फादर्स डे - 57 Praful Shah द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

फादर्स डे - 57

लेखक: प्रफुल शाह

खण्ड 57

मंगलवार 06/06/2000

अचानक एक कॉन्स्टेबल की नजरों के सामने से सुजुकी समुराई बाइक तेजी से भागी। उस आदमी ने एक गड्ढे में अपनी बाइक छिपा कर रखी थी। पुलिस की भागदौड़ के बीच वह उस गड्ढे तक दौड़कर पहुंचा और बाइक लेकर भाग गया।

सभी को एक जगह इकट्ठा होने में पांच मिनट लग गए। इस भागदौड़ को देखकर सातारा पुलिस बल भी दौड़कर आ गया। दस मिनट इस घटना पर चर्चा करने और सबको सामान्य होने में लग गए।

सूर्यकान्त को बहुत गुस्सा आ रहा था। वह पूरी तरह से हताश हो गया। पुलिस के पास इतनी सारी जानकारी थी। उस जगह से वे अच्छी तरह से परिचित थे। पूरा स्टाफ था। हथियार थे। गाड़ियों का काफिला था। जाल पूरी तरह से बिछा हुआ था...पर आखिर हुआ क्या?...तो...एक गुनाहगार पुलिस वालों की नजरों में धूल झोंककर भाग गया...विलास जाधव पीछे से सिगरेट के कश लगाते हुए आए। अपनी दो ऊंगलियों में सिगरटे दबाकर वह कुछ बोलना चाहते थे।

गुस्से से भरा हुआ सूर्यकान्त इंसपेक्टर विलास जाधव पर जोर से चिल्लाया,

“ओ साहेब, क्या बीडी पीते हुए किसी अपराधी को हम पकड़ सकते हैं? मैं दस बार आपसे कह रहा था, गाड़ी मुझे चलाने दें...गाड़ी मुझे चलाने दें...तो नहीं...आपका आदमी गाड़ी को घुमा भी नहीं पाया...आपने मुझे धोखा दिया... ”

पुणे पुलिस को सूर्यकान्त पर गुस्सा आया। एक तो उनकी कुमुक असफल रही थी, ऊपर से सूर्यकान्त गुस्से में चीख रहा था। पुणे पुलिस के पास अपने बचाव के लिए कोई शब्द ही नहीं थे। बहस भी कैसे की जा सकती थी? और किसके साथ? सातारा पुलिस सूर्यकान्त को समझाइश देने लगी, उसको शांत करने में जुट गई।

आखिर सच तो यही था कि अपराधी नाक के नीचे से मूंछें लेकर फरार हो गया था। इसी गहमागहमी में बीस मिनट निकल गए। तभी एक बार फिर सूर्यकान्त के मोबाइल की घंटी बजी। स्क्रीन पर अनजान नंबर दिखाई दिया। नंबर लैंडलान का था। सूर्यकान्त ने कॉल रिसीव किया। मोबाइल हाथ में लिया और आराम से बोलने की तैयारी की। फिर से उसी आदमी की वही आवाज सुनाई दी।

“क्यों रे?...नकली नोट देता है... ? साले...ऊपर से पुलिस को लेकर आया था...?डेढ़ होशियार बनता है न...?तुझे दिखाता हूं अब मैं... तेरा खानदान ही खत्म न कर डाला तो बोलना...तुझे भी शूट कर दूंगा...मेरे साथ होशियारी कर रहा था...तेरे दूसरे बेटे को भी खत्म कर दूंगा...तू बस देखता रह...”

उसी समय विलास जाधव ने सूर्यकान्त के हाथ से मोबाइल फोन छीन लिया।

“ए ...भड़वे...तेरी मॉं की...दम है तो सामने आ रंडी के...तेरा एनकाउंटर ही करता हूं...भागता है भड़वा...? ”

उसकी पागलों की तरह धमकी और ऊटपटांग बातें सुनकर सूर्यकान्त डर गया। उसे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था...और फिर सूर्यकान्त नाम का ज्वालामुखी फट पड़ा।

“निकलो...निकलो...यहां से सब निकल जाओ...मुझे तुम्हारी गरज नहीं है...मुझे अब न तो पुणे पुलिस चाहिए, न सातारा पुलिस की जरूरत है...मुझे आप लोगों से अब कोई काम नहीं...सब निकल जाइए...अब मेरा मैं देख लूंगा।”

उसके शब्दों में आग थी। ह्रदय अत्यंत व्यथित था, मन में गुस्सा उबल रहा था और असहाय पिता की आंखों में आंसू उमड़ रहे थे। कारण भी गलत नहीं था। संकेत तो वापस मिला ही नहीं, परिवार के बाकी लोगों के लिए भी धमकी मिल गई, सो अलग। अब तो जान पर बन आई...जान का जोखिम...जान को बचाते-बचाते जीना होगा...इन सब बातों का गुस्सा यदि उस नराधम ने संकेत के ऊपर निकाला तो..?

इतना अपसेट होने के बावजूद उसे जो सूझा, किसी पुलिस वाले को नहीं सूझा था। उसने नंबर री-डायल किया। सामने से अपंग एसटीडी बूथ वाले गणेश शिंदे ने फोन रिसीव किया।

“अभी जिसने फोन किया था वह आदमी एक छोटे बच्चे को लेकर भागा है, उसे पकड़ें....”

इतना सुनते ही गणेश शिंदे ने बेचने के लिए रखी कोल्ड ड्रिंक की बोतलें अपराधी की ओर फेंकना शुरू कर दीं लेकिन उस आदमी ने सुजुकी समुराई भगा दी।

शिंदे ने पलटकर सूर्यकान्त को फोन लगाया।

“सॉरी साहेब...दुर्भाग्य से वो आदमी भाग गया, लेकिन मैंने उसे ठीक तरह से देख लिया है।”

“हम अभी आपके पास आ रहे हैं, पता बताइए।”

गणेश शिंदे का एसटीडी बूथ फुरसंगी के भेकराई नगर में था। दूरी केवल सत्रह किलोमीटर की थी। रास्ते में ट्रैफिक और सिग्नल के कारण सूर्यकान्त और बाकी लोगों को वहां तक पहुंचने में पूरे चालीस-पैंतालीस मिनट लग गए। और उस बदमाश का फोन तो केवल बीस मिनट में ही आया था। इसका मतलब है वो बड़ा हिम्मतवाला और चालाक बाइक राइडर होगा-सूर्यकान्त मन ही मन अनुमान लगा रहा था। सातारा और पुणे पुलिस ने गणेश शिंदे से पूछताछ करके अपराधी का हुलिया लेकर अपनी नोटबुक में लिख लिया। इसके बाद दोनों टीमें अपने-अपने ऑफिस के लिए रवाना हो गईं।

ढेर सारी निराशा, मन भर हताशा, भय और भारी थकान लेकर सूर्यकान्त घर पहुंचा। घर में, घटनाक्रम का सिलसिलेवार ब्यौरा दिया। सभी की आशाओं-अपेक्षाओं पर पानी फिर गया था। डर लग रहा था। प्रतिभा ने एक बार फिर सूर्यकान्त को याद दिलाया,

“उस लहू पर जरा नजर रखो।”

संकेत के न मिलने के कारण और फिर नई धमकी मिलने के कारण घर के सभी लोग डरे हुए थे। सबके मन में एक ही विचार ... ‘अब आगे क्या होगा...।

..........................

सोमवार 12/06/2000

शिरवळ साई विहार में सभी के लिए एक-एक क्षण चिंतातुर करने वाला, जान के पीछे आफत लगाने वाला साबित हो रहा था। घर के अंदर भी सब डर-डर के जी रहे थे। किसी को घर लौटने में देर हो जाए तो तुरंत चिंता, अमंगल विचार, किसी ने यदि मोबाइल फोन रिसीव नहीं किया तो भी चिंता होने लगती थी, ‘फोन क्यों नहीं उठा रहा?’ घर के लोग सिर्फ काम हो तो ही बाहर निकलते थे। रास्ते से आते-जाते हुए किसी परिचित के साथ अधिक देर खड़े होकर बातें करना भी छोड़ दिया था। काम खत्म होते ही सीधे घर की राह पकड़ने लगे थे। गांववासियों को लगता था कि भांडेपाटील परिवार दिन ब दिन अजीब सा व्यवहार करने लगा है।

साई विहार में बड़ी तेजी के साथ कुछ तो बदलता जा रहा है।

इस बीच सातारा पुलिस ने टेलीफोन बूथ ऑपरेटर गणेश शिंदे से जुटाई जानकारी के हिसाब से शिरवळ, वाई, खंडाला, लोणंद, सासवड़, जेजुरी और पुणे में भीड़भाड़ वाली जगहों पर आरोपी का स्केच लगा दिया। सभी जानकारी इकट्ठा करने के बाद आरोपी का कंप्यूटर से स्केच तैयार किया गया था। उस स्केच की कॉपियां आसपास की पुलिस चौकियों तक पहुंचाई गईं। पुलिस द्वारा अनजान आरोपी को खोजने का प्रयास जारी था लेकिन अपने तरीके से, सरकारी नियम-कानून के मुताबिक।

सूर्यकान्त त्रिकुट समिति और मित्र मंडली इस स्केच की कॉपियां लेकर सभी सार्वजनिक स्थानों पर और जहां वे आवश्यक समझ रहे थे, वहां चिपकाते जा रहे थे। पब्लिक में आरोपी के बारे में बोलने लगे। जानकारी जुटाने लगे, लेकिन कहीं से भी कोई सुराग हाथ नहीं लग रहा था। दिशाहीन प्रयास चल रहे थे। किसी दिशा से बुरे दिन दिखाने वाली एक और खबर आऩे वाली है, इसकी किसी को कल्पना भी नहीं थी।

..................................................

बुधवार 14/06/2000

शिरवळ गांव में सुबह की चहल-पहल शुरू हो गई थी। गप्पबाज मंडली अनलिमिटेड को मसालेदार नाश्ता मिल गया था। बीडी फूंकते, पिचकारी छोड़ते इन लोगों का ध्यान ‘पुढारी’ दैनिक अखबार में प्रकाशित ‘सुपर न्यूज’ की ओर लगा हुआ था।

‘पुढारी’ दैनिक अखबार में लोणंद डेटलाइन के साथ एक बड़ी खबर छपी थी।

“अपर्हुत संकेत भांडेपाटीलच्या वडिलांकडून पुन्हा एक लाखाची खंडणी वसुल.”(अपह्रत संकेत भांडेपाटील के पिता से फिर एक लाख की फिरौती वसूल)।

इस खबर में सूर्यकान्त से एक लाख रुपयों की फिरौती वसूल कर फरार होने वाले आरोपी ने पुलिस को सूचना देकर बुलाने के कारण सूर्यकान्त को जान से मारने की धमकी देने की बात भी विस्तार से लिखी गई थी।

खबर के आखरी पैराग्राफ में लिखा गया था,

“संकेत भांडेपाटील का अपहरण हुए पूरे सात महीने गुजर गए हैं और अब तक अपहरणकर्ता ने दो बार, एक-एक करके दो लाख की फिरौती वसूल की है। पुलिस के हाथों आरोपी लगा नहीं है इस कारण खंडाला तहसील में अभिभावकों के बीच भय का वातावरण व्याप्त है।”

शिरवळवासियों को समझ में ही नहीं आ रहा था कि आरोपी आखिर कितनी बार फिरौती वसूल कर रहा है? सूर्यकान्त कितनी बार देगा? संकेत के कहां होने की संभावना है?

----

रविवार, दी. २९/६/२०००

सूर्यकांत सोफे पर बैठे थे। हाथ में सुबह का अखबार था। सामने टेबल पे चाय कब की ठंड पड़ गई थी। सूर्यकांत शायद कुछ पढ़ नहीं पा रहे थे। उनकी आंखें अखबार की 'फादर्स डे स्पेशल' सप्लीमेंट पर रुक गई थी। आज़... आज़ फादर्स डे है मगर मैं अपने संकेत के लिए कुछ भी नहीं कर पाता हुं। मैं नाकामियाब बाप हुं, ए टोटल फेल्योर। उनका दिल भर आया और आंखे नम हो गई।

यकायक पीछे से एक हाथ उन के कंधे पर आया। स्पर्श से ही सूर्यकांत ने भांप लिया कि पिताजी पीछे खड़े हैं। विष्णु भांडेपाटिल की निगाह 'फादर्स डे स्पेशल' सप्लीमेंट पर गई। बेटे के दर्द को बाप ने समझ लिया। विष्णुभाऊ मन ही मन सिसकारियां भर रहे बेटे के करीब बैठ गये।

"देख, वेस्टर्न कल्चर में एक दिन फादर्स डे होता है। हमारे लिए तो रोज ही फ़ादर्स डे है। संकेत के जन्म से पहले से तु उसे प्यार करता हैं और मरते दम तक करता रहेगा। बेटा, मेरे सामने देख। यह बुढ़ा इस उम्र में भी तेरी फिक्र करता है और चिता पर चढ़ने के बाद भी करता रहेगा। यही तो हिन्दुस्तानी बाप का प्यार है, जो जिंदगीभर रहता है। प्यार करने या जताने के लिए हमें न किसी दिन का इंतजार होता है, न ही मोहताजी। संकेत को खोजने के लिए तु भुख, प्यास, निंद और धंधा छोड़कर मारामारा पागल की तरह भटक रहा है, वह क्या है? संकेत के लिए प्यार, प्यार और प्यार ही है।"

यह सब सुनकर सूर्यकांत को शुकुन और तसल्ली मिलें। बहुत इमोशनल हो गए वह। बात संकेत की जो थी। सालों बाद, शायद पहली बार, पिताजी ने शिकवे और नसीहत बगैर मुझ से बातें की। मेरी तारीफ की। उन का एक नया ही रूप देखने मिला।‌ओल थेन्कस टु माय डियर संकेत, माय संकेत। सूर्यकांत के दोनों हाथ आंसु पोंछने आंख के करीब जाए, उसके पहले विष्णुभाऊ खड़े हो गए।

और पास जाकर सूर्यकांत को अपनी ओर खींचा। बैठे हुए बेटे का शर बाप की छाती और पेट के बीच दिखाई देता था मगर वह दिल के बहुत पास था। सूर्यकांत ने बहुत शांति और शुकुन महसूस किया। शायद यह नज़ारा पहली बार देखकर चारों आंखों में बिन बरसात पानी भर आया। मगर किसी ने आंख पोंछने की जरूरत न समझी। बहते रहने दो आज तो...

अनुवाद: यामिनी रामपल्लीवार

©प्रफुल शाह

----