Atit ke panne - 45 - Last Part books and stories free download online pdf in Hindi

अतीत के पन्ने - भाग 45 (अंतिम भाग)

पिया और नव्या दूसरे दिन सुबह तैयार होकर निकल पड़े।।
शाम तक हवेली भी पहुंच गए।
पिया ने कहा वर्षों के बाद यहां आ गई पर आलेख नहीं है कहीं भी।।

फिर देखा कि शाम सब कुछ सम्हाल कर रखा था।
शाम ने कहा आइए आप लोग पहले नहा लीजिए फिर नाश्ता करने आइएगा।
नव्या इधर उधर देखने लगी थी उसे कुछ अजीब सा लग रहा था जैसे वो पहले भी आई थी यहां।
नव्या ने कहा अरे वो बैठक में एक आराम कुर्सी हुआ करती थी?
पिया भी आश्चर्य से देखी और फिर बोली अरे तुम्हें कैसे पता?
नव्या ने कहा पता नहीं मुझे ऐसा लगा।।
शाम ने कहा हां वो बनाने दिया है दरअसल वो छोटी मां का था तो आलेख भाई बहुत सम्हाल कर रखे थे।।
नव्या ने बहुत ध्यान से सुन कर कहा हां, छोटी मां।।
वो तस्वीर में है।
नव्या और पिया आगे बढ़ कर तस्वीर की तरफ गई।।
और फिर बोली अरे मम्मी ये तो मेरी तस्वीर है?
पिया ने कहा अरे नहीं ये, तुम्हारे पिता की मां है।।
नव्या ने कहा हां मेरी दादी मां।।

नव्या ने कहा पहले से सब कुछ जानती हु ऐसा लग रहा है।।
पिया ने कहा अच्छा अब चलो फैश होकर आराम करते हैं।
फिर दोनों तैयार हो कर नीचे खाने के टेबल पर बैठ जाती है।
शाम ने कहा मेरी बहन यहां पर खाना बनाती है।।
नव्या ने कहा हां, छाया तो चली गई बड़ी अच्छी हमदर्द थी।।
पिया को बड़ी ताज्जुब हुआ कि इसे छाया के बारे में किसने बताया।
मैंने कोई ग़लती तो नहीं कर दिया नव्या को हवेली लाकरl

ये सोचते हुए पिया वहां से उठ गई।
कुछ देर बाद ही नव्या ऊपर चली गई और फिर सीधे छोटी मां के कमरे में जाकर बैठ गई जैसे वो पहले से जानती हो।
फिर वहां से उठ कर सीधे आलेख के कमरे में जाकर उसके अलमारी खोली और फिर कुछ खोजने लगीं।
और तभी उसे वो लाल डायरी लिखी।
जो पहले तो काव्या ने लिखा था और फिर आलेख ने उसे खत्म किया।

नव्या ने वो डायरी पलटने लगी।
और फिर पढ़ते पढ़ते कब सुबह हो गई पता नहीं चल पाया।
पिया घबरा कर नव्या को खोजती हुई वहीं पर आ गई और फिर बोली ये क्या तुम रातभर सोई नहीं।।
नव्या ने कहा कैसे सोती मम्मी ये डायरी में एक -एक बात ऐसा लिखा है जो बहुत ही कड़वी है पर सच्चाई है।

पिया ने कहा अरे बाबा अब चलो जल्दी से नाश्ता कर लो फिर हमें वकील साहब को भी बुलाना है।

नव्या ने कहा हां ठीक है फिर उस डायरी को वापस अलमारी में रखा और वहां से चली गई।

फिर नाश्ता करने के बाद नव्या ने अपनी वो फाइल निकाल लिया जो आलेख ने पिया को दिया था।
और फिर कुछ देर बाद ही वकील साहब आ गए।
फिर सब कागजात देख कर कहा कि यह तो उनके द्वारा बनाया गया एक वसीयतनामा है।
नव्या ने कहा हां ठीक है पर अब यह हवेली नहीं रहेगी यहां कुछ और ही होगा।

पिया ने कहा अरे नव्या क्या बोल रही हो?
नव्या ने कहा मम्मी मैं एक आर्किटेक्ट हुं तो मुझे ऐसा लगता है कि अब यहां पर कुछ और होना चाहिए जिससे हमारे पुरखों की आत्मा को शांति प्रदान हो।
तो मैंने सोचा है कि यहां पर एक ओल्ड एज होम बनेगा जहां पर बुजुर्ग महिला और पुरुष रहेंगे जिनके घरवालों ने उन्हें अलग-अलग कर दिया है हम उन्हें साथ करेंगे।।
पिया ने कहा अरे वाह क्या सोच है बिल्कुल अपने पापा की बात कही है।।


वकील साहब ने कहा हां ठीक है फिर मैं बहुत जल्दी ही एक नया वसीयत बना देता हुं।
नव्या ने कहा जो -जो नियम है वो सब देख लिजिए।


उसके बाद ही नव्या ने उसी रात वो डायरी लेकर पढ़ने लगी।

फिर दो दिन बाद वकील साहब ने नया दस्तावेज लेकर आ गए।
नव्या ने कहा धन्यवाद आपका मुंह मीठा कीजिए।
फिर सबने मुंह मीठा किया।

नव्या ने कहा अब मेरा अगला कदम होगा ये हवेली को कुछ नया मोड़ देने का क्योंकि यहां पर कोई भी खुश नहीं था लेकिन अब जो भी होगा वो अच्छा ही होगा।
मुझे पता है कि पापा क्या चाहते थे।
जब यहां कोचिंग सेंटर था तो काव्या के नाम से था तो अब काव्यालेख नाम से ओल्ड इज होम बनेगा।
वकील साहब अब एक काम बचा है यह नाम आप जल्दी से कागज़ी बना दीजिए।
मैं नहीं चाहती कि कोई दिक्कत हो।

अतीत में जो भी हुआ वो ग़लत हुआ अब वर्तमान में जो होगा अच्छा होगा।।


पिया ने कहा हां बेटा।।
इस तरह से तीन महीना बीत गया।
सब कुछ सेट करवाने के बाद नव्या और पिया ने वापस जाने का फैसला किया।


नव्या ने अलमारी में से वो डायरी अपने पास रख लिया और फिर
नव्या ने कहा कि सरस्वती जी, काव्या मां, आलेख पापा की मुर्तियां बनेंगी।
ये हमारे पुर्वज है आज इनके वजह से मैं यहां पर हुं।
मम्मी मुझे हर महीने यहां आना होगा तभी पापा का सपना पूरा होगा।
फिर पिया और नव्या वापस दिल्ली आ गए।


नव्या ने सारी बात अपने पति शुभम को बताया तो शुभम ने कहा ये बहुत अच्छा काम कर रही हो वरना कौन इतना अतीत में जाकर करता है आजकल तो वर्तमान में इतना नहीं कर सकता। मुझे गर्व है कि तुम मेरी पत्नी हो।
नव्या के पलकें भारी हो गई थी।
फिर इस तरह से नव्या हर महीने वहां जाकर सब काम देख कर आती थी।


आज पुरे एक साल बीत गए और हम सब आज काव्यालेख ओल्ड एज होम में एक विशेष दिन है आज वहां का उद्घाटन समारोह है।
जो कि मेरी मम्मी पिया ने किया।
और जैसा चाहा था आपने पापा मैंने वैसा ही किया।
मैंने अगर सही समय पर आकर आपकी वो डायरी न पढ़ी होती तो मैं जान नहीं पाती कि आप का एक सपना था जो पुरा मुझे ही करना था।आना तो था ही मुझे।।
आज आप जहां भी हो ये देख कर खुश हो रहे हो।।

काव्यालेख जहां पर बुजुर्ग को उनके अपने से अलग हो चुके हैं जैसे कि कोई मां अपने बेटे पास और कोई बाप अपने दूसरे बेटे के पास।।
यहां पर सब पत्नी अपने पति के साथ रह कर उनका साथ देकर उम्र के उस पार जाने को तैयार पर वही छोटी छोटी खुशियां लेकर जीने का आसरा।।


समाप्त।



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