डी एन ए Yogesh Kanava द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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डी एन ए

डी एन ए


         कासिम ज़रकारी के घर आज लोगों की बहुत आवा-जाही थी , कारण था आज अचानक ही कासिम ज़रकारी का इन्तकाल हो गया था । कोई कह रहा था कि बडा ही नेक इंसान था ,तो कोई कह रहा थी कि सच मे वो अल्लाह का नेक बंदा था । ख़ैर अब उसे कब्रिस्तान लेकर जाने की तैैयारी चल रही थी । उसके दोनो बेटों ने उसे आखिरी गुसल करवाने के लिए दरवाज़ा बंद किया और गुसल करवाने लगे थे कि अचानक ही दोनो को जैसे कोई तेज़ बिजली का झटका लगा हो ,यह क्या ?
उन्होने जैसे जैसे गुसल करवा कर कफन ओढाया और ले चले कब्रिस्तान की ओर । दोनो के मन मे रह रह कर एक ही सवाल आ रहा था , ऐसा कैसे हो सकता है । इधर येलेना कोस्तीनिकोवा हाँ कासिम ज़रकारी की बीवी,वो बदहाल थी, बदहवास थी । एक ही बात बार बार कह रही थी आज मेरा मसीहा, मेरा फरिश्ता मुझे अकेला छोड़कर चला गया । येलेना की उम्र कोई सत्तर के आसपासथी और कासिम ज़रकारी की उम्र कोई अस्सी के आगड़े थी । कासिम को दफनाकर सभी लोग वापस आ गए थे ,सभी अब अपने अपने घर वापस जाने लगे थे । सभी के मन मे कासिम भाई के लिए बेहद इज़्ज़त थी । इधर कासिम के दोनो बेटों अकरम और सुखोई के मन मे उथल-पुथल मची थी । यह उथल-पुथल तीन दिन तो दबी रही लेकिन चोथे दिन दोनो बेटे अपनी माँ यंलंना के पास जाकर भड़क गए थे । येलेना की एक बेटी भी थी इनाबेल , वो कुछ नही समझ पा रही थी कि आखिर दोनो भाई माँ पर क्यो भड़क रहे हैं । वो कुछ भी समझ पाती इससे पहले ही येलेना बोली -
            तुम तीनो मेरे पास बैठो । मैं आज तुम लोगों को एक कहानी सुनाती हूँ । कहानी का नाम सुनकर दोनो और ज्यादा भड़क गए थे लेकिन अनुभवी येलेना ने कहा पहले सुनलो तुम्हारे सारे सवालों का जवाब इसी कहानी मे ही है ।
हाँ तो मैं कह रही थी बात सन् 1982 के आखिर की है अफगानिस्तान मे तालिबानियों से रुसी सेना की कड़ी टक्कर चल रही थी । तालिबानियों ने एक तरह से आधे से अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था । अमेरीका उनकी पूरी तरह से मदद कर रहा था । हालात ये थे कि कोई थी औरत अकेली सउ़क पर दिख गई तो वो तालिबानी लड़ाकों की हवस का शिकार ज़रुर बनेगी यह उस वक्त के हालात थे । लड़ाई बहुत ही लम्बी खिंच गई थी । इधर सोवियत सैनिक लम्बे समय से घर नहीं जाने के कारण और घर की याद कम करने के लिए सोवियत सरकार से कुछ सैनिकों के परिवारों को अफगानिस्तान सैनिको के पास जाने की छूट मिल गई थी । इसी छूट के तहत यूरी कोस्तीनिकोवा रुसी आर्मी के कर्नल का परिवार भी कंधार मिलिटीª बेस के कैम्प मे आ गया था । परिवार मे पत्नी येलेगर और एक बेटी थी । अफगानी संसद लोयाजिर्गा भंग कर दी गई थी, बेहद खौफनाक रातें थी वो। पूरी की रात में गोलियों की आवाज़ें दिल दहला देती थी । दोनो तरफ से क्रॉस फायरिंग होती रहती थी । तालिबानियों को अमेरीका ने हथियार मुहैया करवा रखे थे सो वो रुसी सेना से भिड़ रहे थे । आमने सामने की जंग मे जब शिकस्त मिलती दिखी तो वो तालिबानी गुरिल्ला युद्ध पर उतर आए थे ।
             उस दिन यूरी कोस्तानिकोवा अपनी पत्नी येलगर और बेटी को कंधार , काबुल आदि जगह घुमाना चाह रहा था । यूनिट कमाण्डर से परमिशन लेकर वो एक जोंगा मे अपने परिवार को लेकर घुमाने निकल गया था , साथ मे दो गन मैन भी थे। उधर पाकिस्तान भी तालिबानियों का साथ दे रहा था या यूँ समझ लो कि अमेरीका पाकिस्तान के कंधे पर सवार होकर रुसियों से लड़ रहा था और गुरिल्ला युद्ध की बारिकियाँ भी सिखा रहा था। येलगर की उम्र कोई पचास और लगभग इतनी ही उम्र उसके पति की थी । उनकी बेटी की उम्र कोई अट्ठाइस बरस थी । तभी अचानक न जाने कहाँ से पाँच तालिबानी लड़ाके यमदूत की तरह आ धमके थे ,आव देखा न ताव बस गोलियों की बोछार कर दी थी उन्होने । इस अचानक हुई गोलीबारी मे दोनो गनमैन मारे गए थे। उधर से लगातार गोलियों की बारिश हो रही थी, अचानक ही दो गोलियाँ कर्नल और उसकी पत्नी को सीधे सीने में लगी और येलगर और उसके पति यूरी की मौके पर ही मोत हो गई थी । उस जवान लड़की के सामने ही उसके माँ-बाप की लाशें पड़ी थी , वो सुन्न हो गई थी गोलियों की बौछार रुक गई थी तभी चार तालिबानियों ने उसका हाथ पकडकर झिंझोड़ा और जबरदस्ती उसके एक एक कर सारे कपड़े उतार दिए थे और पूरी तरह से उसे नग्न कर दिया । वो चिल्लाने लगी थी हेल्प हैल्प प्लीज हेल्प किन्तु दूर दूर तक कोई मदद नहीं दिख रही थी । उन चारों पर जैसे हैवानियत सवार थी , वो उस लड़की को नोच खाना चाहते थे, हवस मे अंधे हो चुके थे । उनमे से एक ने नंगी लड़की को अपने कंधे पर उठाया और पास ही की चट्टान पर लिटा सा दिया था। बाकी के तीन भी उसके पीछे पीछे उस लड़की के पास आ गए थे । उसको लग रहा था जैसे अभी ये भूखे भेडिए उसकी हड्डियाँ तक चबा जाएंगे उसी वक़्त न जाने कहाँ से एक नेक फरिश्ता वहाँ आ गया था । वो अफगानी था उस अफगानी नोजवान ने उनको ललकारते हुए कहा - ओए खबीश का औलाद एक लाचार लड़की पर तुम इस तरह से जुल्म करता है । परवर कदगार का कसम ये तो इस्लाम का तौहीन है । अल्लाह पाक की कसम तुमको तो ये पठान का बच्चा अकेला ही काफी है । इधर इन दो ने उस लड़की को छोड़कर उस पठान पर गोलियो की बारिश कर दी । उसने छलांग लगा दी , दूसरे दो ने लड़की को अपने कब्जे मे ले लिया । वो थर थर काँपे जा रही थी , अपनी आँखों के सामने अभी अभी माँ बाप का खून होते देखा था, अपनी इज़्ज़त लुटते लुटते बची की नही बची पता नहीं और अब उस अफगानी नोजवान का न जाने वो क्या करेंगे । तभी एक गरज के साथ वो दोनो तालिबानी धरती पर पड़े तड़फ रहे थे । जैसे ही दूसरे दोनो तालिबानियों ने अपने साथियो को तड़फते देखा उस अफगानी की तरफ गोली बरसाते से दौड़े परन्तु न जाने उसने क्या किया था वो दोनो भी ठीक उसी तरह से तड़फ रहे थे । पांँचवां वहाँ से गोलियाँ बरसाता भाग गया था, वो अफगानी कोई छलावा सा उन गोलियो की बोछार के बीच इधर उधर कुलांचियाँ भरता बच गया था । चारों तालिबानियो की गर्दन से खून के फव्वारे से चल रहे थे । ऐसा मंज़र उसने पहली बार देखा था , वो भीतर तक काँप गई थी । वो उस लड़की तरफ मुखतिब हो कर बोला - ओये खातुन तुम तो रुसी लगता रे । या अल्लाह रहम कर ओए अब तुमको कोई खतरा नही है उसने अपनी कमीज उतारकर उस लड़की के नंगे बदन पर डाल दी। अब तुमको फिकर नही अपना घर जा सकती हो । ओए अपना नाम कासिम है अल्लाह का शुकर मनाओ तुम ये शैतानों से बच गया है चलो तुमको घर छोड़ देता है ।
              वो लगातार रोए जा रही थी । उस पठान ने उसका हाथ पकड़ कर कहा ओ तुमको कीधर जाना है । उसको थोड़ा सा ढाढस बंधा तब वो बोली - ए लोग मेरा मोम डैड को मार दिया । अब मेरा इधर कोई नही है, - ओए फीकर मत करो मै तुमको जीधर जाना है ना उधर ही लेकर जाएगा । अचानक ही उस लड़की के मुँह से निकला मुझे इण्डिया ले चलो । वो थोड़ा सा सोचने लगा फिर बोला - ओए पठान का जुबान पक्का होता है , मै तुमको हिन्दुस्तान ले जाएगा । इधर उधर बचता बचाता सा वो उस लड़की के साथ पहले अपने घर गया और फिर उस लड़की को लेकर चला । बीच रास्ते मे ही उसने अपने साथ खाने पीने का सामान, चिलगोजे,दूसरे ड्राई फ्रूट्स लेकर वो हिन्दुस्तान के लिए उस लड़की को लेकर निकल पड़ा था । वीजा पासपोर्ट कुछ नही बस जुबान का पक्का पठान छुपते छुपाते अफगानिस्तान की उत्तर पूर्वी सीमा से चोरी छुपे पीओके मे घुसने की जुगत करने लगा था । दो दिन इन्तज़ार करना पड़ा था वहाँ पर , पाकिस्तानी फोज का कड़ा पहरा था । उधर तालिबानियों से भी पाक फोज को संदंश मिल चुका था कि एक अफगानी युवक उस रुसी लड़की को लेकर पी ओ की तरफ ही गया है । दो दिन के इन्तज़ार के बाद एक रात उनको पी ओ के मे घुसने मे कामयाबी मिल गई थी । पी ओ के तो वे पहुँच गए थे मगर वहाँ भी वो सुरक्षित नहीं थे वो जल्दी से जल्दी एल ओ सी पार करना चाहते थे । दिन मे सफर करने पर पकड़े जाने का पूरा डर था । कई रातों के सफर के बाद आखिरकार वो दोनो कश्मीर मे दाखिल हो गए थे । अब उस पठान ने उस लड़की से फिर पूछा कि हिन्दंस्तान मे किस जगह जाना है । वो बोली यह तो पता नही लेकिन मुझे लगता है आपके देश से हम यहाँ ज़्यादा सुरक्षित हैं । साँय साँय करती तीर की मानिन्द चलती वो हवा मानो हिन्दंस्तान से उनके पैर उखाड़ फेंकने को आतुर थी अब कहाँ जाना है कुछ पता नही । यूँ ही बचते बचाते से वो दोनो कई दिन तक चलते रहे थे साथ लाया खाना भी अब लगभग खत्म हो चुका था, किसी से भी मांगने पर लगातार यह डर लगा रहता कि न जाने कब वो उनको गिरफ्दार करवा दें । पीर पंजाल की पहाड़ियों से होते हुए कुछ सेब तोड़ कर लाया था वो वो ही खाकर वो दोनो चिनार की छाया मे सुस्ताने लगे थे । थोड़ी ही देर हुई थी कि अचानक ही उन्हें गोलियाँ चलने की आवाज़ें सुनाई देने लगी , पठान ने थोड़ा सा उचक कर देखने का प्रयास किया तो उस लड़की ने उसका हाथ पकड़कर नीचे बिठा दिया । वो बोली - मोम डैड को खो चुकी हूँ अब तुम्हें नहीं खो सकती मैं और उसके सीने से लिपट कर फफक-फफक कर रोने लगी । पठान ने उस लड़की को अलग किया और सोचने लगा अब क्या करुँ समझ नहीं आ रहा है । काफी देर दोनो यूँ ही चुपचाप उसी जगह दुबके रहे । चिनारों की छाया अब लम्बी हो चली थी , साँझ ढलने लगी थी । वो पठान बोला , ओए लगता है आज बरफ गीरेगा ईधर रुकना अब ठीक नहीं है एक तो ये मरदूत गोली बरसा रहे हैं ऊपर से अब बरफ भी गीरेगा । ईधर से अभी निकलना पड़ेगा नही तो अपना भी बरफ बन जाएगा । सर्द हवा के थपेड़े चालू हो गए थे । अब किसी महफूज़ जगह पर जाना ज़रुरी था । दोनो ने वहाँ से जल्दी जल्दी कदम बढाना शुरु किया। टेढी मेढी पथरीली पगडण्डियों से पहाड़ से नीचे की ओर कोई दो मील चलने पर कुछ घर दिखाई दिए लेकिन वो लोग ऐसे ही किसी अनजान को पनाह देंगे या नही पता नहीं । दोनो उस घर की दिशा मे हो लिए घर का दरवाज़ा बाहर से बंद था सहज अनुमान लग गया कि वो घर वहाँ के गझरियों का है और वो अपनी भेडों को लेकर नीचे की ओर गए हुए हैं । रात भर वो दोनो उसी घर मे रहे सुबह होने पर घर के बाहर कुछ सुगबुगाहट सी सुनी दोनो सतर्क हो गए थे । बाहर से शायद भारतीय फोजी थे । थोड़ी ही देर मे वो फोजी वहाँ से चले गए थे मौका पाकर वो दोनो भी वहाँ से निकल लिए थे । पूरा दिन चलने के बाद वो कहाँ पहुँचे थे ये तो मालुम नहीं लेकिन शाम होने लगी तब उन्हे कुछ घर दिखाई दिए थे वो दोनो उसी दिशा चल किए ,एक घर के दरवाजे़ पर दस्तक दी और रातभर का आसरा मांगा । उस घर के मालिक ने पूछा कि वो कौन हैं और कहाँ से आ रहे हैं? उस पठान ने अपनी ही बोली मे उनसे कुछ कहा तो उनको पनाह मिल गई । रातभर का यह आसरा उनको सुकून दे रहा था सुबह ज़ल्दी उठकर वो पठान उस लड़की से बोला - चलो अब इधर ज़्यादा रुकना ठीक नहीं पंजाब मे माहोल खराब बता रहे हैं इसलिए पुलिस और मिलिटीª वाले घर घर पूछताछ कर रहे हैं यहाँ भी पूछताछ के लिए कभी भी आ सकते हैं । यहाँ से निकलकर हमको कोई महफूज़ जगह देखनी होगी । और वो पठान उस लड़की को लेकर एक बस से जम्मू पहुँच गया । वो यह कहानी बता ही रही थी कि छोटा बेटा बोला - मुझे ऐसी किसी कहानी मे कोई इन्ट्रेस्ट नहीं है सीधे मुद्दे की बात बताओ । यह कहानी पूरी होने पर तुम्हे सब पता चल जाएगा थोड़ा सा धीरज रखो। मुझे नहीं सुननी तुम्हारी कहानी और उठकर जाने लगा तभी बडे ने कहा - भाई सुन लेते हैं मैं भी जानता हूँ मतलब तो कुछ है नहीं लेकिन अब थोड़ी देर और सुन लेते हैं ।
               हाँ तो मैं कह रही थी कि वो पठान उस लड़की को लेकर जम्मू चला गया । वहाँ से वो उसे कांगड़ा ले गया लेकिन वहाँ भी ज़्यादा दिन नहीं रुक पाए । एक दिन एक पुलिस वाले ने उस लड़की से पूछ लिया था कि वो कौनसे देश से आई है। इस पर लड़की ने कहा था कि वो रशियन है और ज़ल्दी से जाने लगी थी । पुलिस वाले को तसल्ली नहीं हुई थी। इसलिए चुपचाप उनके ठिकाने तक पीछा करते चला गया था । पठान समझ गया था कि अब किसी भी वक़्त पकड़े जा सकते हैं। उसी रात उन दोनो ने कांगड़ा छोड़ दिया था और दिल्ली आ गए थे । दिल्ली मे कोई ठिकाना नहीं था फुटपाथ पर ही रहे लेकिन इतनी गोरी चिट्टी मेम सी लड़की को देख कइयों की नीयत डोल रही थी । वैसे भी वो यह समझ चुका था कि दिल्ली जैसे बडे शहर मे वो आसानी से पकड़े जा सकते हैं इसलिए किसी छोटे शहर मे जाकर रहने की सोचने लगा । एक दिन उस लड़की के मन मे आया कि रशियन एम्बेसी जाकर मदद मांग लूँ लेकिन उसी समय यह भी ख़याल आया कि रुस मे अब कौन है उसका। सब कुछ तो खत्म हो गया था अफगानिस्तान मे । उसे अफगानियो से नफरत सी हो गई थी लेकिन इस अफगानी ने उसके लिए जो किया है उस कारण से उसकी सारी की सारी नफरत कम से कम उस अफगानी के लिए तो नही रही थी । वो भी समझ गई थी कि वहाँ ज़्यादा देर तक रुकना सुरक्षित नहीं था सो वहाँ से भी वो दोनो तत्काल ही निकल गए और रेल्वे स्टेशन पहुँच गए थे जो पहली गाडी दिखी उसी मे दोनो सवार हो गए । टिकट नहीं लिया था बस बैठ गए थे अब यह भी तो नहीं मालुम था ना कि कहाँ जाना है अच्छी बात यह रही कि टी टी ई नही आया था । सुबह कोई पाँच बजे एक स्टेशन आया था नाम था चित्तोड़गढ । वो नहीं जानते थे इस शहर के बारे मे लेकिन पता नहीं अचानक ही दोनो ने तय किया कि यहीं उतर लिया जाए । वैसे भी अब उजाला हो जाएगा तो टी टी ई भी आ सकता था सो वहीं उतर गए। सूना सा, भला सा यह शहर सबसे अनजान इधर-उधर देख रहे थे तभी एक चाय वाले ने पूछा कि चाय पिओगे तो उस लड़की के मुँह से निकल गया -हाँ ।उस चाय वाले से ही पता चला कि वो चित्तोडगढ था और उस ट्रेन का नाम चेतक एक्सप्रेस था जो आगे उदयपुर तक जा रही थी । स्टेशन के बाहर निकलते ही एक आटो वाला चंदेरिया, सीमेण्ट फैक्ट्री चंदेरिया की आवाज़ें लगा रहा था, पठान को न जाने क्या सूझी उस लड़की का हाथ पकड़े वो उस आटो मे जा बैठा । सीमेंट फैक्ट्री के गेट पर उतर गए थे वो दोनो । कोई आठ बजे गेटकीपर से रिक्वेस्ट कर के वो दोनो सीमेंट फैक्ट्री मे चले गए। कुछ मजदूरों की ज़रुरत थी सो पठान को तुरन्त काम मिल गया । वो लड़की दोपहर तक फैक्ट्री के गेट पर ही बैठी रही, दोपहर मे न जाने उस फैक्ट्री के बडे अफसर जैन साहब की नज़र उस लड़की पर पड़ी । अपने चपरासी को भेजकर उसको बुलाया और पूछा तो उसने बोल दिया कि वो उस पठान की बीवी है । जैन साहब बडे ही दयालु प्रवृति के थे सो तत्काल उन्होने उसे भी काम पर रखने के कहा और उन्हें एक क्वाटर अलोट कर दिया और कहा कि तुम दोनो काम कर सकते हो लेकिन पठान ने बडी ही विमम्रता से कहा साहेब मैं ही अकेला काम करुँगा हम लोगों मे औरत लोग काम नही करता हैं साहेब। शाम को पठान ने पूछा कि बडे साहब को तुमने क्या बोला तो उसने सच कह दिया कि आप मेरे हसबेण्ड हो। पठान सजदे मे बैठ बोला - या परवरदिगार ये कैसा खेल है एक बार मैने झूठ बोला कि ये मेरा जा़ेरु है तो एक रात का ठिकाना मिल गया था और इसके एक झूठ से आज ये घर । मौला लेकिन हमको रास्ता दिखाओ हम इससे शादी कैसे बनाएगा । हम शादी नही बना सकता है। ओए तुम तो जानता है ना मौला हम शादी नही कर सकता है । उसकी इस फुसफुसाहट को उस लड़की ने भी सुन लिया था वो बोली- मैने बहुत सोच-समझकर ही बोला था वैसे भी गॉड का यही मरजी है । ओए तुम नही जानती हम शादी नहीं कर सकता है, तुम समझता क्यों नहीं है । वो बोली मुझे कुछ नही समझना है अब हम दोनो शादी करेंगे । ओए तुमको नही मालूम है मै शादी के लायक नही है । क्यों? मुझे सब कुछ मंजूर है । या अल्लाह! इस बेवकूफ को कोई समझााओ मै शादी के लायक नही है, मै इसका ज़िंदगी बरबाद नहीं कर सकता है । क्यों ,क्या मैं तुम्हें पसंद नहीं हूँ ? ऐसा बात नही है ओए तुम समझो । क्या समझूं ? ओए क्या बोलूँ ---- मै - - -मै एक हिंजड़ा हूँ । मैं तुमसे शादी कैसे कर सकता हूँ । मैं कुछ नही जानती मैने तुम्हे अपना पति मान लिया है ।
तभी बडा लड़का बोला समझ गया और वो लड़की आप हैं ? येलेना कुछ नहीं बोली बस उठी और कासिम की फोटो अपने सीने से लगाकर बैठ गई । तभी उसकी लड़की बोली माँ फिर हमारे पापा कौन हैं ?
               एक दिन हम दोनो उदयपुर सहेलियो की बाड़ी मे घूम रहे थे कि हमारे सामने एक जोड़ा चल रहा था । वो लड़की ने उस लड़के को रुसी भाषा के शब्द सिखा रही थी । अचानक ही अनजान शहर मे मुझे अपनी ज़बान सुनाई दी तो मैं अपने आपको रोक नहीं पाई और झट से उस लड़की से रुसी मे बोल पड़ी । और मैने अपना नाम रुसी मे ही बताया - मै येलेना कोस्तोनिकोवा। वो दोनो वहीं पर मेडिकल कॉलेज मे डॉक्टर थे । धीरे धीरे हमारी दोस्ती हो गई । एक दिन उसी ने पूछ लिया था कि बच्चे क्यो नहीं हो रहे है। मैंनं भी झूठ नही बोला जो सच था बता दिया । उसने पहले तो अफसोस किया फिर कहा यदि तुम चाहो तो मेरे दोस्त डॉ बी शंकर से मिलकर इस बारे बात कर सकते हो वो इसी पर रिसर्च कर रहा है। सच मे डॉ बी शंकर की रिसर्च मेहनत रंग लाई। उस डॉक्टर ने उस पठान , मेरे कासिम ज़रकारी के डी एन ए से मेरे ओवम को क्रास करवा कर मुझे संतान सुख दिया । वो ही ट्रांसजेंडर ,मेरा मसीहा ,मेरा पति तुम तीनो का जैविक पिता भी है । इतना कहा और वो फफक फफक कर रोने लगी, थोड़ी देर रुलाई रही फिर हिचकियों मे बदल गई । इन्हीं हिचकियों के बीच अचानक ही येलेना की साँस रुक गई थी । वो भी चली गई थी अपने मसीहा ,अपने कासिम ज़रकारी के पास। और इधर इन तीनो मे उसी ट्रांसजेंडर का डी एन ए लहु बनकर रगों मे दौड़ रहा था ।

-योगेश कानवा