रिश्ते… दिल से दिल के
एपिसोड 14
[दामिनी जी ने सुनी प्रदिति की बातें]
गरिमा जी गुस्से से रिया की तरफ बढ़ने को हुईं कि दूसरी तरफ से राहुल बोला, "ए बुढ़िया! खबरदार, जो आगे बढ़ी तो… अगर अपनी जगह से थोड़ा सा भी हिली तो तेरी इस बेटी की गर्दन धड़ से अलग कर दूंगा।"
गरिमा जी दोनों तरफ देख रही थीं पर वो समझ नहीं पा रही थीं कि किधर जाएं? उन्होंने अपनी आंखें बंद कीं और सोचा कि क्या करें…
आज उनके दिल में यही दुविधा चल रही थी कि किसे बचाएं… उसे जिसको उन्होंने जन्म दिया है या उसे जिसने उनकी बेटी की इज्ज़त को लुटने से बचाया है?
प्रदिति भी गरिमा जी के दिल की इस दुविधा को अच्छे से समझ पा रही थी उसने खुद बंधे हुए भी खुद की चेयर को पूरा ज़ोर लगाकर नीचे गिरा दिया जिससे वो राहुल के पैर पर आ गिरी और उसके हाथ से चाकू छूटकर दूर गिर पड़ा और वो खुद दर्द से कराह उठा।
प्रदिति ने गरिमा जी को आवाज़ लगाई, "मां! मैं ठीक हूं, आप अक्कू को बचाइए।"
गरिमा जी ने प्रदिति की आवाज़ सुनी तो उन्होंने गुस्से से रिया की तरफ देखा और दौड़कर उसके पास गईं। रिया तो उन्हें देखकर ही कांपने लगी। जब उसे कुछ नहीं सूझा तो वो भागकर बाहर जाने लगी कि गरिमा जी ने उसका हाथ कसकर पकड़ लिया और बोलीं, "इतनी भी क्या जल्दी है, बेटा! थोड़ा जेल की हवा भी खा लेना। मैंने पुलिस को फोन कर दिया है। वो यहां आती ही होगी।"
उधर राहुल खुद को संभालते हुए गरिमा जी के पीछे आया और एक लोहे की रॉड उठाकर गरिमा जी को मारने ही वाला था कि दो हाथों ने उस रॉड को बीच ने ही पकड़ लिया। जब राहुल ने उधर देखा तो वो हाथ प्रदिति और आकृति के ही थे।
आकृति खुद को संभालकर खड़ी हो गई थी और प्रदिति ने वहां पड़े चाकू से अपनी रस्सियां खोल ली थीं। जब आकृति और प्रदिति की नज़र हाथ में रॉड ले जाते राहुल पर पड़ी तो दोनों भागकर आई और उसे बीच में ही रोक लिया।
फिर दोनों ने मिलकर राहुल की खूब पिटाई की और गरिमा जी ये देखकर बहुत खुश हो गईं कि उनकी दोनों बेटियों ने उनकी जान भी बचाई और वो राहुल को उसकी गलती के लिए पीट भी रही थीं।
रिया तो ये सब देखकर बहुत ज़्यादा डर रही थी। तभी वहां पुलिस आ गई और उन दोनों को अरेस्ट करके ले गई।
प्रदिति और आकृति दोनों भागकर गरिमा जी के गले लग गईं। फिर प्रदिति उनसे अलग होकर बोली, "मां! अक्कू! थैंक यू सो मच, आज आप दोनों ने मेरी जान बचाई।"
गरिमा जी ने प्रदिति के बहते हुए आंसुओं को पोंछकर कहा, "नहीं, बेटा! मैंने और अक्कू ने तुम्हारी जान नहीं बचाई बल्कि हम तीनों ने एक दूसरे की जान बचाई।"
प्रदिति– "लेकिन, मां! आप यहां पर कैसे?"
आकृति– "दी! जैसे उस दिन आप मुझे बचाने आ गईं वैसे ही मैं और मॉम आपको बचाने आ गए।"
प्रदिति एक बार फिर उनके गले लग गई।
…
विनीत जी बार–बार किसी को फोन लगा रहे थे पर दूसरी तरफ ना उठाए जाने की वजह से परेशान हो रहे थे। रश्मि जी ने जब उन्हें यूं चिंतित देखी तो वो बोलीं, "क्या हुआ? आप इतने परेशान क्यों हैं?"
विनीत जी परेशानी के साथ बोले, "रश्मि! एक तो वैसे ही मेरे दिल को एक अजीब सी घबराहट हो रही थी ऊपर से प्रदिति का फोन भी नहीं लग रहा है। कहीं वो किसी मुसीबत में तो नहीं…?"
रश्मि जी– "ऐसा कुछ नहीं है। हमारी प्रदिति के साथ उसके शिव जी हैं, उसे कुछ नहीं होगा"
विनीत जी– "पर मुझे तो उसकी चिंता हो रही है।"
तभी अचानक से विनीत जी का फोन बजा उन्होंने जब स्क्रीन पर नाम देखा तो उनके दिल को एक राहत मिली। उन्होंने झट से फोन उठाया और बोले, "प्रदिति! तुम ठीक तो हो, बेटा?"
वहां से आने के बाद प्रदिति अपने रूम में आ गई थी। फिर उसने सोचा कि एक बार विनीत जी से बात कर ले इसलिए वो उन्हें कॉल करने लगी पर कुछ नेटवर्क प्रोब्लम होने की वजह से उनका फोन नहीं लगा तो वो घर की छत पर चली गई और वहां नेटवर्क मिलने पर उसने उन्हें कॉल किया।
प्रदिति– "मैं ठीक हूं, पापा! लेकिन आप इतने परेशान क्यों लग रहे हैं?"
विनीत जी– "बेटा! एक अजीब सी घबराहट हो रही थी तुम्हें लेकर तो सोचा तुमसे बात कर लूं पर तुम्हारा फोन नहीं लगा तो वो घबराहट और भी ज़्यादा बढ़ गई।"
विनीत जी की बात पर प्रदिति ने मन में सोचा, "वाह, मुझे वहां थोड़ी सी तकलीफ हुई और पापा को इसका एहसास हो गया। सच में, पैरेंट्स के अंदर सुपरपावर तो होती है अपने बच्चों को तकलीफ पहचानने की।"
जब प्रदिति ने कुछ नहीं कहा तो विनीत जी बोले, "प्रदिति! क्या हुआ? कहां खो गई?"
प्रदिति अपने ख्यालों से बाहर आई और बोली, "नहीं, पापा! ऐसा कुछ नहीं है। वो बस नेटवर्क प्रोब्लम था इसलिए मेरा फोन नहीं लग रहा था।
फिर प्रदिति ने छत की तरफ देखकर कहा, "आपकी फेवरेट जगह पर आकर ही मुझे नेटवर्क मिले।"
प्रदिति ने कहा तो विनीत जी हैरानी के साथ बोले, "मेरी फेवरेट जगह, मतलब?"
प्रदिति को भी इस बात का एहसास हुआ कि उसने गलत बात बोल दी तो उसे संभालते हुए वो बोली, "मेरा मतलब है कि… आपकी फेवरेट… दिल्ली… हां, दिल्ली आपकी फेवरेट है ना तो वहीं तो हूं मैं इसलिए यहां आकर ही मुझे नेटवर्क मिला।"
विनीत जी को प्रदिति की बात कुछ अटपटी लगी तो वो बोले, "ये कैसी बातें कर रही हो, बेटा? यहां शिमला में भी तो नेटवर्क था।"
प्रदिति अब और भी बुरी तरह फंस चुकी थी। जब उसे कुछ समझ नहीं आया तो वो बोली, "वो पापा आज मेरा सिर दर्द कर रहा है इसलिए मैं कुछ भी बोले जा रही हूं। मैं आपको शाम को कॉल करती हूं।" कहकर उसने फोन काट दिया।
विनीत जी के शब्द उनके मुंह में ही रह गए।
फोन कटने के बाद रश्मि जी बोलीं, "अब तो हो गई आपको तसल्ली कि आपकी बिटिया रानी ठीक है।"
विनीत जी– "नहीं, वो ठीक नहीं है। कुछ तो गड़बड़ है। जब से वो दिल्ली गई है तब से उसका व्यवहार कुछ बदल सा गया है। एक तो बहुत कम बात करती है और करती भी है तो कुछ अजीब सी और फिर कुछ बोलकर फोन काट देती है। मुझे तो लगता है कि कुछ ना कुछ तो गड़बड़ है।"
रश्मि जी– "हे भगवान! आप दोनों बाप–बेटी का मुझे तो कुछ समझ नहीं आता।"
इतना कहकर रश्मि जी अंदर की तरफ चली गईं पर विनीत जी एक बार फिर उसी सोच में डूब गए।
…
प्रदिति ने फोन काटकर अपने दिल पर हाथ रखकर कहा, "अच्छा है, पापा को कुछ पता नहीं चला। पर ऐसे कब तक झूठ बोलूंगी, कब तक उनसे छिपाऊंगी कि मैं अपनी पहचान छिपाकर उनके ही घर में रह रही हूं।" कहकर प्रदिति मुड़ी कि अपने सामने दामिनी जी को देखकर चौंक गई। डर के मारे उसकी तो जैसे सांस ही रुक गई थी।
वो अटकते हुए बोली, "अ… वो… दादी! मेरे पापा को दिल्ली बहुत पसंद है इसलिए मैंने ऐसा बोला और कुछ नहीं है।" कहकर वो जाने लगी कि दामिनी जी की कही बात पर उसके कदम रुक गए, "फोन पर विनीत था ना?"
प्रदिति ने अपनी आंखें बंद कीं और फिर मुड़कर उसने आंखें खोलीं। दामिनी जी उसकी तरफ मुड़कर बोलीं, "एक मां अपने बच्चे को नहीं पहचान पाएगी?"
उनकी बात पर प्रदिति ने अपनी नजरें झुका लीं। प्रदिति की भी आंखें नम हो आई थीं। दामिनी जी ने उससे अलग होकर पूछा, "कैसा है मेरा विनीत? ठीक तो है ना वो?"
प्रदिति ने हां में गर्दन हिलाई।
…
गरिमा जी अपने रूम की तरफ जा रही थीं कि उन्होंने देखा प्रदिति के रूम में उसका कपबोर्ड खुला हुआ था और उसके सारे कपड़े बिखरकर नीचे गिर गए थे। गरिमा जी उसके रूम ने आईं तो देखा प्रदिति कहीं नहीं थी उन्होंने उसे आवाज़ भी लगाई पर उन्हें कोई जवाब नहीं मिला।
वो खुद से ही बोलीं, "प्रदिति आखिर गई कहां और ये कपबोर्ड… ऐसे कैसे खुला छोड़ सकती है वो?"
फिर उन्होंने गौर से देखा तो कपबोर्ड की कड़ी टूट गई थी उसे देखकर वो बोली, "अरे, इसकी तो कड़ी टूट गई है। इसीलिए सारे कपड़े नीचे गिर गए। प्रदिति भी कहीं नहीं दिख रही है। उसके कपड़ों को मैं ही रख देती हूं।" कहकर वो प्रदिति के कपड़ों को उठाकर कपबोर्ड में रखने लगीं।
…
उधर दामिनी जी और प्रदिति छत पर बैठे थे।
दामिनी जी– "तुम्हें पता है शुरुआत में जब विनीत ये घर छोड़कर गया था ना तो मुझे सबसे ज़्यादा गुस्सा तुम पर और रश्मि पर ही आया था कि तुम दोनों की वजह से ही मेरे विनीत और गरिमा अलग हो गए पर समय के साथ–साथ मेरी वो गलतफहमी भी दूर हो गई। मैं समझ गई कि इसमें तुम दोनों का कोई दोष नहीं था, वो तो नियति थी जिसने ये सब करवाया किस्मत के आगे सब हार जाते हैं हम सब भी हार गए।"
प्रदिति ने दामिनी जी के हाथ पर हाथ रखकर कहा, "नहीं, दादी! हम हारे नहीं हैं, हम तो अभी नियति के इस खेल को खेल रहे हैं और बहुत जल्द जीतने वाले हैं इसीलिए तो मैं यहां आया हूं ताकि मां और पापा को फिर से एक कर सकूं, अपने परिवार को फिर से जोड़ सकूं।"
दामिनी जी– "बेटा! मुझे तो ये सच शुरुआत से पता था लेकिन मैं फिर भी कुछ नहीं कर पाई क्योंकि मेरे विनीत की कसम और गरिमा की जिंदगी के लिए चिंता ने मुझे रोक लिया तो फिर तुम कैसे करोगी?"
प्रदिति एक हल्की सी मुस्कान के साथ बोली, "दादी! जब अपनों का साथ हो तो कुछ भी मुश्किल नहीं है।"
प्रदिति की बात पर दामिनी जी मुस्कुरा दीं।
…
उधर गरिमा जी प्रदिति के कपड़ों को उसके कपबोर्ड में रख रही थीं। अचानक से उनकी नज़र एक फोटो पर पड़ी जोकि कपड़ों से ढका हुआ था उसमें दूर से बस प्रदिति दिख रही थी। उन्होंने मुस्कुराकर कहा, "अरे वाह, इस फोटो में तो प्रदिति बहुत प्यारी लग रही हैं" कहकर उन्होंने उस फोटो को कपड़ों से निकाला और मुस्कुराकर देखा पर जैसे ही उनकी नज़र उस फोटो में प्रदिति के साथ खड़े विनीत जी और रश्मि जी पर पड़ी, उनकी मुस्कान पल ने गायब हो गई और साथ ही उनकी आंखें गुस्से से लाल हो गईं।
क्रमशः