रिश्ते… दिल से दिल के - 15 Hemant Sharma “Harshul” द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

रिश्ते… दिल से दिल के - 15

रिश्ते… दिल से दिल के
एपिसोड 15
[आकृति को पता चला अपने पिता का सच]

"प्रदिति!", गरिमा जी के चिल्लाने की आवाज़ जब छत पर आई तो प्रदिति और दामिनी जी दोनों हैरान और चिंतित हो गए।

प्रदिति आवाज़ सुनकर टेंशन के साथ बोली, "ये आवाज़ तो… मां… मां की है।"

दामिनी जी– "हां, बेटा! चलो, चलकर देखते हैं।"

ये कहकर दोनों छत से नीचे चले गए।

गरिमा जी की आवाज़ सुनकर आकृति भी अपने कमरे से बाहर आई और गरिमा जी से उसने पूछा, "क्या हुआ, मॉम? आप ऐसे चिल्ला क्यों रही हैं?"

गरिमा जी ने कड़कती हुई आवाज़ में कहा, "प्रदिति कहां है?"

आकृति ने सीधे से जवाब दिया, "अपने कमरे में होंगी।"

गरिमा जी– "वो नहीं है वहां।"

"मैं यहां हूं, मां!", प्रदिति ने दामिनी जी के साथ सीढ़ियों से उतरते हुए कहा।

जब गरिमा जी ने प्रदिति की आवाज़ सुनी तो दहकती हुई नजरों से उसकी तरफ देखा। फिर वो बड़े–बड़े कदमों से आंखों में गुस्सा लिए उसकी तरफ बढ़ने लगीं।

प्रदिति तो उनका रूप देखकर पसीना–पसीना हो गई।

दामिनी जी ने गरिमा जी से पूछा, "क्या हुआ, बेटा? कोई बात है क्या?"

गरिमा जी ने बिना दामिनी जी की तरफ देखे कहा, "हां, मां! बहुत ज़रूरी बात है।"

प्रदिति ने डरते हुए कहा, "पर, मां! हुआ… क्या?"

गरिमा जी ने अपनी आंखें गुस्से से बंद कर लीं और फिर पूछा, "कौन हो तुम?"

उनकी इस बात पर हर कोई हैरान रह गया।

प्रदिति भी अटकते हुए बोली, "मैं… प्रदिति…"

गरिमा जी– "मैंने पूछा तुम किसकी बेटी हो? नाम क्या है तुम्हारे पिता का?"

उनकी बात पर दामिनी जी और प्रदिति दोनों हैरान रह गए। डर के मारे दोनों की सांसें ही जैसे रुक गईं।

प्रदिति फिर से अटकते हुए बोली, "मैं… वो… मेरे पापा…"

गरिमा जी गुस्से से उसकी तरफ बढ़ीं तो प्रदिति डरकर दो कदम पीछे हट गई।

दामिनी जी ने गरिमा जी के आगे आकर कहा, "बेटा! हुआ क्या है? तुम प्रदिति से उसके पिता का नाम क्यों पूछ रही हो?"

गरिमा जी ने दामिनी जी से कहा, "आप जानती भी हैं कि ये किसकी बेटी है?"

उनकी बात पर दामिनी जी ने प्रदिति की तरफ देखा जो आंखों में आंसू भरे नीचे नजरें करके खड़ी थी।

फिर दामिनी जी ने गले से थूक गटकते हुए कहा, "किसकी बेटी है?"

गरिमा जी ने अपने हाथ में लगे हुए फोटो को उन्हें दिखाया तो दामिनी जी हैरान रह गईं। प्रदिति भी ये नहीं समझ पा रही थी कि गरिमा जी को ये फोटो कैसे मिला!

गरिमा जी उस फोटो को दिखाकर बोलीं, "ये मिस्टर विनीत सहगल की बेटी है।"

आकृति जो कब से ये सबकुछ देख रही थी पर समझ नहीं आ रही थी, विनीत सहगल के नाम से उसके दिमाग में कुछ खटका और वो गरिमा जी के पास आकर बोली, "मॉम! विनीत सहगल तो मेरे डैड का भी नाम है ना?"

फिर उसने गरिमा जी के हाथ से उस फोटो को लेकर गौर से देखा पर उसमें वो सिर्फ प्रदिति को ही पहचान पा रही थी। वो उस फोटो को लेकर प्रदिति के पास आई और बोली, "दी! ये दोनों आपके मॉम–डैड हैं? वाउ, क्या जोड़ी है इनकी! आपके डैड का नाम भी विनीत सहगल है… हमारे तो डैड के नाम भी सेम हैं तो हमें तो बहन बनना ही था।"

उसकी बात सुनकर प्रदिति हैरान हो गई कि आकृति अपने पिता को कैसे पहचान नहीं पा रही है लेकिन फिर उसे दामिनी जी की बताई बात याद आई कि जिस दिन विनीत जी इस घर को छोड़कर गए थे उसी दिन गरिमा जी ने उनकी सारी यादों को मिटा दिया था, एक फोटो तक नहीं छोड़ा था गरिमा जी ने। इसीलिए आकृति को ये भी नहीं पता कि इसके डैड दिखते कैसे थे!

गरिमा जी आकृति को प्रदिति के पास से खींचकर लाईं और बोलीं, "ये तुम्हारी बहन नहीं है। तुम्हारा और इसका कोई रिश्ता नहीं है।"

आकृति को गरिमा जी की बातें समझ ही नहीं आ रही थीं। वो अपना हाथ छुड़ाकर बोली, "मॉम! क्या हो गया है आपको? ये क्या बोल रही हैं आप? दी ने ऐसा क्या कर दिया है जो आप इनके साथ ऐसा बिहेव कर रही हैं?"

गरिमा जी ने कोई जवाब नहीं दिया और प्रदिति का हाथ पकड़कर बोलीं, "तुम्हारा सारा सामान मैंने पैक कर दिया है इसलिए अपने इस सामान के समेत निकलो यहां से, अभी के अभी।" कहकर वो प्रदिति को बाहर खींचकर ले जाने लगीं कि आकृति ने उनका हाथ आकर बीच में ही रोक लिया और बोली, "मॉम! व्हाट्स रॉन्ग विद यू? कर क्या रही हैं ये आप? क्यों दी को घर से बाहर निकाल रही हैं?"

गरिमा जी ने आकृति से उसी लहजे में कहा, "अक्कू! हाथ छोड़ो। मैं तुम्हें बाद में सब बता दूंगी। लेकिन अभी मुझे इस लड़की को घर से बाहर निकालने दो।"

आकृति उनका हाथ कसकर पकड़ते हुए बोली, "नहीं, पहले आपको मुझे वजह बतानी होगी। मुझे भी तो पता चले कि दी ने ऐसा कौन सा पाप कर दिया है जो वो इस घर में नहीं रह सकतीं।"

प्रदिति ने आकृति को समझाते हुए कहा, "अक्कू! रहने दो ना, मां कुछ सोचकर ही ये सब कर रही होंगी। उन्होंने कहा ना वो तुम्हें बाद ने बता देंगी।"

आकृति प्रदिति की बात का कटाक्ष करते हुए बोली, "नहीं, दी! बाद में नहीं, मुझे अभी सुनना है।"

फिर आकृति गरिमा जी से बोली, "मॉम! अगर आप ज़िद्दी हैं तो मैं भी आपकी बेटी हूं। आपको मुझे बताना ही पड़ेगा। बताइए, मॉम! बताइए।"

गरिमा जी जब आकृति के इन सवालों से परेशान हो गईं तो वो चींखकर बोलीं, "क्योंकि ये लड़की तुम्हारे बाप की नाजायज औलाद है।"

इतना सुनते ही आकृति की गरिमा जी के हाथ पर पकड़ ढीली हो गई, वो हैरान थी जो भी गरिमा जी ने कहा उसे सुनकर।

गरिमा जी ने आगे कहा, "ये ही वो लड़की है जिसकी वजह से मेरी ज़िन्दगी बरबाद हो गई। इसकी और इसकी मां की वजह से मेरा पति, तुम्हारा पिता और मां का बेटा उनसे छिन गया।"

आकृति लंबी–लंबी सांस भरते हुए बोली, "नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। मेरे डैड ऐसा नहीं कर सकते।"

गरिमा जी नम आंखों से बोलीं, "ऐसा ही किया है उन्होंने। आज तक मैंने तुमसे ये सच छिपाया क्योंकि मैं तुम्हें तकलीफ नहीं पहुंचाना चाहती थी पर अब मेरे पास कोई और रास्ता नहीं था। जब तुम 4 साल की थी तब मैं तुम्हें मां के पास छोड़कर मार्केट गई थी। मार्केट से सामान लेने के बाद मैं ऑटो में बैठकर आ रही थी पर रास्ते में वो बंद पड़ गया इसलिए मैं वहीं खड़ी होकर दूसरे ऑटो का इंतज़ार करने लगी तभी मेरे पीछे से मुझे एक आवाज़ सुनाई दी…

"बेटा! मुझे जाना पड़ेगा, कल फिर से आ जाऊंगा।", गरिमा जी ने पीछे मुड़कर देखा तो विनीत जी एक छोटे से मकान के आगे गोद में एक 5 साल की बच्ची को लेकर खड़े थे। इस नज़ारे को देखकर गरिमा जी हैरान थीं कि वो बच्ची कौन थी जिसे विनीत जी गोद में लिए थे पर जो आगे हुआ उसे सुनकर तो गरिमा जी के पैरों तले ज़मीन खिसक गई।

उस बच्ची ने अपनी मीठी आवाज़ में कहा, "नहीं, पापा! आप नहीं जाओ। मुझे आपकी याद आती है।"

गरिमा जी समझ नहीं पा रही थीं कि ये क्या हो रहा है तभी अंदर से गरिमा जी की हमउम्र महिला बाहर आई। वो मुस्कुराकर उस बच्ची से बोली, "प्रदिति! बेटा, पापा को जाने दो। उन्हें ऑफिस के लिए लेट हो रहा है ना!"

प्रदिति ज़िद करते हुए बोली, "नहीं, मम्मा! पापा यहीं रहेंगे। वो कहीं नहीं जायेंगे नहीं तो मैं आप दोनों से बात नहीं करूंगी।"

विनीत जी मुस्कुराकर बोली, "अच्छा, ठीक है। आज प्रदिति के पापा कहीं नहीं जायेंगे। वो आज अपनी प्यारी सी बिटिया प्रदिति के पास ही रहेंगे।"

ये सुनकर प्रदिति फुदकते हुए बोली, "येयेय! आज पापा मेरे साथ रहेंगे।"

वो महिला विनीत जी से बोलीं, "विनीत जी! क्यों आपने उसकी बात मान ली? बच्ची है वो तो।"

विनीत जी मुस्कुराकर बोले, "रश्मि! बेटी है वो मेरी और उसके लिए इतना तो कर ही सकता हूं।"

गरिमा जी अब खुद को संभाल नहीं पा रही थीं। उनके हाथ–पैर कांपने लगे थे। उन्हें अपनी आंखों और कानों पर भरोसा ही नहीं हो रहा था कि ये उनके विनीत जी ही थे, वो विनीत जी जो इन्हें बेइंतहा मोहब्बत करते थे।

गरिमा जी ने खुद को संभाला और गुस्से से बड़े–बड़े कदम लेकर विनीत जी के पास आईं और एक ज़ोरदार तमाचा उनके गाल पर जड़ दिया। विनीत जी जोकि इस सबसे अंजान थे उस तमाचे के अचानक पड़ने पर लड़खड़ा गए। जब उन्होंने गरिमा जी की तरफ देखा तो वो हैरान रह गए, रश्मि जी भी इस नज़ारे को देखकर चौंक गईं उन्होंने प्रदिति को अंदर भेज दिया।

गरिमा जी रोते हुए बोलीं, "छी! आप ऐसे निकलेंगे, मैंने कभी सोचा भी नहीं था। इतना प्यार, इतना सम्मान दिया मैंने आपको और आपने क्या किया सब कुछ एक झटके में तोड़कर रख दिया! आपको थोड़ी सी भी शर्म नहीं आई मेरा दिल तोड़ते हुए, मुझे धोखा देते हुए! आपको अपनी अक्कू का ख्याल नहीं आया जिसे आपने दुनिया की सारी खुशियां देने का वादा किया था। सपने में भी नहीं सोचा था कि आप ऐसे निकलेंगे। जितना भरोसा मैंने आप पर किया उतना आज तक किसी पर नहीं किया था पर आपने मेरे इस भरोसे को चकनाचूर कर दिया। आपके इस धोखे की वजह से अब मैं शायद किसी पर भरोसा ना कर पाऊं।"

विनीत जी ने नम आंखों से उनका हाथ पकड़ते हुए कहा, "गरिमा! मेरे बात तो…"

गरिमा जी ने उनके हाथ को छटक दिया और उंगली दिखाकर बोलीं, "अब मुझे बहलाने की कोशिश मत कीजिएगा।"

रश्मि जी भी पीछे से बोलीं, "गरिमा! तुम जैसा समझ रही हो वैसा कुछ नहीं है।"

गरिमा जी ने हैरानी से रश्मि जी की तरफ देखा और बोलीं, "मतलब तुम भी सब जानती थी, तुम जानती थी कि ये मैरिड हैं फिर भी तुमने…? एक मिनट, पहली बीवी तुम हो या मैं?"

रश्मि जी ने गरिमा जी से बोला, "गरिमा! मैं इनकी पत्नी नहीं हूं।"

अब तो गरिमा जी और भी ज़्यादा चौंक गईं और बोलीं, "मतलब तुमने शादी के बिना…। छी, तुम दोनों ही एक जैसे हो। मुझे यहां एक पल भी नहीं ठहरना।" कहकर गरिमा जी मुड़ीं कि रश्मि जी ने उन्हें रोका और बोलीं, "गरिमा! तुम पूरा सच नहीं जानती, सच तो ये है कि…" रश्मि जी अपनी बात पूरी कर पातीं उससे पहले ही विनीत जी ने रश्मि जी का हाथ पकड़कर उन्हें रुकने का इशारा कर दिया। पर गरिमा जी ने जब विनीत जी को रश्मि का हाथ पकड़े देखा तो उनके तन–बदन ने फिर से आग लग गई। वो गुस्से से वहां से निकल गईं।

क्रमशः