लेखक: प्रफुल शाह
खण्ड 56
मंगलवार 06/06/2000
सूर्यकान्त की सुबह मानो आगे सरक ही नहीं रही थी। रात्रि जागरण के बावजूद उसकी नींद सुबह जल्दी ही खुल गई थी। दस बजे पुणे क्राइम ब्रांच ऑफिस खुलने के साथ ही वर्मा से जाकर मिलना था। सूर्यकान्त ने वर्मा को सारी बातें विस्तारपूर्वक बताईं। सूर्यकान्त को ऐसा महसूस हुआ कि वर्मा उसके काम में ज्यादा रुचि नहीं ले रहा है। आखिरकार वर्मा ने वही कहा, जिसकी सूर्यकान्त को आशंका थी,
“हमारे लिए ये मामूली केस है। फालतू मामला है। वैसे, उसका फोन आने दीजिए, बाकी हम सब देख लेंगे।”
सूर्यकान्त ने रिक्वेस्ट की, ‘मुझे और सातारा पुलिस को साथ रहने दीजिए’, लेकिन वर्मा नहीं माना। आधे घंटे बाद सूर्यकान्त और सातारा पुलिस वाले नीचे उतरकर जीप की ओर मुड़े। उसी समय सूर्यकान्त के मोबाइल की रिंग बजी। लैंडलाइन का अनजान नंबर दिखाई पड़ा। सूर्यकान्त ने कॉल रिसीव किया। एक बार फिर वही आवाज सुनाई पड़ी। सूर्यकान्त ने मोबाइल को कान पर ठीक से लगाते हुए अपने रेकॉर्डिंग मशीन को सही तरीके से सेट किया।
“देखो...कात्रज मुंबई बायपास रोड के किनारे मार्बल की दुकान है...सीधे हाथ की तरफ त्रिमूर्ति मंगल कार्यालय है...उससे आगे घाटी है...उसकी बांई तरफ एक बोर्ड है....आगे चलने पर आंबेगाव आएगा...वहां पर शिवसृष्टि का काम चल रहा है..उस टेकड़ी पर नीलगिरी का एक पेड़ है...उसी पेड़ के नीचे पैसे रख देना...घर पहुंचते ही तुमको तुम्हारा बेटा मिल जाएगा..पैसे एक घंटे में चाहिए... ”
अपराधी पकड़ में आ जाए इसके लिए जाल बुनना और उसका उसमें फंसना असंभव ही था। सूर्यकान्त ने नाटक करना शुरू किया।
“अरे...मैं तो शिरवळ में हूं। पहुंचने में मुझे डेढ़ घंटा लगेगा...तुरंत तो इतने पैसे भी नहीं हैं मेरे पास...मुझे देखना पड़ेगा...पांच-छह जगह पूछना पड़ेगा पैसों के लिए...मुझे ज्यादा समय दो...इतने कम समय में इतना इंतजाम कर पाना संभव नहीं है...”
सच पूछा जाए तो अपराधी के लिए अच्छी तरह से जाल बिछाने के लिए सूर्यकान्त को ज्यादा समय चाहिए था। लेकिन उसकी सामान्य बुद्धि का सामना उस जड़ बुद्धि वाले अपराधी से हो रहा था। उसने जोर देकर कहा,
“ठीक है...तो दो बजे आओ...!”
“नहीं हो सकता...मुझको समय लग सकता है।”
“ठीक है...तीन बजे...ये आखरी समय है...और हां..पुलिस का नाटक मत करना...नहीं तो बच्चे को खत्म कर दूंगा...तीन बजे आखरी मियाद...” फोन कट।
सूर्यकान्त अपने हाथ के मोबाइल को देखता रह गया... ‘संकेत आसपास ही कहीं है...अपराधी खुद होकर मुलाकात करने आ रहा है...मुझे भी बुला रहा है...अनजाने ही पुलिस को भी निमंत्रण दे रहा है... इस बार सबकुछ सही तरीके से हो पाएगा या नहीं...? एकाध छोटी सी चूक...और किनारे से लगती नाव डूब जाएगी...लेकिन अब पीछे हटने का तो सवाल ही नहीं था...बस एक ही विकल्प...आगे बढ़ो...’
अपहरणकर्ता के साथ जो बातचीत हो रही थी, सूर्यकान्त उसे लगातार दोहराते जा रहा था। साथ में जो कॉन्सटेबल था, वह सब बातें अपनी नोटबुक में लिखता जा रहा था। सूर्यकान्त तुरंत उत्साह से भरकर सीढ़ियां चढ़ते हुए वर्मा के ऑफिस में दाखिल हुआ। फोन की और फिरौती की जानकारी दी। वर्मा ने स्टाफ को बुला लिया और प्लान समझा दिया। सातारा ब्रांच के पुलिसकर्मियों को सख्त ताकीद दी कि वे लोग कुछ दूरी पर रहेंगे, वो उन्हें पहचान सकता है।
सातारा पुलिस के चेहरे पर नाराजगी और निराशा के भाव उमड़ पड़े। अभी तक सारी दौड़भाग की, रात-दिन एक करके खून-पसीना बहाया। गालियां सुनीं और अब जब जीतने की, नाम कमाने की बारी आई तो पीछे रहने के लिए कहा जा रहा है। उनकी परवाह किए बिना वर्मा ने सूर्यकान्त को स्पष्ट शब्दों में बताया,
“मेरे स्टाफ के लोग आपके साथ टूव्हीलर पर रहेंगे। वो चलाएगा, आप पीछे बैठिएगा। आप बस, बताई गई जगह पर पैसे रख दें, बाकी सब हम देख लेंगे।”
सूर्यकान्त ने निवेदन किया, “साहब, प्लीज गाड़ी मुझे चलाने दें।”
लेकिन वर्मा ने उसकी एक न सुनी। पुणे क्राइम ब्रांच से सभी लोग बाहर निकले। सूर्यकान्त के साथ सातारा क्राइम ब्रांच के अधिकारी बैठे। उनकी जीप के पीछे पुणे क्राइम ब्रांच की पांच बाइक निकलीं। उन पर दस लोगों का पुलिस दल सवार था। दोपहर दो बजे कात्रज पहुंचकर सूर्यकान्त की जीप रुक गई। लश्कर को वहीं रुकने का इशारा किया गया। दूर से ही स्पॉट का निरीक्षण किया गया। सूर्यकान्त ने फिर से निवेदन किया कि बाइक उसे चलाने दी जाए, उसका निवेदन माना नहीं गया। सभी लोग एक घंटे पहले पहुंच गए थे। तीन की जगह दो बज रहे थे। एक घंटे तक आसपास की जांच पड़ताल की गई। दो-तीन किलोमीटर तक पुणे पुलिस की हाजिरी थी। जाल बिछा दिया गया था। पूरा पुणे पुलिस बल मोबाइल और रिवॉल्वर से लैस था, साथ में आत्मविश्वास की शक्ति भी थी। चाहे कुछ भी हो जाए, आज तो उसे पकड़ना ही था। ठीक तीन बजे पुणे पुलिस को अलर्ट का इशारा दिया गया। एक असिस्टेंट ने बाइक स्टार्ट की। सूर्यकान्त को पीछे बैठने का इशारा किया। तीन मिनट के अंदर दोनों नीलगिरी के पेड़ के पास पहुंच चुके थे। इस पेड़ पर पुलिस वाले पहले से ही काफी दूर से नजर रखे हुए थे। उसके कहे अनुसार पैसे इसी जगह पर रखना था लेकिन अपहरण करने वाला तो तेज दिमाग का निकला। वहां पर गाय छाप जर्दा के पैकेट पर मराठी में एक मैसेज लिखा हुआ था, “थोड्या दूर एक लहान झुडूप आहे बघ.पैसे त्या झुडूप जवळ ठेव.”( थोड़ी दूरी पर एक छोटी-सी झाड़ी है, पैसे उसी झाड़ी के पास रखो।)
पुलिस ने दूर से देखा कि सूर्यकान्त उस पेड़ के नीचे बैठा हुआ है। इसलिए पुलिस वालों ने अनुमान लगाया कि पैसे वहीं रखे गए हैं। इस नए डेवलपमेंट की जानकारी पुलिस तक पहुंचाने का सूर्यकान्त के पास कोई रास्ता नहीं था। साठ-सत्तर कदम की दूरी चलकर उसने पैसे उस झाड़ी के पास रख दिए। पुलिस वालों को लगा कि सूर्यकान्त वहां रुककर अपराधी की राह देख रहा है। पैसे रखकर सूर्यकान्त बाइक तक पहुंचा और पीछे बैठ गया। बाइक को ढलान से नीचे उतरना था। नीचे उतरते समय पुणे क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर जाधव ने किसी को पैसे उठाकर भागते हुए देखा। उसने ढलान से ही चिल्लाना शुरू किया,
“ए......रुक्क....रुक्क्क...” इसे सुनते साथ चारों ओर फैले हुए पुलिस वालों ने झाड़ी की ओर दौड़ लगाई। लेकिन, इस अधाधुंध भागदौड़ के बीच पैसे उठाकर भागने वाला अपराधी कहां गायब हो गया, किसी को समझ में ही नहीं आया।
अनुवाद: यामिनी रामपल्लीवार
©प्रफुल शाह