya Soni द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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काव्यजीत - 6

1.ये जो दर्द मीठा सा है
बेचैन से अहसास है
बहके से मेरे जज़्बात है
खुमारी उसके इश्क की है
प्यार नैन की चाहत
उसका दीदार है
जो नज़रों के सामने
वो आ जाए
दिल ये पाए करार है
क्या ये ही प्यार है?
हमसफ़र बनने को वो भी
क्या ऐसे ही बेकरार है?
उसकी इजहार ए मुहब्बत का
दिलबर इंतजार है


2.तुम क्यों इतना याद आते हो
दिल को बेचैन कर जाते हो
मैं चंचल तितलियों सी
क्यों दिल में अपने कैद किए जाते हो
खुले गगन में मेरा ठिकाना
मैं क्या बनू किसी का आशियाना
मेरी चाहत ना बन तू दीवाना
खुशियां ना तुम पाओगे
मुझे अपनी ख्वाहिश जो बनाओगे
ना बन तू परवाना
वरना एक दिन तुम्हे है जल जाना
ना बांध तू अपने मन से
तड़प और बेचैनी पाओगे जीवन से
तुम खामोश दरिया लगते है
मैं मचलती लहर सी
क्यों इतना याद करते हो
क्यों तुम याद आते हो
बेचैन सा मन कर जाते हो


3.हर किसी ने छोड़ा मेरा साथ
जिंदगी तू क्यों नहीं हो जाती नाराज़
छोड़कर तू भी चली क्यों नहीं जाती
किस वजह तू छोड़ नहीं पाती
या दर्द और तड़प मेरी देख
खुशियां तू है पाती
दो चेहरों का भार ना अब
हमसे उठाया जाए
दिल में दर्द का तूफान समेटे
अब ना हम मुस्कुराया पाए
कदर ना करे किसी तो
सुना है खुदा हमसे वो छीन लेते है
बेमतलब बेवजह सी ये जिंदगी
तुमसे मुझे जुदा क्यों भी करते है
बेबसी जो दी जो रब ने सौगात
बेजान दिल देते ना पनपने देता
दिल में एहसास
ए जिंदगी तुझे देते है इजाजत
छोड़ जा तू ना रही तुमसे हमे कोई चाहत


4.सुनो
दिल में मेरे जो है बोल दूं
सारे जमाने को बताकर
राज़ ए मुहब्बत खोल दूं

थामे जो तू हाथ मेरा
तेरे रंग में रंग जाऊं
बंधन इस जग के सारे मै तोड़ दूं

जिंदगी मेरी उदास है
खुशियों पर मेरा भी हो जाए इख्तियार
प्रीत डोर जो तुमसे मै जोड़ लू

तेरे लिए प्रीत लिखने दिन गुजर जाए
रातें भी बीते तेरे ख़यालो मे
ख्वाबों की राह तेरी तरफ जो मै मोड़ लू

चाहत ,ख्वाहिशें , सुकून ,राहतें
तुमसे मुझे मिले तमाम
साथ तेरा जो मिले इस जग मै छोड़ दूं

कर दूं जिंदगी अपनी मै तेरे नाम.


5.
बड़े दिनों बाद दिल में ये ख्याल आया
क्यों न खुद का लिखा पढ़ा जाए
खोकर वक्त के आगोश में
बीते लम्हों में गुम रहे फिर होश में
कुछ पन्ने पढ़े हमने
कवियत्री होने के ख्याल में
भ्रम पाले बैठे थे जहन में
भ्रम टूटते जरा भी देर ना लगी
हर पन्ने पर एहसासों की
कहानी थी सजी
हर पन्ने को जब जोड़ा
तू ही मिला कही ज्यादा कही थोड़ा
तुमसे ही हर लफ्ज़ की थी शुरुआत
तुम पर हर अल्फ़ाज़ का था अंजाम
फिजाओं में भी तेरे अहसास की मिली सरगोशियां
हर लफ्ज़ तोड़े ये खामोशियां
महक तुम्हारी तेरे ख्यालों में खींच कर ले जाए
खुद को तुझमें ढूंढती मैं तुझमें ही दिल खो जाएं
कैसे तुम्हे बताएं शब्दो को तू शायद ना समझ पाए
हर अहसास हर बात तुमसे ही जुड़ी
मेरे शब्दो की लड़ियां तेरी राह ही मुड़ी
मेरी हर कविता कहानी में तुम
शायरा होने के वहम से बाहर निकले आज हम