वो माया है.... - 73 Ashish Kumar Trivedi द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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वो माया है.... - 73



(73)

अदीबा कुछ समय पहले ही दिल्ली से लौटकर आई थी। अपना सामान रखकर वह सोफे पर लेट गई थी। उसकी देखभाल के लिए उसके साथ रहने वाली अमीरन चाची ने उसे पानी लाकर दिया। उसने लेटे लेटे ही पी लिया। अमीरन ने कहा,
"कितना थक गई हो कि बैठकर पानी भी नहीं पी सकती। ट्रेन में बैठकर आई हो या पीछे पीछे भागकर।"
अमीरन की बात सुनकर अदीबा हंसकर बोली,
"बैठकर ही आई हूँ चाची। पर बैठे बैठे थक गई।"
"बैठी क्यों रही ? रिजरवेसन नहीं कराया था।"
अदीबा ने मुस्कुरा कर कहा,
"चाची अब यह सब छोड़ो। अच्छी सी चाय बना दो। तुम्हारे हाथ की चाय पीते ही जिस्म में फुर्ती आ जाएगी।"
"ठीक है....अभी लेकर आते हैं।"
अमीरन चाय बनाने चली गईं। अदीबा ने सोफे पर लेटे हुए अंगड़ाई ली। कुशन को सर के नीचे रखा और आँखें बंद कर लीं। अभी मुश्किल से पाँच मिनट बीते होंगे कि उसका फोन बज उठा। उसने जींस की जेब से फोन निकाला। स्क्रीन पर अखलाक का नाम देखकर बड़बड़ाई,
"सर को भी एकदम सब्र नहीं है। मालूम है कि अभी घर पहुँची होऊँगी। फोन करने लगे।"
उसने फोन उठाया। बात करते हुए वह उठकर सोफे पर बैठ गई। कुछ देर बात करने के बाद बोली,
"सर मैं बस कुछ ही देर में तैयार होकर आती हूँ।"
उसने फोन मेज़ पर रखा। अपने कमरे में जाने लगी तो अमीरन की आवाज़ आई,
"कहाँ जा रही हो ? चाय लेकर आए हैं।"
अदीबा को चाय की सख्त ज़रूरत थी। लेकिन अखलाक ने जो बताया था उसके बाद ऑफिस जाने की जल्दी भी थी। उसने कहा,
"चाची तुम पी लो। मुझे जल्दी ऑफिस पहुँचना है। वहीं जाकर पी लूँगी।"
अदीबा अपने कमरे में चली गई। अमीरन चाय का कप पकड़े बड़बड़ाने लगीं,
"खुदा जाने आजकल की इस पीढ़ी का क्या होगा ? कुछ तय ही नहीं है। पल में तेला पल में माशा।"
बड़बड़ाने के बाद सोफे पर बैठकर चाय पीने लगीं।

अदीबा अखलाक के केबिन में थी। निहाल भी वहाँ था। अदीबा ने निहाल से कहा,
"वाह तुमने तो बहुत अच्छा काम किया।"
"तुमसे ही सीखा है।"
निहाल का जवाब सुनकर अदीबा ने हंसकर कहा,
"मख्खन लगा रहे हो....."
निहाल मुस्कुरा दिया। अखलाक ने कहा,
"निहाल ने काबिलेतारिफ काम किया है। तुम नहीं थी तो मैंने निहाल को जिला न्यायालय में जाकर रिपोर्टिंग करने को कहा था। वहाँ कौशल, पवन और विशाल के विरुद्ध चार्जशीट दाखिल की गई थी। पुलिस ने तीनों के बयानों के आधार पर हत्या की साज़िश रचने का आरोप लगाया है।"
अदीबा ने कुछ सोचकर कहा,
"इसका मतलब तो यह हुआ सर कि पुलिस का मानना है कि पुष्कर की हत्या किसी और ने की है।"
निहाल ने कहा,
"जो सामने आया है उसके हिसाब से कौशल पुष्कर की हत्या के इरादे से ही टैक्सी के पीछे गया था पर उसने हत्या नहीं की थी। पुलिस की चार्जशीट में सिर्फ साज़िश करने का आरोप है।"
अदीबा ने कुछ सोचकर कहा,
"तो फिर पुष्कर की हत्या किसने की ?"
अखलाक ने कहा,
"अदीबा...अभी पुलिस ने इस विषय में कुछ नहीं कहा है। पर एक बहुत रोचक बात सामने आई है।"
"कैसी रोचक बात ?"
जवाब देते हुए निहाल ने कहा,
"विशाल की बेल की सुनवाई पर पुलिस ने उसके साइकोलॉजिकल टेस्ट की मांग की थी। पुलिस का कहना है कि विशाल किसी मानसिक बीमारी से ग्रसित है। साइमन मरांडी ने उसके साथ हुई पूछताछ का एक वीडियो कोर्ट में पेश किया है। उसके अनुसार उस पूछताछ के समय विशाल का व्यवहार कुछ समय के लिए एकदम बदल गया था। वह सामान्य नहीं लग रहा था। साइमन ने उसके साइकोलॉजिकल टेस्ट की मांग की थी जो मंज़ूर हो गई है।"
यह खबर बहुत खास थी। अदीबा ने कहा,
"पुलिस विशाल की मानसिक बीमारी को पुष्कर की हत्या से जोड़ना चाहती है।"
अखलाक ने कहा,
"साइकोलॉजिकल टेस्ट की मांग करते हुए पुलिस ने करीब बारह साल पहले हुई विशाल की पत्नी और बच्चे की अचानक हुई मौत का भी ज़िक्र किया है। पुलिस ने कहा है कि उन दोनों की मृत्यु ज़हर से हुई थी। लेकिन विशाल और उसके घरवालों ने मामले की रिपोर्ट पुलिस को नहीं की थी।‌ उसे परिवार को दिए गए किसी श्राप से जोड़कर मामले को दबा दिया था। पुलिस उस केस की इन्वेस्टीगेशन करना चाहती है।"
अदीबा की दिशा के साथ विस्तार से बात हुई थी। दिशा ने भी उसे विशाल की पत्नी और बच्चे की अचानक मौत के बारे में बताया था। उसका कहना था कि घरवालों ने माया के श्राप की बात करके सब दबा दिया था। अदीबा ने अखलाक को वह बात बताई। अखलाक ने कहा,
"अदीबा बहुत सारी जानकारियां मिल चुकी हैं। अब तुम उनके आधार पर रिपोर्ट की एक सीरीज़ तैयार करो। कोशिश करना कि हर रिपोर्ट में कुछ दिलचस्प हो और दूसरे पार्ट‌ को पढ़ने के लिए दिलचस्पी जगाए।"
अखलाक ने निहाल से कहा कि अदीबा अपनी रिपोर्ट तैयार करने में व्यस्त रहेगी। इसलिए केस से संबंधित नई जानकारियां जुटाने का काम वह करे। अपनी नज़र इस केस पर बनाए रखे।

विशाल को बेल मिल गई थी। लेकिन कोर्ट ने उसका साइकोलॉजिकल टेस्ट कराने का आदेश दिया था। इसलिए उसे भवानीगंज पुलिस स्टेशन में रोका गया था। मशहूर साइकोलॉजिस्ट डॉ. हिना सैयद को बुलाया गया था। वह एक सेमीनार में गई थीं। इसलिए उन्हें आने में कुछ वक्त लगना था।
जबसे उमा को उस कड़वे सच का पता चला था वह सदमे जैसी स्थिति में ही थीं।‌ उस दिन माया के श्राप के बारे में बात करने के बाद से उन्होंने कुछ नहीं बोला था। वह बस एक मशीन की तरह काम कर रही थींं। नीलम ने उन्हें समझाया था कि वह काम की चिंता ना करें। वह सब संभाल लेगी। पर उमा ने एक नहीं सुनी। बद्रीनाथ ने कहा कि वह जो करना चाहती हैं करने दो। काम करती रहेगी तो ठीक है। नहीं तो बस एक ही बात सोचती रहेंगी।‌
उमा ही नहीं किशोरी का भी लगभग वैसा ही हाल था। फर्क सिर्फ इतना था कि वह पूजाघर में भगवान के सामने बैठकर अपना दुख दर्द, शिकायत बयान कर लेती थीं। उमा तो अब भगवान का नाम भी नहीं लेती थीं।
नीलम का दम इस दुख भरे माहौल में घुट रहा था। दिनभर मनहूसियत छाई रहती थी। हंसी खुशी थी ही नहीं। इस घर में मनोरंजन के साधन के नाम पर टीवी था। पर उसने कभी चलते हुए नहीं देखा था। अपने घर में तो वह खाली वक्त टीवी देखकर गुज़ार लेती थी। यहाँ तो वह भी नसीब नहीं था। वह मनोहर से कह चुकी थी कि अब आकर उसे ले जाए। उसके लिए यहाँ रहना मुश्किल हो रहा है। लेकिन मनोहर ने उसे समझाया था कि कुछ दिन धैर्य से वहाँ रह ले। यही तो वक्त है जब दीदी और जीजा जी को अपनों की ज़रूरत है। उसके पास मन मारकर रहने के सिवा कोई चारा नहीं था। सुनंदा दोपहर को कुछ देर के लिए आ जाती थीं जिससे उसका कुछ मन लग जाता था।
दोपहर का खाना कुछ देर पहले ही निपटा था। बद्रीनाथ जगदीश नारायण ने मिलने गए थे। किशोरी पूजाघर में बैठी थीं। उमा अपने कमरे में लेटी थीं। दूसरे कमरे में सुनंदा और नीलम बैठी बातें कर रही थीं। सुनंदा जो कुछ हो रहा था उससे दुखी थीं। उन्होंने नीलम से कहा,
"जब भी इस घर के बारे में सोचते हैं जी भर आता है। सब सही होता तो यह घर कितना खुशहाल होता। पर आज हाल यह है कि एक बेटा दुनिया से जा चुका है और दूसरा उसकी हत्या की साज़िश रचने के लिए हिरासत में है। हम तो यकीन ही नहीं कर पा रहे हैं कि विशाल ने ऐसा किया होगा।"
नीलम ने कहा,
"यकीन होगा भी कैसे ? कैसा सीधासादा लड़का है विशाल। बोलता कम है पर हमेशा इज्जत दी है उसने। दीदी ने सही कहा था। माया के श्राप ने सिर्फ खुशियां ही नहीं छीनीं। उसके श्राप के कारण ही विशाल के मन में छोटे भाई के लिए ऐसा खयाल आया।"
सुनंदा ने नीलम की बात का कोई जवाब नहीं दिया। वह अपने विचार में खोई थीं। नीलम ने कहा,
"हमारी शादी तो बहुत बाद में हुई। हमने तो सिर्फ माया की कहानी सुनी है। आपने तो उसे देखा होगा ? कैसी थी ?"
सुनंदा ने याद करते हुए कहा,
"हमारी तब नई नई शादी हुई थी। सोनम के पापा की पोस्टिंग दूर के स्कूल में हुई थी। इसलिए हम मायके में रहते थे। श्राप वाले कांड से कुछ दिन पहले ही सोनम के पापा भवानीगंज के स्कूल में आ गए। तब हम भी यहीं आकर रहने लगे। तब सुना था कि विशाल और माया का प्रेम चल रहा था। भइया और जिज्जी को बिल्कुल पसंद नहीं था। वैसे एक दो बार हमने माया को देखा था। बड़ी खूबसूरत थी। एकबार उमा दीदी ने दबी जबान हमसे कहा था कि ना जाने क्यों विशाल के पापा और जिज्जी खिलाफ हैं। लड़की बड़ी अच्छी है। घर जोड़कर रखेगी।"
सुनंदा रुकीं। इधर उधर देखकर बोलीं,
"कहना नहीं चाहिए पर सच तो यह है कि माया के श्राप की असली जड़ जिज्जी हैं। जिज्जी ने ही भइया को भड़का दिया। नहीं तो शायद वह इतनी ज़िद ना करते।"
"ऐसा होता तो कितना अच्छा होता। उमा दीदी को बहुओं और पोता पोती का सुख मिलना चाहिए था। पर बेचारी यह सब झेल रही हैं।"
सुनंदा का फोन बजा। सोनम का फोन था। उसने कहा कि मीनू की तबीयत ठीक नहीं लग रही है। वह घर आ जाएं। सुनंदा यह सुनकर परेशान हो गईं। वह फौरन अपने घर चली गईं। नीलम सोच रही थी कि कुछ देर उनसे बातें करेगी। उनके जाने के बाद उसकी समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे ? उसने अपना मोबाइल उठाया। कान में लीड लगाकर गाने सुनने लगी।