सुबह की सैर Dr Jaya Shankar Shukla द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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सुबह की सैर

*आज सुबह "morning walk" पर,
एक व्यक्ति को देखा*
मुझ से आधा "किलोमीटर" आगे था।
अंदाज़ा लगाया कि, मुझ से थोड़ा "धीरे" ही भाग रहा था। एक अजीब सी "खुशी" मिली। मैं पकड़ लूंगा उसे, और यकीन भी।

मैं तेज़ और तेज़ चलने लगा ,आगे बढ़ते हर कदम के साथ,मैं उसके "करीब" पहुंच रहा था.कुछ ही पलों में, मैं उससे बस सौ क़दम पीछे था.
निर्णय ले लिया था कि, मुझे उसे "पीछे" छोड़ना है। थोड़ी "गति" बढ़ाई।

अंततः कर दिया।
उसके पास पहुंच, उससे "आगे" निकल गया.
"आंतरिक हर्ष" की "अनुभूति",
कि, मैंने उसे "हरा" दिया।

*बेशक उसे नहीं पता था,
कि हम "दौड़" लगा रहे थे*

मैं जब उससे "आगे" निकल गया
अनुभव हुआ
कि दिलो-दिमाग "प्रतिस्पर्धा"पर, इस कद्र केंद्रित था.......

कि

"घर का मोड़" छूट गया,
मन का "सकून" खो गया,
आस-पास की "खूबसूरती और हरियाली" नहीं देख पाया
अच्छा मौसम की "खुशी" को भूल गया

और

तब "समझ" में आया,
यही तो होता है "जीवन" में,भी है
जब हम अपने साथियों को,
पड़ोसियों को, दोस्तों को,
परिवार के सदस्यों को,
"प्रतियोगी" समझते हैं।
उनसे "बेहतर" करना चाहते हैं।
"प्रमाणित" करना चाहते हैं
कि, हम उनसे अधिक "सफल" हैं।
या
अधिक "महत्वपूर्ण"।

*बहुत "महंगा" पड़ता है।*
क्योंकि अपनी "खुशी भूल" जाते हैं।
अपना "समय" और "ऊर्जा,
उनके "पीछे भागने" में गवां देते हैं।
इस सब में, अपना "मार्ग और मंज़िल" भूल जाते हैं।

"भूल" जाते हैं कि, "नकारात्मक प्रतिस्पर्धाएं" कभी ख़त्म नहीं होंगी।
"हमेशा" कोई आगे होगा।
किसी के पास "बेहतर नौकरी" होगी।
"बेहतर गाड़ी",
बैंक में अधिक "रुपए",
ज़्यादा पढ़ाई,
"सुन्दर पत्नी”
ज़्यादा संस्कारी बच्चे,
बेहतर "परिस्थितियां"
और बेहतर "हालात"।

इस सब में एक "एहसास" ज़रूरी है
कि, बिना प्रतियोगिता किए, हर इंसान "श्रेष्ठतम" हो सकता है।

कुछ "असुरक्षित" महसूस करते हैं क्योंकि, अत्याधिक ध्यान देते हैं "दूसरों" पर -
कहां जा रहे हैं?
क्या कर रहे हैं?
क्या पहन रहे हैं?
क्या बातें कर रहे हैं?

"जो है, उसी में❤️ खुश रहे"।
लंबाई, वज़न या व्यक्तित्व...।

"स्वीकार" करे और "समझे"
कि, कितने भाग्यशाली है।

ध्यान नियंत्रित रखे।
स्वस्थ, सुखद ज़िन्दगी जीये।

"भाग्य" में कोई "प्रतिस्पर्धा" नहीं है।
सबका अपना-अपना है।

"तुलना और प्रतियोगिता" हर खुशी को चुरा लेते‌ हैं।

इस लिए अपनी "दौड़" खुद लगाये, बिना किसी प्रतिस्पर्धा के, इससे असीम सुख आनंद मिलता है, मन में विकार नही पैदा होते, शायद इसी को "मोक्ष" कहते है।
😊🙏🙏🕉️🕉️

*आज सुबह "morning walk" पर,
एक व्यक्ति को देखा*
मुझ से आधा "किलोमीटर" आगे था।
अंदाज़ा लगाया कि, मुझ से थोड़ा "धीरे" ही भाग रहा था। एक अजीब सी "खुशी" मिली। मैं पकड़ लूंगा उसे, और यकीन भी।

मैं तेज़ और तेज़ चलने लगा ,आगे बढ़ते हर कदम के साथ,मैं उसके "करीब" पहुंच रहा था.कुछ ही पलों में, मैं उससे बस सौ क़दम पीछे था.
निर्णय ले लिया था कि, मुझे उसे "पीछे" छोड़ना है। थोड़ी "गति" बढ़ाई।

अंततः कर दिया।
उसके पास पहुंच, उससे "आगे" निकल गया.
"आंतरिक हर्ष" की "अनुभूति",
कि, मैंने उसे "हरा" दिया।

*बेशक उसे नहीं पता था,
कि हम "दौड़" लगा रहे थे*

मैं जब उससे "आगे" निकल गया
अनुभव हुआ
कि दिलो-दिमाग "प्रतिस्पर्धा"पर, इस कद्र केंद्रित था.......

कि

"घर का मोड़" छूट गया,
मन का "सकून" खो गया,
आस-पास की "खूबसूरती और हरियाली" नहीं देख पाया
अच्छा मौसम की "खुशी" को भूल गया

और

तब "समझ" में आया,
यही तो होता है "जीवन" में,भी है
जब हम अपने साथियों को,
पड़ोसियों को, दोस्तों को,
परिवार के सदस्यों को,
"प्रतियोगी" समझते हैं।
उनसे "बेहतर" करना चाहते हैं।
"प्रमाणित" करना चाहते हैं
कि, हम उनसे अधिक "सफल" हैं।
या
अधिक "महत्वपूर्ण"।

*बहुत "महंगा" पड़ता है।*
क्योंकि अपनी "खुशी भूल" जाते हैं।
अपना "समय" और "ऊर्जा,
उनके "पीछे भागने" में गवां देते हैं।
इस सब में, अपना "मार्ग और मंज़िल" भूल जाते हैं।

"भूल" जाते हैं कि, "नकारात्मक प्रतिस्पर्धाएं" कभी ख़त्म नहीं होंगी।
"हमेशा" कोई आगे होगा।
किसी के पास "बेहतर नौकरी" होगी।
"बेहतर गाड़ी",
बैंक में अधिक "रुपए",
ज़्यादा पढ़ाई,
"सुन्दर पत्नी”
ज़्यादा संस्कारी बच्चे,
बेहतर "परिस्थितियां"
और बेहतर "हालात"।

इस सब में एक "एहसास" ज़रूरी है
कि, बिना प्रतियोगिता किए, हर इंसान "श्रेष्ठतम" हो सकता है।

कुछ "असुरक्षित" महसूस करते हैं क्योंकि, अत्याधिक ध्यान देते हैं "दूसरों" पर -
कहां जा रहे हैं?
क्या कर रहे हैं?
क्या पहन रहे हैं?
क्या बातें कर रहे हैं?

"जो है, उसी में❤️ खुश रहे"।
लंबाई, वज़न या व्यक्तित्व...।

"स्वीकार" करे और "समझे"
कि, कितने भाग्यशाली है।

ध्यान नियंत्रित रखे।
स्वस्थ, सुखद ज़िन्दगी जीये।

"भाग्य" में कोई "प्रतिस्पर्धा" नहीं है।
सबका अपना-अपना है।

"तुलना और प्रतियोगिता" हर खुशी को चुरा लेते‌ हैं।

इस लिए अपनी "दौड़" खुद लगाये, बिना किसी प्रतिस्पर्धा के, इससे असीम सुख आनंद मिलता है, मन में विकार नही पैदा होते, शायद इसी को "मोक्ष" कहते है।
😊🙏🙏🕉️🕉️