फादर्स डे - 58 Praful Shah द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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फादर्स डे - 58

लेखक: प्रफुल शाह

खण्ड 58

सोमवार 10/07/2000

‘सकाळ’ अखबार में रफीक़ मुजावर ने एक छोटी-सी खबर देखी।

“निरा गांव में फिरौती के लिए एक छोटे लड़के का अपहरण।” इस खबर में बच्चे का नाम या विस्तार से जानकारी नहीं दी गई थी, लेकिन रफीक़ ने सोचा कि सूर्यकान्त को इस बारे में बताना चाहिए। उसने जब सूर्यकान्त को फोन किया तब वह सातारा में था। रफीक़ से फोन पर बात करने के बाद सूर्यकान्त ने तुरंत सातारा पुलिस एसपी रामराव पवार को फोन लगाया। जल्दी से अपनी बात कह दी कि निरा गांव में एक बच्चे का अपहरण हुआ है, उस संबंध में आपसे मिलने के लिए आ रहा हूं।

सातारा क्राइम ब्रांच के ऑफिस में पहुंचने पर सूर्यकान्त को बड़ा आश्चर्य हुआ कि निरा किडनैपिंग केस की सूचना वायरलेस से वहां अभी तक पहुंची ही नहीं है। अपहरण कांड में दोनों घटनाओं का मोडस ऑप्रेंडी एकसमान दिखाई देने के बावजूद सूचनाओं का आदान-प्रदान न होना आश्चर्य की ही तो बात थी। पवार ने निरा पुलिस चौकी में फोन लगाकर वस्तुस्थिति मालूम की लेकिन निरा अपहरण का पता लगाने के लिए एक अलग टीम बनाने का उन्होंने ऑन द स्पॉट फिक्स किया था।

सूर्यकान्त सातारा से शिरवळ वापस आया। रफीक़ मुजावर और विष्णु मर्डेकर को साथ लेकर तुरंत ही निरा गांव की ओर निकल पड़ा। उस समय रात के आठ बजे थे। गांव में दो-चार लोगों से पूछताछ करने पर अमित चंद्रकान्त सोनावणे के अपहरण होने की तस्दीक हो गई। तेरह साल के अमित सोनावणे का अपहरण नीरा गांव से किया गया था। सूर्यकान्त त्रिकुट चंद्रकांत के घर तक पहुंच गया।

इसी समय सातारा पुलिसकर्मी निरा पुलिस चौकी में पहुंचे थे। सातारा पुलिस के एक अधिकारी ने सूर्यकान्त को फोन पर बताया कि अमित अपहरण केस में आज ही चंद्रकान्त सोनावणे ने अपराधी को पचास हजार रुपए की फिरौती चुकाई है और अब वह निरा पुलिस चौकी में बैठकर पुलिस को इस घटना की विस्तारपूर्वक जानकारी दे रहे हैं।

सूर्यकान्त, मुजावर और विष्णु गाड़ी में ही बैठे रहे। चंद्रकान्त के घर से थोड़ी दूर ठहरकर उसकी राह देखने लगे। रात के अंधेरे में त्रिकुट की नजरें चंद्रकान्त के रास्ते पर लगी हुई थी। आधी रात करीब एक बजे सामने से चंद्रकान्त सोनावणे आता दिखाई पड़ा। सूर्यकान्त ने उससे औपचारिक बातचीत की और फिर चंद्रकान्त को अपनी जीप में ले गया।

बेटे के अपहरण के बाद फिरौती देने के बाद भी गुमा हुआ बेटा वापस न मिलने का ताजा दुःख अपने कलेजे में लेकर घूम रहे चंद्रकान्त को एक अनजान व्यक्ति को सारी बातें बताना मन से अच्छा नहीं लग रहा था। और अपने अनुभव के आधार पर सूर्यकान्त को उसके मन की उथल-पुथल भलीभांति समझ में आ रही थी। उसने सबसे पहले चंद्रकान्त को संकेत के अपहरण की पूरी जानकारी दी। अपनी वेदना को चंद्रकान्त के सामने व्यक्त किया। संकेत के अपहरण की कथा कम शब्दों में लेकिन अच्छी तरह समझाकर बताई।

सूर्यकान्त की बातें सुनने के बाद चंद्रकान्त को महसूस हुआ कि इस आदमी का दर्द मुझसे बड़ा है। ये भाव उसके चेहरे पर झलकने लगे थे। अब, चंद्रकान्त ने अपने दिल का दर्द हल्का करना शुरू किया। दुःखों की आंच झेल रहा एक सेवानिवृत्त सैनिक अपने दिल का आक्रोश व्यक्त कर रहा था। सूर्यकान्त ने उसे बड़े प्रेम से समझाया कि पुलिस कुछ भी नहीं करने वाली। जो कुछ करना है, वो हमें ही करना होगा क्योंकि बच्चे हमारे खोए हैं। पुलिस के लिए तो यह एक सिर्फ और सिर्फ घटना या रजिस्टर में दर्ज किया हुआ केस भर हैं। चंद्रकान्त सोनावणे को भी अब तक पुलिस का बुरा अनुभव हो चुका था। सूर्यकान्त ने चंद्रकान्त को आश्वासन दिया, ‘आपके अमित की खोज भी करेंगे और यदि फिर से फिरौती देने की बारी आई तो आपको नकद रकम भी दी जाएगी।’ उसने अपने साथ लाई हुई रिवॉल्वर, एक लाख रुपए नकद और हाथ लगाने पर सायरन बजाने वाली बैग भी उसे दिखाई।

सूर्यकान्त की वेदना, उसके साजो-सामान और मदद करने की तैयारी देखकर चंद्रकान्त ने अमित के अपहरण की पूरी जानकारी, एक-एक घटना को याद करते हुए विस्तारपूर्वक देना शुरू की। चंद्रकान्त कुछ दिन पहले के अपने समय में पहुंच गया।

वह दिन था 04/07/2000

चन्द्रकान्त ने बताना शुरू किया।

पुणे जिले का निरा गांव। निरा गांव के महात्मा गांधी विद्यालय की कक्षा आठवीं में पढ़ने वाला तेरह साल का अमित चंद्रकान्त सोनावणे सुबह साढ़े दस बजे स्कूल जाने के लिए घर से निकला।

सफेद शर्ट, हाफ खाकी पैंट और स्कूल बैग लेकर वह घर से निकला। स्कूल जाने से पहले अमित अपने सेना से सेवानिवृत्त हो चुके पिता चंद्रकान्त नामदेव सोनावणे के साथ चाय की दुकान पर गया। सेना में बीस साल तक अपनी सेवाएं देने के बाद 1999 में चंद्रकान्त सेवानिवृत्त होकर निरा गांव में स्थाई रूप से बस गए थे। जीवन यापन के लिए निरा गांव में कुलदेवता यमाई के नाम से यमाई टी सेंटर खोल लिया था। छोटे से गांव में चाय पत्ती और अन्य छोटे-मोटे सामान बेचने के अलावा मिलने वाली पेंशन से उनका गुजारा हो रहा था। यमाई टी सेंटर से घर वापस आने के बाद सुबह साढ़े दस बजे अमित तैयार होकर स्कूल के लिए निकला। शाम को छोटा बेटे अजीत ने दुकान में आकर बताया कि सभी बच्चे स्कूल से घर लौट आए हैं, लेकिन अमित घर नहीं पहुंचा है।

चंद्रकान्त ने सोचा कि अमित अपने दोस्तों के साथ खेल रहा होगा। रात को आठ बजे दुकान बंद करके अमित के दोस्त धवल शिंगाडे के घर पर अपने बेटे की जानकारी लेने गया तब धवल ने उसे जो बताया वह सुनकर उसे धक्का लगा।

“अमित तो आज स्कूल आया ही नहीं”

चंद्रकान्त तुरंत अमित के शिक्षकों के घर की ओर भागे, उन्होंने भी यही बताया कि अमित आज स्कूल आया ही नहीं था। चंद्रकान्त ने तुरंत आसपास के अन्य घरों और गांव में अमित की खोजबीन शुरू की। उसने बाजू के गांव में रहने वाले अपने भाई को फोन करके बताया कि अमित गुम गया है, उसका अभी तक कुछ भी अता-पता नहीं है।

फिर दूसरे दिन चंद्रकान्त ने  अपने भाई को साथ लेकर निरा गांव और आसपास के घरों में अमित को खोजना शुरू किया। सोनावणे परिवार की चिंता अब बढ़ने लगी थी। आखिर में निराश होकर शाम को छह बजे चंद्रकान्त ने निरा पुलिस चौकी में ‘अमित कल से गायब है’ इसकी एफआईआर लिखवाई।

चौकी से घर वापस लौटे तो उनके चचेरे भाई ने खबर दी कि बाजू के भापकर एसटीडी बूथ में एक फोन आया था। अज्ञात व्यक्ति ने धमकी दी है कि अमित उसके पास है। वापस चाहते हो तो एक लाख रुपयों की व्यवस्था करके रखो नहीं तो मैं उसे मुंबई भेज दूंगा। फोन करने वाला हिंदी में बोल रहा था। इतना सुनते ही चंद्रकान्त फिर से निरा पुलिस चौकी की ओर भागे और पुलिस को यह बात बताई।

गुरुवार छह जुलाई से चंद्रकान्त, सोनवणे परिवार और गांववालों ने अमित की खोज चालू रखी लेकिन नतीजा शून्य। अमित नहीं मिला।

शुक्रवार सात जुलाई को सोनावणे के घर पर एक अंतर्देशीय पत्र आया। पत्र के पता अमित के अक्षरों में लिखा हुआ था, यह देखकर चंद्रकान्त खुश हो गए, ‘चलो, अमित कहीं न कहीं सुरक्षित है और उसने घर में इसकी सूचना दी है।’ लेकिन पत्र खोलकर पढ़ते-पढ़ते चंद्रकान्त के पैरों तले जमीन खिसकने लगी।

“सोनावणे तुम्हारा बेटा मेरे कब्जे में है। नकद एक लाख रुपयों की व्यवस्था करो नहीं तो तुम्हारे बेटे को मार डालूंगा। भापकर एसटीडी बूथ में राह देखते बैठो। पैसे कहां रखने हैं ये भापकर को बताता हूं।”

चंद्रकान्त ने तुरंत पुलिस चौकी जाकर वह पत्र दिखाया।

अनुवाद: यामिनी रामपल्लीवार

©प्रफुल शाह

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