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वो माया है.... - 63



(63)

बद्रीनाथ विशाल को लेकर परेशान थे। घर आए तो उमा के बारे में यह खबर मिली। वह उमा के पास गए। उनके सर पर हाथ रखकर बोले,
"उमा....हम विशाल से मिलकर आए हैं। वह ठीक है। तुम्हारा भेजा हुआ खाना भी खाया। तुम परेशान मत हो सब ठीक हो जाएगा।"
उमा ने आँखें खोलीं। बद्रीनाथ को देखकर बोलीं,
"माया आई थी। ज़ोर ज़ोर से हंस रही थी। उसे बहुत अच्छा लग रहा है यह सब करके। वह हमें कभी माफ नहीं करेगी।"
"उमा.... तुम परेशान मत हो। ऐसा कुछ नहीं है।"
"हमारी बात पर विश्वास कीजिए। वह मेरे सामने खड़ी थी। ज़ोर ज़ोर से हंस रही थी। अब आप जल्दी बाबा कालूराम से मिलिए।"
"हम कल ही उनसे मिलते हैं। तुम बताओ तुमने कुछ खाया पिया।"
नीलम पास ही खड़ी थी। उसने कहा,
"दीदी कुछ खा ही नहीं रही हैं। सुनंदा दीदी ने बताया कि दोपहर में भी कुछ खाया नहीं था। पता नहीं सुबह नाश्ता भी किया था या नहीं।"
बद्रीनाथ ने कहा,
"खाना लेकर आओ। हम खिलाते हैं।"
नीलम से पहले ही अनुपमा रसोई में चली गई। थाली लगाकर ले आईं।‌ बद्रीनाथ से बोली,
"हमने और मम्मी ने बहुत समझाया पर बुआ कुछ खाने को तैयार ही नहीं हुईं।"
बद्रीनाथ ने थाली पकड़ते हुए कहा,
"जिज्जी आपने खा लिया ?"
किशोरी ने कहा,
"खा लिया बद्री...."
"आप जाकर आराम कीजिए।"
अनुपमा किशोरी को उनके कमरे में ले गई। बद्रीनाथ ने मनोहर से कहा,
"तुम लोग भी खाकर आराम करो।"
"जीजा जी हम आपके साथ खाएंगे। अनुपमा ने खा लिया है। नीलम हमारे साथ खा लेगी।"
बद्रीनाथ ने उमा को बैठाया। उमा ने खाने से इंकार किया लेकिन बद्रीनाथ माने नहीं। उन्होंने जबरदस्ती उन्हें पूरा खाना खिलाया।

उमा को खाना खिलाने के बाद बद्रीनाथ और मनोहर भी खाना खाने लगे। नीलम भी उनके साथ ही खा रही थी। उसने खाते हुए कहा,
"पुष्कर की मौत के समय भी इसी तरह माया दीदी के पास आई थी। आप कोई उपाय कीजिए।"
बद्रीनाथ ने कहा,
"हम भी सोच रहे हैं कि कल ही बाबा कालूराम के पास जाएं। पर हमें यह बताओ कि आज हुआ क्या ?"
मनोहर ने उन्हें पूरी बात बताई। बद्रीनाथ के खाना लेकर जाने के बाद उमा विशाल के लिए रोने लगीं। वह कह रही थीं कि कैसी अभागी माँ हैं। कुछ दिन पहले एक बेटे की अर्थी उठी। अब दूसरा बेटा थाने में है। उसके बाद यह कहकर रोने लगीं कि ना जाने उसका क्या हाल होगा। नीलम और अनुपमा उन्हें समझाने की कोशिश कर रही थीं। कुछ देर बाद उमा ने कहा कि वह छत पर विशाल के कमरे में जाना चाहती हैं। वहाँ उन्हें ऐसा लगेगा जैसे कि वह अपने बेटे के पास हैं।‌ अनुपमा उन्हें ऊपर विशाल के कमरे में ले गई। वह तखत पर लेट गईं। बार बार विशाल का नाम ले रही थीं। कुछ देर बाद अनुपमा से बोलीं कि उन्हें कुछ देर वहाँ अकेले रहना है। अनुपमा नीचे आ गई। उसके कुछ देर बाद अचानक उनके चिल्लाने की आवाज़ आई। मनोहर और अनुपमा ऊपर गए।‌ उमा छत पर खड़ी चिल्ला रही थीं। वह कह रही थीं कि अब तो तुमने पुष्कर की जान भी ले ली। हमें इतने दुख दिए। अभी भी तुम्हें तसल्ली नहीं है। हमें माफ कर दो...जाओ यहाँ से। मनोहर को देखकर बोलीं देखो यह माया कैसे हमारी बर्बादी पर ठहाके लगा रही है। यह कहकर वह बेहोश हो गईं। मनोहर‌ पानी के छींटे मारकर उन्हें होश में लाए। सहारा देकर नीचे उतारा।
सारी कहानी बताने के बाद मनोहर ने कहा,
"जीजा जी जब हम दीदी की आवाज़ सुनकर ऊपर पहुँचे तो दीदी के चेहरे पर डर दिखाई पड़ रहा था। दीदी ने अपने सामने इशारा करके कहा कि माया हंस रही है। हमें कुछ दिखा नहीं पर बहुत डर गए थे। अनुपमा तो डरकर नीचे आ गई थी। लेकिन जब दीदी बेहोश होकर गिर पड़ीं तब हमने अपने आप को संभाला। पानी मंगाकर छींटे मारे। जब दीदी होश में आ गईं तो नीचे लेकर आए। हम सोच रहे थे कि आपको फोन करें तब तक आप आ गए। जीजा जी कुछ तो है। सोनम और मीनू को भी ऐसा लगा था कि जैसे माया आसपास है। उस दिन भी दीदी को वह दिखी थी। आप कल पहला काम यही कीजिए कि उन बाबा जी से मिलकर आइए।"
बद्रीनाथ सोच में पड़ गए। जैसे तैसे खाना खत्म करके वह अपने कमरे में चले गए।

अपनी सेल में लेटा विशाल बद्रीनाथ की कही बात पर विचार कर रहा था। आज‌ उन्होंने कहा था कि उनसे और उमा से गलती हो गई कि उन लोगों ने कभी उसे पास बैठाकर तसल्ली देने की कोशिश नहीं की। यह बात सोचते हुए विशाल ने कहा,
"पापा....अगर आपको और मम्मी को समय पर हमारी तकलीफ का एहसास हो जाता तो हम भी वह गलती ना करते जो हमसे हो गई।"
विशाल कुछ महीने पहले की गई अपनी गलती के बारे में सोचने लगा।
पुष्कर ने घरवालों को खबर दी कि वह दिशा से प्यार करता है और उससे ही शादी करेगा। उसने दिशा के बारे में सारी जानकारी उन लोगों को दी। दिशा के बारे में जानने के बाद बद्रीनाथ, उमा और किशोरी तीनों ने इस बात का विरोध किया। उन लोगों का कहना था कि वह लड़की हमारे घर की बहू बनने लायक नहीं है। सबसे पहली बात तो हमारी बिरादरी की नहीं है। दूसरी बात उसका परिवार ठीक नहीं है। माता पिता का तलाक बहुत साल पहले हो चुका था। पिता से अब कोई संबंध नहीं है।‌ किशोरी का कहना था कि माँ अपने पति के साथ नहीं निभा सकी। ऐसे में भला उसकी माँ ने उसे सही संस्कार कैसे दिए होंगे। वह शहर में पली बढ़ी है। हमारे घर के संस्कारों को नहीं अपना पाएगी।
सारे परिवार का विरोध विशाल को अच्छा लगा था। उसे ऐसा लगता था कि घरवाले ही उसकी बर्बादी का कारण हैं। उनके कारण ही माया ने श्राप दिया था। जिसके कारण उसका जीवन बर्बाद हुआ था। अतः माया के श्राप के चलते किसी भी सूरत में इस घर में खुशियां नहीं आनी चाहिए। लेकिन उसे तब बहुत बुरा लगा जब उसने उमा को बद्रीनाथ से पुष्कर का पक्ष‌ लेते सुना। वह कह रही थीं,
"आप समझने की कोशिश कीजिए। पुष्कर ने साफ कह दिया है कि अगर हम लोग नहीं मानेंगे तो भी वह उस लड़की से शादी करके रहेगा। सोचिए हम ना माने तो वह हम लोगों से संबंध तोड़ देगा। हमारे पास खुशियों की जो उम्मीद है वह पुष्कर के कारण ही है। अगर वह हमसे नाराज़ हो गया तो हमारे पास क्या बचेगा। आप शादी के लिए मान जाइए।"
विशाल कमरे के बाहर खड़ा सब सुन रहा था। उसे बुरा लग रहा था कि उसकी मम्मी ने उसके समय मुंह पर पट्टी बांध रखी थी। उसके समर्थन में एक शब्द‌ भी नहीं कहा था। आज पुष्कर की हिमायत कर रही थीं। उसे उम्मीद थी कि बद्रीनाथ वह बात करेंगे जो उसे अच्छी लगे। लेकिन बद्रीनाथ की बात ने भी उसे तकलीफ पहुँचाई।‌ बद्रीनाथ ने कहा,
"उमा तुम सही कह रही हो। पुष्कर के अलावा इस घर में और कौन खुशियां ला सकता है। अगर वह नाराज़ हो गया तो हम क्या करेंगे। माना कि दिशा हमारे घर की बहू बनने के लायक नहीं है। पर हमें पुष्कर की पसंद को अपनाना होगा। तभी हमें भी खुशियां मिलेंगी। हम तो तैयार हैं पर जिज्जी का मानना बहुत मुश्किल होगा।"
अपने पापा की बात सुनकर विशाल का दिल टूट गया था। वह अपने कमरे में जाकर लेट गया था। सोच रहा था कि उसकी पसंद माया जो हर तरह से इस घर के लायक थी उसे अपनी ज़िद में नकार दिया। दिशा जो कहीं से भी इस घर की बहू बनने के लायक नहीं है उसे अपनाने की बात कर रहे हैं। यह सब सोचकर वह अंदर ही अंदर सुलग रहा था। लेकिन अभी उसकी उम्मीद किशोरी पर टिकी थी।
किशोरी शहर जाकर दिशा से मिल आई थीं। घर लौटकर बहुत खुश नहीं थीं। विशाल को लगा कि वह किसी कीमत पर नहीं मानेंगी। लेकिन किशोरी ने उसे सबसे अधिक झटका दिया। उन्होंने यह कहकर हामी भर दी कि अगर तुम लोगों को सही लग रहा है तो शादी कर दो। जिस दिन किशोरी ने यह बात कही थी विशाल को बहुत धक्का लगा था। वह अपने कमरे में जाकर बैठ गया था। खाना खाने भी नहीं गया था। उमा ने नीचे से आवाज़ देकर उसे खाना खाने के लिए बुलाया ज़रूर था। लेकिन उसके भूख नहीं है कहने पर यह भी नहीं पूछा कि बात क्या है। सब आने वाली खुशी की तरफ देख रहे थे। किसी को भी उसके दुख की परवाह नहीं थी।
अगले दिन वह पवन से मिलने उसके कमरे पर गया था। वहाँ उसने अपने मन का गुबार उसके सामने निकाल दिया था।‌ जब वह अपने घर के लिए निकल रहा था तो पवन ने उससे एक बात कही थी। पवन ने उससे कहा था कि दुनिया में किसी से भी इस बात की उम्मीद मत करो कि वह तुम्हारे सुख के बारे में सोंचेगा। हर कोई सिर्फ अपना सुख देखता है।‌ भले ही वह माँ बाप ही क्यों ना हों। पवन के कहे यह शब्द कई दिनों तक उसके दिल पर हथौड़ी की तरह चोट करते रहे थे।‌ वह महसूस कर रहा था कि बात एकदम सच है।‌ उसके मम्मी पापा को आज‌ पुष्कर से मिलने वाली खुशी की फिक्र है। उसे जो दुख दिया है उसकी उन्हें याद भी नहीं है। वह अकेले में तड़प रहा है। घर में पुष्कर की बरीक्षा की तैयारियां हो रही हैं। सब अपने सुख की तरफ देख रहे हैं। उसका दुख किसी के लिए मायने नहीं रखता।

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