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काव्यजीत - 1

खबर नहीं शायद तुम्हे
तेरे मेरे प्यार के पल वो अहसास गुजर रहे
खबर नहीं तुम्हे शायद मगर ख्वाब प्यार के
बिखर रहे है
तुम्हे अहसास नहीं बहुत कुछ बदल रहा है
रहते थे जिस अंदाज हम पहले
शायद मौसम वो बदल रहा है
होकर बेपरवाह सारे जहां से हम जिया करते थे
एक दूजे के ख्यालों में खोए रहते थे
बेफिक्र होकर तेरे संग वक्त बिताती थी
अपने दिल को हर बात तुम्हे बताती थी
अब फुरसत के पल भी तुम्हे मेरे साथ खाल रहे है
तेरे प्यार के मिजाज बदल रहे है
कितना खुश तुम मेरे साथ रहा करते थे
होने नही देते थे एक लम्हे को भी उदास
मुझसे खो देने से भी कितना डरते थे
अब मेरी उदासी में तेरे साथ का इंतजार करती हूं
हो जाते हो मुझसे परेशान अब
उदास चेहरा मेरा तुम्हे नही अब बेकरार करता है
अब शायद तू मुझे खोने से भी नही डरता है
मेरे रूठने से फर्क पड़ने वाला वक्त शायद
अब गुजर रहा है
मेरे इश्क का आशियाना अब बिखर रहा है
वैसे तो सुना था मैंने इश्क का फितूर बहुत जल्दी
उतर जाता है
मगर ये न जाना था प्यार करने वाला शख्स इतना जल्दी बदल जाता है
अभी अभी तो संग तेरे खुश रहना सीखी थी
साथ तेरे खुशियां मुझे अपनी दिखी थी
कितना भी करती तुमसे तकरार
मेरे करीब ही तुम्हे मिलता था करार
क्या तुम्हे कभी ये ख्याल नही आता
बदल रहा है इश्क के मौसम का मिजाज
तुम्हारे मन में क्या ये सवाल नही आता
जन्मों जन्म के इस सफर में
क्यों दर्द ,गम , रुसवाई, तन्हाई, जुदाई
रंजिशो के मोड़ आ रहे है
बेपरवाही का ये तेरा अंदाज ख्वाब में सुनहरे
तोड़ जा रहे है
पहले सा नहीं अब कुछ वक्त प्यार का अब गुजर रहा
आशियाना मेरी चाहतों शायद अब बिखर रहा है
अहसास नही तुम्हे शायद मगर तेरे मेरे दर्मियां
बहुत कुछ बदल रहा है
गम को घटा छाई प्यार का मौसम ढल रहा है


ख्वाहिशों का काफ़िला
कैसा है ये ख्वाहिशों का काफ़िला
बढ़ता ही जा रहा दिल की चाहतों का मेला
दिल उसके संग जीने के ख्वाब सजाएं
उसकी बाहों में हो आखरी सांस
उसके पहलू धड़कने थम जाए
ख्याल दिल में हर बार ये ही आए
उसके संग रहना है उससे लड़ना भी है
उसके लिए पागल हो जाना है
उसके लिए जमाने से अड़ना भी है
है ख्वाहिश उसके आगोश में रात ढले
उसके पहलू में दिन खिले
उसको अपना बनाकर उसका मुझे होना है
उसकी खुशी में हंसना है उसके दर्द में रोना भी
हसरत है उसके मुस्कान की वजह बनना
उसकी जिंदगी हर किस्से में जगह पाना भी है
उसे अपना हमकदम बनाना है
संग उसके फुरसत के पल बिताना भी है
सुनना है नगमा उसके दिल का
अपनी धड़कनों के साज सुनाना भी है
है हसरत वो हक जताएं हक से गुस्सा कर दिखाए
अपना हक भी उस पर जताना
नखरे उठवाना गुस्सा अपना दिखाना भी है
उसकी आंखों से नमी को चुराना है
लबों पर मुस्कुराहट सजाना भी है
संग उसके सारी रातें जागना है
चांद सितारों से सजे आसमान को तकना है
उसे अपनी रूह में बसाना है
सीने में दिल की जगह उसके अहसास सजाना है
उसके लिए जज्बातों को कविताओं में सजाना
कविताओं से एहसासों फूल खिलाना है
उसकी बातों के अफसाने बनाने है
उसके संग बीते लम्हों को यादों के काफ़िले सजाने है
तेरे संग बहकना है संग तेरे चहकना भी है
तेरी होकर मुझे महकना भी है
इन हसरतों से हकीकत का सफ़र जीना है
इन ख्वाहिशों का जाम पीना भी है




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