"आत्म सम्मान"
डा जय शंकर शुक्ल
छुआछूत के रोग से ग्रसित रोगी, स्वस्थ हो जाने पर भी काफी दिन तक क्वॉरेंटाइन मैं रहता है क्वॉरेंटाइन में रहना उसकी मजबूरी है जिससे कि वह इस बीमारी को किसी अन्य में न फैला सके प्राचीन काल में हमारे समाज में सूतक एक शब्द प्रचलन में था किसी भी परिवार में मृत्यु होने की स्थिति हो या किसी नए बच्चे के आगमन की दोनों ही स्थितियों में संक्रमण से बचने के लिए सूतक का प्रावधान किया जाता था। जब तक सूतक अथवा क्वॉरेंटाइन का समय पूरा नहीं होता तब तक वह व्यक्ति समाज के लिए अछूत होता है परंतु क्वॉरेंटाइन का समय पूरा कर लेने के बाद वहअछूत नहीं रह जाता। हमारे देश भारत में आदिकाल से ही एक व्यवस्था रही है जिसमें की स्वस्थ परिवेश एवं स्वस्थ वातावरण के लिए अभिवादन से लेकर सम्मान तक की व्यवस्था मेल मिलाप भोजन जलपान शयन वस्त्र आदि के लिए एक वैज्ञानिक विधि को न केवल मान्यता दी गई वर्णन जन-जन में इसका प्रयोग किया जाता रहा आज उसे वायरस के इस युग में संपूर्ण विश्व में मान्यता दी है। हमारे यहां बिना किसी वर्ग संप्रदाय वर्ण धर्म जाति को देखें हर किसी के लिए यह नियम स्वच्छता एवं सफाई हेतु बीमारियों से बचने हेतु अपने उद्देश्य में सफल होने की प्रक्रिया में लगे रहने हेतु पालन किए जाते थे और कराए जाते थे। एक वर्ग बिना किसी रोग के अछूत घोषित कर दिया गया हो, ऐसा हमारे देश में कभी भी नहीं हुआ यह देश काल परिस्थिति और वातावरण से अलग पूर्णतया वैज्ञानिक पद्धति पर लागू एक उचित दूरी के साथ संबंधों का व्यापक समाधान था। अछूत कोई वर्ग नहीं होता था बल्कि हर वर्ग में व्यक्ति की शारीरिक अवस्था उसकी बीमारी उसे समाज में संक्रमित न करने के लिए एक निश्चित डिस्टेंस के प्रयोग हेतु इस तरह की वैज्ञानिक पद्धति हमारे समाज में बहुत पहले से चली आ रही है। किसी भी वर्ग का कोई भीव्यक्ति चाहे कितना भी स्वस्थ हो, सफाई से रहता हो, चाहे कितनी भी पढ़ाई लिखाई किया हो, चाहे कितना भी चरित्रवान हो, वह सदैव सम्मान का पात्र बना रहता है। उसकी पीढ़ी दर पीढ़ी एक बड़े स्टेटस को प्राप्त करती है और समाज में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण और अनुकरणीय बनी रहती है ।
घर का बालक जब अपने घर की दहलीज पार करके बाहरी दुनिया में प्रवेश करता है, उसे कदम कदम पर स्वच्छता और बचाव की आदतों से दो चार होना पड़ता है ।समाज के रखवाले समाज के शिल्पी समाज में स्वच्छता के हिमायती बीमारियों से बचाव के पैरोकार उसे जगह-जगह पर सावधान करने से बाज नहीं आते।
श्री दशरथ यादव जानकी मेमोरियल इंटर कॉलेज में अंग्रेजी के अध्यापक थे। शेक्सपियर मिल्टन बेकन, चाउसर ,थॉमस हार्डी और जॉर्ज बर्नार्ड शा जैसे अंग्रेजी के विद्वानों को वह अंगुलियों पर नचाते थे। उनका मानना था कि ये सब हमारे गौरवशाली भारतीय साहित्यिक परंपरा के ग्रंथों से नकल मारकर अपनी पुस्तकें तैयार कर लिए। इनकी धार्मिक पुस्तक बाइबल भी हमारे सनातन धर्म ग्रंथों की नकल है । हमारे मनु, श्रद्धा को उन्होंने एडम और ईव नाम दे दिया है । नाम बदला है कहानी वही है । बिल्डिंग वही है, गवर्नर हाउस की जगह अब राष्ट्रपति भवन हो गया है।
शैली ,कीट्स,यीट्स, कॉलरिज, किपलिंग, वाइल्ड- फाइल्ड आदि अंग्रेजी कवियों को वह आदिकवि वाल्मीकि, कालिदास, बाणभट्ट,कबीर, सूर, तुलसी जैसे भारतीय कवियों के पैरों की धूल समझते थे। कहते थे हमारे प्रिय कवि तुलसीदास ने क्या उत्कृष्ट साहित्य रचा है---
सचिव ,वैद्य ,गुरु तीन जो
प्रिय बोलहिं भय आस ।
राज, धर्म, तन, तीन का
होहिं बेगही नाश ।।
......गजब..... भला कोई अंग्रेजी कवि इतने उच्चकोटि का साहित्य लिख सकता है? कभी नहीं।
कभी-कभी वह अंग्रेजी साहित्य को संस्कृत साहित्य और हिंदी साहित्य के साथ घालमेल कर देते थे। जॉन मिल्टन की 'पैराडाइज लास्ट' को जयशंकर प्रसाद की 'कामायनी' की नकल बताते हुए कहते थे--
OF Mans First Disobedience, and the Fruit
Of that Forbidden Tree, whose mortal tast
Brought Death into the World, and all our woe,..........
इसमें Man है मनु और Eve है श्रद्धा ।.....
"कौन हो तुम बसंत के दूत,
विरस पतझड़ में अति सुकुमार।
घन-तिमिर में चपला की रेख
तपन में शीतल मंद बयार।......
यहां श्रद्धा बसंत की दूत है । She is an Ambassador of spring. ईडन गार्डन में पतझड़ का मौसम था; श्रद्धा के आते ही बसंत आ गया । घनघोर अंधेरे में बिजली सी चमक गई और तपती हुई गर्मी में धीरे-धीरे शीतल हवाएं बहने लगीं।
लल्लन ने एक बार सोचा कि कह दूं गुरुजी जॉन मिल्टन ने तो जयशंकर प्रसाद की कामायनी के पहले पैराडाइज लास्ट लिख लिया था । परंतु वह डर के मारे बोल नहीं पाया।
अंग्रेजी और संस्कृत का तुलनात्मक अध्ययन करने के बाद वह बताते थे कि एडविन अर्नाल्ड की लिखित पुस्तक 'द लाइट ऑफ एशिया' अधूरा साहित्य है। कहते थे कि अर्नाल्ड ने केवल 'द लाइट ऑफ एशिया' लिखा है, जिसमें शाक्य वंशी क्षत्रिय राजकुमार सिद्धार्थ का वर्णन है। उसके बहुत पहले हमारे देश में आदिकवि महर्षि वाल्मीकि ने संस्कृत साहित्य में 'रामायण' की रचना कर दी थी, जिसे 'द लाइट ऑफ वर्ल्ड' के नाम से जाना जाता है। क्योंकि इसमें मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के पूरे जीवन चरित्र के साथ-साथ उनके पूरे वंश का वर्णन है। भगवान राम भी शाक्य वंशी क्षत्रिय थे। महाकवि कालिदास ने रघुवंशम में लिखा है कि भगवान राम के वंश की उत्पत्ति सूर्य के प्रभाव से से हुई थी।
क्व सूर्य प्रभवो वंश : क्व चाल्पविषया मति:
तितीर्षु दुस्तरं मोहादुडुपेनास्मि सागरम् ।।
लल्लन बड़ा कंफ्यूज हो जाता था कि क्षत्रियों की उत्पत्ति विराट पुरुष ब्रह्मा की भुजाओं से हुई थी या सूर्य से हुई थी ????? परंतु वह गुरुजी से पूछने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था। क्योंकि उनसे प्रश्न करना ततैया के छत्ते में हाथ देने के बराबर था। वह अपने आप से खुद को समझा लेता था -- हो सकता है सूर्य से ब्रह्मा जी की भुजाओं में डायरेक्ट विटामिन डी पहुंच गया हो और क्षत्रिय पैदा हो गए हों।परंतु विटामिन डी तो हर अंग में पहुंचनी चाहिए थी।
वह कक्षा में अंग्रेजी कम पढ़ाते थे और हिंदू धर्म दर्शन तथा देवी देवताओं की पौराणिक कथाएं ज्यादा सुनाते थे।ब्रह्मा विष्णु महेश की बातों को वह इस तरह बताते थे, जैसे वह इन देवताओं का साक्षात दर्शन करके आए हों अथवा उनका इन सबसे सीधा संवाद होता हो। कहते थे यह ताजमहल प्राचीनकाल में तेजो महालय था । इसका गुंबद भगवान विष्णु के मुकुट की प्रतिकृति है। भगवान इंद्र के महल में लगे खंभों को देखकर तेजो महालय की मीनारें बनाई गई थीं। मुसलमानों ने उस पर कब्जा करके उसका नाम बदलकर ताजमहल कर दिया।
उनका मानना था कि हिंदू धर्म एवं संस्कृति विश्व की सनातन धर्म व संस्कृति है, और देववाणी संस्कृत विश्व की प्रथम सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक भाषा । हमारे देवी देवता यही भाषा बोलते थे। विश्व की जितनी भाषाएं हैं, सब संस्कृत से निकली हैं, संस्कृत समस्त भारतीय एवं अन्य भाषाओं की जननी है और विश्व के सारे धर्म हिंदू धर्म से निकले हैं। ईसा ,मूसा, इब्राहिम, मोहम्मद सब पहले हिंदू ही थे। अब्राहम और इब्राहिम तो भगवान ब्रह्मा का बिगड़ा हुआ रूप है।-Brahm=Abraham=Ibrahim.
वह सफाई व स्वच्छता के प्रबल समर्थक थे। उनका विचार था कि इनका पालन न करने वालों से सदैव दूरी बनाकर रखनी चाहिए। कक्षा में स्वच्छता और सफाई का पालन न करने वाले बालकों के स्पर्श से उनका तन अपवित्र और मन खिन्न हो जाता था।
साथ ही साथ कई तरह के संक्रमण जनित बीमारियों के फैलने का संकट भी होता था। वह जब भी कक्षा से पढ़ाकर बाहर निकलते, अथवा बाहर से कक्षा कक्ष में आते दोनों ही स्थितियों में अपने तन और मन और वाणी को शुद्ध करने के नियमों का पालन करने के लिए सदैव तत्पर रहते थे वह वह सभी बातें स्वयं के लिए भी उतना ही महत्वपूर्ण मानते थे जितना की अन्य विद्यार्थियों व शिक्षकों केलिए, अपनी जेब से गंगाजल की एक शीशी निकालकर उसमें से 2--4 बूंदे अपने ऊपर छिड़क लेते थे।
यह शीशी उनके लिए सैनिटाइजर का काम करती थी वह अपनी असीम भक्ति गंगा जी में मानते थे उनका अपना मानना था कि गंगाजल बहुत सही नहीं पूर्णतया वैज्ञानिक है दुनिया का कोई भी वायरस या बैक्टीरिया इसमें ज्यादा समय तक जीवित नहीं रह सकता हिमालय की गोमुख पहाड़ी से निकलने के बाद गंगाजल में इतनी वनस्पतियां इतने खनिज इतनी रोग प्रतिरोधक क्षमताएं मिल चुकी हैं यह सहज हम सबको स्वस्थ प्रसन्न चित्त बनाने में सहायक होता है, अतः इस तरह गंगाजल उनके अध्यापन कार्य के लिए सहायक सामग्री बनी हुई थी।
जब कभी वह कक्षा कक्ष में अध्यापन हेतु पाठ योजना बनाते थे , अध्यापक डायरी तैयार करते थे अपनी तैयारी में वह समाज में प्रचलित रोड़ी और दकियानूसी विचारों के विरोध के स्वर को सदैव प्रबल रखते थे अपने विद्यार्थियों को वह वैज्ञानिक दृष्टिकोण देने के समर्थक थे उनकी कोशिश होती थी कि मुख्य विषय को पढ़ाते हुए सहायक रूप से वह अपने बच्चों को यह जानकारियां जरूर देते रहें। ऐसे महत्वपूर्ण कार्य को वह समय की बर्बादी ना मानते हुए उसके प्रति पूरी तरह से ईमानदार और समर्पित रहते हुए अपने दायित्व निर्वाह में सतर्क रहते थे और यह बात वह पूरे भरोसे के साथ दूसरों से भीकहते थे। उनके लिए चॉक, डस्टर ,चार्ट पेपर तथा डायरी भी उतना जरूरी था, जितना कि वह गंगाजल की शीशी।
गुरुजी के नक्शे कदम पर चलते हुए उनका आज्ञाकारी शिष्य पवन भी सफाई एवं स्वच्छता में खूब विश्वास करता था। वह हमेशा डेस्क पर एकदम आगे बैठता था। उसने लल्लन को सख्त हिदायत दे रखी थी कि सफाई और स्वच्छता जीवन का आधार है यदि हम इनका पालन करते हैं साफ धुले हुए कपड़े पहनते हैं नाखूनों को काट के रखते हैं बालों में तेल और कंघा करते हैं बड़ी सफाई से लेखन कार्य और अभ्यास कार्य करते हैं तो हम जीवन में आगे बढ़ेंगे और दूसरों को आगे बढ़ने हेतु प्रेरित करेंगे पवन स्पष्ट कहता था कि यदि तुम इनका पालन ना कर सको तो मेरे डेस्क के आसपास भी मत फटक जाना।
पवन के अगल-बगल केवल सफाई और स्वच्छता का पालन करने वाले लड़के ही बैठते थे जिससे आगे की डेस्क पोरी कक्षा के विद्यार्थियों के लिए उदाहरण स्वरूप हो गई थी। लल्लन मन मारकर एकदम पीछे बैठने के बजाय गुरु जी के द्वारा बताई गई बातों का पालन करते हुए अपने आप को चुस्त-दुरुस्त तंदुरुस्त और स्वस्थ बनाए रखने के लिए स्वच्छता और सफाई का पालन करते हुए आगे की डेस्क पर पूरे जोश खरोश के साथ पठन-पाठन हेतु कक्षा के कुशाग्र बुद्धि बच्चों के कंधे से कंधा मिलाकर बैठा रहता था।
गुरुजी की कृपा दृष्टि सदैव पठन-पाठन में कुशाग्र एवं सफाई स्वक्षता में भी अग्रणी बच्चों पर बनी रहती थी। वह हमेशा ऐसे बच्चों की तारीफ किया करते थे और लल्लन में तरह-तरह की कमियों को दूर करने के लिए तरह-तरह के विचार निकालते रहते थे। लल्लन सहित अन्य विद्यार्थियों को कक्षा कार्य न करने और पठन-पाठन में लापरवाही करने की आदत को लेकर बात-बात पर डांट पड़ती थी, जिससे वे हतोत्साहित और कुंठित होने के बजाय अपनी गलती समझ कर उसके लिए प्रयत्न करते हुए निरंतर सक्रिय और क्रियाशील हो जाते थे।
पवन सदैव जाति अभिमान से दूर रहता था उसका मानना था कि यह सारी चीजें यहां पृथ्वी पर मनुष्य नहीं बनाई है किसी भी बच्चे का जन्म लेना उसके अपने हाथ में नहीं है हर बच्चा अपने प्रयत्न के अनुसार बड़ी से बड़ी उपलब्धियों को प्राप्त कर सकता है हमारे देश में आजादी के बाद से हमारे देश के संविधान में यह बातें निश्चित रखी गई यहां बड़े से बड़े पदों पर पहुंचने के लिए योग्यता प्रतिभा समर्पण की आवश्यकता है जिसके लिए पवनऔर लल्लन जाति दंश से विलग सदैव बेहतरीन के लिए प्रयत्नशील रहते थे।
कह रहीम कैसे निभै,
बेर केर के संग ।
वे डोलैं रस आपने,
उनके फाटत अंग ।।
परंतु यहां तो लल्लन को अपने साथ के विद्यार्थियों की आंतों के साथ-साथ स्वयं के स्वभाव और आदतों में बदलाव की भावना को निभाना पड़ता था। उसने भी ठान लिया था चाहे अंग फटे या प्राण ही निकल जाएं, परंतु पढ़ाई नहीं छोडूंगा।
एक दिन लल्लन से पवन की स्वच्छता और पठन-पाठन में अभ्यास कार्य को लेकर बहुत बहुत सारी विचारधाराओं पर केंद्रित संवाद हो गया। स्कूल की छुट्टी हुई तो सभी बालक एक साथ निकलने लगे और लल्लन को पता नहीं चला कि इस भीड़ में कोरोना का एक मरीज भी हैं। उस समय तक जन-जन में यह संवाद फैल चुका था यह हर बच्चे हर बूढ़े हर नागरिक को 2 गज की दूरी आपस में बनानी आवश्यक है क्योंकि को रोना का इलाज ढूंढा नहीं गया था बचाओ ही सबसे बड़ा इलाज था।चलते-चलते शरीर से शरीर का स्पर्श हो ही जाता है।
पवन आपे से बाहर हो गए और बोला--- भाई तुझे दिखाई नहीं देता? अब इस महामारी के समय में में मुझे शाम को भी नहाना पड़ेगा।
मामला क्लास टीचर श्री दशरथ यादव के पास पहुंचा। दशरथ यादव ने पवन लक्ष्य करके सारी कक्षा को अलग उदाहरण देते हुए महामारी के विषय में विधिवत जानकारी और उससे बचाव के तरीके बताया और इन सब से अलग जाकर जाकर समझाते हुए कहा---- अब स्कूल आओगे तो इस संक्रमण का सामना तो करना ही पड़ेगा। मुझे देखो! मैं मैं भी संक्रमित लोगों और विद्यार्थियों से छुआ जाता हूं ; लेकिन इससे बचने के लिए मेरे पास हमेशा एक उपाय होता है। ...
फिर उन्होंने अपने कुर्ते की जेब से सैनिटाइजर की शीशी निकालकर कहा --- लो! इसे अपने ऊपर छिड़क लो। एकदम शुद्ध हो जाओगे। सैनिटाइजर एल्कोहलिक बेस का होता है यह वायरस से हमारी रक्षा करता है यह हमारे जीवन के लिए इस महामारी के समय में अमृत से भी कीमती है।
पवन को गुरुजी की बातें पल्ले नहीं पड़ीं।
वह बोला ---- सैनिटाइजर में तो अल्कोहल पड़ता है और अल्कोहल हम बच्चों को प्रयोग नहीं करना चाहिए यह तो शरीर के लिए बेहद हानिकारक होता है। मैं इसे अपने ऊपर छिड़क कर और गंदा हो जाऊंगा मेरे शरीर से शराब पी सी बदबू आने लगेगी। मैं कभी नहीं इसका प्रयोग करूंगा और न हीं छिड़कूंगा अपने ऊपर ।
पवन गुरु जी की आज्ञा का पालन नहीं किया। वह शिष्य की अवहेलना से अत्यंत आहत हो गए। उनका परम शिष्य उनकी बातों का अमल नहीं किया। इस बात का उन्हें बड़ा आघात पहुंचा। गुरु शिष्य में इस बात को लेकर खटास उत्पन्न हो गई।
गुरु जी सैनिटाइजर को बहुत ही उपयोगी और महामारी से बचाव हेतु बहुत ही जरूरी मानते थे उनका मानना था की पवित्रता तभी तक है जब तक जीवन है, जीवन से अलग पवित्रता का कोई आधार नहीं है हम पवित्रता को सापेक्ष रूप से लेकर चलें तो मनुष्य का अस्तित्व पहले है स्वच्छता सफाई समाज में उपयोगिता पर कार्य इनका पालन सबसे पहले है।
सुकरात कला को असल की नकल मानता था, प्लेटो कला को ही असल मानता था। सुकरात कला को आदर्श की कल्पना मानता था, प्लेटो कला को ही आदर्श मानता था।
सुकरात कहता था- "कलाकार वास्तविकता की कल्पना करता है" इसी बात को लेकर अपने विचारों में प्लेटो कहता था -
"कलाकार अपनी कल्पना शक्ति द्वारा वास्तविकता का वह रूप दिखाता है,जो हम वास्तविक वस्तु में नहीं देख सकते थे।"
गुरु और शिष्य के विचारों में मतभेद उत्पन्न हो गया।
जानकी मेमोरियल इंटर कॉलेज से 12वीं की परीक्षा पास करके लल्लन और पवन दोनों ने सरजू प्रसाद स्नातकोत्तर महाविद्यालय में प्रवेश लिया। महाविद्यालय का माहौल कुछ अलग था। यहां वहां पर आपसी विवाद को कोई तवज्जो नहीं दिया जाता था। लल्लन सफाई एवं स्वच्छता को लेकर कक्षा कक्ष में अन्य विद्यार्थियों की अपेक्षा अलग बैठने पर कोई मजबूर नहीं करता था , अब सभी विद्यार्थी पूरी तरह से समझदार हो चुके थे और उन्होंने अपने भले के लिए जीना सीख लिया था।
पीछे कुछ अन्य बच्चे भी बैठते थे जो कि छठे हुए बदमाश थे।वे शराब सिगरेट गांजा आदि नशीले पदार्थों का छिप छिप कर सेवन करते थे। अब लल्लन के लिए इधर कूआं था,तो उधर खाई।आगे वह पवन के पास अपनी कमियों के मारे नहीं बैठता था, पीछे आवारा लड़के थे, जिसके साथ बैठना उसकी मजबूरी थी।
एक दिन वे शरारती लड़के लल्लन को जबरदस्ती सिनेमा हॉल में घसीट ले गए। लल्लन रोता गिड़गिड़ाता रहा, मगर वे कहां मानने वाले थे। हाल में सिनेमा देखने के बाद रेस्टोरेंट में अंडे और शराब की पार्टी शुरू हो गई। उन्होंने लल्लन से भी शराब पीने के लिए कहा। लल्लन ने एतराज किया तो उन्होंने कहा -- नहीं पियेगा तो सोच ले, हम तेरे साथ क्या करेंगे।
लल्लन ने कहा ---- जान बख्श दो माई बाप। जो कहोगे, वह करूंगा।
लल्लन ने जाम से जाम टकराया। अंडे और शराब का दौर चलने लगा। एक लड़के ने जोश में कहा--- आज की पार्टी मेरी तरफ से, हमारे नए यार श्री लल्लन के सम्मान में।
नए यार की खुशी में सब गाने लगे---
तुझ पे कुर्बां मेरी जान, मेरा दिल मेरा ईमान,
यारी मेरी कहती है,यार पे करदे सब कुर्बान।
उन्होंने अभिनय भी किया और ठुमके भी लगाए। नशा चढ़ जाने के बाद वे लल्लन को पकड़कर रोने लगे---- बिछड़ा यार मिला रे, बिछड़ा यार मिला रे.....
मिले न फूल तो कांटों से दोस्ती कर ली। लल्लन की उनसे अच्छी मित्रता हो गई। लल्लन भी उनके साथ हम पियाला हम निवाला होने लगा; उन आवारा लड़कों के साथ बाइक पर घूमने लगा। सोचा - ये लड़के लाख बुरे हैं;परंतु इनके अंदर नियमों की कढ़ाई और पठन-पाठन की जबरदस्ती का ज़हर तो नहीं भरा है।
यह देख कर पवन को बड़ी कोफ्त होती थी। पवन ने उन लड़कों को लल्लन को बिगाड़ने तथा पढ़ाई से दूर करने जैसी घटना को रोकने के लिए लल्लन के साथ रहने के लिए मना किया, तो उन लोगों ने पवन की खूब खिल्ली उड़ाई। एक लड़के ने उसे गाली देते हुए पीट देने की धमकी भी दी। पवन अपमान का घूंट पीकर रह गया। आखिर वह उनका कुछ बिगाड़ भी नहीं सकता था।
पवन कुछ उखड़ा उखड़ा सा रहने लगा। उसके जेहन में हमेशा अपने पूर्व सपाटे लल्लन की पढ़ाई न हो पाने की मुश्किलों की बातें घूमती रहती थीं और उसका पढ़ाई में मन नहीं लगता था । अब वह हाशिए की जिंदगी गुजारने लगा और अपने मित्र के सामने आई कठिन परिस्थिति और बुराइयों को लेकर वहअवसाद ग्रस्त हो गया।
डिग्री कॉलेज से पास करने के बाद पवन और लल्लन B.Ed करने के लिए बनारस से फार्म भरा। मगर पवन का एडमिशन हो गया और लल्लन टापता रह गया। लल्लन खाली क्या करता, वह प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने लगा। आवारा लड़कों का साथ छूट चुका था और इसी के साथ लल्लन का गांजा शराब भी छूट गया था । अब वह पूरी तरह से पढ़ाई में ध्यान देने लग गया।
बीएड कालेज का माहौल एकदम अलग था। यहां कोई छात्र कहीं भी बैठता था। विषय का कोई जिक्र ही नहीं होता था। पवन के लिए यह एक बड़ी मुसीबत थी। दो एक बार उन्होंने विरोध भी किया लेकिन उन्हें मुंह की खानी पड़ी ।अब उनके लिए अपने पठन-पाठन के तरीके में बदलाव करना लाजमी हो गया था ।
वह किराए के कमरे में रहते थे जहां कोई ज्यादा व्यवस्था नहीं थी। विद्यार्थी जीवन तो अभावों में ही बीतता है ।पवन गुरबत में रहकर अच्छी व्यवस्था नहीं कर पाते थे। खाने पीने की उचित व्यवस्था न हो पाने के फलस्वरूप वह गंभीर रूप से बीमार पड़ गए ।
उन्हें बी एड की पढ़ाई छोड़ कर घर बैठना पड़ गया। अब उनका पढ़ाई और बाहरी दुनिया से मोह भंग हो गया था। उन्होंने अपने आप को घर तक सीमित कर लिया था। रोजी रोटी के लिए मजदूरी और खेती के काम, उनका एक बड़ा सहारा था।
लल्लन प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के लिए इधर उधर से सामग्री जुटाने लग गया । इसी सिलसिले में वह पैदल रेल पकड़ने के लिए जा रहा था कि रास्ते में उसे एक व्यक्ति मोटरसाइकिल से आता हुआ दिखाई दिया। लल्लन ने उसे हाथ देकर रोका। बोला --- भैया, स्टेशन तक छोड़ दो।
बाइक वाले ने पूछा ---कहां जाना है कौन सी ट्रेन पकड़ोगे ?
बाइक वाला लंबा तगड़ा नौजवान था और लग रहा था गुस्से में है। लल्लन डर गया ।सोचा इसे रोककर पड़ी पड़ाई मुसीबत मोल ले ली। इसी को कहते हैं उड़ता हुआ तीर पकड़कर सीने पर लेना।
लल्लन ने हिचिकिचाते हुए बताया--- शहर जाना है और पैसेंजर ट्रेन पकड़नी है।
उस व्यक्ति ने कहा ---- मैं निकम्मे लोगों से बड़ी नफरत करता हूं; क्योंकि वे बहुत ही नीच प्रव्रृति के होते हैं। तुम सफाई और मेहनत पसंद हो इसलिए अच्छा है। बैठो।
बाइक वाला बाइक चलाता रहा और बीमारियों के संक्रमण फैलाने वालों को अनाप-शनाप बकता रहा।कहता था --- मैं वकील हूं। तुम लोग मेहनतकश हो। मैं मेहनत करने वालों को बहुत मानता हूं। वे किसानी करते हैं और खेत में काम करते हैं। गुरुदेव रविंद्र ठाकुर ने कहा है कि किसान तू सचमुच सारे जग का पिता है। इसलिए मैं मेहनतकश किसानों का बड़ा सम्मान करता हूं।
उस व्यक्ति ने ललन को स्टेशन तक छोड़ा। लल्लन रेल में बैठकर सफर करते हुए उस बाइक वाले के बारे में सोचता रहा कि काम बताने के फायदे भी हो सकते हैं, इसलिए अब से मैं अपने नाम के साथ अपनी काम भी बताऊंगा।
बगल में एक व्यक्ति बैठा था। लल्लन से पूछा--क्या नाम है आपका ?
लल्लन ने कहा ---- लल्लन ।
उस व्यक्ति ने कहा ---- भाई नाराज क्यों हो रहे हो? मैंने तो आपसे प्यार से ही पूछा है।
ललन ने कहा---- नाराज नहीं हो रहा हूं ।लोग नाम पूछने के बाद काम पूछते हैं, इसलिए समय खराब होता है ।आजकल समय किसी के पास नहीं है। इसलिए मैं सोचता हूं कि आज से मैं अपना नाम काम के साथ ही बताऊंगा। आज आप दूसरे व्यक्ति हैं जो मुझसे काम पूछ रहे हैं ।मैं जहां जाता हूं लोग बहुत सारी चीजें पूछते रहते हैं ।पहले नाम पूछेंगे,फिर गांव स्थान भाई बंधुओं के बारे में जानने के लिए बेचैन रहेंगे। किसी भी व्यक्ति के बारे मेंजानने के बाद वे उसके स्टेटस के हिसाब से व्यवहार करेंगे।
उस व्यक्ति ने कहा ----लोग करते होंगे, लेकिन मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है। मैंने तो आपसे ऐसा कुछ भी नहीं पूछा। खैर आपने बता ही दिया तो मैं भी बता देता हूं, मैं भी ट्रेन पकड़ने जा रहा हूं।
उसने अपना विजिटिंग कार्ड दिया, जिसमें उसका पता फोन नंबर और नाम लिखा था आर.पी.शर्मा एडवोकेट।
रेल की मुलाकात लल्लन के बड़े काम आई। वकील साहब ने उसका बड़ा सहयोग किया। लल्लन की मेहनत रंग लाई और आई.ए.एस में उसका सिलेक्शन हो गया।
5 वर्ष बीत गए। इस समय लल्लन की पोस्टिंग बनारस में थी। उसके पास जानकी मेमोरियल इंटर कॉलेज के प्रबन्धक का फोन आया। उसे विद्यालय के वार्षिकोत्सव में चीफ गेस्ट बनकर आने के लिए आग्रह किया जा रहा था। प्रबंधक का कहना था कि हमारे कॉलेज के भूतपूर्व छात्र के रूप में आपकी उपस्थिति हमारे छात्रों के लिएलिए बहुत महत्वपूर्ण होगी। आपको देखकर छात्र प्रेरित होंगे और पठन-पाठन में रुचि लेंगे, जिससे उनके तरक्की का रास्ता खुलेगा। निवेदन है कि आप अपने बहुमूल्य समय में से थोड़ा समय हमारे छात्रों के लिए अवश्य निकालें।
वार्षिकोत्सव में लल्लन का भव्य स्वागत हुआ। दशरथ यादव स्वाभिमान गर्व और बड़प्पन से फूले नहीं समा रहे थे वह लल्लन के ठीक सामने बैठे थे। लल्लन सभा को संबोधित कर रहे थे। गुरु की महिमा का वर्णन करते करते हुए उन्होंने कहा-- प्यारे बच्चों! क्या तुम मेरी तरह साहब बनना चाहते हो? अगर बनना चाहते हो तो गुरु की आज्ञा का पालन करो । उनकी डांट डपट को गुरु का आशीर्वाद मानो। गुरु शिष्य को लोहे की तरह तपाता है, उस पर तरह तरह से प्रहार करता है ,उसको रगड़ता है, तब कहीं जाकर वह लोहा कामयाब होता है। आज मैं जो कुछ भी हूं अपने गुरु की कृपा की बदौलत हूं। मैंने गुरु जी की बातों को हमेशा आत्मसात किया है।
प्यारे बच्चों! क्या तुम जानना चाहोगे वह मेरे परम आदरणीय गुरु जी कौन हैं?
बच्चे कौतूहल से अध्यापकों की तरफ देखने लगे।
फिर लल्लन ने कहा --- आज मैं जिनकी बदौलत अधिकारी बना हूं, वह मेरे परम आदरणीय गुरु जी मेरे सामने ही बैठे हैं। उनको देखकर लगता है मैं साक्षात ईश्वर का दर्शन कर रहा हूं। वह हैं परम श्रद्धेय श्री दशरथ यादव जी।
गुरुजी को बड़ी प्रसन्नता हुई। उन्होंने सोचा था कि लल्लन मुझसे बेरुखी से पेश आएगा और अपने अफसरपने का रोब झाड़ेगा। परंतु यह तो मेरी आशा के एकदम विपरीत हुआ। हाय! मैंने तेरे साथ कितना कठोर व्यवहार किया था और तुमने हमेशा मुझे सिर आंखों पर बिठाए रखा। तेरे पढ़ाई के प्रति मुझ में कितनी जिज्ञासा भरी थी।मैंने कॉलेज की प्रबंधन कमेटी के प्रस्ताव का पुरजोर समर्थन किया कि तू चीफ गेस्ट बनकर आए। आज मुझे अपने निर्णय पर ब्लॉक गर्व है तेरे जैसा विद्यार्थी पा करके मेरा जीवन धन्य हो गया। मैंने कितना अच्छा कार्य किया है। हे भगवान! क्या इस तरह से मेरे सारे शिष्यों का सम्मान हो सकता है ?
गुरु जी की आंखों से झर झर नीर बह रहा था। वह इतने भावुक और गौरवान्वित हो गए कि उनसे उठा नहीं जा रहा था। वह अपने ऊपर लल्लन के सम्मान का विशाल गौरव महसूस कर रहे थे। भावना के शीश पर रोमांचित हो कर दशरथ अपने विद्यार्थी पर गर्व करते हुए स्वाभिमान संयुक्त होकर कुर्सी से चिपके रहे।
बच्चों को संबोधित करने के बाद लल्लन गुरुजी के पास आया और उनका पैर छूकर आशीर्वाद लिया। गुरु जी ने लल्लन को गले लगाते हुए रुआंसे गले से कहा--- लल्लन ! मै सम्मान से ज्यादा अनुकरण का भागी हूं। मेरा जी करता है मैं ईश्वर से प्रार्थना करूं कि तुम्हारे जैसे शिष्य वह हर गुरु को दे, मुझे गौरव से भर कर कर, मुझे भरी सभा में सम्मान और प्रतिष्ठा से लबालब कर दिया मैं यह मानता हूं कि तुम्हें बेहतरीन शिक्षा और अभ्यास के लिए कभी-कभी बनावटी रूप से कि मैंने तुमसे उपेक्षापूर्ण व्यवहार भी किया है। मेरे मुंह पर आज मेरे शिष्य द्वारा कही गई बातें मेरे अभिमान को कई गुना बढ़ा देती हैं आज तुमने अपने गुरु दक्षिणा अदा कर दी मेरे बेटे। तुमने मेरी आत्मा को सम्मान से सराबोर कर दिया है। मैं सच्चा गुरु हूं , तू सच्चा शिष्य है।