काव्यजीत - 5 Kavya Soni द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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काव्यजीत - 5

1.
एक ख्वाबों का जहां
सजा कर दिल में
संग तेरे मै आई
चाहतों की हसीन दुनिया भी
थी मैने सजाई
क्यों तुमने मुहब्बत मेरी
बिसराई
बिखरे ख़्वाब जब मिली
रुसवाई
ये दर्द की कहानी
कैसे लफ्जों में बयां होगी
हमने तो न कभी सोचा
ये खुशियां हमसे यूं जुदा होगी
क्यों मुहब्बत मेरी
तू समझ ना पाया
क्यों दिल से मुझे ना
अपनाया
क्या शिकायत हम
जमाने से करे
खामोश रहे तो ही अच्छा
नही तो हकीकत तेरी भी
जमाने में बयां होगी


2.
मुहब्बत मेरी जरा सी नादान
कैसे समझाऊं तुम्हे
अपने दिल के अरमान
जो दिल में है अल्फाजों में कहना ना आए
काश तू निगाहें मेरी पढ़ ले
दिल बात समझ जाए
मुझे ये इश्क की हदें ना तय करना आए
जिस्म से परे रूहानी इश्क हो जाए
तेरे आगोश में बीते जो रात
एक वही तो है सुकून भरे अहसास
खामोश रात में तेरी धड़कने करे मुझे जब बात
रूहानियत भरे वो इश्क के जज़्बात
नादान इश्क मेरा
जो अल्फाजों में ना कह पाए
पढ़ लेना निगाहे मेरी
दिल बात तू समझ पाए

3.
खामोश सा रिश्ता हमारा
अब तो नज़रों से भी
ना बात होती है
मुस्कुराना छोड़ दिया
गम अब बरसात होती है
एहसासों ने दम तोड़ा
जब से तुमने मुंह है मोड़ा
अनदेखा तेरा मुझे कर जाना
साथ रह कर भी अजनबी हो जाना
खलता बड़ा दिल को ये एहसास
रिश्ता ढोह रहा
बिखरे अरमानों की जैसे लाश
तुमने छीने रिश्तों के उजाले
दी अंधेरों की सौगात
एक दूजे को पाकर भी
रह ना पाए साथ
रिश्ते ये चाहत तुम्हे आए नहीं रास
खामोश रिश्ता ना अपनापन ना प्यार के
उसमे अहसास

4.
एक ख़ामोश तन्हा सा हूं मै राग
कल तक रंग थी आज समझे
हू मै दाग़
प्रीत छूटी मिट गया अनुराग
बेआवज सा अब हूं मै साज़

अब तलाशों ना मुझमें कोई मतलब
बेवजह बेमतलब सा अहसास हूं

बस उलझे जज्बातों का भंवर हूं
डूबी जिसमें मेरी चाहतों की कश्तियां
दर्द मे लिपटी मिले अब ती सिर्फ
लफ्ज़ों की अस्थियां

जरा दूरी बनाएं रखना
अब ना हो कोई नजदीकियां
इस भंवर में डूब ना जाए कहीं
तेरी खुशियां

दर्द और घुटन का दिल में तूफान है
कल तक रंग थी आज समझे वो दाग़ है

दर्द की लहरों में सिमटी मेरी हर धड़कन आज है।।



5.
समुंद्र तट सी है जैसे ये जिंदगानी
तन्हा अकेली मैं अधूरी सी
जैसे कोई कहानी
ख्वाहिशों की लहरें समुंद्र में उठती
मन के सागर में अठखेलियां करती है
उन लहरों को ना मिले पाए किनारा
हकीकत के भंवर से जब टकराती है
जिम्मेदारियों के अनगिनत यहां तूफान
कैसे हो पूरे ख्वाहिशों की लहरों के
समुंद्र तट से मिलन के अरमान
जो कभी किनारे तक पहुंच जाती है
क्षण भर में फिर मन के समुंद्र में लौट जाती है
जीवन के कुछ क्षणों की प्यास बुझाकर
कुछ तो तड़पता प्यासा छोड़कर
कुछ समुंद्र तट में गुम हो जाती
कुछ फिर मन के सागर में दफन कर दी जाती
हम खामोशी से कर स्वीकार
कभी शांत होकर कभी मन मसोज कर
हमारे मन में उठते जब ख्वाहिशों के तूफान
ख्यालों के भंवर में को जाते है
समुद्र तट से तन्हा हो जाते है
करते खामोशी से इंतजार
हमारी अनगिनत ख्वाहिशें
दम तोड़ती, टूट कर बिखर कर
तैरती कभी पाए करार