रिश्ते… दिल से दिल के - 22 Hemant Sharma “Harshul” द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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रिश्ते… दिल से दिल के - 22

रिश्ते… दिल से दिल के
एपिसोड 22
[दर्द और तकलीफ की काली रात]

जब बहुत देर तक गरिमा जी अपने कमरे से बाहर नहीं आईं तो विनीत जी चिंतित होकर उनके कमरे की तरफ चले गए पर जब उन्होंने कमरे का दरवाज़ा खोला तो वहां सबकुछ बिखरा डला था और सबसे ज़्यादा हैरानी तो उन्हें तब हुई जब उन्होंने वहां बेहोश पड़ी रश्मि जी को देखा। वो भागकर उनके पास गए और उनके गालों को थपथपाकर उन्हें उठाने की कोशिश की पर वो नहीं उठीं तो उन्होंने उन के चहरे पर पानी के छींटें डाले जिससे रश्मि जी ने धीरे से आंखें खोलीं।

उनके होश में आते ही विनीत जी ने उनसे एक साथ सवाल किए, "रश्मि! तुम यहां ऐसे बेहोश क्यों पड़ी थी? ये सारा सामान क्यों बिखरा हुआ है? और गरिमा… गरिमा कहां है?"

गरिमा जी का नाम सुनकर रश्मि जी उठकर बैठ गईं और डरते हुए बोलीं, "गरिमा… गरिमा तो…"

"क्या हुआ? तुम… तुम ऐसे डर क्यों रही हो? बताओ, गरिमा कहां है?"

"वो… वो रॉकी…", रश्मि जी ने बस इतना कहा और विनीत जी सारा मांझरा समझ गए।

सारे मेहमान एक–एक करके अपने घर जा रहे थे पर दामिनी जी को ये बात बहुत अजीब लग रही थी कि पहले गरिमा जी इतनी देर से अपने कमरे में थीं और फिर विनीत जी भी उनके कमरे से वापस नहीं आए वो यही सोच रही थीं कि जल्द ही सारे मेहमानों को विदा करें और जाकर देखें कि मांझरा क्या है?

सभी को विदा करके दामिनी जी गरिमा जी के कमरे में पहुंची तो देखा वहां सारा सामान यूंही फैला हुआ था, सभी चीजें अस्त–व्यस्त थीं और वहां ना तो विनीत जी थे, ना गरिमा जी और ना ही रश्मि जी।

"गरिमा, उसकी दोस्त और विनीत तीनों ही घर से गायब हैं! आखिर ये सब गए कहां और वो भी इतने खास दिन!" ये सोचकर उनका दिल बेहद डर रहा था।

"मैं गरिमा को नहीं बचा पाई, उन सबसे गरिमा को नहीं बचा पाई वो उसे ले गए। कहीं वो उसे कुछ कर ना दें।", रश्मि जी डरते हुए और रोते हुए गाड़ी में बैठे ये सब कह रही थीं। उनके पास में विनीत जी गाड़ी चलाते हुए रास्ते पर इधर–उधर देख रहे थे।

रश्मि जी की बात सुनकर वो बोले, "तुम रोओ मत, मैं अपनी गरिमा को कुछ नहीं होने दूंगा। वो रॉकी कुछ नहीं कर पाएगा और इस सबमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है तो तुम इस सबका दोष खुद को मत दो।"

रश्मि जी रोते हुए ही बोलीं, "नहीं, ये सब मेरी वजह से ही हुआ है। मैं उसके पास थी फिर भी वो रॉकी उसे ले गया, गरिमा ने मुझे उससे बचा लिया पर मैं उसे उससे नहीं छुड़ा पाई।"

विनीत जी उनकी बातों से उक्ता चुके थे, वो थोड़े गुस्से के साथ बोले, "तुम थोड़ी देर शांत रहोगी। अगर तुम्हें इतना ही गिल्ट हो रहा है तो प्लीज मेरी हेल्प करो गरिमा को ढूंढने में, देखो आसपास कहीं तुम्हें उनमें से कोई भी दिखे तो; मुझे पूरा यकीन है कि वो लोग इसी रास्ते से कहीं गए होंगे क्योंकि ये सबसे सुनसान रास्ता है।"

रश्मि जी ने अपने आंसुओं को पोंछा और खिड़की से बाहर की तरफ देखने लगीं और भगवान से ये प्रार्थना भी कर रही थीं कि प्लीज गरिमा जी उन्हें सही सलामत मिल जाए।

रश्मि जी ये सब सोच ही रही थीं कि अचानक से उनकी नज़र के सामने कुछ ऐसा आया कि वो उसे देखकर डर गईं और कांपते हुए होठों से बोलीं, "विनीत जी!"

विनीत जी ने गाड़ी ड्राइव करते हुए ही बिना उनकी तरफ देखे कहा, "हम्म्म्?"

रश्मि जी ने आंखें बंद करके विनीत जी के हाथ को ज़ोर से पकड़ा और खिड़की से बाहर की तरफ इशारा किया, "गरिमा…"

विनीत जी ने जब उधर देखा तो उनके हाथ से स्टेरिंग व्हील छूट गया जैसे तैसे उन्होंने गाड़ी को रोका और एक सदमें में गाड़ी से बाहर आए और जो नज़ारा उनके सामने था उसे देखकर तो उनकी रूह कांप गई… गरिमा जी उनके सामने सड़क पर बेसुध होकर औंधे मुंह पड़ी हुई थीं उनके शरीर पर एक भी कपड़ा तो नहीं था लेकिन बहुत सारे खरोंचने के निशान थे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे किसी भूखे भेड़िए ने उनका शिकार किया हो, गरिमा जी की आंखें खुली हुई थीं पर उनमें कोई भाव नहीं थे उनकी गाल पर आंसुओं के निशान थे जिन्हें देखकर साफ पता लग रहा था कि कितना रोई होंगी उस पल लेकिन फिर भी उस हैवान ने उन्हें नहीं छोड़ा था उनके बाल बेतरतीबी से कुछ उनके चहरे पर और कुछ उनकी पीठ पर डले हुए थे।

विनीत जी ने ये देखकर एक बार को तो अपनी आंखें बंद कर लीं फिर अपने कांपते हुए पैरों को वो गाड़ी की तरफ लेकर गए और उसमें से एक शॉल लाकर कांपते हुए हाथों से गरिमा जी के ऊपर डाल दी और ऐसा करते हुए उनकी आंखों से आंसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा लेकिन गरिमा जी को कोई भी फर्क नहीं पड़ा वो अब भी उसी तरह सड़क पर पड़ी हुई थीं उन्होंने मुड़कर भी नहीं देखा कि उनके ऊपर किसने कपड़ा डाला।

रश्मि जी जो गाड़ी में बैठे हुए अपना मुंह छुपाकर रो रही थीं लेकिन उनकी गाड़ी से बाहर आने की हिम्मत नहीं हो रही थी वो तो इस सबके लिए खुद को ही दोषी ठहरा रही थीं गरिमा जी के पास आना तो दूर रहा वो उन्हें देख भी नहीं आ रही थीं।

विनीत जी वहीं बैठ गए और गरिमा जी को शॉल अच्छे से ओढ़ाया फिर उन्होंने उन्हें सीधा किया तो देखा उनका पूरा चहरा खरोंच लिया गया था नाखूनों के बहुत सारे निशान थे उस पर। जिसे देखकर विनीत जी का दिल बार–बार उनके शरीर से बाहर आने के लिए तड़प रहा था।

जब विनीत जी ने रोते हुए गरिमा जी के सिर को अपनी गोद में रखा तो गरिमा जी ने उनकी आंखों में देखा और एक बार फिर गरिमा जी की आंखों से आंसू बह आए लेकिन उनका चहरा अब भी भावशून्य था। विनीत जी उनकी इस हालत को देखकर बार बार तड़प रहे थे।

"ना तो विनीत का फोन लग रहा है और ना ही गरिमा का। पता नहीं कहां होंगे मेरे बच्चे? मुझे तो बहुत डर लग रहा है। कहीं किसी मुसीबत में ना हों! नहीं, नहीं, मेरे महादेव ऐसा कुछ नहीं होने देंगे।", दामिनी जी चिंतित होते हुए ऊपर की तरफ देखकर बोलीं।

विनीत जी हॉस्पिटल में पिलर से लगे हुए खड़े थे उनके चहरे पर भले ही कोई भाव नहीं थे पर उनकी आंखें उनके दर्द को साफ बयां कर रही थीं। पास में रश्मि जी बैठी हुई थीं उनकी तो आंखें जैसे सूखने का नाम ही नहीं ले रही थीं क्योंकि आंसू हर पल उन्हें भिगा रहे थे। वो खड़ी होकर विनीत जी के पास आईं और उनके कंधे पर हाथ रखकर बोलीं, "विनीत जी!"

विनीत जी ने अपने दर्द को छुपाने की कोशिश करते हुए मुड़कर उनकी तरफ देखा और बोले, "हां!"

रश्मि जी ने उनके आगे हाथ जोड़ दिए और बोलीं, "आज गरिमा की जो भी हालत है उसकी वजह सिर्फ मैं हूं अगर उस दिन वो मेरे लिए रॉकी से नहीं लड़ती तो आज ये सब ना होता। उसने मेरी इज्ज़त तो बचा ली पर मैं उसकी इज्ज़त नहीं बचा पाई।"

विनीत जी अच्छे से जानते थे कि इस वक्त अगर वो दुःखी हुए या उन्होंने अपनी भावनाओं को उनके सामने प्रकट किया तो रश्मि जी के मन की ग्लानि और भी ज़्यादा बढ़ जाएगी इसलिए वो खुद को सामान्य करते हुए बोले, "ऐसा कुछ नहीं है। तुम्हारी वजह से कुछ नहीं हुआ है। तुमने तो अपनी पूरी कोशिश की थी ना गरिमा को बचाने की पर… शायद हम सबके नसीब में यही लिखा था।" विनीत जी के मुंह से जैसे तैसे ये शब्द निकल रहे थे।

"मैं अभी आता हूं।", कहकर विनीत जी वहां से दूसरी तरफ चले गए। चलते चलते उनकी आंखों में आंसुओं की बाढ़ आ गई वो चाहकर भी अपने आंसू रोक नहीं पाए। वो तेज़ी से हॉस्पिटल के एक कमरे की तरफ चले गए जहां कोई भी नहीं था। उसके अंदर जाकर उन्होंने खुद को बंद कर लिया और उससे टिककर वो वहीं बैठ गए। अब तो उनसे कंट्रोल ही नहीं हुआ और वो बुरी तरह से रो दिए, "क्यों, भगवान? क्यों? क्यों किया मेरी गरिमा के साथ ऐसा? आखिर गलती क्या थी उसकी जो उसे इतनी बड़ी सज़ा मिली? उसने तो सिर्फ उन लड़कियों की इज्ज़त को नीलाम होने से ही बचाया था ना! अगर किसी इंसान को उसकी मदद के बदले ये मिलता है तो फिर तो स्वार्थी हो जाना ही बेहतर है, अपनी आंखें मूंदकर चलना ही ठीक है।"

उन्होंने अपने आंसुओं को पोंछा पर कोई फायदा नहीं था वो फिर से उनके गालों पर लुढ़क आए, वो तड़पते हुए बोले, "कितनी खुश थी मेरी गरिमा आज, आज उसका सबसे स्पेशल दिन था आज का दिन हम दोनों के लिए यादगार बनने वाला था पर… अब… अब तो ये किसी सदमे से कम नहीं है। उस दरिंदे की दरिंदगी की वजह से कितना तड़पी होगी वो, कितना सहा होगा उसने! काश मै उसे बचा लेता, काश मैं अपनी गरिमा को उस दरिंदे से बचा लेता।" कहते हुए विनीत जी ने अपने हाथों से अपना चहरा ढक लिया।

तभी अचानक से उनका फोन बजा। फोन की आवाज़ सुनकर उन्होंने जल्दी से अपने आंसू पोंछे और जेब से फोन निकाला जिस पर मां लिखा हुआ आ रहा था। इतनी देर से नेटवर्क ना मिलने की वजह से विनीत जी का फोन नहीं लग पा रहा था पर इस कमरे में नेटवर्क ठीक था इसलिए दामिनी जी का फोन लग गया।

विनीत जी ने खुद को सामान्य करते हुए फोन उठाया। वो कुछ कह पाते उससे पहले ही दूसरी तरफ से दामिनी जी चिंतित स्वर में बोलीं, "विनीत! बेटा, कहां हो तुम? और… और गरिमा कहां है?"

गरिमा जी का नाम सुनकर विनीत जी फिर से रोने को हुए पर उन्होंने खुद को कंट्रोल कर लिया और बोले, "मां! हम ठीक हैं, बस कुछ ज़रूरी काम आ गया था इसलिए बाहर आ गए थे।"

"बेटा! तुम दोनों सच में ठीक हो ना?", दामिनी जी को विनीत जी की बातों में कुछ अजीब लग रहा था इसलिए उन्होंने शक करते हुए कहा तो विनीत जी फीकी मुस्कान के साथ बोले, "हां, मां! सब ठीक है।"

"नहीं, कुछ तो गलत हो रहा है। मैं मां हूं तुम्हारी, अच्छे से जानती हूं कि मेरा बेटा किसी तकलीफ ने है इसलिए बताओ क्या बात है?"

विनीत जी ने बहुत कंट्रोल किया पर फिर भी उनकी रुलाई फूट पड़ी और वो टूटे फूटे शब्दों में बोले, "मां! वो… गरिमा…"

अब तो दामिनी जी का दिल डर के मारे और भी ज़्यादा ज़ोर से धड़कने लगा। वो चिंतित होते हुए बोलीं, "क्या हुआ गरिमा को? वो ठीक तो है ना?"

"मां! गरिमा का… गरिमा का रेप हो गया है।", इस वाक्य को कहने में विनीत जी ना जाने कितनी ही बार मरे होंगे। ये सुनकर दामिनी जी अपनी जगह पर धड़ाम से बैठ गईं और उनके हाथ से फोन छूट गया।

क्रमशः